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प्रकृति का बदला

सदियो से हम प्रकृति की गोद में जी रहे है। प्रकृति के हम पर इतने अहसान है की हम किसी भी कीमत पर उसे नहीं चूका सकते। लेकिन क्या हमने कभी इसकी क़द्र भी की है? इंसान के मोज शोख वाली जीवन शैली ने न जाने कितना कुछ बदलाव लाए है। जो अनिच्छानिय है। वन कटाई, फैक्टरियां, व्हीकल  की मदद से हमने प्रकृति को बहुत नुकशान पहोचाया है। हमने इतना भी ख़याल नहीं किया की हम इससे हमारी आने वाली जनरेशन का कितना नुकशान किया है। क्योकि ये सारे परिवर्तन का असर लंबे समय बाद होता है। प्रकृति में ऐसे अनिच्छानिय बदलाव को  प्रदूषण कहते है। प्रदूषण के प्रकार इस प्रकार है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और अवकाशीय प्रदूषण। 

घंटी बजी। क्लास खत्म हुई। पढाई अधूरी रखते हुए नियति मैडम ने बच्चों से कहा। आज के लिए इतना ही। प्रदूषण के बारे में हम अगली क्लास में और जानकारी लेंगे। तब तक आप सबको आसपास के प्रदूषण के बारे में जानकारी हो सके उतनी इकट्ठी करनी है। जैसे की प्रदूषण क्यों फेलता है, इसका हमारे जीवन पे क्या असर होता है, हमें क्या करना चाहिए । यह सबकुछ। ठीक है?

सब बच्चे उत्साह  और इसके बारे में चिंता जताते हुए बोले, " यस मेम। हम जरूर कोशिश करेंगे। हमें अगली क्लास का इन्तेजार रहेगा।"

" वैरी गुड। तो फिर इसके बारे में हम अगली क्लास में और भी ज्यादा जानकारी पाएंगे। और हमारी पृथ्वी को बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए यह भी जानेंगे। लेकिन पहले आप सब अपनी ओर से इस बारे में जानकारी पाने की कोशिश करेंगे। ओके?" नियति मैडम ने कहा। 

ओके मेम। बच्चों ने कहा। और नियति मेडम दूसरे क्लास में अपना क्लास लेने के लिए चले गए। 

5 वी क्लास के सारे बच्चे इस बारे में बाते करने लगे। तभी दूसरी क्लास स्टार्ट हो गई। क्लास खत्म होते ही सोहन, रोहित, रीतिका और तैमूर जो पक्के दोस्त है , हर रोज की तरह एक साथ घर जाने के लिए निकल पड़े। 

रस्ते में कई जगह कचरा इधर उधर बिखरा पडा है। गटर का पानी रस्ते पर बिखर रहा है। एक आदमी पेड़ काट रहा है। 

यह देखकर रीतिका ने अपने दोस्तों को रोकते हुए कहा: " ,अरे देखो। वो पेड़ काट रहा है।" 

रोहित बोला: " इसी वजह से पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ रहा है। हम कुछ अच्छा करा नहीं सकते तो क्या हुआ, हम बुरा होते हुए तो रोक सकते है? हमें उन अंकल को रोकना होगा"

" हां, बिलकुल सही कहा तुमने। हमें उन्हें रोकना चाहिए" यह कह कर सब उस अंकल की ओर दौड़े। 

"अंकल, आप ये पेड़ क्यों काट रहे हो?" जैसे ये सवाल का जवाब इन बच्चों को चाहिए ही  इस तरह तैमूर ने अंकल से सवाल किया। 

बच्चों की मासूमियत देखा न देखा , बच्चों को जवाब देते हुए कहा, " अरे बहोत कचरा होता है। कौन साफ़ करे रोज रोज? इसीलिए सोचा काट ही दूँ।" 

बच्चे चकित होकर कहने लगे: " सिर्फ सफाई की वजह से आप पेड़ काट रहे हो?  आप को पता है यह हमारे लिए कितने उपयोगी है? "

" और जो रोज की मुफ़्त की ऑक्सीजन ले रहे हो उसका क्या? " रोहित ने कहा।

यह हमें प्रदूषण कम करने में भी मदद करता है। क्या आप नहीं जानते? रीतिका बोली।

अंकल तो गुस्सा हो गए और बोले:" अरे जाव जाव यहाँ से। आए बड़े समझाने वाले। लोग इतना प्रदूषण फैलाते है, पूरा जंगल काटते है वहाँ बोलो। एक पेड़ काटने से क्या हो जाएगा?"

