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जीत में हार

जीत में हार

अन्नदा पाटनी

अस्पताल में आज मरीज़ कम थे । कॉफ़ी रूम में सब डाक्टर्स कॉफ़ी पीने आ बैठे । कॉफ़ी और बिस्कुट के साथ बात-चीत का दौर भी चल पड़ा । डॉ. माथुर बोले," पता है आप सबको कि डॉ. अली की छुट्टी कर दी गई है ।"

" अरे, छुट्टी नहीं कर दी गई है । वह स्वयं छुट्टी पर गए हैं ।" डॉ. नागर बोले ।

"क्या बात कर रहे हैं आप ?" डॉ. माथुर बड़े तमक कर बोले । "मैने ख़ुद वह काग़ज़ देखा है जिसमें उन्हें नौकरी छोड़ने का आदेश दिया गया है ।"

" अच्छा, हम तो यही समझे थे कि वह कहीं बाहर जाने के लिए छुट्टी चाह रहे थे ।" कमरे में बैठे सभी डाक्टर्स एक स्वर में बोल उठे । " तब तो आपको यह भी पता होगा कि उनको क्यों निकाला गया है ।"

डॉ. माथुर मुस्कुराते हए बोले,"हाँ यार आप जानते ही हो कि डॉ. अली गायनेकॉलोजिस्ट था यानी कि स्त्री रोग विशेषण। स्वाभाविक है कि महिलाएँ, जवान लड़कियाँ और बालिकाएँ ही इलाज के लिए आती थीं । ये हज़रत, उनका चैक अप करने के बहाने उनके साथ बेहूदी हरकतें करते । काफी दिनों से यह क्रम चल रहा था । यौन-शोषण से पीड़ित शर्म और डर के कारण चुप रह जाती । कब तक ऐसा चलता, आख़िर कभी तो भेद खुलना ही था । नर्सों और जूनियर स्टाफ़ में खुसुर पुसर चलती पर रिपोर्ट कौन करे ।

मैंनेजमेंट के पास जब शिकायतें आने लगीं और ये शिकायतें सही पाई गईं, तब तो उनका हिसाब होना ही था । "

"तो अब उनकी जगह कौन डॉक्टर आ रहा है ?"

"आ नहीं रहा, आ रही है एक लेडी डॉक्टर ।" सही भी है । महिलाऔं के लिए लेडी डॉक्टर ही होनी चाहिए । अपने कॉफ़ी क्लब की भी रौनक़ बढ़ जायेगी । " डॉ. माथुर चहकते हुए बोले ।

चार पाँच दिन के बाद लेडी डॉक्टर अल्पना तिवारी का आगमन हुआ । कॉफ़ी ब्रेक में सब बडी उत्सुकता से उनका इंतज़ार कर रहे थे ।तब तक किसी को उनका नाम नहीं मालूम था । जैसे ही डॉ. अल्पना ने कमरे में क़दम रखा सबने उनका अभिवादन किया और बारी - बारी से अपना परिचय कराया । डॉ. सुमित मल्होत्रा परिचय देने के पहले ही बोल पड़े," अरे मुझे नहीं पहचाना, मैं सुमित मल्होत्रा । हम दोनो मेडिकल कॉलेज में साथ - साथ थे । आप तो वैसी की वैसी हैं पर मुझमें बहुत चेंज आ गया है ।"

"अरे सुमित ।हाँ हाँ पहचान लिया । चेंज तो आया है ।" डॉ. अल्पना बोलीं ।

सुमित बोला," चेंज तो आना ही था । शादी को दस साल हो गए । दो बच्चों का बाप हूँ ।"

डॉ. सुमित का मन था कि कह दे कि जवान था तो तुम्हारे पीछे कितना भागा पर तुमने घास नहीं डाली । ताक-झाँक करता, आगे पीछे घूमता,बात करने के बहाने ढूँढता पर तुम पर तो कोई असर ही नहीं होता । नकचढ़ी थी और अपने आपको बहुत समझती थी ।

