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बना रहे यह अहसास - 7

बना रहे यह अहसास

सुषमा मुनीन्द्र

7

यशोधरा और यमुना का आगमन।

भाईयों का रुख जानती हैं इसलिये अपने-अपने पति को नहीं लाना चाहती थीं लेकिन नागचैरीजी और पयासीजी मेट्रो की चर्चा सुन चुके हैं। सुपुत्रियाँ निष्ठा दिखायेंगी ये लोग मेट्रो की सवारी करेंगे। सनातन पर्ची लेकर अम्मा के रूम से लाँबी में आया और वही पर्ची लेकर नागचैरीजी अम्मा के रूम में गये। रसिक मिजाज नागचैरीजी अम्मा से सम्बोधित हुये -

‘‘बड़ी फिट फाट हैं। बीमार नहीं लग रही हैं।’’

अम्मा अनकी टिप्पणी भूली नहीं हैं। हाथ से बैठने का संकेत कर खामोश रही आईं। नागचैरीजी ने अवंती से रसिक मिजाजी की -

‘‘अवंतीजी अम्मा की सेवा करते हुये आपने ए0सी0 में सोने की आदत डाल ली है। घर में तो ए0सी0 नहीं है।’’

‘‘सर्जरी के बाद अम्मा को ठण्डे कमरे में रखना होगा। अम्मा के कमरे में ए0सी0 लगेगा और मेरा डेरा वहीं जमेगा।’’

‘‘अम्मा के दो कमाऊ पूत हैं। सर्जरी करा रहे हैं, ए0सी0 भी फिट करा देंगे।’’

इमेज खराब करने की इन्हें बहुत आदत है। बोलीं -

‘‘सफर से थके आये हैं। आराम कीजिये जीजाजी।’’

नागचैरीजी डटे रहते। अच्छा हुआ कम्पाउण्डर आ गया -

‘‘आपके दाँतों की सफाई होगी।’’

किसी न किसी परीक्षण के लिये जाती अम्मा थक रही है। ‘‘आपरेसन हाट का है। दाँत की सफाई क्यों होगी ?’’

‘‘डेन्टल सर्जन ने कहा है। डेन्चर तो नहीं लगाती ?’’

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अम्मा यह शब्द पहली बार सुन रही है। अवंती ने अर्थ कहा -

‘‘नकली दाँत।’’

‘‘असली हैं। बचपन में नीम की मुखारी करते थे।’’

कम्पाउण्डर, अम्मा को व्हील चेयर पर ले गया।

‘‘यशोधरा को भेजता हूँ।’’ कह कर नागचैरीजी रुखसत हुये।

कल सर्जरी है।

आज शाम अम्मा का शर्करा स्तर कम हो गया।

सनातन और पंचानन ने अम्मा को कुसूरवार की तरह देखा -

देह में दम नहीं लेकिन हम किसी से कम नहीं।

‘‘शुगर लेवल नारमल नहीं है। कल सर्जरी नहीं होगी।’’ सूचना देने वाले चिकित्सक को भी दोनों ने कुसूरवार की तरह देखा।

अपने खाते से पैसा लाकर पंचानन वातावरण का सर्वेसर्वा बना हुआ है। सनातन नहीं जानता पंचानन ने फार्म में अम्मा के हस्ताक्षर करा लिये हैं इसलिये उसे सर्वेसर्वा स्वीकार कर रहा है। सर्वेसर्वा पंचानन चिकित्सक से बोला -

‘‘मैं कह रहा था इस उम्र में सर्जरी मुश्किल है।’’

‘‘इस उम्र में सिस्टम फे्रजाइल हो जाता है इसलिये फ्लैक्चुएशन होते रहते हैं। ब्‍लड शुगर कन्ट्रोल होते ही सर्जरी होगी।’’ कह कर चिकितसक चले गये।

पंचानन को सब्र नहीं ‘‘अस्पताल वालों को तो अपना बिल बनाना है। मरीज जितने दिन भर्ती रहे इन्हें उतना लाभ। साफ बता दें। इलाज नहीं हो सकता। फीस वापस करो, हम लोग अपना काम-धन्धा देखें।’’

घट गई रक्त शर्करा का अपराध स्वीकार कर अम्मा निःशब्द। पंचानन के शोक में संवृद्धि करने के लिये ठीक तभी मोबाइल पर सरस का काँल आ गया। पंचानन ने गाथा कही -

‘‘सर्जरी कल नहीं होगी। अम्मा का ब्लड शुगर लो हो गया है।’’

‘‘ .................।’’

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‘‘छुट्टी बढ़ाऊॅंगा। सर्जरी कब होगी, कितने दिन रुकना पड़ेगा ...........

