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मेगा 325 - 2

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(2)

कुछ देर बाद शशांक और बड़े दादा जी वापिस घर पहुँचे. उनके पहुँचते ही घर का दरवाज़ा अपनेआप खुल गया.

वे लोग घर के अन्दर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि मेगा 325 दीवार के सहारे खड़ा है और उसके दोनों हाथ ऊपर छत की तरफ उठे हुए हैं. मेगा 325 उनके रोबोट का नाम था, जो घर के सारे काम-काज किया करता था. दोनों हाथ ऊपर की तरफ़ उठे होने का मतलब था कि उसकी बैटरी डाउन हो गई है.

बड़े दादा जी ने आगे बढ़कर जल्दी से चार्ज़र का पिन मेगा के कान के पास लगा दिया ताकि उसकी बैटरी चार्ज हो जाए.

''कल रात को इसकी बैटरी चार्ज करना भूल गया था. इसीलिए यह ऐसा हो गया है. अभी पन्द्रह मिनट में हो जाएगी इसकी बैटरी पूरी चार्ज. उसके बाद यह फिर भाग-भागकर काम करने लगेगा.'' बड़े दादा जी ने शशांक को कहा और अपने कमरे की आरे चले गए.

शशांक भी अपने कमरे की ओर चल पड़ा.

कमरे में आकर शशांक ने देखा कि उसके कमरे में पड़ी सभी चीज़ें करीने से रखी हुई हैं.

सुबह जब वह बड़े दादा जी के साथ सैर करने निकला था तो ज़ल्दबाजी में रात को पहने हुए कपड़े और घर में पहनेवाली चप्पल लापरवाही से इधर-उधर रख गया था. अब उसके वे कपड़े और चप्पलें करीने से सही जगह पर रखे हुए थे. सिर्फ इतना ही नहीं, उसके कमरे में रखा पलंग और मेज-कुर्सी भी नई जगहों पर रखे हुए थे.

शशांक समझ गया कि यह सब मेगा 325 ने ही उस समय किया होगा जब वह बड़े दादाजी के साथ सैर करने के लिए गया हुआ था. इधर-उधर बिखरी हुई चीज़ों को व्यवस्थित करके रखने तक की बात तो ठीक थी, पर उपने पलंग और मेज़-कुर्सी की जगह बदली हुई देखकर उसे गुस्सा आ गया.

'बड़ा अपनेआप को सुपर इंटेलिजेंट समझता है!' वह मन-ही-मन बड़बड़ाया.

दरअसल मेगा 325 से पहले उन लोगों के पास मेगा 217 नाम का रोबोट था. वह उतना ही काम करता था जितना उसे कहा गया हो. अपनी मर्ज़ी से वह कुछ भी नहीं करता था. करता क्या, कर ही नहीं सकता था. उसकी प्रोग्रामिंग ही ऐसी थी.

कुछ महीने पहले शशांक के मम्मी-पापा मंगल ग्रह से पृथ्वी पर आए थे - बड़े दादा जी और शशांक से मिलने. उन दिनों जब शशांक अपने मम्मी-पापा के साथ पूरी दीवार पर लगे टी.वी. पर एक रोबोट मेले की सैर कर रहा था, तो उसे मेगा 325 नाम का रोबोट पसन्द आ गया था. मेगा 325 बुद्धिमत्ता में इन्सान से भी आगे था. मम्मी-पापा को भी मेगा 325 अच्छा लगा.

उसके बाद पापा ने मेगा 325 रोबोट का आर्डर दे दिया था. आर्डर देने के दस मिनट के अन्दर ही मेगा 325 उनके घर में पहुँचा दिया गया था. मेगा 217 को वापिस कर दिया गया था.

मेगा 325 काफ़ी बुद्धिमान था. मेगा 217 के मुकाबले वह काफ़ी ज़्यादा काम कर लेता था. और सबसे बड़ी बात यह थी कि बहुत-से काम वह बिना कोई कमांड दिए ही कर दिया करता था. जैसे कि इधर-उधर बिखरी हुई चीजों को समेटना, खाना खाने का वक्त हो जाने पर बड़े दादा जी और शशांक को डाइनिंग टेबल पर जाने के लिए कहना, फालतू जल रही बत्तियों को बन्द करना, वगैरह-वगैरह.

चूँकि मेगा 325 की बुद्धि इन्सानों से भी ज़्यादा तेज़ थी, इसलिए वह कई ऐसे काम कर देता था जिनके बारे में बड़े दादा जी या शशांक ने सोचा भी नहीं होता था. हालाँकि इन सब कामों से कोई नुक्सान नहीं होता था, बल्कि कुछ-न-कुछ फ़ायदा ही होता था.

