खौलते पानी का भंवर - Novels
by Harish Kumar Amit
in
Hindi Moral Stories
‘आठ हज़ार तो आप अब दे दीजिए और बाकी के आठ हज़ार आख़िरी सुनवाई से पहले दे देना.’’
कल शाम से यह वाक्य उसके दिमाग़ पर हथौड़े की तरह बज रहा था. कहाँ से लाए वह आठ हज़ार रुपए? उस ...Read Moreपन्द्रह हजार रुपए महीना पाने वाले एक मामूली क्लर्क के लिए आठ हज़ार रुपए कोई छोटी-मोटी रकम तो है नहीं कि झट जेब से निकालकर दे दी. लेकिन खन्ना साहब को रुपए अदा करना भी तो बहुत जरूरी है, क्योंकि वे ही उसके हाथों से फिसलती दीख रही उसकी नौकरी बचाकर उसे दर-दर की ठोकरें खाने से बचा सकते हैं.
‘‘आठ हज़ार तो आप अब दे दीजिए और बाकी के आठ हज़ार आख़िरी सुनवाई से पहले दे देना.’’ कल शाम से यह वाक्य उसके दिमाग़ पर हथौड़े की तरह बज रहा था. कहाँ से लाए वह आठ हज़ार रुपए? ...Read Moreजैसे पन्द्रह हजार रुपए महीना पाने वाले एक मामूली क्लर्क के लिए आठ हज़ार रुपए कोई छोटी-मोटी रकम तो है नहीं कि झट जेब से निकालकर दे दी. लेकिन खन्ना साहब को रुपए अदा करना भी तो बहुत जरूरी है, क्योंकि वे ही उसके हाथों से फिसलती दीख रही उसकी नौकरी बचाकर उसे दर-दर की ठोकरें खाने से बचा सकते
‘‘सुधीर, तुम पढ़ो.’’ कहते हुए मास्टर जी ने उसकी तरफ़ इशारा किया है. सुनते ही वह एकदम से हड़बड़ा गया है और बैंच से उठने की कोशिश करने लगा है. मगर हड़बड़ाहट ने उसका संतुलन थोड़ा-सा बिगाड़ दिया है ...Read Moreवह अपने साथ बैठे लड़के पर गिरते-गिरते बचा है. एक हाथ में अंग्रेजी की किताब थामे, दूसरे हाथ से डेस्क का सहारा लेकर वह खड़ा हो गया है. इस बात पर क्लास के सभी लड़के ख़ामोश बैठे रहे हैं, पर उसके साथ वाली लाइन के तीसरे बैंच पर बैठे संजीव की हँसी छूट गई है. और कोई मौका होता तो
दिहाड़ी उसकी घड़ी पौने दस बजा रही है जब वह अपने दफ़्तर के भवन में दाखिल हुआ है. हालाँकि दफ़्तर लगने का वक़्त नौ बजे है, मगर उसके चेहरे पर हड़बड़ी का कोई भाव नज़र नहीं आ रहा. दूसरी ...Read Moreपर स्थित अपने कमरे में जाने के लिये सीढ़ियाँ चढ़ने की बजाय वह आराम से लिफ्ट की लाइन में लग गया है और आगे-पीछे नज़रें घुमाकर देखने लगा है कि लाइन में कोई लड़की-वड़की तो नहीं खड़ी. थोड़ी देर बाद सुस्त चाल से चलते हुए उसने अपने सेक्शन में प्रवेश किया है. कमरे से शोरगुल और हँसी-ठहाकों की हल्की-हल्की आवाज़ें
ज्वार मेरे जी में आ रहा था कि उठकर विनोद का गला दबा दूँ. मैं उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था. वजह बिल्कुल साफ़ थी - मंजु, सिर्फ़ मंजु, दूर के रिश्ते की मेरी बुआ की लड़की. ...Read Moreदेर पहले ही विनोद और मैं कैथल से आगरा आए थे - घूमने. आने से पहले मेरे घरवालों ने मुझसे कहा था कि अपनी बुआ जी के यहाँ ही ठहर जाना. तुम लोगों को आराम रहेगा. बुआ जी लोग थे भी बड़े अमीर. हम दो जनों के चार-पाँच रोज़ उनके यहाँ रूकने से उन्हें कोई फ़र्क पड़नेवाला नहीं था. दोपहर
