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देस बिराना - 11

देस बिराना

किस्त ग्यारह

गोल्डी के इस तरह अचानक चले जाने से मैं खाली-खाली सा महसूस करने लगा हूं। हर बार मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है कि मेरे दिल को हर आदमी खेल का मैदान समझ कर दो चार किक लगा जाता है। जब तक अकेला था, अपने आप में खुश था। किसी के भरोसे तो नहीं था और न किसी का इंतज़ार ही रहता था। गोल्डी ने आ कर पहले मेरी उम्मीदें बढ़ायीं। यकायक चले जा कर मेरे सारे अनुशासन तहस-नहस कर गयी है। पहले सिर्फ अकेलापन था, अब उसमें खालीपन भी जुड़ गया है जो मुझे मार डाल रहा है। समझ में नहीं आता, उसने मेरे साथ जानते-बूझते हुए ये खिलवाड़ क्यों किया!

एक तरह से अच्छा ही हुआ कि वह मुझसे मिले बिना ही चली गयी है।

घर से धमकी भरे पत्र आने अभी भी बंद नहीं हुए हैं। आये दिन या तो कोई मांग चली आती है या वे परेशान करने वाली कोई ऐसी बात लिख देते हैं कि न सहते बने न जवाब देते। मैं तो थक गया हूं। पूरी दुनिया में कोई भी तो अपना नहीं है जो मेरी बात सुने, मेरे पक्ष में खड़ा हो और मेरी तकलीफों में साझेदारी करे। गुड्डी बेचारी इतनी छोटी और भोली है कि उसे अभी से इन दुनियादारी कर बातों में उलझाना उसके साथ अत्याचार करने जैसा लगता है। अलका दीदी मेरे लिए इतना करती हैं और मुझे इतना मानती हैं लेकिन उनकी अपनी गृहस्थी है। अपनी तकलीफें हैं। उन्हें भी कब तक मैं अपने दुखड़े सुना-सुना कर परेशान करता रहूं। अब तो यही दिल करता है कि कहीं दूर निकल जाऊं। जहां कोई भी न हो। न कहने वाला, न सुनने वाला, न कोई बात करने वाला ही। न कोई अपना होगा और न कोई मोह ही पालूंगा और न बार-बार दिल टूटेगा।

इतने दिनों के आत्ममंथन के बाद मैंने अब सचमुच बाहर जाने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया है। इसके लिए अलग अलग चैनलों की खोज करनी भी शुरू कर दी है कि कहां-कहां और कैसे-कैसे जाया जा सकता है। जब बोस्टन युनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहा था तो कुछेक स्थानीय लोगों के पते वगैरह लिये थे। दो एक फैकल्टी मेम्बर्स से भी वहीं नौकरी के बारे में हलकी सी बात हुई थी। उस वक्त तो सारे प्रस्ताव ठुकरा कर चला आया था कि अपने ही देश की सेवा करूंगा, लेकिन अब उन्हीं के पते खोज कर वहां के बारे में पूछ रहा हूं। अखबारों में विदेशी नौकरियों के विज्ञापन भी देखने शुरू कर दिये हैं। हालांकि देश छोड़ने के बारे में मैं फैसला कर ही चुका हूं, विदेश जाने के लिए इच्छुक होने के बावजूद विदेशी नौकरी के लिए थोड़ा हिचकिचा भी रहा हूं क्योंकि आजकल विदेशी नौकरी का झांसा दे कर सब कुछ लूट लेने वालों की बाढ़-सी आयी हुई है और आये दिन इस तरह की खबरों से अखबार भरे रहते हैं।

ऑफिस में कोई बता रहा था कि आजकल विदेश जाने का सबसे सुरक्षित तरीका है कि वहां रहने वाली किसी लड़की से ही शादी कर लो। बेशक घर जंवाई बनना पड़ सकता है लेकिन न वीजा का झंझट, न नौकरी का और न ही रहने-खाने का।

