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देस बिराना - 15

देस बिराना

किस्त पंद्रह

हम पहले गौरी के स्टाल पर गये हैं। पूरा स्टाफ उसे और मुझे शादी की विश कर रहा है। कई लोग तो आये भी थे रिसेप्शन में। अब वह सबसे मेरा परिचय करा रही है। स्टाफ की तरफ से हमें एक खूबसूरत बुके दिया गया है। वाकई बहुत अच्छी शाप है उसकी। वहां कॉफी पी कर गौरी मुझे द बिज़ी कॉर्नर में ले कर आयी है। मैनेजर से परिचय कराया है। मैनेजर साउथ इंडियन है। उसने बहुत ही सज्जनता से हमारा स्वागत किया है और पूरे स्टाफ से मिलवाया है। स्टोर्स में सब जगह घुमाया है। सारे सैक्शंस में ले कर जा रहा है और सारी चीजों के बारे में बोरियत की हद तक बता रहा है।

गौरी लगातार मेरे साथ है और मेरे साथ ही सारी चीजें समझ रही है। कहीं कहीं कुछ पूछ भी लेती है मैनेजर से। एकाउंट्स और इन्वैंटरी में हमने सबसे ज्यादा वक्त बिताया है। मैनेजर हमें अपने केबिन में लेकर गया है। केबिन क्या है, ज़रा सी जगह को ग्लास की दीवारों से कवर कर दिया गया है। वहीं तीन शार्ट सर्किट टीवी रूक्रीन लगे हैं जो बारी-बारी से पूरे स्टोर्स में अलग अलग लोकेशनों की गतिविधियां दिखा रहे हैं।

मैनेजर इन सारी चीजों के बारे में बोरियत की हद तक विस्‍तार से बात कर रहा है।

मैंने और कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा है। मैं सब कुछ देख समझ रहा हूं। कल से तो मुझे यहीं आना ही है। अभी तो पता नहीं कितने दिन लगें इस तंत्र को समझने में।

आज स्टोर्स में दूसरा ही दिन है। मैं अकेला ही पहुंचा हूं। गौरी ने भी आज ही से अपना काम शुरू किया है। वह अल-सुबह ही निकल गयी थी। मेरे जागने से पहले वह तैयार भी हो चुकी थी और अगर मैं उठ कर उसके लिए चाय न बनाता तो बिना मिले और बिना एक कप चाय पिये ही वह चली जाती। तब मैंने ही उठ कर उसके लिए चाय बनायी और उसे एक स्वीट किस के साथ विदा किया।

आज मैनेजर ने मुझे सारी चीजें फिर से समझानी शुरू कर दी हैं। वह आखिर इतने डिटेल्स में क्यों जा रहा है। सब कुछ तो मैं पहले दिन समझ ही चुका हूं। और फिर ऐसी भी क्या जल्दी है कि सब कुछ एक साथ ही समझ लिया जाये। मैं हैरान हूं कि ये सारी औपचारिकताएं किस लिये दोहरायी जा रही हैं। वह भी जिस तरीके से हर मामूली से मामूली चीज के बारे में बता रहा है, मुझे अटपटा लग रहा है लेकिन मैं उसे टोक भी नहीं पा रहा हूं। सारा दिन उसी के साथ माथा पच्ची करते बीत गया है।

दिन ही बेहद थकाऊ रहा। दुनिया भर की चीजों की इन्वैंट्री दिखा डाली है मैनेजर ने। वैसे भी दिमाग भन्नाया हुआ है। दिन भर ग्राहकों की भीड़ और हिसाब किताब देखने, समझने और रखने का झंझट। इस किस्म के काम का न तो अनुभव है और मानसिक तैयारी ही। गौरी बीच बीच में फोन करती रही है। चार बजे के करीब आयी गौरी तभी मैनेजर नाम के पिस्सु से छुटकारा मिल सका है।

आज दो महीने हो गये हैं मुझे स्टोर्स संभाले। लंदन आये लगभग तीन महीने। मैं ही जानता हूं कि दो महीने का यह बाद वाला अरसा मेरे लिए कितना भारी गुज़रा है। एक - एक पल जैसे आग पर बैठ कर गुज़ारा हो मैंने। स्टोर्स में जाने के अगले हफ्ते ही उस मैनेजर को स्टोर से निकाल दिया गया था। वह इसीलिए हड़बड़ी में दिखायी दे रहा था। अब मैं ही इसका नया मैनेजर था।

