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मेगा 325 - 3

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(3)

अपने कमरे में जाकर शशांक कम्प्यूटर पर स्कूल का होमवर्क करने लगा. बीच-बीच में छत पर लगे कैमरे की बत्ती जल जाती. शशांक जानता था कि यह सब मेगा 325 की वजह से ही हो रहा है. घर के किसी और कमरे में बैठे-बैठे वह उस पर नज़र रख रहा है कि वह पढ़ाई कर रहा है या नहीं.

होमवर्क करते-करते शशांक को गुस्सा आने लगता कि एक रोबोट मानो उसकी जासूसी कर रहा है. इतनी नज़र तो उस पर उसके मम्मी-पापा भी नहीं रखते, जो इतनी दूर मंगल ग्रह पर रहते हैं. फिर भी उसने किसी तरह अपने मन को शांत किया और अपना काम करता रहा. वह यह बात अच्छी तरह समझता था कि इस तरह जी जलाने से ख़ुद उसका अपना नुक्सान ही होगा. मेगा 325 पर तो कोई असर होनेवाला है नहीं.

होमवर्क करते-करते वह थकावट-सी महसूस करने लगा था. उसका जी चाहने लगा कि थोड़ी देर आराम कर लिया जाए ताकि कुछ चुस्ती आ जाए और वह अपना होमवर्क अच्छी तरह पूरा कर पाए.

शशांक आराम करने की सोच ही रहा था कि तभी मेगा 325 उसके कमरे में आ गया. उसके पास उसी तरह का एक बोर्ड था जैसा कि सुबह डाइनिंग टेबल पर हर कुर्सी के सामने लगा हुआ था.

मेगा 325 ने आते ही वह बोर्ड शशांक के मुँह के सामने कर दिया और बोर्ड के नीचे की तरफ लगे हुए बटनों में से एक बटन को दबा दिया. उस बोर्ड से कुछ किरणें निकलकर शशांक के मुँह की तरफ़ आने लगीं. इसके साथ ही उसे लगने लगा मानो वह चॉकलेट वाला दूध पी रहा है.

कुछ देर बाद बोर्ड से आ रही किरणों को बहाव बन्द हो गया. शशांक को भी यह लगना बन्द हो गया कि वह चॉकलेट वाला दूध पी रहा है. बोर्ड पर यह लिखा हुआ भी आ गया कि शशांक ने चॉकलेट वाला दूध पी लिया है. साथ ही समय, तारीख और दूध में मौजूद केलोरी की मात्रा भी लिखी थी.

दूध पीने के बाद शशांक की थकावट जैसे उतर गई थी. वह फिर से अपना होमवर्क करने में जुट गया.

******

शाम के समय जब शशांक टी.वी. पर क्रिकेट मैच देख रहा था तो उसके सुपर कम्प्यूटर पर लगी एक नीली बत्ती जलने-बुझने लगी. साथ ही कम्प्यूटर से आवाज़ आने लगी, ''शशांक, तुम्हारे पापा का फोन है. शशांक, तुम्हारे पापा का फोन है.''

शशांक ने हाथ हिलाकर टी.वी. की आवाज़ बन्द कर दी और फिर से हाथ हिलाकर कम्प्यूटर की स्क्रीन को ऑन कर दिया. स्क्रीन पर पापा की शक्ल दिखाई देने लगी.

''हेलो पापा, कैसे हैं आप?'' शशांक ने कहा.

''बढ़िया, फर्स्ट क्लास. तुम सुनाओ, कैसे हो?'' पापा बोले.

''यहाँ भी सब बढ़िया है पापा. मम्मी कैसी हैं?'' शशांक ने जवाब भी दिया और सवाल भी पूछा.

''तुम्हारी मम्मी भी ठीक-ठाक हैं. अच्छा बेटा, एक अच्छी ख़बर है.'' पापा कह रहे थे.

''क्या पापा?'' शशांक संभलकर बैठ गया.

''बेटा, हम अगले हफ्ते एक दिन के लिए इंडिया आ रहे हैं तुम लोगों के पास.'' पापा ने बताया.