तैमूर को गुस्सा आया। एक पत्थर उठाके उस आदमी के सर पर मारा। उसके सर से खून निकलने लगा। बच्चे डर गए। और वहाँ से भाग गए। और वह आदमी भी पेड़ से उतर गया। 

सोहन, तैमूर रोहित सब रीतिका के घर की ओर दौड़े। और वहीँ रुके। रीतिका अपने दोस्तों के साथ अपने रुम में गई।

चारो बैठे। फिर रीतिका ने कहा। तैमूर , यह तुमने ठीक नहीं किया। तुम्हे उन अंकल को पत्थर नहीं मारना चाहिए था। 

तैमूर बोला- हां, मुझे पत्थर नहीं मारना चाहिए था। लेकिन वो अपनी गलती न मानकर उल्टा हमें डाँट रहे थे। बड़े है इसका यह मतलब थोड़ी है की वो कुछ भी करे?

रोहित ने कहा - तैमूर की बात भी सही है रीतिका। यदि हम कुछ गलती करते है तो हमें पनिशमेंट देते है। इन बड़ो को पनिशमेंट कौन देगा?

तभी रीतिका की मम्मी ने निचे से आवाज लगाई।" रीतिका! रोहित तुम्हारे साथ है क्या? रोहित की मम्मी का फ़ोन है।

रीतिका ने जवाब देते हुए कहा -" हाँ मम्मी। रोहित, सोहन और तैमूर हम तीनो साथ में है। "

चलो ठीक है। तुम तीनो खाना भी यही खा लेना। मै तैमूर और सोहन की मम्मी से भी बात कर लेती हु।मम्मी ने कहा।

ओके मम्मी। रीतिका ने कहा। ओके आंटी। रोहित, सोहन और तैमूर ने भी कहा।

चारो दोस्तों ने जल्दी जल्दी अपना होमवर्क फिनिश किया। फिर निचे आये खाना खाने। रीतिका की मम्मी ने खाना तैयार कर दिया। और रीतिका के पापा भी ऑफिस से घर लौट आये। सब ने साथ मिलकर खाना खाया। बच्चों ने चुपचाप खाना खत्म कर लिया। कही घर में तैमूर ने किए हमले की बात पता न चल जाए। 

खाना खाने के बाद चारो दोस्तों छत पर गए। रीतिका ने 4 चारपाई लगाई । और सब आराम करने के लिए लेटे। पता ही न चला कब आँख लग गई। 

कुछ देर बाद अचानक सोहन की आँख खुली। और पास की गली में रहते डॉ. विनय के घर का दरवाजा खटखटाया। जो वनस्पति शास्त्र में पीएचडी कर रहे है।

सोहन का पीछा करते करते रीतिका, रोहित और तैमूर भी चुपचाप वहाँ पहुच गए। 

डॉ विनय ने दरवाजा खोला। अरे बेटा सोहन? इतनी रात को? क्या हुआ? सब खैरियत तो है?

वैसे तो सब ठीक है। लेकिन यह कब तब ठीक रहेगा? सोहन ने अपने भीतर के सवाल को घुमाते हुए पुछा। 

डॉ विनय ने कहा क्या मतलब? आओ अंदर आओ। और बताओ क्या हुआ। 

तीनो दोस्तों अंदर न जा पाए। बहार ही खड़े रहकर सब देख रहे है। लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा। 

सोहन ने डॉ विनय को बताया की जिस तरह हम सुख सुविधा में जी रहे है हम पर्यावरण को भी नुकशान पंहुचा रहे है। ये प्रकृति बदला क्यों नहीं लेती? क्यों अपने साथ जो हो रहा है वो होने देती है।

डॉ विनय ने सोहन से पूछा। आज स्कूल में पॉल्युशन के बारे में पढ़ाया है क्या?

सोहन ने आश्चर्य से कहा। हां। लेकिन आपको कैसे पता?

डॉ विनय मुस्कुराये और बोले। तभी तुम यहाँ आज आये हो । वरना पहले ही आ जाते। 

चलो तुम्हे बताता हु हमारे भीतर फीलिंग्स है। भावनाए है। कोई हमें दर्द पहुचाता है तो हमारी नर्व सिस्टम तुरंत उसका प्रत्युत्तर देने के लिए कहती है। लेकिन पेड़ पौधों में ऐसा नहीं होता।

तो क्या पेड़ पौधों में फीलिंग्स नहीं होती? सोहन ने पूछा। 

डॉ विनय ने बड़ी सहजता से जवाब देते हुए कहा। होती है। जैसे सूरजमुखी का फूल हमेशा सूरज की दिशा में ही रहता है। पत्ते हमेशा प्रकाश की दिशा में ही उगते है। लेकिन हमारे जैसी बदले लेने वाली फीलिंग्स नहीं है

तो क्या हम इनमे फीलिंग्स नहीं दाल सकते? सोहन ने उत्सुकता से पूछा।

डॉ विनय थोडा सोचने के बाद सोहन को अपनी घर की लैब में ले गए। और कुछ केमिकल की बोतल लेकर छोटे से पौधे के पास ले गए। दो तीन बूँद पौधे के मूल में डाली। 

डॉ विनय ने कहा अब इसका एक पत्ता तोड़ो। सोहन ने जैसे ही पत्ते को खीचने की कोशिः की, पूरा पौधा सुकुड गया और सोहन के हाथ को कास कर पकड़ लिया। तुरंत ही डॉ विनय ने कैची लेकर पौधे को मूल से अलग कर दिया और सोहन का हाथ छुड़ाया। सोहन एकदम डर गया।

क्यों! डर गए? कुछ देर और रहते तो तुम्हारे हाथ से खून निकल ने लगता। और बड़ा पेड़ होता तो तुम्हारी जान भी ले लेता। डॉ विनय ने कहा। 

सोहन शॉक्ड है। और फिर अचानक बोला मुझे ये फॉर्मूला थोडा सा मिल सकता है? 

डॉ विनय बोले बिलकुल नहीं। इसे मैंने मुसीबत के वख्त जरूरत पड़ने के लिए बनाया है। वैसे भी यह पेड़ पौधों के लिए नहीं कुर्सी और वजह से बनाया है। 

ओके अंकल। मुह लटकाकर सोहन ने कहा।  क्या मुझे पानी मिल सकता है? अचानक जैसे बल्ब में लाइट हुई हो इस तरह बोला।

डॉ विनय बोले- हां वो मिल सकता है। अभी लाता हु। डॉ विनय पानी लेने गए उतने में सोहन ने दूसरी बोतल में थोडा सा फार्मूला ले लिया। तभी डॉ विनय आये। सोहन ने पानी पिया। अच्छा अंकल में चलता हु। कल फिर आऊंगा इस बारे में जानने के लिए। 

जैसे ही सोहन बहार निकला उसके दोस्त सामने खड़े थे। उन्हें देखकर सोहन डर गया। फिर भी जैसे उसने कुछ किया ही न हो जूठ मूठ का रौफ जताते हुए पूछा। तुम लोग मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?

आधी रात को छुप छुप के यहाँ क्यों आये सोहन? क्या छुपा रहे हो हमसे? रितीका ने अदब से सामने सवाल किया।

कुछ भी तो नहीं रीतिका। में यहाँ विनय अंकल से कुछ पूछने आया था। तुम तीनो सो रहे थे तो मैने सोचा क्यों परेशान करू। घर पे आकर बता दूंगा। सोहन ने खुद को बचाते हुए कहा। 

अच्छा। चलो अब बताओ। क्या जानकर आए विनय अंकल से। तैमूर ने गुस्से में पूछा।

सोहन ने दोस्तों को विनय अंकल के घर से थोडा दूर ले जाकर आसपास देखा। कोई नहीं था। फिर अपने जेब में छिपाई हुई बोतल को निकाल कर कहा " यह देखो में क्या लाया हु। " 

ये तो पानी है। रोहित ने कहा।

तुम इसे चुराकर लए हो? रीतिका ने आश्चर्य के साथ पूछा?