कॉफ़ी - ब्रेक में सभी रोज़ मिलते । पन्द्रह मिनट, आधे घंटे में इधर-उधर की बातें करके सब अपने-अपने डिपार्टमेंट में चले जाते ।

कभी-कभी डॉ. सुमित और डॉ. अल्पना सामने दिख जाते तो औपचारिक बातें कर लेते । अल्पना की कार अभी तक नहीं आई थी इसलिए कभी -कभी सुमित शिष्टाचार के नाते उसे घर ड्रॉप करने का प्रस्ताव रख देता पर अस्पताल की गाड़ी अल्पना को लाने और छोड़ने आती थी इसलिए कहती "फिर कभी ।"

एक बारअस्पताल की गाड़ी ख़राब हो गई तो स्वयं अल्पना ने सुमित को घर छोड़ने के लिए कहा । सुमित तो तैयार ही था । अल्पना के उतरने के पहले सुमित बोला," घर ही चलती, खाना कर निकल जातीं, मैं छोड़ देता ।" अल्पना बोली," नहीं अभी मै बहुत थकी हुई, आप भी थके हैं । फिर कभी ।"

सुमित को देख कर अल्पना को लगा कि अच्छा- ख़ासा लड़का है । मैने कितना इग्नोर मारा इसको । खैर,अब वैल सैटल्ड है । शादी हो गई, बच्चे भी हैं । अच्छी ही लड़की मिली होगी । हमारे यहाँ तो डॉक्टरों की हैसियत बहुत अच्छी मानी जाती है । हां एक दिन जाकर देखूँगी तो सही उसकी बीवी और बच्चों को ।

कुछ दिन बाद एक मेडिकल कैम्प लगा ।मरीज़ों की भारी भीड़ थी । दम मारने तक की फ़ुरसत नहीं थी । काम निबटाते-निबटाते काफी रात हो गई । रास्ते में कहीं खाना ही नहीं मिला । सुमित ने अल्पना से कहा," आप मेरे साथ चलो,खाना घर पर ही खा लेना । फ़ोन कर देता हूँ ।" अल्पना मान गई ।

घर पहुँचते ही घंटी बजाई । पत्नी ने दरवाज़ा खोला और हंस कर अल्पना को "हेलो" बोला । " यह रुचिका है, रुचिका यह अल्पना

है।"

" आप लोगों को भूख लग रही होगी । सीधे खाने की टेबल पर बैठ जाते हैं ।" रुचिका बोली ।

अल्पना और सुमित हाथ - मुँह धोकर खाने के लिए बैठ गए । सबको परोस कर रुचिका खुद भी बैठ गई । खाने के दौरान अल्पना ने रुचिका को ग़ौर से देखा । छरहरे बदन की बडी सुंदर और प्यारी लग रही है, शायद उससे भी ज़्यादा । दोनों बच्चे भी क्यूट लगे ।

अल्पना ज़्यादा देर नहीं रुकी । सुमित उसे छोड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ । रास्ते में अल्पना ने कहा," बड़ा प्यारा घर है, उतनी ही प्यारी बीवी और बच्चे हैं । बहुत अच्छा लगा मिल कर ।"

रात को सोते समय अल्पना का ध्यान सुमित की ओर गया । न जाने क्यों उसे थोड़ी बेचैनी हो रही था । रुचिका का मोहक चेहरा उसे विचलित कर रहा था । उसे कितना घमंड था अपनी सुंदरता का । सुमित भी तो उस पर लटटू था । उसी सुमित को उससे भी अधिक ख़ूबसूरत लड़की मिल गई । रुचिका से ईर्ष्या उसे कमज़ोर कर रही थी और उससे स्वयं को ऊँचा सिद्ध करने की ज़िद ज़ोर पकड़ रही थी । उसके मन में अजीब सी उहापोह चल रही थी ।

अगले दिन कॉफ़ी - रूम में सुमित और अल्पना अकेले थे,बाक़ी डाक्टर्स कॉफ़ी पीकर जा चुके थे । सुमित ने अल्पना से कहा,"अल्पना क्या आपसे एक पर्सनल सवाल पूछ सकता हूँ ?"

