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देस बिराना - 16

देस बिराना

किस्त सोलह

सारी चिंताओं में घिरा ही हुआ हूं कि एक साथ तीन चिट्ठियां आयी हैं। इस उम्मीद में एक-एक करके तीनों खत खोलता हूं कि शायद इनमें से ही किसी में कोई सुकून भरी बात लिखी हो लेकिन तीनों ही पत्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है।

पहला खत गुड्डी का है -

वीर जी,

आपका प्यारा सा पत्र, आपकी नन्हीं सी प्यारी सी दुल्हन के फोटोग्राफ्स और खूबसूरत तोहफे मिले। इससे पहले बंबई से भेजा आपका आखरी खत भी मिल गया था। मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूं। आखिर आपको अपना घर नसीब हुआ। बेशक सात समंदर पार ही सही। मेरी खुशी तो आपका घर बस जाने की है।

पहले बिल्लू की शादी के समाचार। मैंने किसी को भी नहीं बताया था कि आप इस तरह से लंदन जा रहे हैं, बल्कि जा चुके हैं। मैं आपकी तकलीफ समझ रही थी लेकिन काश..मैं आपकी किसी खुशी के लिए कुछ भी कर पाती तो ..मुझे बाद में बता चला था कि दारजी ने आपको एक और खत लिखा है - वही आपको मनाने की उनकी तरकीबें और आपसे पैसे निकलवाने के पुराने हथकंडे। मैं रब्ब से दुआ कर रही थी कि वह खत आपको मिले ही नहीं और आप एक और ज़हमत से बच जायें लेकिन आपके जाने के अगले दिन ही नंदू वीर जी ने मुझे बुलवाया और चेकों के बारे में पूछा। मैंने उन्हें बताया कि मैं ये लिफाफा ले कर आपके पास आने ही वाली थी। तब उन्होंने एयरपोर्ट से आपके फोन के और दारजी के खत के बारे मैं बताया। मैं सारे चैक उन्हें दे आयी थी।

इधर दारजी की हालत खराब हो रही थी और वे रोज डाकिये की राह देख रहे थे। एक आध बार शायद नंदू के पास भी चक्कर लगाये कि शायद उसके पास कोई फोन आया हो। अगर आपका ड्राफ्ट न आये तो उनकी हालत खराब हो जाने वाली थी। तभी नंदू वीर जी जैसे उनके लिए देवदूत की तरह प्रकट हुए और पचास हजार के कड़कते नोट उनके हाथ पर धर दिये। साथ में एक चटपटी कहानी भी परोस दी.. आपका दीपू अब बंबई में नहीं है। एक बहुत बड़ी नौकरी के सिलसिले में रातों रात उसे लंदन चले जाना पड़ा। वहां जाते ही उसे आपकी चिट्ठी रीडाइरेक्ट हो कर मिली और वह बड़ी मुश्किल से कंपनी से एडवांस ले कर ये पैसे मेरे बैंक के जरिये भिजवा पाया है ताकि आपका नेक कारज न रुके। बल्कि कल आधी रात ही लंदन से उसका फोन आया था। बहुत जल्दी में था। कह रहा था दारजी और बेबे को कह देना कि अपने घर में खुशी के पहले मौके पर भी नहीं पहुंच पा रहा हूं। क्या करूं नौकरी ही ऐसी है। रात-दिन काम ही काम कि पूछो नहीं।

इतने सारे कड़कते नोट देख कर तो दारजी खुशी के मारे पागल हो गये। वे तो सिर्फ पद्रह बीस हजार की उम्मीद लगाये बैठे थे। सारी बिरादरी में आपकी जय-जय कार करा दी है दारजी ने। नंदू वीर जी वाली कहानी को ही खूब नमक मिर्च लगा कर सारी बिरादरी को सुनाते रहे। घर से आपके घर से अचानक चले जाने को भी अब दारजी ने एक और किस्से के जरिये ऑफिशियल बना दिया है - मैंन ते जी बाद विच पता लगेया। दरअसल साडे दीपू दे बार जाण दी गल चल रई सी, ते उन्ने पासपोरट वास्ते जी अप्लाई कित्ता होया सी। उत्थों ई अचानक तार आ गयी सी कि छेत्ती आ जाओ। कुछ सरकारी कागजां दा मामलां सी। विचारा पक्की रोटी छड्ड के ते दिलियों हवाई जहाज ते बैठ के बंबई पोंचेया सी।..