मैं इस नयी हैसियत से डिस्टर्ब हो गया हूं। यह क्या मज़ाक है। मैंने इस घर में शादी की है और इस शादी का मैनेजरी से क्या मतलब? गौरी के पापा ने तो ये कहा था कि ये स्टोर्स मेरे हवाले कर रहे हैं। अगर यही बात ही थी तो मैनेजर को निकालने का क्या मतलब? अगर वे मैनेजर की ही सेलेरी बचाना चाहते थे तो मुझसे साफ-साफ कह दिया होता कि हमें दामाद नहीं दो-ढाई हज़ार पाउंड वाला मैनेजर चाहिये। मैं तब तय करता कि मुझे आना भी है या नहीं। यहां की नौकरी करना तो बहुत दूर की बात थी। मुझे वर्क परमिट का ख्याल नहीं था या पता ही नहीं था लेकिन उन्हें तो पता था कि यहां मैं आऊं या और कोई दामाद आये, ये समस्या तो आने ही वाली है। इसका मतलब इन लोगों ने अच्छी तरह से सोच-समझ कर ये जाल बुना है। अब दिक्कत ये है कि कहीं सुनवाई भी तो नहीं है। धीरे-धीरे मुझे सारी चीजें समझ में आने लगी थीं। सारा चक्कर ही इन सारी दुकानों के लिए भरोसे का और एक तरह से बिना पैसे का स्टाफ जुटाने का ही था। मैंने पूरी स्टडी की है और मेरा डर सही निकला है।

मुझसे पहले चार लड़कियों के लिये दामाद इसी तरह से लाये गये हैं। पांचवां मैं हूं। उनके सभी दामाद हाइली क्वालिफाइड हैं। पांचों की शादियां इसी तरह से की गयी हैं। न लड़कियां घर से बाहर गयी हैं और न बिजिनेस ही। सबसे बड़ी शिल्पा की शादी शिशिर से हुई है। शिशिर एमबीए है और चार गैस स्टेशन देख रहा है। सुचेता के पति सुशांत के पास सारे पब और रेस्तरां हैं। वह कैमिकल इंजीनियर है। दोनों मिल कर संभालते हैं ये सारे ठीये। नीलम का आर्कीटेक्ट पति देवेश बुक शॉप में है और संध्या का एमकॉम पति रजनीश सेन्ट्रल स्टोर्स संभालता है और सारे स्टोर्स के लिए और सारे घरों के लिए सप्लाई देखता है। अलबत्ता घर के सारे आदमी और लड़के इन कम्पनियों के या तो अकेले कर्त्ता हैं या ज्वाइंटली सारा कामकाज संभालते हैं। उनके पास बेहतर पोजीशंस वाली ऐसी इंटरनेशनल कम्पनियां हैं जिनमें खूब घूमना-फिरना और कॉटैक्ट्स हैं। वैसे तो इनकी लड़कियों की पोजीशन भी उनकी पढ़ाई के हिसाब से है लेकिन दामादों की हालत मैनेजरों या उसके आसपास वाली है। जहां लड़की दामाद एक साथ हैं भी, वहां वाइफ ही सर्वेसर्वा है और उसके हसबैंड की पोजीशन दोयम दरजे की ही है। हां, लड़का बहू वाले मामले में भी यही दोहरे मानदंड अपनाये गये हैं। बहुएं भी आम तौर पर इंडियन ही हैं और उनके जिम्मे अलग-अलग ठीये हैं।

हम सभी दामाद भारतीय अखबारों के जरिये घेरे गये हैं। पता नहीं पूरे खानदान में कितनी लड़कियां और बाकी हैं और कितने दामाद अभी और इम्पोर्ट किये जाने हैं।

अब मुझे गौरी के फ्लोरिस्ट स्टाल पर बैठने का भी कारण समझ में आ गया है। वजह बहुत सीधी सादी है। उसे वहां बहुत कम देर के लिए बैठना पड़ता है और बाकी वक्त वह फिल्में देखते हुए और कॉमिक्स पढ़ते हुए गुजारती है। कई बार वह नहीं भी जाती और स्टाफ ही सारा काम देखता रहता है। वह अक्सर अपनी कजिंस की शॉप्स पर चली जाती है।