बात हालांकि बहुत कन्विसिंग नहीं है लेकिन इस पर विचार तो किया ही जा सकता है। हो सकता है इस तरह का कोई प्रोपोजल ही क्लिक कर जाये। यह रास्ता भी मैंने बंद नहीं रखा है। बाहर बेशक नौकरी मिल ही जायेगी लेकिन सिर्फ नौकरी से इस अकेलेपन की कैद से छुटकारा तो नहीं ही मिल पायेगा। उसके लिए नये सिरे से जद्दोजहद करनी पड़ेगी। उसके लिए यहां आते भी रहना पड़ेगा। मैं इसी से बचना चाहता हूं और सोच रहा हूं कि कोई बीच का रास्ता मिल जाये तो बेहतर। नौकरी के विज्ञापनों के साथ-साथ मैंने अब अखबारों के इस तरह के मैट्रिमोनियल कॉलमों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। आजकल इसी तरह के पत्राचार में उलझा रहता हूं।

आखिर मेरी मेहनत रंग लायी है। शादी के लिए ही एक बहुत अच्छा प्रस्ताव अचानक ही सामने आ गया है। अब मैं इस दुनिया से काफी दूर जा पाऊंगा। बेशक वह मेरी मनमाफिक दुनिया नहीं होगी लेकिन कम से कम ऐसी जगह तो होगी जहां कोई मुझे परेशान नहीं करेगा और सतायेगा नहीं।

मुझे बताया गया है कि गौरी बीए पास है और इन कम्पनियों में से एक की फुल टाइम डाइरेक्टर है। यह मेरी मर्जी पर छोड़ दिया गया है कि दामाद बन जाने के बाद चाहे तो इन्हीं में से किसी कम्पनी का सर्वेसर्वा बन सकता हूं या फिर कहीं और अपनी पंसद और योग्यता के अनुसार अलग से काम भी देख सकता हूं। ऐसी कोई भी नौकरी तलाशने में मेरी पूरी मदद करने की पेशकश की गयी है। सारी जानकारी के भेजने के बीच और उनके यहां आ कर मिलने के बीच उन्होंने महीने भर का भी समय नहीं लिया है। ट्रेवल डॉक्यूमेंट्स की तैयारी में जो समय लगेगा वही समय अब मेरे पास बचा है।

यह समय मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा है। मैंने इस संबंध में अब तक अपने घर में कुछ भी नहीं लिखा है। लिखने का मतलब ही नहीं है।

घर का तो ये हाल है कि वे तो हर खत के जरिये एक नया शगूफा छेड़ देते हैं। मैं अभी उनकी दी एक परेशानी से मुक्त हुआ नहीं होता कि वे परेशान करने वाली दूसरी हरकत के साथ फिर हाज़िर हो जाते हैं। आजकल वे बिल्लू और गोलू की शादी की तारीखें तय करके भेजने में लगे हुए हैं। इन सारे खतों के जवाब में मैं बिलकुल चुप बना हुआ हूं। उनके किसी खत का जवाब ही नहीं देता। मैं वहां नहीं पहुंचता तो यह तारीख आगे खिसका दी जाती है।

सारी तैयारियां हो चुकी हैं। नौकरी से इस्तीफा दे दिया है और ऑफिस को बता दिया है - जाने से एक दो दिन पहले तक काम पर आता रहूंगा। अलका दीदी बहुत उदास हो गयी हैं। आखिर उनका मुंहबोला भाई जो जा रहा है। रोती हैं वे - कितनी मुश्किल से तो तुम्हारे जैसा हीरा भाई मिला था, वो भी रूठ कर जा रहा है।

मैं समझाता हूं - मैं आपसे रूठ कर थोड़े ही जा रहा हूं। अब हालात ऐसे बना दिये गये हैं मेरे लिए कि अब यहां और रह पाना हो नहीं पायेगा। आप तो देख ही रही हैं मेरे परिवार को। किस तरह सताया जा रहा है मुझे। कोई दिन भी तो ऐसा नहीं होता जब उनकी तरफ से कोई डिमांड या परेशान करने वाली बात न आती हो।

- क्यों अब क्या नयी डिमांड आ गयी है?