तो वीर जी, ये रही आपके पीछे तैयार की गयी कहानी..।

आप इस भ्रम में न रहें वीर जी कि दारजी बदल गये हैं या अब आपके घर वापिस लौटने पर वे आपसे बेहतर तरीके से पेश आयेंगे। दरअसल वे इस तरह की कहानियां कह के बिल्लू के ससुराल में अपनी मार्केट वैल्यू तो बढ़ा ही रहे हैं, गोलू के लिए भी जमीन तैयार कर रहे हैं। वे हवा में ये संकेत भेज रहे हैं कि उन्हें अब कोई लल्लू पंजू न समझे। उनका बड़ा लड़का अब बहुत बड़ी नौकरी में लंदन में है। अब उनसे उनकी नयी मार्केट वैल्यू के हिसाब से बात की जाये।

बिल्लू की शादी अच्छी तरह से हो गयी है। गुरविन्दर कौर नाम है हमारी भाभी का। छोटी सी गोल मटोल सी है। स्वभाव की अच्छी है। बिल्लू खुश है। बेबे भी। उसे दिन भर का संग साथ भी मिल गया और काम में हाथ बंटाने वाला भी। मुझे भी अपने बराबर की एक सहेली मिल गयी है। बेबे ने दहेज की सारी अच्छी अच्छी चीजें यहां तक कि उस बेचारी की रोजाना की जरूरत की चीजें भी बड़े बक्से में पह़ुंचा दी हैं। मेरे दहेज में देने के लिए। छी मुझे कितनी शरम आ रही है लेकिन मुझे पूछता ही कौन है। मैं भाभी को चुपके से बाजार ले गयी थी और उन्हें सारी की सारी चीजें नयी दिलवा दीं। उस बेचारी को कम से कम चार दिन तो खुशी से अपनी चीजें इस्तेमाल कर लेने देते।

इतना ही,

मेरी प्यारी भाभी को मेरी तरफ से ढेर सा प्यार.। भाभी की एक फोटो भेज रही हूं।

आपकी बहन,

गुड्डी

दूसरा ख़त दारजी का है-

बेटे दीपजी

(तो इस बार दारजी का संबोधन दीपजी हो गया है। जरूर कुछ बड़ी रकम चाहिये होगी!!)

जींदे रहो। पहले तो शादी और परदेस की नौकरी की बधाई लो। बाकी हमें और खास कर तेरी बेबे को चंगा लगा कि तुम बहुत वडी नौकरी के सिलसिले में लंदन जा पहुचे हो। रब्ब करे खूब तरक्की करो और खुशियां पाओ। बाकी तुम्हारी शादी की खबर से भी हमें अच्छा लगा कि तुम्हारा घर बार बस गया और अब तुम्हें दुनियादारी से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिये। बेशक हम सबकी तुम्हारी शादी में शामिल होने की हसरत तो रह ही गयी। तुम्हें और तुम्हारी वोटी को खुद आसीसें देते तो हमें चंगा लगता। बाकी हमारी आसीसें हमेशा तुम्हारे साथ हैं। बाकी तुमने बिल्लू के वक्त जो अपना फरज निभाया, उससे बिरादरी में हमारा सीना चौड़ा हो गया कि तुमने परदेस में जाते ही कैसे भी करके इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करके हमारे हाथ मजबूत किये। सब अश अश करने लगे कि बेटा हो तो दीपजी जैसा!! बेटेजी अब तो मेरी एक ही चिंता है कि किसी तरह गुड्डी के हाथ पीले कर दूं। तुझे तो पता ही है कि बेबे की तबीयत ठीक नहीं रहती और मेरा भी काम धंधा मंदा ही है। अब उमर भी तो हो चली है। कब तक खटता रहूंगा जबकि मेरा घर बार संभालने वाले तीन-तीन जवान जहान बेटे हैं। बाकी बिल्लू की शादी के बाद से हाथ थोड़ा तंग हो गया है। उसके अपने खरचे भी बढ़े ही हैं। वैसे अगर तेरा भी रिश्ता यहीं हो जाता तो बात ही और थी। बिल्लू के सगों ने भी एक तरह से निराश ही किया है। मैंने तो तेरी बहुत हवा बांधी थी लेकिन कुछ बात बनी नहीं। अब तो यही देखना है कि गुड्डी के समय हमारी इज्जत रह जाये। गोलू फिर भी एकाध बरस इंतजार कर सकता है लेकिन लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी क्यों न हो, सीने पर बोझ तो रहता ही है। ये खत सिरफ इस वास्ते लिखा कि कभी भी गुड्डी की बात आगे बढ़ सकती है। दो- एक जगह बात चल भी रही है। बाकी तुम खुद समझदार हो।

तुम्हारा,

दारजी

तो यह बात थी। कैसी मीठी छुरी चलाते हैं दारजी भी। पहले से खबर कर रहे हैं कि भाया, तैयारी रख, तेरी बहन के हाथ भी पीले करने हैं। आज ही नंदू से बात करनी पड़ेगी कि किसी भी तरह से दारजी को समझाये कि गुड्डी के लिए जल्दीबाजी न मचायें। कब और कैसे रुख बदलना है, दारजी बखूबी जानते हैं।

