Lajwanti Kahaani kothe wali ki - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

लाजवंती कहनी कोठे वाली की । - 3

लाजवंती बाहर दरवाजे पर बैठ कर अपने पिता का इंतज़ार कर रही थी, पर उसके पिता अब तक घर नही आए थे। लाजवंती को थोड़ी घबराह हो रही थी, क्यूंकि आज से पहले ओ इतनी देर तक बाहर नही रहते थे। तभी वहा विमला आकर वहा उसके पास बैठ जाति है,और उसे कहती है,"लाजवंती तुम अभी तक बाहर बैठी हो,कोई बात है क्या?",,, लाजवंती विमला के तरफ देखती हुए कहती है

,"हमारे बाबूजी अब तक वापस नहीं आए है इसीलिए उनका राह देख रहे है"___

विमला लाजवंती के पीठ को सहलाते हुए कहती है,"वो राक्षंस है की तेरे साथ जानवरों जैसा सुलूक करता है पर फिर भी तू उसके लिए इतना कुछ करती है,सच में तेरी जैसी बेटी भगवान सब को दे"__इतना कहती ही है तभी विमला का पति उसे आवाज़ देता है,"अरे विमला कहा चली गई खाना तो दे दे"_

"अपना ख्याल रखना"इतना कहती है और वहा से चली जाती है।

और उधर गंधारी सेठ अपने पूरे कमरे को मोंबती, फूल, से सज़ा कर पलंग पर बैठा हुआ था। और और अपने मुनीम को आवाज देता है मुनीम भागते हुए वहा उस कमरे में आता है,"जी हुजूर सजावट में कोई कमी रह गई है क्या?"_गंधारी मुनिम के तरफ आगे बढ़ता है और उसके पीठ को थाप थपाते हुए कहता है।"सजावट तो बहुत ही अच्छा किए हो रे,,, बस अब जल्दी से इस सजावट जिसके लिए करवाए है उसको लेकर आओ"

"जी हुजूर अभी अपने बैल गाड़ी भेजवाते है"इतना कहते ही मुनीम वहा से बाहर चला जाता है, गंधारी सेठ खुशी से जा कर पलंग पर कूदते हुए बैठा जाता है,और पलंग पर बिखरे फुलों को उठा कर खोद के उप्पर गिरानलगता है।

उधर लाजवंती अपने पिता के काफी इंतजार करने के बाद भी nhi आने पर वो अपने घर के अंदर चली गई।जैसे ही अंदर जाति है वैसे ही संतोष वहा आ जाता है ।संतोष घबराया हुआ था उसके चेहरे पर घबराहट देखकर लाजवंती बोली_ "क्या हुआ आप बहुत परेशान दिख रहे है कुछो बात है का?"

संतोष हफ़हुए कहता है"ओ तुम्हारे पिता जी ढाबे पर बिहोश पड़े हुए थे तो उनको हम अपने घर लेकर गए थे।"ये सुनते ही लाजवंती और भी ज्यादा घबराते हुए बोलती है।

"हमारे बाबूजी ठीक तो है न"

"अभी भी बेहोश पड़े है,एक काम करो तुम मेरे साथ चलो"

लाजवंती बिना कुछ सोचे समझे संतोष के साथ उसके घर के तरफ जाने लगती है। संतोष का घर वहा से भूत दूर था, वो रास्ते से ही जा रहे थे की आगे से एक बैल गाड़ी आ रही थी ये देखते ही संतोष लाजवंती को लेकर पास के झंडियों में छिप जाता है। बैल गाड़ी में मुनिम और उसके दो और आदमी बैठे हुए थे। बैल गाड़ी पर मसाले जल रही थी।

जैसे ही बैल गाड़ी गांव के तरफ पार होती है, संतोष और लाजवंती वापस से आगे जाने लगते है,थोड़ी ही देर में वो  घर पर पहुंच जाते है। लाजवंती संतोष से पूछती है"हमारे बाबूजी कहा है?"संतोष इशारा करते हुए अंदर कमरे में जाने को कहता है।अंदर बहुत अंधेरा था ,जैसे लाजवंती अंदर जाति है भर से दरवाजा बन्द करने की आवाज़ आती है।पर लजवंती इस को नजर अंदाज करके संतोष को फिर से आवाज देते हुए कहती है।