- आप खुद ही देख लो। कल की ही डाक में आयी है ये। यह कहते हुए मैं दारजी की ताजा चिट्ठी उनके आगे कर देता हूं। वे ही तो मेरी हमराज़ हैं यहां पर आजकल। वरना घर वालों ने तो मुझे पागल कर छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।

वे पढ़ती हैं

- बरखुदार

तेरी तरफ से हमारी पिछली तीन-चार चिठ्ठियों का कोई जवाब नहीं आया है। क्या माने हमें इसे - हमारे प्रति लापरवाही, बेरूखी या फिर आलस। तीनों ही बातें रिश्तों में खटास पैदा करने वाली हैं। हम यहां रोज़ ही तेरी डाक का इंतजार करते रहते हैं कि आखिर तूने कुछ तो तय किया होगा। हमारे सारे प्रोग्राम धरे के धरे रह जाते हैं।

फिलहाल खबर यह है कि आजकल बछित्तर यहां आया हुआ है। वे सारा मकान बेचना चाहते हैं। इसमें वैसे तो पांच हिस्से बने हुए हैं जो एक साथ होते हुए भी अलग अलग माने जा सकते हैं। वे लोग मकान एक ही पार्टी को बेचना चाहते हैं लेकिन अगर बड़ी पार्टी न मिली तो अलग-अलग हिस्से भी बेच सकते हैं।

तुझे तो पता ही है कि उनकी और हमारी एक दीवार आगे से पीछे तक सांझी है। इस दीवार के साथ साथ उनका एक वरांडा, रसोई, लैट्रीन और आगे-पीछे दो कमरे बने हुए हैं। ये हिस्सा जोगी का है। मैंने बछित्तरे से बात की है। वह इस बात के लिए राजी हो गया है कि अगर हम उसका यह वाला हिस्सा ले लेते हैं तो वह दूसरी पार्टियों के साथ इस हिस्से की बात ही नहीं चलायेगा।

मकान अभी हाल ही में बनाया गया है और उसमें कभी कोई रहा ही नहीं है। उनके पास जैसे-जैसे पैसा आता गया, वे एक के बाद एक हिस्सा बनाते गये थे। हम सब का दिल है कि बछित्तरे से अगर पूरा मकान नहीं तो कम से कम ये वाला हिस्सा तेरे लिए खरीद ही लें। वह हमारा लिहाज करते हुए इतने बड़े हिस्से का सिर्फ दो लाख मांग रहा है वरना तुझे तो पता ही है आजकल मकानें की कीमतें आसमान को छू रही हैं। आज नहीं तो कल को तू यहां रहने के लिए आयेगा ही। तब तक इसी मकान की कीमत पांच-सात गुना बढ़ चुकी होगी। जायदाद बनाने का इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा। मकान बिलकुल तैयार है और अच्छा बना हुआ भी है। मैं यह मान कर चल रहा हूं कि तुझे यह पेशकश मंज़ूर होगी। तू बेशक हमारी परवाह न करे हमें तो तेरा ही ख्याल रहता है कि तेरा घर बार बन जाये। यही सोच कर मैं आजकल में ही इंतज़ाम करके उसे बयाना दे दूंगा। तू वापसी डाक से लिख, कब तक पूरी रकम का इंतजाम कर पायेगा। तेरे ऑफिस से मकान के लिए कर्जा तो मिलता ही होगा।

बाकी हम बेसब्री से तेरे खत की राह देख रहे हैं। रकम मिलते ही रजिस्ट्री करवा देंगे। अगर जो तुझे अपने बूढ़े बाप पर भरोसा हो तो ये काम मैं करवा दूंगा वरना तू खुद आ कर ये नेक काम कर जाना। इस बहाने हम सबसे मिल भी लेगा। कितना अरसा हो गया है तुझे गये। बेबे तुझे सुबह शाम याद करती है।

जवाब जल्दी देना कि कब तक रकम आ जायेगी।

तेरा ही

दारजी

अलका दीदी ने पत्र पढ़ कर लौटा दिया है और चाय बनाने चली गयी हैं। मैं जानता हूं वे अपनी आंखों के आंसू मुझसे छुपाने के लिए ही रसोई में गयी हैं। उन्हें नार्मल होने में कम से कम एक घंटा लगता है। लेकिन आश्चर्य, वे रसोई से मुस्कुराती हुई वापिस आ रही हैं। चाय के साथ मट्ठी भी है।

