Khatte Mithe Vyang book and story is written by Arunendra Nath Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Khatte Mithe Vyang is also popular in Comedy stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
खट्टे मीठे व्यंग - Novels
by Arunendra Nath Verma
in
Hindi Comedy stories
नाम के पीछे आई ए एस के गरिमामय दुमछल्ले को जोड़ने वाले मेरे छोटे भाई की कार मेरे घर के सामने उन्होंने कई बार खड़ी देखी तो अपने कौतूहल को वे रोक नहीं पाए. भाई को अपने रुतबे से जलने वालों की ऐसी हाय लगी थी कि कार की छत से नीली बत्ती को बेमन से हटाना पड़ गया था. पर उस टीस को कार के पीछे लाल अक्षरों में लिखे ‘भारत सरकार‘ ने किसी हद तक कम कर दिया था. उसी को देखकर इन सज्जन ने मुझसे “सांवरे से सखी, रावरे को हैं?’ वाले अंदाज़ में उस सरकारी कार के मालिक से मेरे सम्बन्ध के बारे में पूछ डाला.
नाम के पीछे आई ए एस के गरिमामय दुमछल्ले को जोड़ने वाले मेरे छोटे भाई की कार मेरे घर के सामने उन्होंने कई बार खड़ी देखी तो अपने कौतूहल को वे रोक नहीं पाए. भाई को अपने रुतबे से ...Read Moreवालों की ऐसी हाय लगी थी कि कार की छत से नीली बत्ती को बेमन से हटाना पड़ गया था. पर उस टीस को कार के पीछे लाल अक्षरों में लिखे ‘भारत सरकार‘ ने किसी हद तक कम कर दिया था. उसी को देखकर इन सज्जन ने मुझसे “सांवरे से सखी, रावरे को हैं?’ वाले अंदाज़ में उस सरकारी कार के मालिक से मेरे सम्बन्ध के बारे में पूछ डाला.
छोटे से फ़्लैट में जाने कितनी पुरानी यादों के साक्षी सामान जमा हैं जिन्हें फेंकने का मन नहीं होता. छोटी सी पेंशन के सहारे महंगाई से लगातार चलती लड़ाई है. कारण तो बहुत हैं पर सबका परिणाम एक है. ...Read Moreमेरे लिए मजबूरी है, शौक नहीं. अकबर इलाहाबादी के शब्दों में “दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ , बाज़ार से निकला हूँ खरीदार नहीं हूँ.” फ़िर भी जब बाज़ार दूकानों से बाहर निकल कर फूटपाथों पर हाबी हो जाए तो उन पर सजाये हुए बिकाऊ माल से टकराने, गिरने के डर से ही सही, आँखें खोल कर चलना पड़ता है.
कई वर्षों से अमरीका में रहने वाले एक मित्र दिल्ली आये तो मैं बड़े गर्व के साथ उन्हें दिल्ली की मेट्रो रेल दिखाने ले गया. लेकिन स्टेशन पर ज़बरदस्त हंगामे का माहौल दिखा. पता चला कि सार्वजनिक चुम्बन पर ...Read Moreलगाम ढीली करवाने का जज्बा लेकर दिल्ली की तेज़ तर्रार युवा पीढ़ी स्टेशन पर खुले आम चुम्बन समारोह मनाने आई थी. उधर भारतीय संस्कृति की रक्षा को प्रतिबद्ध बहुत से खुदाई खिदमतगार इन प्रदर्शनकारियों को पीटकर और उनके कपडे फाड़कर देश की लज्जा ढंकने के उतने ही ज़बरदस्त जज्बे का प्रदर्शन करने आये हुए थे.
बेटे को अमरी एक्सेंट में फर फर अंग्रेज़ी बोलते देखकर संतोष होता है कि इतने महंगे पब्लिक स्कूल में पढ़ाने के पैसे वसूल हो गए. बस इसकी एक कीमत भारी पड़ी है. हमें भाषा के साथ साथ अपनी पूरी ...Read Moreसहन भी बदलनी पड़ गयी. शुरुआत बाथरूम से हुई थी जहां उसकी पसंद के क्यूबिकल, शावर और डब्ल्यू सी आदि लगवाने में इतने पैसे खर्च हो गए जितने में हमारे फ़्लैट का पूरा कायाकल्प हो जाता. फिर बाथरूम से बाल्टी मग इत्यादि निकाल कर फेंकने पड़े. पिताजी की यादगार पीतल का मुरादाबादी लोटा तो बेटे ने बरसों पहले कबाड़ी को दे दिया था.
सुना तो था कि हर कुत्ते के दिन आते हैं फिर भी उस कुत्ते के भाग्य से ईर्ष्या हुई जिसकी कई दिनों से दिल्ली पुलिस को तलाश थी. भला कितने कुत्तों का ये सौभाग्य होता है कि अखबारों और ...Read Moreवी चैनलों पर उनकी खबर ही नहीं बाकायदा तस्वीर भी आये. तस्वीरों में तो वह बड़ा मासूम लग रहा था जब कि उस पर आरोप था कि उसने अपने मालिक अर्थात मियाँ के उकसाने से बीबी को काट खाया था. लोगों को कौतूहल था कि क्या कुत्ते के ऊपर भी पुलिस मुकदमा दायर करेगी, उधर पुलिस के सामने कई सवाल उठ खड़े हुए थे.