इस उम्र में रिकवरी जल्दी नहीं होती है .............. रुकना पड़ेगा .............दिमाक न चाटा करो ...........।’’

पंचानन को बहनों खासकर दोनों जीजाओं के थोबड़े सुहा नहीं रहे हैं। उधर बेवकूफ सरस घर, बच्चे, स्कूल मैनेज करने में दुबलाई जा रही है। क्षुब्धता में उसने अम्मा को लक्ष्य बना लिया -

‘‘अम्मा सर्जरी का पता नहीं है लेकिन पूरा समाज जमा हो गया है। यहाँ इतने लोगों का काम नहीं है।’’

अम्मा सबकी बेईमानियों, गुस्ताखियों, मक्कारियों, प्रयोजनों, प्रपंचों से विमुख हो सर्जरी के लिये खुद को मानसिक रूप से तैयार करना चाहती हैं। अच्छी बातें हों, यह संश्लिष्ट वक्त गुंजर जाये लेकिन ............

‘‘हमको देखने आये हैं।’’

‘‘होटेल में खाते हैं। ताश फेंटते हैं। मेट्रो में सवार दिल्ली घूमते हैं। आज दोनों जीजा साहब अक्षर धाम गये हैं।’’

‘‘हमारे कमरे में डाँक्टर दो से अधिक लोगों को नहीं रहने देते हैं। हमारे पास कैसे बैठे रहेगें ?’’

‘‘बैठेगें तो कार्बन डाय आँक्साइड ही फैलायेंगे।’’

ये कार्बन डाय आँक्साइड क्या है ?

‘‘फैलाने दो। यह नहीं होता हमको थोड़ा तसल्ली दो। हम आपरेसन क्या करा रहे हैं, सबको कुपित किये दे रहे हैं। तुम लोगों में किसी का आपरेसन होता तो हम डाँक्टर के पैर पकड़ लेते। जितना पैसा लगे, बस बच्चा ठीक हो जाये।’’

पंचानन इन्हें क्या समझाये। अभिभावक असुविधा होते हैं बच्चे सम्भावना। उसके बच्चों की सर्जरी होती तो वह भी ............। उसकी इच्छा हो रही है, दोनों उपयुक्त पात्रों को कार्बन डाय आँक्साइड फैलाने के लिये अम्मा के कमरे में छोड़ दे और खुद होटेल में तान कर सो जाये।

रक्त शर्करा गिरावट की कुसूरवार अम्मा।

जानती हैं यशोधरा और यमुना वापस भेजी नहीं जा रही हैं, भगायी जा रही हैं लेकिन दोनों को समझा कर बोलीं -

‘‘आपरेसन पता नहीं कब होगा। तुम दोनों से भेंट-मुलाकात हो गई अब अपना घर-दुआर देखो।’’

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यशोधरा ने खण्डन किया ‘‘देख रही हूँ दोनों भाई हम लोगों से सीधे मुँह बात नहीं कर रहे हैं। फिर भी अम्मा मैं ऐसी हालत में तुम्हें छोड़ कर नहीं जाना चाहती।’’

‘‘अधिक हम क्या कहें ? जानती तो हो सनातन चिड्डे जैसा कूदने लगता है। जाओ। बच्चे परेसान होते होंगे।’’

यमुना ने यथार्थ कहा ‘‘अम्मा, हम लोग न आते तब भी यह चिड्डे जैसा कूदता कि अम्मा के इतने बड़े आपरेसन में ये लोग झाँकने न आईं। हमने दो दिन यहाँ खा क्या लिया भाईयों को अजीर्ण हो गया। मैं कहीं अलग ठहर जाती हूँ। उन पर भार नहीं पड़ेगा।’’

‘‘कोई किसी पर भार नहीं है। हम सबका खर्च उठा रहे हैं। आपरेसन के बाद जब हम घर जायें वहॉं आना। कुछ दिन हमारी सेवा कर देना। जी बहलेगा। अकेले जानवर जैसे पड़े रहते हैं। तुम लोगों को चार दिन को अपने पास नहीं बुला सकते। पूतों ने घर में ऐसा कब्जा बना लिया है।

जानती तो हो हमारी बिथा। कभी सुख नहीं जाने। बिरहुली छूटी, हमारा सुख छूट गया।’’

बिरहुली।

गौना होकर ससुराल गई अम्मा दसवें दिन बिरहुली लौटी थीं। उनके मोहक, मासूम मुख पर माँग में भरे पीले सिंदूर की पीली-स्वर्णिम आभा देख दादा भाई, दीदी (अम्मा की माँ) से बोले थे ‘‘गोदावरी को मैंने सही घर में ब्याहा है।’’

वह आभा साल भर में झाँइयों में बदल गई थी। अगली बार बिरहुली आई अम्मा को देख दादा भाई दंग रह गये थे ‘‘काला पानी की सजा काट कर आई हो गोदावरी ?’’