सोहन : नहीं.. हां... वो...

रीतिका: सोहन? हां या नहीं? 

रोहित: सोहन! तुमने चोरी की? 

सोहन : श श श्श.... पूरी बात तो सुनो। विनय अंकल ने खुद मुझे इस बारे में बताया है।

रोहित: ,लेकिन तः पानी क्यों चुरा कर लाये? तुम्हारे घर पानी नहीं है क्या?  अरे बोलता तो में कल से 2 पानी की बोटल लेकर आता।। यह क्या किया। और वो भी इतना ही?

सोहन: अरे सुनो तो सही? 

इतना कहकर सोहन दोस्तों को उस पेड़ के पास ले गया जो वो अंकल काट रहे थे। 

वहाँ जाकर सोहन ने उस बोटल में से कुछ बून्द उस पेड़ के मूल पे डाली।  और चुपचाप वहाँ से चले गए।

अब सुबह देखना क्या होता है। सोहन अपने दोस्तों से इतना कहकर उनके साथ वहाँ से निकल गया। दूसरे दिन जल्दी उठकर उस पेड़ के पास आये। वो अंकल कोई दूसरे आदमी को लेकर पेड़ कटवाने आया। जैसे ही वो आदमी पेड़ पर चढ़ा तुरंत ही पेड़ ने उसे दूर फेंक दिया। और वो आदमी वही मर गया। 

अंकल ने सोचा यह क्या होगया? और वहाँ से भागने ही वाले थे तुरंत पेड़ जैसे सबकुछ समझ गया हो वैसे उसे उठाकर भी वहाँ से फेंक दिया। लेकिन वो जिन्दा थे। जैसे तैसे खुद को बचाकर वहाँ से भाग गए। 

चारो दोस्तों को इस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा था। और वहा से भाग गए। भागते भागते वो बोटल वह गिर गई और यहाँ वहाँ टकराती लूडकती हुई टूटकर पानी में गिर गई। और सारा फार्मूला पानी में घुल गया। पानी जहाँ भी जाता सब में बदले की फीलिंग्स जग उठी। जमीन, पानी हवा पेड़ पौधे। 

बच्चे चुपचाप अपने घर जाकर स्कूल के लिए रेडी होने लगे। स्कूल जाने के लिए चारो अपने अपने घर के बाहर जहाँ हर रोज इकठ्ठा होते है वहाँ मिले। और चुप चाप स्कूल जाने लगे। रस्ते में एक लड़का प्लास्टिक के पैकेट में से नास्ता खा रहा था। वो पैकेट खली होते ही उसने वाही जमीन पर फेंक दिया। जमीन ने वो पैकेट उठाया और सीधा उसे उसके मुह पर फेंका। 

रीतिका ने डरते हुए सोहन से पूछा। सोहन! तुमने ओर किस किस में वो जादुई पानी डाला था? 

सोहन ने कहा सिर्फ उस पेड़ में ही। तुम्हे भरोसा नहीं है तो यह देखो वो बोतल। कहते हुए अपने बैग में से बोतल निकलने लगा। लेकिन बोटल नहीं मिली। बोटल कहाँ गई? सोहन अपने आप से पूछने लगा। 

बोटल नहीं मिल रही। सोहन ने कहा। रोहित ने कहा तुम सच बोल रहे हो?
 सोहन: अरे में तुम लोगो से झूठ क्यों बोलूंगा। ऐसा होता तो में तुम से बोटल वाली बात भी क्यों छिपाता? 

चलो उसी पेड़ के पास चलते है। तैमूर ने कहा। और सब वहाँ चले । देखा तो पेड़ अपने पर बैठने वाले पंछी ओ के साथ खेल रहा है। कोई उस पेड़ पे पानी डाल रहा था तो उसे अपने करीब आने दे रहा है। उसे कोई नुकशान नहीं पहोचा रहा।

वहाँ से थोडा आगे गए। वहाँ उन्हें काँच का एक टुकड़ा मिला। जो उस बोटल जैसे था। पास में पानी। रोहित ने वो टुकड़ा उठाया और उसे सोहन को बताते हुए कहा। सोहन, क्या यह उसी बोटल का टुकड़ा है?