अलबत्ता तीसरी चिट्ठी मेरे लिए थोड़ी सुकून भरी है। पत्र टीआइएफआर से है। उन्होंने मेरे बकाया पैसों का स्टेटमेंट बना कर भेजा है और पूछा है कि मैं ये पैसे कहां और कैसे लेना चाहूंगा। लगभग दो लाख के करीब हैं।

सोचता हूं ये पैसे मैं भसीन साहब के जरिये किसी चैनल से यहां मंगवा लूं। वक्त जरूरत काम आयेंगे। रोजाना कितनी तो ज़रूरतें होती हैं मेरी और मुझे गौरी के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। ऑफिस को यही लिख दिया है मैंने कि ये पैसे मिस्टर देवेन्‍द्र को दे दिये जायें। ऑफिस और देवेन्‍द्र जी को ऍथारिटी लैटर भेज दिया है।

शिशिर आया है। मेरे डेवलेप किये हुए पैकेज लेने। वैसे हम कई बार मिले हैं। उनके घर खाना खाने भी गये हैं और पार्टियों में भी मिलते रहे हैं लेकिन यह पहली बार है कि हम दोनों अकेले आमने सामने बात कर रहे हैं। वह मेरा सबसे बड़ा साढ़ू है। वह भी मेरी ही तरह हांका करके लाया गया है। चार साल हो गये हैं उसकी शादी को। एक बच्चा भी है उनका। कलकत्ता से एमबीए है। अच्छी भली नौकरी कर रहा था कि लंदन में मेरी ही तरह शानदार कैरियर का चुग्गा देख कर फंस गया था। वह गैस स्टेशनों का काम देख रहा है। हम सब जवांइयों में से उसकी हालत कुछ बेहतर है क्योंकि उसने अपनी बीवी को बस में कर रखा है और लड़ झगड़ कर अपनी बात मनवा लेता है।

पूछ रहा है वह - आपने तो वाकई कमाल कर दिया कि इतने कम समय में अपने ठीये को पूरी तरह चेंज करके रख दिया। वह हँसा है - बस हमारा ख्याल रखना, कहीं हमें घर से या ससुराल से मत निकलवा देना। और कोई ठिकाना नहीं है अपना।

- क्यों मेरे जले पर नमक छिड़क रहे हो भाई। ये तो मैं ही जानता हूं कि ये सब मैंने क्यों और किसलिए किया। अचानक इतने दिनों से दबा मेरा आक्रोश बाहर का रास्ता तलाशने लगा है। मेरी आवाज भारी हो गयी है।

शिशिर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा है - आयम सौरी गगनदीप, मुझे नहीं मालूम था। वैसे आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। बेशक मेरी भी वही हालत है जो कमोबेश आपकी है बल्कि मैंने तो यहां इससे भी बुरे दिन देखे हैं। आपने कम से कम कुछ काम करके अपनी इमेज तो ठीक कर ली है।

- दरअसल मुझे यहां के जो सब्जबाग दिखाये गये थे और मैं जो उम्मीदें ले कर आया था, शादी के कुछ ही दिन बाद मुझे लगने लगा था कि मैं बुरी तरह छला गया हूं।

- बेशक हम आपस में आमने सामने नहीं मिले है लेकिन मैं आपकी हालत के बारे में जानता हूं कि आप बहुत भावुक किस्म के आदमी हैं और उतने प्रैक्टिकल नहीं हैं। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि आप किसी जिद में या खुद को जस्टीफाई करने के लिए ये सब कर रहे हैं। चलिये, कहीं बाहर चलते हैं। वहीं बात करते हैं।

- चलिये।

हम सामने ही कॉफी शॉप में गये हैं ।

मैं बात आगे बढ़ाता हूं - मुझे पता नहीं कि आपकी बैक ग्राउंड क्या है और आप यहां कैसे आ पहुंचे लेकिन मैं यहां एक घर की तलाश में आया था। मुझे पता नहीं था कि घर तो नहीं ही मिलेगा, मेरी आजादी और प्राइवेसी भी मुझसे छिन जायेंगे। इतने दिनों के बाद शिशिर अपना-सा लग रहा है जिसके सामने मैं अपने आपको खोल पा रहा हूं।

- आप ठीक कहते हैं। हम सबकी हालत कमोबेश एक जैसी ही है। हम में से किसी का भी अपना कहने को कुछ भी नहीं है। जो कुछ अपना था भी वह भी उन्होंने रखवा लिया है। न हम कहीं जॉब तलाश कर सकते हैं और न वापिस भाग ही सकते हैं। हम में से कुछ ने एकाध बच्चा भी पैदा करके अपने गले के फंदे को और भी मजबूती से कसवा लिया है। मैं खुद पछता रहा हूं कि मैं इस बच्चे वाले चक्कर में फंसा ही क्यों। खैर। मैं तो अब इस बारे में सोचता ही नहीं... जो है जैसा है, चलने दो, लेकिन आप नये आये हैं, अकेले हैं और किसी को जानते भी नहीं हैं। न हांडा परिवार में और न हममें से किसी को। और शायद आप सोचते भी बहुत हैं, इसीलिए भी आपको ऐसा लगता रहा है।