अब मेरे सामने इस स्टोर्स में मैनेजरी संभालने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। गलती मेरी ही थी। मैं ही तो भागा-भागा इतने सारे लालच देख कर खिंचा चला आया हूं। यह तो मुझे ही देखना चाहिये था कि बिना वर्क परमिट के मेरी औकात यहां सड़क पर खड़े मज़दूर जितनी भी नहीं।

लेकिन यहां कोई भी तो नहीं है जिससे मैं ये बातें कह सकूं। हांडा ग्रुप से तो पहली मुलाकात में ही लाल सिग्नल मिल गया था कि नो डिस्कशन एट ऑल। अब कहूं भी तो किससे? मेरे पास घुट-घुट कर जीने कुढ़ने के अलावा उपाय ही क्या है ?

जब मैनेजर को निकाला गया था तो मैंने गौरी से इस बारे में बात की थी - तुम्हें नहीं लगता गौरी, इस तरह से स्टोर्स के मैनेजर को निकाल कर उसकी जगह मुझे दे देना, एनी हाऊ, मैं पता नहीं क्यों इसे एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा हूं।

- देखो दीप, जो आदमी वहां का काम देख रहा था, दरअसल स्टॉपगैप एरेंजमेंट था। पहले वहां मेरा कजिन देवेश काम देखता था। उस वक्त वहां कोई मैनेजर नहीं था। वैसे भी हमारे ज्यादातर एस्टेबलिशमेंट्स में मैनेजर नहीं हैं।

उसने मेरा हाथ दबाते हुए कहा है - भला हम तुम्हें मैनेजर की बराबरी पर कैसे रख सकते हैं।

बेशक गौरी ने अपनी तरफ से मुझे बहलाने के लिए ये सारी बातें कही हैं लेकिन असलियत वही है जो मेरे सामने है। मैनेजर का जाना और मेरा आना, इसमें तो मुझे पाउंड बचाने के अलावा और कोई तर्क नज़र नहीं आता।

इस बीच मैंने बारीकी से सारी चीजें देखी भाली हैं और सारे तंत्र को समझने की कोशिश की है। मैंने पाया है कि यहां, घर स्टोर्स में, फैमिली मैटर्स में, बिजिनेस में, मेरे स्टोर्स में हर चीज के लिए सिस्टम बना हुआ है। यही लंदन की खासियत है। कहीं कोई चूक नहीं। कोई सिस्टम फेल्यर नहीं। जब मैनेजर के जाने के बाद के महीने में हांडा ग्रुप के कार्पोरेट ऑफिस से स्टाफ की सेलरी का स्टेटमेंट आया था तो मैंने देखा, पिछली बार की तुलना में मैनेजर की सैलरी के खाते में पूरे ढाई हज़ार पौंड महीने के बचा लिये गये हैं। अब सारा खेल मेरी समझ में आ गया है। मुफ्त का, भरोसेमंद मैनेजर, घर जवांई का घर जवांई। न घर छोड़ कर जाये और न दुकान। अब गौरी के सारे तर्कों की भी पोल खुल गयी है।

मैं पूरी तरह घिर चुका हूं। अपने घर का सपना एक बार फिर मुझे छल गया है। मेरे हाथ खाली हैं और पूरे देश में मैं किसी को भी नहीं जानता। यहां तो घर में किसी और से कुछ भी कहने का न हक है, न मतलब। यह तो मुझे पहले ही दिन बता दिया गया था कि मुझे जो कुछ कहना है गौरी के जरिये ही कहना है। अलबत्ता सिस्टम, परिवार या पसर्नल लाइफ के बारे में कुछ भी कहने की मनाही है। गौरी से बात करो तो उसके बहलाने के अपने तरीके हैं - क्यों टैंशन लेते हो डीयर। तुम्हें किस बात की चिंता? किस बात की तकलीफ है तुम्हें?