बड़े दादा जी तो मेगा 325 द्वारा अपनेआप किए गए ऐसे कामों की प्रशंसा किया करते थे, पर शशांक को इन बातों पर गुस्सा आता था. उसके दिमाग़ में बस यही बात आती कि मेगा 325 तो उनके नौकर जैसा है, इसलिए उसे बस वही काम करना चाहिए जो उसे बताया गया हो. अपनेआप उसे कोई भी काम नहीं करना चाहिए.

गुस्से में आकर पहले तो शशांक का जी किया कि वह मेगा 325 को बुलाकर अपना पलंग और मेज़-कुर्सी पहले वाली जगह पर रखवा ले, लेकिन तभी उसे याद आया कि मेगा 325 की तो बैटरी चार्ज हो रही थी, इसलिए अभी कुछ देर तक न तो वह यहाँ आ पाएगा और न ही कोई काम कर पाएगा.

शशांक अनमना-सा मेज़ के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया. बैठने के बाद उसे लगा कि मेज़-कुर्सी को जिस नई जगह पर मेगा 325 ने रख दिया था, वह जगह वाकई पहले के मुकाबले ज़्यादा सही थी. इस जगह से उसे खिड़की के बाहर का नज़ारा और अधिक अच्छी तरह से दिख पा रहा था. खिड़की से बाहर इमारतें ही इमारतें दिखाई दे रही थीं और थोड़ा-सा आसमान भी.

शशांक कुर्सी से उठा और पलंग पर जाकर बैठ गया. पलंग की स्थिति भी अब ऐसी हो गई कि जहाँ से दीवार पर लगा विशालकाय टी.वी. ज़्यादा आराम से और अच्छी तरह देखा जा सकता था.

तभी शशांक ने देखा कि पलंग पर एक काग़ज़ का पुर्जा पड़ा था. उसने उस कागज़ को उठा लिया. उस पर लिखे हुए शब्दों को देखते ही वह समझ पाया कि इन्हें मेगा 325 ने लिखा है. काग़ज़ पर लिखा हुआ था – शशांक, तुम्हारे पलंग का सिरहाना दक्षिण दिशा की तरफ़ कर दिया गया है. इससे तुम्हारी बुद्धि पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा.

यह सब पढ़ते ही शशांक का सारा गुस्सा उतर गया.

यह बात तो शशांक ने भी कई जगह पढ़ी थी कि आदमी को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ़ सिर करके नहीं सोना चाहिए. इससे बुद्धि पर विपरीत असर पड़ता है. आदमी को पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना चाहिए, इससे बुद्धि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.

'वाकई बड़ा अक्लमंद रोबोट है.' उसने सोचा और बाथरूम की तरफ़ चल पड़ा.

शशांक नहाकर बाथरूम से बाहर आया तो नौ बजने ही वाले थे. आज रविवार था यानी कि छुट्टी का दिन. छुट्टी के दिन उनके घर में नाश्ते का समय नौ बजे से सवा नौ बजे तक था. इस समय के अलावा नाश्ता नहीं मिलता था.

शशांक डाइनिंग टेबल पर पहुँचा तो वहाँ बड़े दादा जी पहले ही कुर्सी पर बैठे थे और नाश्ता ले रहे थे.

नाश्ते में मुँह से कुछ खाना नहीं होता था. हर कुर्सी के सामने टेबल पर सिर और मुँह की ऊँचाई पर एक फुट लम्बा और एक फुट चौड़ा वर्गाकार बोर्ड लगा हुआ था. कुछ खाने के लिए कुर्सी पर बैठकर उस बोर्ड पर लगे बटनों को दबाना होता था. कोई आदमी जो चाहे वह खा सकता था. स्क्रीन को छूने पर अलग-अलग चीज़ों की तस्वीरें नज़र आती थीं. इनमें से जिस तस्वीर को चुनकर बटन दबा दिया जाए, वही चीज़ कुर्सी पर बैठा हुआ व्यक्ति खाने लगता था. हालाँकि इस तरह के खाने में भौतिक रूप से खाने की कोई चीज़ सामने नहीं आती थी, लेकिन बोर्ड का बटन दबाने के बाद कुछ किरणें आदमी के दिमाग़ की दिशा में आने लगती थीं. इन किरणों के दिमाग़ में प्रवेश करते ही आदमी को लगने लगता था कि वह फलाँ चीज़ खा रहा है. उसके मुँह में उसी चीज़ का स्वाद भर जाता था.

शशांक अपनेवाली कुर्सी पर बैठ गया और फिर सामने लगे बोर्ड की स्क्रीन को छू-छूकर यह देखने लगा कि आज क्या खाया जाए. उसका मन था कि नाश्ते में मूली के पराँठे मक्खन के साथ खाए जाएँ और उसके बाद आम के असली रस वाला पेय पिया जाए.

