Vaishya ka Bhai book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Vaishya ka Bhai is also popular in Classic Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
वेश्या का भाई - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Classic Stories
वेश्या या तवायफ़ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने के नाम मात्र से ही घृणा होने लगती है,सभ्य समाज के लोंग इस शब्द को और ये शब्द जिससे जुड़ा है उसे अभद्र मानते हैं लेकिन कभी किसी ने ये सोचा है कि जो वेश्या बनती है वो स्वयं नहीं बनती ,बनाई जाती है और हमारा ये सभ्य समाज ही उसे ये कार्य करने पर विवश करता है,
वो वेश्या भी एक साधारण जीवन जीने की इच्छा रखती है,वो भी अपने लिए सम्मान चाहती है,वो भी चाहती है कि उसका एक परिवार हो जिसका वो ध्यान रखें,परन्तु उसकी भावनाओं को कभी कोई नहीं समझता,उसका परिचय केवल अश्लिलता एवं अभद्रतापूर्ण ही दिया जाता है, समाज सदैव उसे कुदृष्टि से ही देखता है,
उसका रूप-यौवन,गायन एवं नृत्य की प्रशंसा केवल रात्रि में होती है,जो पुरूष उसके पास जाता है लेकिन उस पुरूष को अपने घर की बहु-बेटियों का उस गली मुहल्ले से गुजरना भी गँवारा नहीं होता,वें स्त्रियाँ नहीं होतीं बल्कि पुरूष के मनोरंजन ,खेलने और रात बिताने का सामान होतीं हैं,जब जी भर गया तो नया खिलौना लेलो।।
वेश्या या तवायफ़ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने के नाम मात्र से ही घृणा होने लगती है,सभ्य समाज के लोंग इस शब्द को और ये शब्द जिससे जुड़ा है उसे अभद्र मानते हैं लेकिन कभी किसी ने ये ...Read Moreहै कि जो वेश्या बनती है वो स्वयं नहीं बनती ,बनाई जाती है और हमारा ये सभ्य समाज ही उसे ये कार्य करने पर विवश करता है, वो वेश्या भी एक साधारण जीवन जीने की इच्छा रखती है,वो भी अपने लिए सम्मान चाहती है,वो भी चाहती है कि उसका एक परिवार हो जिसका वो ध्यान रखें,परन्तु उसकी भावनाओं को
कुछ वक्त के बाद केशर बाई की पालकी नवाबसाहब की हवेली के सामने जाकर रूकी,साथ में बब्बन और जग्गू भी पीछे पीछे आ पहुँचें,केशरबाई जैसे ही पालकी से उतरी और उसके कद़म जैसे ही हवेली के दरवाज़े पर पड़े ...Read Moreउसने उसी शख्स को वहाँ पर देखा जो कल रात उसके कोठे पर आया था,उसे देखकर केशरबाई कुछ ठिठकी लेकिन कुछ सोचकर उसने आगें कद़म बढ़ा दिए।। वो अपनी मदहोश़ करने देने वाली अदाओं के साथ महफ़िल में दाखिल हुई,उसकी मस्तानी चाल ग़जब ढ़ा रही थी,उसका अनारकली गहरे हरे रंग का लिब़ास वहाँ मौज़ूद लोगों पर बिजलियाँ गिरा रहा
केशरबाई मुज़रा करते हुए बहुत थक चुकी थी इसलिए वो रातभर बिना करवट बदले ही सोती रही,उसकी आँख सीधे सुबह जाकर ही खुली ,जब शकीला उसे जगाने आई और वो केशर को जगाते हुए बोली.... और ...Read Moreकब तक सोतीं रहेंगीं?देखिए सूरज सिर पर चढ़ आया है..... अरे,तू आ गई करमजली! मेरी नींद में ख़लल डालने,केशर ने अपनी आँखें मस़लते हुए कहा।। बोल कैसा रहा कल रात का मुजरा और नवाबसाहब की मेहमानवाज़ी? रात मैं तो तेरे आने से पहले ही सो गई थी,कल कोई ख़रीदार ही नहीं आया,शकीला बोली।। बस,ऐसी ही रहीं,कुछ ख़ास नही,केशर बोली।। क्यों खास़ क्यों
इन्द्रलेखा मजबूर थी या कि उसमें हिम्मत ना थी सही को सही या गलत को गलत कहने की,ये तो वो ही जान सकती थी,इतने सालों से उसने कभी भी इस जुल्म के ख़िलाफ़ कोई भी आवाज़ नहीं उठाई थी,क्या ...Read Moreकि उसका ज़मीर सो चुका था या कि हमेशा के लिए मर चुका था,शायद जुल्म सहना उसकी आदत में शुमार हो गया था या कि वो इसलिए आवाज़ नहीं उठा रही थी कि उसकी गिरस्ती कहीं बरबाद ना हो जाए, इन्द्रलेखा की चुप्पी साधने की क्या वज़ह थी ये तो केवल वो ही बता सकती थी,वो सुबह से उठकर
इन्द्रलेखा भीतर जाकर भगवान के मंदिर के सामने खड़ी होकर फूट फूटकर रो पड़ी और भगवान से प्रार्थना करते हुए बोली.... हे!ईश्वर! ये कौन-कौन से दिन दिखा रहा है मुझको,वो नन्ही सी बच्ची है कुछ तो तरस खाओ उस ...Read Moreभोली और मासूम है बेचारी,मुझ में वो अपनी माँ का रूप देखती है,लेकिन मैं उसे अपनी बेटी भी तो नहीं कह सकती क्योकिं जमींदार साहब ने उसे अपनी रखैल बनाकर रखा है,मैं उससे कौन सा नाता जोड़ू कुछ समझ में नहीं आता, लेकिन मैं एक औरत हूँ और वो भी एक औरत है तो उससे हमदर्दी का नाता तो