मसीहा आखिर मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ देने का फैसला उसने कर ही लिया है. इसके साथ ही संतुष्टि का एक भाव उसके चेहरे पर तैरने लगा है. पिछले आठ-दस दिनों से वह बड़े असमंजस की स्थिति में झूल ...Read Moreथा कि मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ा जाए या नहीं? मकान छोड़ने की बात अचानक ही सामने आई थी, वरना उसका इरादा फिलहाल तो यहाँ से जाने का था नहीं. वह तो आठ-दस दिन पहले उसका दोस्त, अनिल, एक इम्तिहान देने दिल्ली आया और एक रात उसके पास ठहरा, तभी यह चक्कर शुरू हुआ. अनिल ने तो पहली बार उस
पाँच रुपये का दर्द शाम को दफ़्तर से छुट्टी करके तेज़-तेज़ कदमों से चलता हुआ वह केन्द्रीय भण्डार की राममनोहर लोहिया अस्पताल शाखा के सामने पहुँचा है. महीने की शुरूआत की वजह से होने वाली अन्दर की भीड़ उसे ...Read Moreसे ही दिखाई दे गई है. अन्दर जाने से पहले उसने अपने ब्रीफकेस में से प्लास्टिक का थैला निकाला है और साथ ही पैंट की पिछली जेब में पड़े पर्स से ख़रीदने वाले सामान की लिस्ट. अन्दर पहुँचकर उसने एक तरफ से ख़रीदारी शुरू की है. सबसे पहले उसकी नजर घी के डिब्बों पर पड़ी है. अलग-अलग तरह और अलग-अलग
जोंक दिल को बार-बार तसल्ली दे रहा हूँ, मगर डर फिर भी लग रहा है. प्रदीप बस की लाइन में मेरे पीछे खड़ा स्त्री जाति की महानता पर लगातार बोले जा रहा है. मेरा जी चाह रहा है कि ...Read Moreवह अपनी बक-बक बन्द करके चुपचाप अपने घर जाने वाली बस पकड़ने की फ़िक्र करे, लेकिन वह तो जैसे मुझसे चिपका ही हुआ है. उसकी बातें सुनने का उपक्रम करते हुए बीच-बीच में आँख उठाकर मैं बस आने वाले रास्ते की तरफ़ भी नज़र मार लेता हूँ. छह बीस पर बस आनी चाहिए. मैंने घड़ी की ओर देखा है -
चक्रव्यूह आख़िर उसने तय कर लिया है कि अपने लिए अलग कमरे काम इन्तज़ाम वह अब कर ही लेगा. अपमान और घुटनभरी ऐसी ज़िंदगी अब और नहीं जी जाती उससे. अब और बर्दाश्त करना मुश्किल है. इस घर में ...Read Moreजलने और कुढ़ने के सिवा वह और कुछ नहीं कर सकता. यहाँ अपनेआप को वह चाहे कितना भी बेइज़्ज़त क्यों न महसूस करता रहे, अपनी बेइज़्ज़ती के जवाब में एक लफ़्ज भी अपने जीजा जी को नहीं कह सकता. कुछ भी जवाब देने से पहले दीदी की सूरत उसकी आंखों के आगे घूमने लगती है और उसे जबरदस्ती अपनेआप को
रोशनी का अंधेरा ‘‘क्यों बे, अपनी पढ़ाई-लिखाई का भी कुछ ख़याल है या सारा दिन इन किस्से-कहानियों में ही डूबे रहना है?’’ राकेश पर उसके बाबूजी बिगड़ रहे थे. पिछले कुछ महीनो से उसके बाबूजी उसकी पढ़ाई का ख़याल ...Read Moreज़्यादा ही रखने लगे थे. उन्हें हर वक़्त बस उसकी पढ़ाई की ही चिंता लगी रहती. वे उससे ज़्यादातर उसकी पढ़ाई, इम्तहानों, नंबरों, नौकरी वगैरह की ही बातें करते. राकेश के ऐसे हर काम को, जो उसकी पढ़ाई से संबंधित न होता, नहीं करने को कहते. अगर उन्हें राकेश के दो-चार कामों पर ही एतराज होता, तब भी चलो कोई
शराफ़त भागकर लोकल बस में चढ़ने के बाद जब उसने कंडक्टर से टिकट ले ही ली है, तो पोजीशन लेने के लिए वह इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगा है. पिछले दरवाज़े के सामने वाली जगह पर तो आदमी ही आदमी ...Read Moreकोई लड़की या औरत दिखाई नहीं दे रही. हाँ, महिलाओं वाली सीटों के पास एक लड़की व दो-तीन औरतें ज़रूर खड़ी हैं. औरतों में से एक तो वाकई बहुत ख़ूबसूरत है. वह आगे बढ़कर उसी औरत की बगल में खड़ा हो गया है. अभी वह उससे कुछ दूरी बनाये हुए है. मज़े लेने धीरे-धीरे शुरू करेगा. या हो सकता है
औक़ात बड़ी हीनता-सी महसूस हो रही है उसे. अपना अस्तित्व उसे मखमली चादर पर लगे टाट के पैबंद जैसा लग रहा है. हँसते-मुस्कुराते चेहरे, अभिजात्य मुस्कानें, कीमती कपड़े, जेवर - सब उसकी हीन भावना को और बढ़ा रहे हैं. ...Read Moreजी में आ रहा है कि जल्दी से जल्दी यह सब ताम-झाम खत्म हो ताकि वे लोग घर की राह लें. पर घर पहुँचना ही तो सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है इस वक़्त. दिनेश के बेटे की तबीयत अचानक खराब न हो गई होती तो उन्हीं के साथ उनकी गाड़ी में घर वापिस चले जाते. पर उन्हें बच्चे को
दलदल वार्षिक परीक्षा के लिए चार दिन पहले भरे अपने एग्जामिनेशन फॉर्म को वह अभी-अभी तीसरी बार अच्छी तरह जाँचकर आया है. फॉर्म देखते वक़्त वीरेन्द्र भी उसके साथ था. अपनेआप को अब वह काफी आश्वस्त-सा महसूस कर रहा ...Read Moreउसे लग रहा है जैसे उसके सिर से एक भारी बोझ उतर गया है. मन-ही-मन उसने इस बात का फैसला किया है कि अब वह किसी भी वहम-शहम के चक्कर में नहीं पड़ा करेगा और एक सामान्य ज़िंदगी जीने की कोशिश करेगा. लेकिन इस बोझ के उतर जाने की ख़ुशी का अहसास अभी उसे पूरी तरह हो भी नहीं पाया
मौत शाम को दफ़्तर से लौटकर घर आया तो ड्राइंगरूम से आ रही आवाज़ों को सुनकर ही समझ गया कि मंजु आ चुकी है. मंजु यानी मेरी पत्नी वीना की छोटी बहन. मंजु के साथ उसके पति सतीश जी ...Read Moreआए थे. मंजु से लगभग दो साल बाद मुलाक़ात हो रही थी. दो साल पहले शादी के बाद वह अमरीका चली गई थी, जहाँ सतीश जी का हीरे-जवाहरात का व्यापार है. ड्राइंगरूम में पहुँचकर जैसे ही मैंने मंजु को देखा, मेरी हैरानगी की कोई सीमा न रही. सतीश जी तो अब भी पहले जैसे दीख रहे थे, मगर मंजु को
काँच के सपने बाएं हाथ में उपहार के पैकेट को बड़े ध्यान से पकड़े हुए जब वह घर से निकला तो अंधेरा पूरी तरह छा चुका था. सधे हुए कदमों से वह बस स्टॉप की ओर चल पड़ा. हर ...Read More21 जुलाई के दिन दीदी के धर जाना एक तयशुदा कार्यक्रम होता था. इस दिन उसकी दीदी और जीजा जी के विवाह की वर्षगांठ होती थी. इस रोज़ आमतौर पर वह दफ़्तर से सीधे ही दीदी के घर की बस पकड़कर वहाँ चला जाया करता था, मगर इस बार ऐसा करना संभव नहीं था. कारण था वह उपहार जो वह