"ज़रूर ।" अल्पना ने कहा । " पर यह आप-आप क्या लगा रखा है, बंद करो यह आप-आप।"

"अच्छा भई, यह बताओ कि तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं की ?"

अल्पना ने लंबी साँस भरी । बोली," जानते ही हो न कॉलेज में कितनी नकचढ़ी थी । डॉक्टर बनने के बाद दिमाग़ और भी ऊँचा हो गया ।अच्छे से अच्छे रिश्ते आए पर सबको रिजेक्ट करती रही । प्यार भी न कर पाई अपने इस सुपीरियॉरिटी कॉम्पलेक्स के कारण । समय गुज़रता गया । जब पैतालीस की हुई तो लगा कब तक ऐसे ही बैठी रहूँगी । ऐसे तो कोई मिलने से रहा । यह सोच मेट्रोमोनियल में विज्ञापन दे दिया । पहला आॉफर आया तो उत्सुकता हुई । नौकर ने उसे ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बैठा दिया ।

जैसे ही मैं कमरे में आई तो उससे हेलो कहते ही घबरा गई । उस व्यक्ति की उम्र साठ वर्ष की होगी । सर के काफी बाल उड़ चुके थे । शरीर भी थुलथुल था । मैने एक सुंदर से नौजवान की कल्पना की थी, उसके स्थान पर यह प्रौढ़ ।

इस प्रकार तीन और व्यक्ति आए । सभी पचपन से साठ की उम्र के । कोई तलाकशुदा, किसी की पत्नी मर चुकी थी वग़ैरह वग़ैरह । सभी मेरी कल्पना के विपरीत । परिणाम यह हुआ कि मेरा सारा मुलम्मा उतर गया । घर में भी लोगों ने ताना दिया कि इस उम्र में अब क्या तुझे जवान लड़का मिलेगा । मैं तो जैसे आसमान से ज़मीन पर आ गई । बस तब से शादी का विचार ही छोड़ दिया ।"

सुमित ने उसके दर्द को समझा, बोला," अरे तुम अभी भी इतनी सुंदर हो, जवान दिखती हो, डॉक्टर हो, कोई न कोई बहुत अच्छा मैच तुम्हें ज़रूर मिलेगा ।"

" तुम सचमुच ऐसा सोचते हो या मेरा मन रखने की ख़ातिर कह रहे हो ?" अल्पना ने पूछा ।

"नहीं-नहीं मैने जैसा महसूस किया, वह कहा ।" सुमित बोला ।

अल्पना को यह सुन कर कुछ चैन आया । उसे अच्छा लगा कि सुमित ने उस पर ध्यान दिया है । अब उसके मन में यह उत्सुकता जागी कि क्या अभी भी सुमित के मन में उसके लिए पहले की तरह दिलचस्पी है । बातों-बातों में वह टोह लेती रहती । एक दिन तो अल्पना ने यहाँ तक पूछ लिया कि क्या वह रुचिका से अधिक सुंदर है ? सुमित ने इसका जवाब नहीं दिया ।अल्पना को यह अच्छा नहीं लगा पर वह यह भी समझ गई कि सुमित के मन में उसके लिए अब कुछ भी नहीं है । उसे यह अपनी हार लगी । इस से उसकी अकुलाहट और बढ़ गई । वह इस कोशिश में लग गई कि किसी तरह सुमित को जता सके कि वह उसे कितना पसंद करती है ।

