Bhootiya Express Unlimited kahaaniya - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

भुतिया एक्स्प्रेस अनलिमिटेड कहाणीया - 15

एपिसोड १५ काळा जादू

"तो... ठीक है... विलासराव...! सुनो तो..!"
ये कहते हुए जगदीश जी आगे की बात करने लगे.
“तुम्हारी भाभी ने जो कुछ किया है..तुम पर विद्या (जादू-टोना) किया है..!
हम यह सब उन पर थोप देंगे...! जिससे ये सब यहीं रुक जाएगा....! ".!" जगदीशराव के इस वाक्य पर विलासराव कुछ देर चुप रहे तो कभी विलासराव ने कहा
उसने उन दोनों की ओर देखा और आह भरते हुए इस जादू-मुक्त शिक्षा के लिए हामी भर दी
"जगदीश जी, अगर मेरा परिवार इस नजर से बच जाएगा.. तो... मुझे ये मंजूर है..!"
विलासराव ने विचार करने के बाद सिर हिलाया, जगदीशजी ने भी ऐसा ही किया
अगले दो दिनों में अध्ययन करने का निर्णय लिया, ........
जिसे इस भयानक खूनी खेल को रोकना था....लेकिन यह इतना आसान था....क्यों...चलिए आगे देखते हैं....
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काली होने के कारण खोपड़ी ने नारियल का कालापन सोख लिया और उस खोपड़ी पर एक शैतान का चेहरा दिखाई दिया, जिसका चेहरा काला था, दो छोटे बैल जैसे सींग, और कुत्ते जैसे दांत और एक जीभ भी थी। उस खोपड़ी के साथ बाकी इंसान की हड्डी भी मौजूद थी, उसके बारे में सोचने मात्र से शरीर पर कांटा खड़ा हो जाता है,
"तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया?" कपाल पर वह भयानक उपद्रव अपनी भयावह गन्दी आवाज में कहेगा।
"आह .... ह×××××र ... ! किसी ने .. तुम्हें यहां नहीं बुलाया .. और नहीं तुम यहां रहने के .. हकदार हो . . . समझे .. .. क्यों ?"

"फिर बुलाया...क्यों...तुम्हारा अ####$×ला...!हेहेहे, खिलखिलाओ...!" राक्षस ने नकली मुस्कान के साथ और केवल गंदे शब्दों का उपयोग करते हुए कहा।

"चुप रहो..! नहीं तो मैं तुम्हें यह लगातार परेशानी नहीं दूँगा...! या मैं कुत्ते की तरह व्यवहार करूँगा...!" जगदीश जी ने उस कैक्रिलाक राक्षस की ओर देखकर कहा।