"यहां हमारे बाबूजी नही हैं,"

जैसे ही लाजवंती ये कहती है,पीछे से कोई लाजवंती का कमर अपनी बाहों में जकड़ लेता है, लाजवंती उससे छुड़ाने की बहुत कोशिश करती है पर वो उसके कमर को छोड़ता ही नही हैं,और उसे गलत गलत जगह पर छूने लगता है। लाजवंती बहुत छुड़ाने की कोशिश करती और चिल्लाती भी है"मुझे छोड़ो कोन हो,"

लाजवंती जोर से धक्का देकर उसे खुदसे दूरकरती है जैसे ही लाजवंती उसे देखती है वो कोई और नही बल्की संतोष होता है।ये देख कर लाजवंती कहती"तुम ??तुम तो बोले थे की हमरे बाबूजी यहा पर है तो कहा है??

संतोष हस्ते हुए कहता है "कितनी मासूम हो तुम बिल्कल अपने नाम की तरह" इतना कहता है और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगता है,लाजवंती उसे वही रुकने को कहती है

       "देखो मुझे जाने दो भी तो पूरे गांव वालों को बता दूंगी"

संतोष_"क्या बताओगी की हमरे बाबूजी ने पैसों के लिए हमको बेच दिया"

     लाजवंती सहम जाती है और कहती है,"क्या बकवास कर रहे हो??"तभी संतोष कहता है,"पूरे 1500 सौ में आज रात के लिए खरीदा है तुमको,तुमरे बाबूजी ने ही हमको ये दिमाग दिया की हमरे नाम पर उसे अपने घर ले जाओ और मजे करो"इतना कहता है और हसने लगता है।

लाजवंती को इस बात पर विश्वास ही नहीं होता की उसके पिता ने ही उसे पैसों के लिए बेच दिया है। वो इसी सोच में डूबी हुई थी,तभी संतोष ने मौक़ा पा कर लाजवंती के कपड़े पूरी तरह से फाड़ दिए।पूरे कमरे में अंधेरा था बस लाजवंती की आवाज आ रही थी"मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं। "पर संतोष उसकी एक भी नही सुनता है ये सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहता है।

उधर मुनिम बैल गाड़ी लेकर लाजवंती के घर पहुंचता है।मुनिम बैल गाड़ी से उतरता है और लाजवंती के घर का दरवाज़ खुला देखता है, वो बाहर से ही आवाज देता है,"अरे ओ मदन,,, तुमरी बेटी को सेठ जी ने हवेली पर बुलाया है,ये आवाज सुनकर विमला अपने खिड़की के पास आती है। और बाहर क्या हो रहा है सब देखने लगती है, घर के अंदर से कोई भी बाहर नही आता हैं ये देख मुनिम दोबारा से आवाज लगता हैं।फिर भी कोई नही आता, काफी देर तक आवाज देने के वावजूद मुनिम खुद अंदर घर में जाता है,तो देखता है घर में तो कोई नही हैं।वो बाहर निकल कर आता है और विमला के घर का दरवाज़ा खट खटाता है,विमला खिड़की तरफ से भागते हुए ड्रवाजा खोलती है,।मुनिम विमला से पूछता है"ये लाजवंती और उसका बाप किधर है,??" विमला घबराते हुए कहती है"मुझे नही पता उसका बाप ढाबे के पास पड़ा होगा वही गई होगी।"

मुनिम इतना सुनते ही बैल गाड़ी को ढाबे के तरफ ले जाने को कहता है,वो सब बैल गाड़ी में बैठ कर ढाबे की ओर चल पड़ते है।

और उधर संतोष अपने नापाक इरादे को अंजाम देने में कामयाब हो जाता है।

क्या होगा, लाजवंती के साथ जो हुआ क्या लाजवंती को इंसाफ मिलेगा या उससे ही कुसुरवार ठहरा दिया जाएगा।अगर संतोष ने ऐसा किया है तो क्या उसे इसकी सजा मिलेगी? ये जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी LAJWANTI (KAHANI KOTHE WALI Ki)