सुमित को लगता कि अल्पना का आत्मविश्वास टूटता जा रहा है इसलिए वह सहानुभूतिवश उसकी तारीफ़ कर मनोबल बढ़ाने का प्रयास करता । अल्पना अब मौक़े ढूँढती रहती कि किसी न किसी बहाने सुमित का ज़्यादा समय पा सके । कई बार अकेले खाने की दुहाई दे कर डिनर के लिए रोक लेती । न जाने कितनी बार अफ़सोस ज़ाहिर करती कि उसने कॉलेज के दिनों में उसे क्यों अनदेखा किया । अब उसके जैसा अगर कोई मिल जाय तो वह तुरंत शादी कर लेगी ।

एक दिन अचानक अल्पना ने सुमित से पूछ लिया," क्या तुम मुझे अभी भी पसंद करते हो और मुझसे शादी कर सकते हो ?"

सुमित अवाक् रह गया पर दृढ़ता से बोला," मैं अपनी पत्नी और बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ । मैं दूसरी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता ।"

अल्पना अपना अापा खो बैठी, ग़ुस्से से तमतमाती हुई बोली," तो सोचना शुरू कर दो क्योंकि मैंने भी ठान लिया है कि शादी करूँगी तो तुमसे ही ।"

" पागल हो गई हो क्या , दिमाग़ फिर गया है तुम्हारा ?" सुमित भी ग़ुस्से से भर उठा ।

अजीब स्थिति पैदा हो गई । सुमित समझ नहीं पा रहा था कि इस स्थिति को कैसे संभाले । सोचा कुछ दिनों बाद उसकी उदासीनता

से शायद अल्पना समझ जायेगी ।

एक दिन किसी ज़रूरी काग़ज़ लेने के लिए सुमित को अल्पना के घर जाना पड़ा । वह जल्दी में था पर अल्पना ने चाय के बहाने उसे बैठा लिया । बोली," मैं बहुत परेशान हूँ । " और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी । थोड़ी शांत हुई तो

सुमित ने परेशानी का कारण पूछा ।

बोली ," मेरे मन में बहुत दिनों से बहुत उहापोह चल रही है। बहुत सोचने के बाद मेरे पास इससे बचने के दो ही रास्ते हैं एक मेरे हाथ में है, एक तुम्हारे ।"

सुमित हैरत से बोला," मेरे हाथ में ?"

"हाँ, अगर तुम मुझसे शादी कर लेते हो तो मेरी

सारी परेशानी दूर हो जायेगी ।"

सुमित एकदम खड़ा हो गया, बोला," यह असंभव है । मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकता और न करूँगा । तुम क्यों नहीं समझ पा रही हो ?"

अल्पना बोली," मैं तुमसे न तो कोर्ट मैरिज करने के लिए कह रही हूँ, न किसी मंडप में । बस चाहती हूँ कि माँग में तुम्हारे नाम का सिंदूर भर सकूँ । तुम पर शादी की कोई ज़िम्मेदारी नहीं डालूँगी और न ही किसी को यह बताऊँगी कि मेरी माँग में तुम्हारा सिंदूर है । तुम जैसे मुक्त हो वैसे ही रहोगे । क्या मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते ?"

" यह कैसा अटपटा प्रस्ताव है इससे तुम क्या पाओगी ?" सुमित ने पूछा ।

अल्पना बोली," मन की शांति । मैने कभी अपनी हार नहीं मानी । पर न जाने क्यों जबसे तुम्हारी पत्नी रुचिका से मिली हूँ तब से हार मेरे ऊपर हावी हो गई है । "

सुमित जवाब देता,उसके पहले ही अल्पना तपाक से सिंदूर की डिबिया उठा लाई । सुमित हतप्रभ था । उसने दोनों हाथ पीछे कर लिए । तभी अचानक अल्पना ने उसका एक हाथ खींच कर ज़बर्दस्ती सिंदूर उँडेल दिया और अपने बालों की ओर ले गई । सुमित को सँभलने का समय ही नहीं मिला और सिंदूर अल्पना के बालों में छिटक गया । अल्पना अंदर कमरे में जाकर दर्पण में स्वयं को निहारने लगी तभी सुमित घर से बाहर निकल गया ।

अगले दिन जब सब डाक्टर्स ने अल्पना के माँग में सिंदूर देखा तो चौंक गए । पूछा," डॉ. अल्पना आपकी शादी हो गई ? कब?"