आते ही मुझे छेड़ती हैं - चलो, तेरी एक समस्या तो हल हुई। अब तो बना-बनाया घर भी मिल रहा है। मेरी मान, तू उसी कुड़ी, क्या नाम था उसका, संतोष कौरे से शादी कर ही ले। दोनों काम एक ही साथ ही निपटा दे। इस बहाने हम देहरादून भी देख लेंगे।

- दीदी, यहां मेरी जान पर बनी हुई है और आपको मज़ाक सूझ रहा है।

- सच्ची कह रही हूं। तेरे दारजी को भी मानना पड़ेगा। तेरे लिए एक के बाद एक चुग्गा तो ऐसे डालते हैं कि पूछो मत। कुछ पैसे-वैसे भेजने की ज़रूरत नहीं है। तू आराम से इस चिट्ठी को भी हजम कर जा। उनके पास बयाने तक के तो पैसे नहीं हैं, लिखा है, इंतजाम करके बयाना दे दूंगा। और दो लाख का मकान खरीद रहे हैं। उनके चक्करों में पड़ने की ज़रूरत नहीं है।

- आपकी बातों से मेरी आधी चिंता दूर हो गयी है। वैसे तो मैं भी कुछ भेजने वाला नहीं था, अब आपके कहने के बाद तो बिलकुल भी इस चक्कर में नहीं फंसूंगा।

यहां से जाने से पहले गुड्डी को आखिरी पत्र लिख रहा हूं

- प्यारी बहना गुड्डी,

जब तक तुझे यह पत्र मिलेगा मैं यहां से बहुत दूर जा चुका होऊंगा। मैंने बहुत सोच समझ कर देश छोड़ कर लंदन जाने का फैसला किया है। बेशक आखरी उपाय के रूप में ही किया है। मेरे सामने और कोई रास्ता नहीं था। वैसे मेरी बहुत इच्छा थी कि कम से कम तेरी पढ़ाई पूरी होने तक और कहीं ठीक-ठाक जगह तेरी नौकरी का पक्का करके और तेरा अच्छा सा रिश्ता कराने के बाद ही मैं यहां से जाता लेकिन मैं ये दोनों ही काम पूरे किये बिना भाग रहा हूं। इसे मेरा एक और पलायन समझ लेना लेकिन मुझसे अब और बरदाश्त नहीं होता। दारजी की धमकी भरी चिट्ठियां और बिल्लू के हिकारत भरे खत अब मुझसे और बरदाश्त नहीं होते। ये लोग मुझे क्यों चैन से नहीं रहने देते। मैं किसी दिन पागल हो जाऊंगा ये सब पढ़ पढ़ कर। मुझे अभी भी अफसोस होता है कि एक बार घर छोड़ देने के बाद मैं क्यों वापिस लौटा जबकि मुझे पता था कि दारजी जिस मिट्टी के बने हुए हैं उनमें कम से कम इस उम्र में बदलाव की तो कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। अफसोस तो यही है कि बिल्लू भी दारजी के नक्शे कदम पर चल रहा है। वह भी अभी से वही भाषा बोलने लगा है। तो हालात अब इतने बिगड़ गये है कि मेरे लिए और निभाना हो नहीं हो पायेगा। जब से दारजी वगैरह को मेरा पता मिला है, हर महीने कोई न कोई डिमांड आ जाती है। अब तक मैं सत्तर अस्सी हज़ार रुपये भेज चुका हूं और तकलीफ की बात यही है कि मेरा छोटा भाई मुझे धमकी दे जाता है कि मैं उसकी शादी में रोड़े अटका रहा हूं। मेरी तरफ से वो एक की जगह चार शादियां करे। मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूंगा भी लेकिन कम से कम तरीके से तो पेश आये। मैंने तुझे जानबूझ कर नहीं लिखा था कि जब वह यहां आया था तो किस तरह की भाषा में मुझसे क्या-क्या बातें करके गया था। मुझे लिखते हुए भी शर्म आती है। जब वह जाते समय स्टेशन पर मुझे इस तरह की बातें सुना रहा था तो मैंने उससे कहा था - तू कहे तो मैं लिख के दे देता हू कि तू मुझसे पहले शादी कर ले लेकिन फार गॉड सेक, मुझे ये मत बता कि कहां ज्यादा दहेज मिल रहा है और मैं कहां शादी कर लूं। तू अपनी फिकर कर। मेरी रहने दे। तो पता है उसने क्या कहा। कहने लगा - ठीक है, आप दारजी को यही बात लिख दो। मैंने ये सारी बातें एक खत में लिखी थीं लेकिन वह खत तुझे डालने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया और वह खत मैंने फाड़ दिया दिया था।