शिशिर की बात सुन कर मेरा दबा आक्रोश फिर सिर उठा रहा है। शिशिर मेरे मन की बात ही तो कर रहा है - हम बंधुआ मजदूर ही तो हैं जिनकी आज़ादी का कोई जरिया नहीं है।

आज मैंने और शिशिर ने इस पहली ही मुलाकात में अपने अपने जख्म एक दूसरे के सामने खोल दिये हैं। एक मायने में शिशिर की हालत मुझसे अलग और बेहतर है कि वह घर परिवार से आया है, मेरी तरह घर की तलाश में नहीं आया। उसके पीछे इंडिया में कुछ जिम्मेवारियां हैं जिन्हें वह चोरी छुपे पूरी कर रहा है। उसने हेरा-फेरी के कुछ बहुत ही बारीक तरीके ढूंढ लिये हैं या इजाद कर लिये हैं और इस तरह हर महीने चार पांच सौ पौंड अलग से बचा लेता है। इस तरह से कमाये हुए पैसों को वह नियमित चैनलों से भारत भेज रहा है।

मैं उसकी बात सुन कर दंग रह गया हूं। उसने मेरा हाथ दबाया है - आप ही पहले शख्स हैं जिसे मैंने इस सीक्रेट में राज़दार बनाया है। मैंने अपने घर वालों को सख्त हिदायत दे रखी है कि भूल कर भी अपने पत्रों में रुपये पैसे मंगाने या पाने का जिक्र न करें। अपनी पसर्नल डाक भी मैं अलग-अलग दोस्तों के पतों पर मंगाता हूं और ये पते बदलता रहता हूं। वह बता रहा है - पहले मैं भी आपकी तरह कुढ़ता रहता था लेकिन जब मैंने देखा कि यहां की गुलामी तो हम चाह कर भी खत्म नहीं कर सकते और मरते दम तक हांडा परिवार के गुलाम ही बने रहेंगे तो फिर हमीं क्यों हरिश्चंद्र की औलाद बने रहें। पहले तो मैं भी बहुत डरा, मेरी आत्मा गवारा ही नहीं करती थी। आज तक मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया था लेकिन आज तक किसी ने मेरा शोषण भी नहीं किया था इसलिए मैंने भी मन मार कर ये सब करना शुरू कर दिया है, बेशक चार पांच सौ पौंड यहां के लिहाज से कुछ नहीं होते लेकिन वहां मेरा पूरा घर इसी से चलता है। इनके भरोसे रहें तो जी चुके हम और हमारे परिवार वाले।

शिशिर से मिलने के बाद बहुत सुकून मिला है। एक अहसास यह भी है कि मैं ही अकेला नहीं हूं। दूसरा, यह भी कि शिशिर है जिससे मैं कभी-कभार सलाह ले सकता हूं या अपने मन की बात कह सकता हूं।

शिशिर ने वादा किया है कि वह नियमित रूप से फोन करता रहेगा और हफ्ते दस दिन में मिलता भी रहेगा।

  • इधर गौरी बहुत खुश है कि मैंने हांडा परिवार के लिए, अपने ससुराल के लिए, गौरी के मायके के लिए इतना कुछ किया है। लेकिन मैं ही जानता हूं कि इन दिनों मैं किस मानसिक द्वंद्व से गुजर रहा हूं। गौरी का साथ भी अब मुझे उतना सुख नहीं दे पाता। जब मन ही ठिकाने पर न हो तो तन कैसे रहेगा।

    अभी उस दिन मैं अपने पुराने कागज देख रहा था तो देखा - मेरे सारे पेपर्स अटैची में से गायब हैं। मैं एकबारगी तो घबरा ही गया कि कहीं चोरी तो नहीं चले गये हैं। जब गौरी से पूछा तो वह लापरवाही से बोली - संभाल कर रख दिये हैं। तुमने तो इतनी लापरवाही से खुली अटैची में रखे हुए थे। वैसे भी तुम्हें क्या ज़रूरत है इन सब पेपर्स की?

    मैं चुप रह गया था। क्या जवाब देता। मैं जानता था कि गौरी झूठ बोल रही है। मेरे पेपर्स खुली अटैची में तो कत्तई नहीं रखे हुए थे। मैं कभी भी अपनी चीजों के बारे में लापरवाह नहीं रहा।

    ***