''अरे वाह, पापा! अचानक कैसे बन गया प्रोग्राम आपका? आपको तो आठ महीने बाद आना था न!'' शशांक की आवाज़ ख़ुशी के मारे काँपने-सी लगी थी.

''बेटा, एक आविष्कार में कई सालों से जुटा हुआ था. वह अब पूरा हो गया है. अचानक सोचा इस आविष्कार की ख़ुशी तुम लोगों से भी बाँट लूं.'' पापा बताने लगे.

शशांक के पापा एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे और अब तक कई महत्त्वपूर्ण आविष्कार कर चुके थे.

''कौन-सा नया आविष्कार किया है पापा आपने?'' शशांक ने उत्सुकता से पूछा.

''बेटा, इस बार जो आविष्कार मैं कर पाया हूँ वह वाकई बहुत ही ख़ास है. इतने सालों से इतने वैज्ञानिक इसी काम में लगे हुए थे, लेकिन आखिरकार सफलता मुझे ही मिली है. यह आविष्कार है ग़ायब हो जाने का.'' यह सब बताते हुए पापा की आवाज़ में ग़जब का उत्साह था.

''मतलब जो आविष्कार आपने किया है उससे आदमी ग़ायब हो जाएगा?'' शशांक ने प्रश्न किया.

शशांक का सवाल सुनकर पापा हल्के-से हँसे और फिर कहने लगे, ''नहीं बेटा, आदमी ग़ायब नहीं हो जाएगा. आदमी तो रहेगा पर वह दिखेगा नहीं किसी को भी!''

''वाह पापा, यह तो बहुत ही बढ़िया आविष्कार है. आदमी के इस तरह ग़ायब हो जाने की बातें तो हम बस किताबों में पढ़ते हैं या फिर टी.वी. या फिल्मों में देखते हैं. तब तो बड़ा मज़ा आएगा!'' शशांक मानो ख़ुशी से उछलता हुआ बोला.

''बेटा, इस आविष्कार से तो पूरी दुनिया में तहलका मच जाएगा. इस आविष्कार का पेटेंट लेने के लिए मैंने एप्लाई कर दिया है. इस सफलता की बात मैंने सबसे पहले तुम्हारी मम्मी को बताई है और फिर तुम्हारे दादा जी को. अब तुम्हें बता रहा हूँ. अभी इसके बाद तुम्हारे बड़े दादा जी को भी बताऊँगा. फिर प्रेस रिलीज़ जारी करूँगा ताकि सारी दुनिया को यह बात पता चल सके.'' पापा ने विस्तार से शशांक को सारी बात समझाई.

''ग्रेट पापा! यू आर रीयली ग्रेट!'' शशांक की आवाज़ में वही पहलेवाला उत्साह भरा था.

''तो ठीक है बेटा, अगले हफ्ते मिलते हैं. बाय, लव यू.'' पापा कह रहे थे.

''ठीक है पापा. हम आपका इन्तज़ार करेंगे. मम्मी भी आएँगी न साथ?'' शशांक था.

''हाँ-हाँ, तुम्हारी मम्मी भी आएँगी मेरे साथ. एक दिन के लिए ही तो आना है. पापा ने बताया.

''बस एक दिन के लिए ही क्यों?'' शशांक की आवाज़ से निराशा-सी झलकने लगी.

''बेटा, वक्त निकालना बेहद मुश्किल है. न जाने कैसी व्यस्त-सी ज़िन्दगी है. अभी फिलहाल तो बस एक ही दिन के लिए हो पाएगा आना.'' पापा ने मजबूरी जताई.

''ठीक है. ओ.के. पापा, लव यू टू.'' कहते हुए शशांक ने फोन काट दिया और फिर दौड़ते हुए बड़े दादा जी के कमरे की ओर चल पड़ा पापा के आविष्कार में सफल हो जाने की और साथ ही मम्मी-पापा के अगले सप्ताह आने की ख़बर सुनाने.

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