"तुम....? खिसियाओ... क्या तुम मेरा इलाज करोगे...? वह कुत्ते की तरह है...! हेहेहे, घीचेहे। चिल्लाओ
धमकी दे रहा है... !हीहीही...ते पैन मी...नरक का राक्षस....हीही...हीही...! उसकी पत्नी को दो दिन और घर में रखा होता....फिर...'' वह कैक्रिलाक राक्षस आगे कुछ भी कहने ही वाला था।
उसी जगदीशजी ने बगल से मंत्रमुग्ध राख शैतान के ऊपर फेंकी, जिस प्रकार गर्म तवे पर पानी के छींटे पड़ने पर एक विशेष ध्वनि (एफएसएस), सेम-हुबे-हब के साथ भाप निकल जाती है, उसी प्रकार राख शैतान के ऊपर गिरी। उस शैतान का चेहरा। एक फुसफुसाहट की आवाज आ रही थी, उसके चेहरे से भाप निकल रही थी, और भयानक कर्कश आवाज में कीट चिल्ला रहा था..., और कभी-कभी जैसे ही उसका दर्द बंद हो जाता था, कीट एक बार फिर से हंसना शुरू कर देता था,दो दिन बीत गए और जादू मुक्त अनुष्ठान का दिन आ गया, जादू मुक्त अनुष्ठान विलासराव के घर पर होने वाला था, तभी जगदीशराव ने विलासराव से अनुष्ठान का सारा सामान माँगा, रात हो गई और अनुष्ठान की व्यवस्था की गई और अनुष्ठान शुरू हुआ, इस समय जगदीशराव साधारण कपड़े नहीं पहनते थे, पेंट शर्ट की तरह इस समय उन्होंने काले रंग की लुंगी पहन रखी थी, उनके शरीर पर और कुछ नहीं था, उनके सामने जगदीशराव हवनकुंड बैठे थे, सामने हवनकुंड में लाल अग्नि जल रही थी जगदीशराव, और हवनकुंड के सामने एक सफेद रंग की खोपड़ी रखी गई थी, उस खोपड़ी के सिर पर एक नारियल रखा गया था और खोपड़ी के चारों ओर नींबू, बुक्का, एक काली गुड़िया, कई अजीब वस्तुएँ रखी गई थीं, विलासराव और रामचन्द्र जगदीशराव बैठे थे कुंकवा और राख से मिश्रित अभिमंत्रित्री में गोल अखाड़े में, मैं ऐसा नहीं कर सका, पूरे घर में सन्नाटा था, पूरे घर में केवल जगदीशराव के मंत्र की ध्वनि गूंज रही थी, इसके अलावा कोई आवाज नहीं थी, मानो आज पूरे घर में एक गंभीर सन्नाटा छा गया हो, जैसे-जैसे समय बीतता गया, खोपड़ी इसके विपरीत होती गई।
ऊपर का नारियल काला पड़ रहा था,
कभी-कभी यह नारियल की कालिख की तरह बिल्कुल काला हो जाता था,
और काला नारियल उस खोपड़ी का कालापन खुद ही सोख लेगा,
"अखाड़े के बाहर..बस...अपना हाथ मत उठाओ।? वो देखो..., वो
देखो माँ आओ...! जगदीश राव ने काले नारियल को देखते हुए कहा, विलासराव और जगदीश राव ने खोपड़ी पर लगे नारियल को देखा।
सफेद रंग की खोपड़ी पर रखा नारियलहेहेहेहे, खिलखिलाओ...! A Ma@×××#t ..........मैं भगवान हूं... हूं.. भगवान ..!...क्या आप समझते हैं ......? तुम केवल मुझे चोट पहुँचा सकते हो...! मारु शक्त ..नहीं...हेहेहेहे, खीस...!"

"हे चांडाल...! ...क्या तू भगवान शब्द का अर्थ भी समझता है...?
तुम भगवान नहीं हो...! तो....तुम पापी शैतान हो...! तुम शैतान हो...! ...स्वार्थी..महान पाखंडी शैतान
तुम कमाल हो...! ''जगदीशजी ने यह वाक्य एक बार फिर दोहराया
जैसे ही उसने राख को दानव देवता की ओर फेंका, उसके मुंह से एक बार फिर पीड़ा की चीख निकली, और जैसे ही दर्द कम हुआ, वह फिर से एक निर्लज्ज आदमी की तरह मुस्कुराया।

"हीही, खिलखिलाओ..! यह क्या बकवास कर रहा है..रेह...! फ़ेक-फ़ेक अजुन फ़ेक हेहिखिखी... लय मजेदार है...।"
उस कपाल पर अवतरित कैक्रिलक पिशाच धड कहेगा। लेकिन जगदीशजी ने उनकी मुस्कुराहट या बोली पर ध्यान न देते हुए विलासराव को पुकारा,

"विलासराव.. ..?.........जगदीशजी ने विलासराव को आवाज लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं आया, जगदीशराव ने विलासराव की तरफ देखा, लेकिन विलासराव डर के मारे पाठ की ओर देख रहे थे, जगदीशजी ने आवाज दी और विलासराव ने देखा कि वह ध्यान न देते हुए, रामचन्द्र ने उनके शरीर को छुआ और विलासराव ऐंठन के साथ अपनी मूर्छा से बाहर आ गये।
"..उम्..! क्या...?" विलासराव ने कहा.
“अरे विलास जगदीश जी आवाज दे रहे हैं..लक्ष्य कहाँ है..आपका..?”
रामचन्द्र के इस वाक्य पर विलासराव ने तुरन्त उनकी ओर देखा और कहा
“क्या..जगदीशजी.?”
"विलासराव..डरो मत...! हमने तो इस हत्यारे की सिर्फ लाश ही स्थापित की है..इसलिए डरने की जरूरत नहीं...नहीं! बस मैं जो कह रहा हूं...वो सुनो...?'' " .
"विलासराव...रामचन्द्र एक काम करो...?"
"कहिए जगदीश जी..!" रामचन्द्र ने कहा.
"रामचंद्र क्या तुम पानी से भरा एक बर्तन ला सकते हो...?"

क्रमश :