‘‘वहाँ हम न धूप देख पाते हैं न हवा।’’

अम्मा दर्पण देखने से डरने लगी थीं। वैद्य के उपचार से झाईयाँ दूर हुईं। साल बीत गया ससुराल से कोई लेने नहीं आया। दादा-भाई अरज-विनती करने गये - गोदावरी को कब बुला रहे हैं ?

माताराम का प्रतिबंध विकट था पर पप्पा को अम्मा की सुंदरता और सरलता याद थी। उन्होंने अम्मा को लेने दादा भाई के साथ कालेज पढ़ रहे भान्जे मदनलाल को भेज दिया था। दादा भाई, अम्मा के प्रति चिंतित रहते थे। पप्पा, सिविल जज बने तब उन्होंने साँस ली। ससुराल की विभीषिका से निकल कर गोदावरी, सारनाथ के साथ चली जायेगी। इधर माताराम को पप्पा के जज बनने की प्रसन्नता से अधिक पश्चाताप था - बिरहुली वाली बाई साहब कहायेगी। जोलाहर सास और कुटनी ननदों से पृथक हो पप्पा के साथ पोस्टिंग पर गई अम्मा को लगा अब उनके भाग्य के सितारे चमक जायेंगे। किंतु पप्पा को वे पुश्तैनी घर में वैसी ग्रामीण नहीं लगती थीं जेसी बॅंगले में लगा रही थीं। रूप जो है सो है पर सचमुच बहुत कम पढ़ी-लिखी हैं। बॅंगले में सीधे आँचल वाली नहीं फटाफट्ट वाला अप टू डेट व्यवहार जानने वाली स्त्री शोभा देती है।यद्यपि कई अधिकारियों की

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पत्नियाँ अल्पशिक्षित थी लेकिन पप्पा की ख्वाइशें बहुत अलग थीं। अम्मा ने अलगा (उलटा पल्ला) लेकर साड़ी पहनना, अच्छी चोटी बनाना, खड़ी हिन्दी में बात करना जल्दी सीख लिया था। सुंदर लगती थीं। सिविल लाइन्स की श्रीमतियाँ सराहती थीं पर पप्पा की हीनता घनीभूत होती गई। अम्मा तौर-तरीके उस तरह नहीं सीख सकतीं जिस तरह वे चाहते हैं।

अम्मा ने मान लिया कचहरी में न्याय करने वाले पप्पा उनके साथ न्याय नहीं करेंगे। व्यथा बच्चों से कहतीं। बच्चे पप्पा का पक्ष करते ‘‘पप्पा दिन भर कचहरी में दिमाक खपाते हैं। तुम उनकी बात को दिल से लगा कर दिन भर का किस्सा बना लेती हो। नेगेटिव एप्रोच छोड़ो।’’

अम्मा ने मान लिया कमाने वाले का स्थान प्रमुख होता है। हाथ में पैसा न हो तो मोहताज बन कर रहना पड़ता है। विरोध करना, बुरा मानना, अपना पक्ष रखना छोड़ अम्मा उदासीन होती गईं। निःशब्द।

रक्त शर्करा सामान्य हो गई है।

कल सुबह सात बजे सर्जरी होगी।

शाम को ओ0टी0 असिस्टेन्ट अम्मा को सैडेशन देने आ गये -

‘‘मिसेस वेद को सैडेशन देना है। मरीज कुछ सुस्त रहें तो आसानी होती है। ओ0टी0 की ठण्डक, तेज प्रकाश, औजार, चिकित्सकों की संख्या देख कर मरीज घबरा जाते हैं। कुछ तो चिल्लाने लगते हैं कि सर्जरी नहीं करायेंगे। मरीज का बी0पी0 बढ़ जाता है या दूसरी परेशानियाँ आ जाती हैं।

सर्जरी टालनी पड़ती है। सर्जरी की अगली डेट देना पड़ता है, मरीज को फिर नये सिरे से सर्जरी के लिये तैयार करना पड़ता है। आप लोग अपने तरीके से मिसेस वेद को समझा देंगे सैडेशन दिया जा रहा है। सुस्त होने लगें तो घबरायेंगी नहीं।’’

सनातन और अवंती आज्ञाकारी भाव से शीश हिलाते रहे।

अम्मा व्यग्र हैं। अंग्रेजी में कुछ जटिलता बताई जा रही है।

डाँक्टर के जाते ही पूँछ बैठीं -

‘‘डाँक्टर क्या कह रहे थे ?’’

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अम्मा की तरह अवंती भी अंग्रेजी नहीं समझती। धूर्त बुद्धि सनातन ने सैडेशन का विवरण नहीं दिया कि ओ0टी0 का दृश्य सुन दहशत में आ गईं, कोई परेशानी हो गई तो सर्जरी फिर टल जायेगी। कितना वक्त खराब करेंगे इनके लिये।

‘‘कल सुबह आपरेशन होना है।’’