सोहन ने टुकड़ा हाथ में लिया और उसे देखकर बोला। हां, यह उसी बोटल का टुकड़ा है। देखो यहाँ पर बिलकुल वैसा ही मार्क है जैसा उस बोटल पर था। पास में पानी भी था। जो इधर उधर बिखरा पड़ा था। बच्चे सब कुछ समझ गए। 

एक आदमी ने केला खाकर उसका छिलका वही दाल दिया। तो केले का छिलका उसके मुह पर आ गया। 

पानी में कोई फूल दाल कर जा रहा था। वही गंदे फूल उड़ कर उस इंसान के सर पर आगए। 

अब तो बड़े पेड़ के पास कोई छोटा पौधा है तो उसकी रक्षा भी वो पेड़ ही करता। 

अब तो हवा पर भी उसका असर होने लगा था। बस गाड़ी स्कूटर सब टूट रहे हे। अंदर बैठे हुए मुसफरो की जान खतरे में है। कोई भी बिना वजह प्रकृति को नुकशान नहीं पंहुचा सकता था जहाँ उस केमिकल का असर था। उस जगह से उड़ने वाले प्लेन भी अपने आप अपना रास्ता मोड़ रहे थे। उस जगह की हवा उसे अपने आसपास भटकने भी न दे रही थी। 

फैक्टरी का पानी आगे जा ही नहीं रहा था। जमीन को छूता कैसे? कोई कचरा भी नहीं फैला सकता। बिखरे पत्ते अपने आप पेड़ के करीब आकर खाद बन जाता है। पानी और कीचड में और भी पेड़ पौधे पल रहे है। कुछ दिनों में वहाँ का वातावरण सुन्दर हो गया। लेकिन इंसानो के लिए जीना मुश्किल होता दिखाई दे रहा है। क्योकि ऐसी किसी की आदत जो नहीं है। 

एक औरत गन्दा कचरा घर से निकाल कर जैसे ही एक खाली जगह में डालने गई तुरंत ही सब कुछ इसके ऊपर आ गया। 

एक शराबी शराब पी कर चल रहा था। वाही पर लेट गया। उसकी बदबू धरती से बर्दास्त न हुई। और धरती ने उसे हवा में उड़ा दिया। जाकर गिरा किसी कचरे के डिब्बे में। 
बात दूसरे शहरों में भी फ़ैल गई।।डर की वजह से कोई कचरे का डिब्बा साफ नहीं कर रहा था। सारा कचरा जमीन ने इधर उधर बहा दिया। पवन और पानी ने उसे लोगो के घर में पंहुचा दिया। जैसे दरवाजा खुलता सीधा घर के अंदर। लोगो का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। इतना कम था क्या? अब बारी आई गटर के पानी की। यह क्या करता। जहाँ से आता वही से वापस। मतलब? लोगो के बाथरूम , शौचालय, वाश बेसिन से वह गन्दा पानी वापस घर में घूस रहा है। बच्चे भी अपने अपने घर पहुच चुके थे। सोहन के घर में भी गटर का पानी भर रहा है। और सोहन आवाज लगाने लगा बचाव ... बचाव...।

इतने में उसकी आँख खुली तो देखा की रीतिका, रोहित और तैमूर उसकी आवाज से उठ चुके थे। और उसे जगा रहे थे।

सोहन गभराया हुआ था और उसने दोस्तों से पूछा- वो केमिकल कहाँ गया?

तीनो बोले- कौन सा केमिकल। 

रोहित- अबे जाग। सपने में केमिकल लाया क्या? 

सब हँसने लगे। 

तैमूर- हम तो रीतिका के घर में है। देख इसे छत कहते है।

सब हँस रहे थे।

रीतिका: अरे हम कल मेडम ने पोल्युसन के बारे में पढ़ाया उसके बारे में बात करने के लिए इकट्ठा हुए थे। बस बातो ही बातो में कब आँख लग गई पता ही नहीं चला। 

तैमूर- और तू बचाव बचाव चिल्ला रहा था। किससे बचना है? प्रदुषण से? दिखा तो तेरे दिमाग में प्रदुषण तो बागी घुस गया न। 
सब और जोर से हँसने लगे।

फिर सोहन को लगा अच्छा हुआ यह सपना था।