Dil hai ki maanta nahin - Part 5 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 5

सोनिया से बिछड़ने के ग़म को निर्भय ने अपने सीने में दफ़न कर लिया और फिर ख़ूब पढ़ाई करके उसने अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया। उसका मन तो करता था कि वह इस दुनिया को छोड़ कर कहीं दूर गगन में चला जाए और सोनिया को भी वही पहुँचा दे; किंतु जब भी वह ऐसा कुछ करने का सोचता उसके सामने एक मूरत आ जाती जो उसकी माँ की होती और फिर वह ऐसा कुछ नहीं कर पाता।

देखते-देखते 8 माह बीत गए। भट्टी में जलती आग की तरह उसका मन हमेशा जलता ही रहता था। इसी ग़म को भुलाने के लिए धीरे-धीरे उसने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया। अब तक भी उसकी माँ यह कुछ नहीं जानती थी। बस उन्हें इतना ज़रूर लगता था कि उसका बेटा काफी गंभीर स्वभाव का हो गया है। कुछ दिन तक तो वह शराब की आहट जो दबे पाँव उनके घर में प्रवेश कर रही थी, उसे भी महसूस नहीं कर पाईं; लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अब महसूस होने लगा कि निर्भय शराब पीने लगा है। कोई ग़म है जो उसे खाए जा रहा है।

एक दिन उन्होंने निर्भय से पूछ ही लिया, "निर्भय बेटा तुमने शराब पीना शुरू कर दिया है। आख़िर क्यों? अच्छी भली नौकरी लग गई है। मैं सोचती थी कि मेरा बेटा गंभीर हो गया है; लेकिन मैं भोली यह ना जान पाई कि तू तो किसी बहुत बड़े दुःख का शिकार हो गया है। जिसने तेरी सारी हँसी ख़ुशी तुझ से छीन ली है। बोल बेटा क्या बात है? मैं तुझे ख़ुश देखना चाहती हूँ, कौन है वह? मैं जाकर बात करूँ क्या? क्या उसने तुझे मना कर दिया है? मुझे बता तुझे मेरी कसम। "

"माँ मत डालो कसम, मैं उसे पूरा ना कर पाऊँगा," कहते हुए निर्भय कमरे से बाहर चला गया।

निर्भय की माँ बेचैन हो रही थी। उन्होंने तुरंत कुणाल को फ़ोन करके बुलाया। 

कुणाल आया और उसने पूछा, "क्या बात है आंटी?" 

"कुणाल सच-सच बताना पिछले आठ-नौ महीने से मैं देख रही हूँ निर्भय को, वह बिल्कुल बदल गया है, क्या बात है? तू तो उसका जिगरी दोस्त है। तुझे तो सब मालूम ही होगा। मुझे बता कुणाल, शायद मैं ही उसके लिए कोई अच्छा रास्ता निकाल पाऊँ?"

"आंटी उसने मुझे मना किया था फिर भी मुझे आपको सब कुछ सच-सच बता देना चाहिए," इतना कहते हुए कुणाल ने निर्भय की पूरी प्रेम कथा उसकी माँ सरस्वती को सुना दी।

सरस्वती अपने बेटे के प्यार की सच्ची कहानी को सुनकर रो पड़ी; लेकिन ट्रेन तो छूट कर अपने ठिकाने पहुँच चुकी थी। अब उसमें सवार होने का कोई चांस ही नहीं था।

उसने कुणाल से कहा, "बेटा काश तुम लोगों ने मुझे पहले सब कुछ बता दिया होता तो शायद मैं कुछ कर पाती। ख़ैर अब इस लंबी काली अमावस की रात को पूनम बनाने के लिए मुझे निर्भय के लिए कोई चाँद ढूँढ कर लाना होगा।" 

"हाँ आंटी आप बिल्कुल सही सोच रही हैं। एक यही रास्ता है जो उसके दुःख को कम कर सकता है। एक जीवन संगिनी ही अब निर्भय को संभाल सकती है।"

सरस्वती ने लड़की ढूँढने का पक्का मन बना लिया। उन्होंने अपनी बेटी श्रद्धा को फ़ोन किया और रोहन के प्यार की दर्द भरी पूरी कहानी सुना दी। यह सब बताते समय उनकी आँखों से बार-बार आँसू बह रहे थे। अपने भाई के बारे में यह सब सुन कर श्रद्धा भी बहुत दुःखी हो गई।

सरस्वती ने कहा, “श्रद्धा अब हमें जल्दी से जल्दी लड़की ढूँढ कर निर्भय की शादी कर देनी चाहिए।”

“अरे माँ मैं आज आपको फ़ोन करने ही वाली थी। निर्भय के लिए मैंने एक लड़की देखी है। बहुत अच्छा परिवार है और लड़की बहुत ही सुंदर है। माँ आप बिल्कुल चिंता मत करो मैं आज ही आ रही हूँ, अभी कुछ ही घंटों में पहुँच जाऊँगी। उस लड़की की तस्वीर भी ले आऊँगी। चलो माँ रखती हूँ, आने की तैयारी भी तो करनी है।”

शाम तक श्रद्धा घर पहुँच गई उसे देखकर सरस्वती ने एक गहरी साँस ली और उसे गले से लगा लिया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः