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बना रहे यह अहसास - 6

बना रहे यह अहसास

सुषमा मुनीन्द्र

6

रूम में यामिनी और व्याख्या हैं।

रविवार होने से व्याख्या दोपहर में आ गई है। कर्मचारी लंच दे गया। भरी हुई थाली देख कर अम्मा अकबका जाती हैं।

‘‘गूड़ा, इस अस्पताल में मरीज को गले तक ठूँसा देते है क्या ?’’

‘‘तुम्हें जितनी कैलोरी लेनी है उसके अनुसार नाश्ता और खाना दिया जाता है अम्मा।’’

‘‘इच्छा होती है इस थाली को खिड़की से बाहर फेंक दें और आम के रस में रात की बासी रोटी डुबा कर खायें। दादा भाई हमको सबसे अच्छा आम देते थे।’’

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अम्मा के जीवन के अंतिम लेकिन सम्पन्न बरस।

एकाएक उनके भीतर वह बच्ची जीवित होने लगती है जिसके बचपन में बहुत आम थे। आम का रस बच्ची के मुख में लगा देख चारों बड़े भाई हॅंस रहे हैं। दादा भाई डपट रहे हैं ‘गोदावरी, सबसे छोटी, घर की पुतरिया है। क्यों हॅंसते हो ?’

व्याख्या समझ रही है इन दिनों अम्मा विगत को याद करती है।

‘‘बिरहुली में और क्या करती थी अम्मा ?’’

‘‘तालाब में पैरते (तैरते) थे, कुमुदनी तोड़ते थे।’’

‘‘थोड़ा-बहुत पढ़ती भी थीं ?’’

‘‘चैथी पास हैं। बिरहुली में पचमी कच्छा होती तो वह भी पास कर लेते।’’

‘‘यदि शैतानी छोड़तीं। दादा भाई ने सोचा होगा शैतान लड़की की शादी शहर में कर दो। सुधर जायेगी।’’

‘‘सुधर ही गये थे। साँस भी सहन कर लेना पड़ता था।’’

अम्मा का कंठ रुद्ध हो गया। यामिनी ने उन्हें भावुक होने से रोका ‘‘खाना खाओ अम्मा। शरीर में ताकत रहेगी तो सर्जरी अच्छी होगी।’’

अम्मा ने एक चम्मच दलिया मुँह में डाला। ............. भरा है दिल। याद आ रहे हैं संवाद ...............

‘‘तुम लोग यकीन नहीं करोगी। हम दूध पका कर दोहनी को सिकहर (छींका) में रख रहे थे। दोहनी छूट गई। पूरा दूध गिर गया। माताराम ने हमारी पीठ पर मुक्का मारा था। मोटाई चढ़ी है, चल

मुँह लगा कर दूध को सुरक (सुड़क) ................. हमको कुत्ते की तरह झुककर दूध सुरकना पड़ा ............... बहुत ग्लानि लगती थी ............ अब ये थाली भर खाना ............ नहीं खाया जाता .................

हिचक रही हैं अम्मा।

व्याख्या की आँखों में नमी उतर आई ‘‘अम्मा, तुम तबियत बिगाड़ लोगी। इंसुलिन का इंजेक्शन लगाया गया है। खाना नहीं खाओगी तो दिक्कत होगी।’’

अम्मा आँसू पोंछती रही। छोटे-छोटे कौर खाती रहीं।

बड़ी पुत्री यशोधरा और नागचैरीजी, मझली यमुना और पयासीजी अम्मा को देखने आ रहे हैं सुन कर सनातन, सनसना गया। अदालत में जबान लटपटाती है पर अम्मा के सम्मुख सुजान वक्ता बना रहता है -

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‘‘अम्मा यहाँ दीदी-जीजाओं का कोई काम नहीं है। हम लोग ही खाकर डकार मारते पड़े हैं। मना कर दो।’’

‘‘हमको देखने आ रहे हैं।’’

‘‘भार बनने आ रहे हैं। इन लोगों को कौन से सर्किट हाउस में ठहरायेंगे ?’’

अम्मा के भाव में असमर्थता है। मारक दशा से गुजर रही हैं। ढाढ़स और दृढ़ता चाहिये लेकिन हर बात पर नया मुद्दा तैयार हो रहा है। कमजोर बनी रहीं पूत ताकतवर होते गये। जितना हैं नही, उससे अधिक। जितना नहीं होना चाहिये उससे अधिक। जितना हो नहीं सकते उससे अधिक।

‘‘जिस होटेल में तुम लोग हो, वहीं ठहरा देना। हमको देख कर लौट जायेंगे। बसने नहीं आ रहे हैं।’’

‘‘सर्जरी के बाद तुम घर चलोगी तब आकर बसें सेवा करें। यहाँ जरूरत नहीं है।’’

अम्मा ने आँखें मूँद लीं। उन्होंने बेटे-बेटियों को सम भाव से नेह-छोह दिया लेकिन बेटियों का आना, न आना पूत निर्धारित करते हैं।

अम्मा के आठ प्रसव।

चार प्रसव घर में फिर पप्पा के साथ पोस्टिंग पर चले जाने से बाद के चार अस्पताल में हुये। पहली और दूसरी पुत्री मृत जन्मी। तीसरी आठ माह में साथ छोड़ गई। माताराम का धिक्कार -

‘‘बिरहुली वाली सोती रही अउर रात में एतनी सुंदर बिटिया मर गई। रोई होगी पर इस असुर की नींद नहीं टूटी।’’

अम्मा निःशब्द रहती थीं लेकिन तीसरी पुत्री का सदमा सघन था -

‘‘माताराम, यह हमारी लापरवाही से मरी और तुम्हारी दस में पाँच किसकी लापरवाही से मरी थीं ?’’

जवाब मुकाबले का था। माताराम कारण-अकारण अम्मा को दुरदुराती रहती थीं कि नियंत्रण में न रखा तो सारनथ (पप्पा) को पाठ पढ़ा देगी। गाँव के खेतिहर परिवारों में ब्याही पाँच ननदों में कोई न कोई और शिक्षा-दीक्षा के लिये उनकी संतानें यहाँ डटी रहतीं कि इकलौती बहू अपना साम्राज्य फैला लेगी।

अम्मा भाठ-भिश्ती बनी सबका हुक्म बजातीं। ननदों के साथ उनकी बेटियों, बेटों के भी पैर छूने पड़ते कि ननद के बच्चे पूज्यनीय होते हैं। बिना आह-कराह के कवायद करने वाली अम्मा के तेवर द्रोह की सूचना दे रहे थे। माताराम का फरमान -

‘‘सारनाथ इसके सींग जाम (उग) आई है। इसे बिरहुली भेजो। मोटाई उतर जायेगी।’’

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दस बहनों के बाद अंतिम संतान पप्पा। तीन बरस के थे तब पिता नहीं रहे। पप्पा ने पितृविहीन घर में माताराम की हुकुमत और बहनों का प्रभाव ही देखा। माताराम और बहनों ने पप्पा पर इतनी चाहतें लुटाई कि पप्पा को इन लोगों का व्यवहार-दुव्र्यवहार विचित्र नहीं लगता था। अम्मा जब कभी दुव्र्यवहार का संकते देती, पप्पा हैरान हो जाते ‘‘सबका कहा मानकर चलो। तुम्हारे आते ही घर में कलह होने लगी। अब तक नहीं होती थी।’’ अम्मा निःशब्द हो जातीं। और अब ऐसी मुँहजोरी। क्रोध माताराम की निष्ठुरता पर था अथवा अम्मा की मुँहजोरी पर पप्पा ने मार-पीट कर अम्मा की कनपटियाँ लाल कर दी थी। पुत्री के न रहने का आघात और पप्पा द्वारा की गई हिंसा लिये अम्मा बिलखती रहीं। बिरहुली में महिलाओं को पिटते देखा था लेकिन नहीं जानती थीं कानून पास शहरी लड़के भी पत्नी को पीटते हैं।

अम्मा झपक रही हैं।

पंचानन सोफे में लेटा हुआ अखबार पढ़ रहा है। यामिनी खिड़की से दिखाई देते अस्पताल परिसर की हरीतिमा देख रही है। नर्स रक्त चाप मापने आ गई। आहट पर अम्मा जाग गईं। नर्स ने भली सी स्माइल दी -