इन सारी मानसिक परेशानियों के बावजूद मैंने एक फैसला किया है कि जो काम मुझे सौंपा गया है, वह मैं कर के दिखाऊंगा। गौरी ने जो मेरी ही बात का ताना मारा था कि मेरे लिए कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं है तो सचमुच ऐसा ही है। मैं एक बार तो यह भी कर के दिखा ही देता हूं कि मैं स्टोर्स भी संभाल सकता हूं और इस पर भी अपनी छाप छोड़ सकता हूं। इसमें ऐसा क्या है जो एक मामूली और कम पढ़ा लिखा मद्रासी संभाल सकता है और मैं नहीं संभाल सकता। बल्कि मुझे तो इस बात के पूरे अधिकार भी दे दिये गये हैं कि मैं जैसा चाहूं इसे बना संवार सकूं।

मैंने देख लिया है कि मेरे सामने क्या काम है और उसे कैसे करना है। मैंने स्टोर्स की लुक, इसकी सर्विस, इसकी डिज़ाइनिंग और इसकी ओवरऑल इमेज को बेहतर बनाने के लिए सारी चीजों की स्टडी की है। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए मैंने तीन महीने का समय तय किया है और अपनी रिपोर्ट में यह भी ज़िक्र कर दिया है कि इस बीच कुछ सैक्शन्स को शिफ्ट करना पड़ सकता है या एक आध हफ्ते के लिए बंद भी करना पड़ सकता है लेकिन कुल मिला कर रोजाना के कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

गौरी ने जब रिपोर्ट देखी है तो वह दंग रह गयी है कि मैं इतने सिस्टम से काम करता हूं - आप तो यार, छुपे रुस्तम निकले। हमारे यहां आज तक किसी ने भी इतनी दिलचस्पी से किसी काम को लेकर रिपोर्ट तैयार नहीं की होगी।

मै गौरी को बताता हूं - ये तुम्हारे ही उकसाने की नतीजा है कि मैं ये प्रोजेक्ट कर रहा हूं।

कुल मिला कर गौरी बहुत खुश है कि उसके हसबैंड ने हांडा एम्पायर के लिए कुछ नया सोचा है।

रिपोर्ट हाथों हाथ एप्रूव कर दी गयी है और पूरे काम का एजेंसी को कांट्रैक्ट दे दिया गया है।

इस तरह से मैंने खुद को स्टोर्स को बेहतर बनाने के लिए व्यस्त कर लिया है। इसके अलावा मैंने जब देखा कि यहां जितने कम्प्यूटर्स थे, वे पुराने थे और उनमें जो पैकेजेस थे वे स्टोर्स की ज़रूरत जैसे तैसे पूरी कर रहे थे।

  • स्टोर्स के रेनोवेशन का काम पूरा हो गया है। अब नये रूप में स्टोर्स की शक्ल ही बदल गयी है और इसकी इमेज भी एक तरह से नयी हो गयी है। हालांकि इस सबमें खर्च हुआ है और मेहनत भी लगी है, लेकिन रिजल्ट्स सामने हैं।

    हांडा ग्रुप के मुखिया तक ये बातें पहुंच गयी हैं। एक दिन वे खुद आये थे और सारी चीजें खुद देखी भाली थीं। उनके साथ राजकुमार, शिशिर और सुशांत भी थे। सबने काफी तारीफ की थी। मिस्टर हांडा बोले थे - मुझे ये तो मालूम था कि यहां काम करने की जरूरत है लेकिन तुम आते ही इतनी तेजी से और इतनी सिस्टेमैटिकली ये सब कर दोगे, हम सोच भी नहीं सकते थे। वी आर प्राउड ऑफ यू माई सन। गॉड ब्लेस यू। यू हैव डन ए ग्रेट जॉब। उन्होंने वहीं खड़े खड़े राजकुमार से कह दिया है कि लैन और दूसरे सारे पैकेज सभी जगहों के लिए डेवलेप कर लिये जायें। जरूरत पड़े तो दीप जी को इस काम के लिए पूरी तरह फ्री कर दिया जाये।

    रिनोवेशन प्रोजेक्ट पूरा होते ही सारी व्यस्तताएं खत्म हो गयी हैं। स्टोर्स का सारा काम स्ट्रीमलाइन हो जाने से अब सुपरविजन का काम नहीं के बराबर रह गया है। अब मैं पूरी तरह खाली हो जाने की वज़ह से फिर अकेला हो गया हूं। फिर से सारे ज़ख्म हरे हो गये हैं और एक सफल प्रोजेक्ट की इन सारी सफलताओं के बावजूद मैं अपने आपको फिर से लुटा-पिटा और अकेला पा रहा हूं।

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