मगर शशांक की कुर्सी के सामने लगे बोर्ड ने उसे उसका मनपसन्द नाश्ता करने ही नहीं दिया. बोर्ड को यह पहले से ही पता था कि शशांक ने इस सप्ताह में कितनी केलोरी का नाश्ता खाया है. पूरे सप्ताह में नाश्ते में शशांक को कितनी केलोरी खानी चाहिए और कितनी वह खा चुका है, इसका पूरा हिसाब करके बोर्ड ने सामने लिख दिया. बोर्ड पर यह भी लिखा हुआ आ गया कि वह आज नाश्ते में या तो सूखी डबलरोटी दूध के साथ ले सकता है या फिर डबलरोटी पर जैम लगाकर चाय के साथ.

शशांक ने कुछ देर सोचा और फिर डबलरोटी-जैम और चाय वाली बात को चुनकर बटन दबा दिया. इसके कुछ देर बाद ही उसे लगने लगा जैसे वह नाश्ता कर रहा हो. कुछ मिनटों के बाद बोर्ड पर लिखा हुआ आ गया कि नाश्ता पूरा हो चुका है.

तब तक बड़े दादा जी भी नाश्ता कर चुके थे.

''अब क्या प्रोग्राम है आपका, बडे दादू?'' शशांक ने दादा जी से पूछा.

''बेटा, अब तो मैं आराम करूँगा. बड़ी नींद आ रही है.'' बड़े दादा जी ने उत्तर दिया.

''बड़े दादू, क्या ऐसा वक्त भी आएगा जब हमें सोने की ज़रूरत पड़ा ही नहीं करेगी.'' शशांक बड़े दादा जी से पूछने लगा.

''बेटा, हम सोते इसलिए हैं कि नींद के कारण हमारे शरीर की बैटरी चार्ज हो जाती है. अब ऐसा अविष्कार होनेवाला है जिससे आदमी के शरीर की बैटरी को भी चार्ज किया जा सकेगा. इससे सोने की ज़रूरत नहीं रहेगी.'' बड़े दादा जी ने जानकारी दी.

''इसका मतलब जैसे मेगा 325 की बैटरी चार्ज करते हैं उसी तरह हमारे शरीर की बैटरी भी चार्ज हो जाया करेगी?'' शशांक ने हैरानी-भरे भाव से पूछा.

''हाँ, बेटा. वह दिन अब ज़्याद दूर नहीं है. लेकिन जब ऐसा दिन आएगा, तब की तब देखी जाएगी. अभी तो मुझे आ रही है ज़ोरों की नींद. इसलिए मैं तो चला सोने!'' कहते हुए बड़े दादा जी अपने कमरे की ओर चले गए.

तभी शशांक को सामने से मेगा 325 आता हुआ दिखाई दिया. जैसे ही वह शशांक के पास पहुँचा, वह कहने लगा, ''शशांक, नाश्ता तो हो गया न. अब होमवर्क कर लो अपना.''

मेगा 325 के मुँह से यह सुनते ही शशांक को गुस्सा-सा आ गया. जब देखो अपनी चौधराहट झाड़ता रहता है. हम लोग ही इसे पसन्द करके इस घर में लाए थे और अब यह हमीं पर हुक्म चलाने लगा है.

एक बार तो शशांक के दिल में आया कि वह मेगा 325 को करारा जवाब दे दे कि तुम होते कौन हो, मुझे होमवर्क करने के लिए कहने वाले, मगर फिर उसने सोचा इस रोबोट के मुँह क्या लगना. वैसे भी कोई जवाब दे देने से मेगा 325 पर कोई असर तो होना था नहीं. इसलिए वह चुप रहा और अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ा.

अपने कमरे में आते-आते उसके दिमाग़ में कौंधा कि आज शाम तीन बजे से तो टी.वी. पर क्रिकेट मैच आना है. क्रिकेट का खेल तो उसे इतना प्रिय था कि यह खेल वह खेलता भी था और टी.वी. पर देखता भी था. टी.वी. पर प्रसारित होनेवाले मैच की तो वह एक-एक बॉल देखा करता था.

यह बात भी उसके दिमाग़ में आई कि क्रिकेट मैच ख़त्म होते-होते रात के ग्यारह बज जाने थे. फिर उसके बाद तो होमवर्क करने का समय ही कहाँ बचना था. रोज़ रात को दस बजे ही वह सो जाया करता था क्योंकि अगले दिन सुबह साढ़े पाँच बजे उसे उठ जाना पड़ता था. सात बजे से उसका स्कूल जो होता था.

'इसका मतलब है होमवर्क कर लेने का यही सही वक्त है, नहीं तो बाद में समय मिलेगा नहीं.' - वह सोच रहा था. यह बात भी उसके दिमाग़ में आई कि मेगा 325 ने उसे सही सलाह ही दी कि अपना होमवर्क वह अभी कर ले, मगर अपने इस ख़याल को वह एक तरफ झटककर अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया.

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