तो गुड्डी, अब मैं इस इकतरफा पैसे वाले प्यार से थक चुका हूं। वैसे सच तो यह है कि मैं इस खानाबदोशों वाली जिंदगी से ही थक चुका हूं। कितने साल हो गये संघर्ष करते हुए। अकेले लड़ते हुए और हासिल के नाम पर कुछ भी नहीं। मैं यहां से सब कुछ छोड़-छाड़ कर कहीं दूर निकल जाना चाहता हूं। मै जिम्मेवारियों से नहीं भागता लेकिन मुझे भी तो लगे कि मेरी भी कहीं कदर है। मुझे नहीं पता था कि मुझे घर लौटने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। शायद मेरे हिस्से में घर लिखा ही नहीं है।

एक और मोरचे पर भी मुझे करारी हार का सामना कर पड़ा है। उस बात ने भी मुझे भीतर तक तोड़ दिया है। मैं तुझे यह खबर देने ही वाला था कि एक बहुत ही सुंदर और गुणी लड़की से मेरा परिचय हुआ है और आगे जा कर शायद कुछ बात बने। इस रिश्ते से मुझे बहुत मानसिक बल मिला था और मैं उम्मीद कर रहा था कि ये परिचय मेरी ज़िंदगी में एक खूबसूरत मोड़ ले कर आयेगा, लेकिन अफसोस, इस रिश्ते का महल भी रेत के घर की तरह ढह गया और मैं एक छोटे बच्चे की तरह बुरी तरह छला गया। मैं हद दरजे तक अकेला और तनहा हूं, पहले भी अकेला था और आज भी हूं। एक तू ही है जिससे मैं अपने दिल की बात कह पाता हूं। इस अकेलेपन और बार-बार की ठोकरों के बाद ही सोच समझ कर मैंने लंदन जाने का फैसला कर लिया है। फैसला सही है या गलत यह तो वक्त ही बतायेगा। यूं समझ ले कि मैंने खुद को हालात पर छोड़ दिया है। जो भी पहला मौका सामने आया है, उसके लिए हां कर दी है।

लंदन का कोई हांडा परिवार है। वे लोग पिछले दिनों यहां आये हुए थे। वहां उनकी कई कंपनियां हैं, बीस पच्चीस। उनकी लड़की है गौरी। वह भी आयी हुई थी। लड़की ठीक-ठाक लगी। उसी से मेरी शादी तय हुई है। शादी की कोई शर्तें नहीं हैं। मैं चाहूं तो अपना कोई काम काज तलाश सकता हूं या चाहूं तो उनकी किसी कम्पनी में भी अपनी पसंद का काम देख सकता हूं। सब कुछ मुझ पर छोड़ दिया गया है। ट्रेवल फार्मेलिटीज पूरी होते ही निकल जाऊंगा। गौरी की एक तस्वीर भेज रहा हूं।