‘‘आपके बाल बहुत सुंदर हैं।’’

पंचानन ने अम्मा के शुक्ल केशों को देखा। पतले हैं, सफेद हैं लेकिन सुंदर हैं। व्याख्या ने नर्स के सौन्दर्य बोध को कितना विकृत कर दिया है। अम्मा के चेहरे में गौरव -

देख लो, अस्पताल में हमारी खूबसूरती परखी जा रही है।

‘‘सिस्टर अब बहुत कम हो गये हैं। पहले हमारे बाल घने थे।’’

‘‘बहुत सुंदर हैं।’’

शाम को व्याख्या आई तो अम्मा ने प्रेरक कथा की तरह सुनाया -

‘‘गूड़ा, ये छोटी-छोटी लड़कियाँ बहुत प्यार से ड्यूटी करती हैं।’’

‘‘लड़कियाँ ?’’

यामिनी ने स्पष्ट किया ‘‘नर्स।’’

‘‘हाँ, नर्स कह रही थी आपके बाल बहुत सुंदर हैं।’’

अम्मा को चाहिये स्फूर्त सा माहौल।

‘‘ब्यूटी को लेकर तुम इस अस्पताल में फेमस हो गई हो बुढ़ापे। अभी लाँबी में मुझे लेडी डाँक्टर मिलीं। वही जो शाम को राउण्ड पर आती हैं। बोली व्याख्या तुम्हारी दादी बहुत सुंदर है।’’

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‘‘अच्छा।’’ अम्मा, ने व्याख्या के झूठ पर सहजता से विश्वास कर लिया।

‘‘हूँ।’’ अम्मा के सिरहाने खड़े होकर व्याख्या ने नरमाई से उनके कंधे थाम लिये।

अम्मा का दिल भर आया।

निर्वासित सी पड़ी रहती हैं। स्पर्श की आदत नहीं रही। त्वचा का भी शायद एक कर्म होता है। दिनों बाद होते स्पर्श से त्वचा सिंहरती है या स्वेदसिक्त होती है या संवेदनहीन बनी रहती है। कोई छू देता है तो अम्मा को लगता है छुये गये हिस्से में दबाव बनेगा या दर्द होगा या सुन्नता आ जायेगी। अब कामना नहीं है पर कभी थी पप्पा स्नेह से, कभी सम्मान से कभी अकारण उन्हें स्पर्श करें। पप्पा ने मारने के लिये स्पर्श किया या बच्चे पैदा करने के लिये। बच्चे जब छोटे थे, उन्हें अम्मा के स्पर्श की आवश्यकता थी। बड़े हुये जरूरी व्यस्तताओं में व्यस्त होते गये। व्याख्या बोध करा रही है स्पर्श में संजीवनी जैसा असर होता है। अम्मा ने नाज दिखाया -

‘‘गूड़ा, कंधे तोड़ दोगी। बिल्कुल जान नहीं बची।’’

‘‘सर्जरी से जान वापस आ जायेगी। तुम पहले की तरह घर में दनादन घूम कर देखने लगोगी कि कौन बहू गृहस्थी का सत्यानाश कर रही है और कौन बासी खाना नाली में बहा रही है।’’

‘‘हमारा इतना ध्यान रखती हो। पिछले जनम में बिरहुली की कोई बुढ़िया - पुरनिया रही होगी।’’

‘‘तुम्हारे दादा भाई।’’

आजी-पोती का प्रहसन देख रही यामिनी ने स्मरण कराया ‘‘अम्मा, गेंद वाला खेल, खेल लो। फिर व्याख्या चली जायेगी।’’

‘‘खूब याद दिलाया बुआ।’’

व्याख्या ने दो पतली नलियों वाला छोटा उपकरण अम्मा को पकड़ा दिया। नालियों में बेर के आकार की एक-एक गेंद पड़ी है। उपकरण में लगी पतली ट्यूब को मुॅह में रख कर इस तरह साँस खींचनी है कि गेंद नली के तल से अधिकतम ऊपर उठे। कवायद में अम्मा थक जाती हैं -

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‘‘वाल का आपरेसन है। यह मेहनत काहे लिये गूड़ा ?’’

‘‘जरूरी है अम्मा। करो। वेरी गुड ..............।’’