अल्पना ने बडी सहजता से कहा," कल शाम को । लड़का पहले से ही तै था ।अत: फटाफट सब हो गया ।"

सुमित समझ नहीं पाया कि कैसे रिएक्ट करे । बस थोड़ा जल्दी कमरे से बाहर निकल गया । कॉफ़ी भी नहीं पी ।

सब कुछ यथावत चलता रहा । सुमित और अल्पना एक दूसरे से कतराते रहे पर किसी को संदेह नहीं हआ कि उनके बीच कुछ हुआ है । एक दिन वह सुमित की अनुपस्थिति में उसके घर रुचिका से मिलने ज़रूर गई थी । रुचिका ने उसे बधाई दी पर और कुछ न पूछा न कहा । उसे लगा कि वह अपने मक़सद में कामयाब हो गई है ।

उस दिन कॉफ़ी-रूम में हमेशा का तरह सब बैठे थे । अचानक सुमित के सीने में दर्द उठा । डाक्टर्स सब मौजूद ही थे । जाँच करने पर पता लगा कि दिल का दौरा पड़ा है और वह बहुत सीरियस है । तुरंत इमर्जेंसी में ले जाया गया जहाँ सारी सुविधाएँ उपलब्ध थीं । पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था । डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी सुमित को बचाया न जा सका । सब बेहद दुखी थे । किसी ने सोचा ही नहीं था कि सुमित जैसे स्वस्थ व्यक्ति के साथ ऐसी दुर्घटना हो सकती है ।

सुमित का शव एंबुलेंस में उसके घर लाया गया । अल्पना अपनी गाड़ी से पहुँचते ही अंदर रुचिका के पास गई । रुचिका का रोते-रोते बुरा हाल था । अल्पना उससे गले लग कर बहुत रोई । फिर थोड़ा सँभल कर बोली," मुझे तुमसे कुछ कहना है ।"

रुचिका ने कहा," मुझे मालूम है तुम क्या कहना चाहती हो । इसकी ज़रूरत नहीं है क्योंकि सुमित ने मुझे सब बता दिया था । तुम्हारी माँग का सिंदूर न सुमित के लिए कोई मायने रखता था न मेरे लिए और न हीं तुम्हें पत्नी का दर्जा दिलवा सका। सुमित ने हमेशा मेरे और अपने संबंधों की गरिमा और विश्वास को सबसे ऊपर माना था । तुमने जो किया उसमें सुमित की कोई भूमिका नहीं है और न हीं कोई भागीदारी । तुम्हारे जुनून ने तुम्हें जीतने की बजाय हराया है । अब मेरी तुमसे एक प्रार्थना है कि यहाँ बेमानी सिंदूर पोंछने और चूड़ियाँ तोड़ने का कोई नाटक न करना । तुम्हारे इस आचरण से जहाँ एक ओर हमारे परिवार की प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचेगा वहीं दूसरी ओर सुमित की आत्मा को भी कष्ट पहुँचेगा । तुम्हारी अंतरात्मा भी तुम्हें हमेशा कचोटता रहेगी और चैन से जीने नहीं

देगी । मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई कटुता नहीं है बल्कि सहानुभूति है । " और रुचिका ने अल्पना के दोनों हाथ प्यार से थाम लिए ।

अल्पना की आँखों से अविरल अश्रुधाराए बह रही थी । लगता है उन्ही के साथ उसका अहम् और जुनून भी बह गये । वह रुचिका के गले लग रोती रही । फिर बड़े-बूढ़ों की तरह प्यार से उसका सिर सहलाकर एकदम घर से निकल गई ।

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