मैं जानता हूं कि यह मेरी वादा खिलाफी है और मैं अपने वादे पूरे किये बगैर तुझे इस हालत में छोड़ कर जा रहा हूं। मुझे पता है तेरी लड़ाई बहुत मुश्किल है। जब मैं ही नहीं लड़ पाया इनसे, फिर तू तो लड़की है। मैं सोच-सोच कर परेशान हूं कि तू अपनी लड़ाई अकेले के बलबूते पर कैसे लड़ेगी। लेकिन एक बात याद रखना, हम सब को कभी न कभी, कहीं न कहीं जीवन के इस महाभारत में अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होती है। यह महाभारत बहुत ही अजीब होता है। इस महाभारत में हर योद्धा को अपनी लड़ाई खुद ही तय करनी और लड़नी पड़ती है। यहां न तो कोई कृष्ण होता है न अर्जुन। हमें अपने हथियार भी खुद चुनने पड़ते हैं और अपनी रणनीति भी खुद ही तय करनी पड़ती है। कई बार हार-जीत भी कोई मायने नहीं रखती क्योंकि यह तो अंतहीन लड़ाई है जो हमें हर रोज सुबह उठते ही लड़नी होती है। कभी खुद से, कभी सामने वाले से तो कभी अपनों से तो कभी परायों से। तुझे भी आगे से अपनी सारी लड़ाइयां खुद ही लड़नी होंगी। कई बार ये लड़ाई खुद से भी लड़नी पड़ती है। सबसे मुश्किल होती है ये लड़ाई। लेकिन अगर एक बार आप अपने भीतर के दुश्मन से जीत गये तो आगे की सारी लड़ाइयां आसान हो जाती हैं। तू समझदार है और न तो खुद के खिलाफ़ ही कोई अन्याय होने देगी। पहले तुझे अपनी कमजोरियों के खिलाफ, अपने गलत फैसलों के खिलाफ और अपने खिलाफ गलत फैसलों के खिलाफ लड़ना सीखना होगा। तय कर ले कि न गलत फैसले खुद लेगी और न किसी को गलत फैसले खुद पर थोपने देगी। तू तो खुद कविताएं लिखती है और तेरी कविताओं में भी तो बेहतर जीवन की कामना ही होती है। कर सकेगी ना यह काम अपनी बेहतरी के लिए। खुद को बचाये रखने के लिए?

तो गुड्डी, मैं तुझे जीवन के इस कुरूक्षेत्र में लड़ने के लिए अकेला छोड़े जा रहा हूं। मैं अपनी लड़ाई बीच में ही छोड़े जा रहा हूं। मुझे भी अपनों से लड़ना था और तुझे भी अपनों से ही लड़ना है। मैं तीसरी बार मैदान छोड़ कर भाग रहा हूं। लड़ना आता है मुझे भी लेकिन अब मुझसे नहीं होगा। बस यही समझ लो। मैं खुद को परास्त मान कर मैदान छोड़ रहा हूं। कह लो लड़ने से ही इनकार कर रहा हूं।

मेरे पास लगभग तीन लाख रुपये हैं। इसमें से दो ढाई तेरे लिए छोड़े जा रहा हूं। साइन किये हुए पांच कोरे चैक साथ में भेज रहा हूं। जब भी तेरी शादी तय हो या तुझे पढ़ाई के लिए जरूरत हो, अपने खाते के जरिये निकलवा लेना..। इन पैसों के बारे में किसी को भी न तो बताने की ज़रूरत है और न इन्हें किसी के साथ शेयर करने की। किसी भी हालत में नहीं। ये सिर्फ तेरा हिस्सा है..। एक बेघर-बार बड़े भाई की तरफ से छोटी बहन को घर की कामना के साथ एक छोटी सी सौगात।

अपनी किताबें वगैरह जरूरतमंद स्टूडेंट्स के बीच बांट दी हैं। थोड़े से कपड़े और दूसरा सामान है, वे भी जरूरतमंद लोगों को दे जाऊंगा। यहां से मैं अपने ज़रूरत भर के कपड़े और तेरा बनाया स्वेटर ही साथ ले कर जाऊंगा। वही तो तेरी याद होगी मेरे पास। नंदू को मेरे बारे में बता देना। लंदन पहुंचते ही नया पता भेज दूंगा। अभी दारजी वगैरह को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। मैं खुद ही खत लिख कर बता दूंगा...।

मन पर किसी तरह का बोझ मत रखना और अपनी पढ़ाई में दिल लगाना।

अफसोस!! अपने वीर की शादी में नाचने-गाने की की तेरी हसरत पूरी नहीं हो पायेगी। वैसे भी अपनी शादी में मैं लड़के वालों की तरफ से अकेला ही तो होऊंगा। तो इस खत में इतना ही.. ..।

तेरा वीर,

दीप......

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