Andhayug aur Naari - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(१९)

देवदासियों के स्वतन्त्र होने के लिए केस तो चल रहा था,लेकिन अब भी उन्हें मंदिर में नृत्य करना पड़ रहा था, उस रात फिर से तुलसीलता भी सभी दासियों के साथ मंदिर के प्राँगण में नृत्य करने पहुँची और उस रात चाचाजी फिर से तुलसीलता का नृत्य देखने पहुँचे,नृत्य के बाद तुलसीलता अपनी कोठरी में पहुँची तो उसके पीछे पीछे चाचाजी भी उसकी कोठरी में पहुँचे,लेकिन उस रात तुलसीलता ने चाचाजी को अपनी कोठरी के भीतर आने से मना कर दिया,इस बात से खफ़ा होकर चाचाजी ने तुलसीलता की कोठरी के बाहर खड़े होकर उससे कहा.....
"कल तक तो मेरे कहने पर कहीं पर भी चली जाती थी,लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि तुम मेरे साथ आने के लिए मना कर रही हो,क्या मैं तुम्हारे इनकार करने की वजह जान सकता हूँ?",
"बस अब ये सब करने का मेरा मन नहीं करता",तुलसीलता बोली...
"मैं सब समझता हूँ,ये आग उस हरामखोर वकील की लगाई हुई है",चाचाजी बोले....
"उसे गाली मत दीजिए ठाकुर साहब! भला उसने आपका क्या बिगाड़ा है"?,तुलसीलता बोली....
"बड़ी हमदर्दी पैदा हो गई है तुम्हारे दिल में उसके लिए",चाचाजी बोलें....
"क्यों ना पैदा हो हमदर्दी ,उसके लिए मेरे मन में,वो कम से कम हम जैसी स्त्रियों के लिए कुछ तो कर रहा है,आप जैसा तो नहीं है,जो हम जैसी स्त्रियों का हर वक्त फायदा उठाने चले आते हैं",तुलसीलता बोली....
"बहुत जुबान चलने लगी है तुम्हारी! कौन सा जादू कर दिया है उस वकील ने तुम पर",चाचाजी ने पूछा....
"ये तो अपने अपने सोचने का नजरिया है ठाकुर साहब! आपके लिए हम स्त्रियाँ केवल भोग विलास की वस्तुएंँ हैं और कोई तो हमें माथे से लगाकर इज्जत देना चाहता है",तुलसीलता बोली....
"ओहो....तो अब तुम जैसी स्त्रियों को हम पुरूषों से इज्जत भी चाहिए",चाचाजी बोलें....
"ठीक है तो हमारी जैसी स्त्रियों की इज्जत ना सही तो अपने घर की ही पत्नी,बेटी और माँ की इज्जत कर लिया कीजिए",तुलसीलता बोली....
"खबरदार! जो तुमने अपनी तुलना मेरे घर की माँ बेटी से की",चाचाजी दहाड़े...
"तो ठाकुर साहब को मेरी ऐसी बातों से मिर्ची लग गई",तुलसीलता बोली....
"अच्छा! तो दो कौड़ी की औरत मुझे ज्ञान देने चली है",चाचाजी बोलें....
"ये ज्ञान नहीं है ठाकुर साहब! आपको आगाह कर रही हूँ कि समय रहते सुधर जाइए,नहीं तो इसका अन्जाम कहीं आपके पूरे परिवार को ना भुगतना पड़े",तुलसीलता बोली....
"ओह....तो तू अब मुझे ये बताएगी कि मेरे लिए क्या भला है और क्या बुरा है",चाचाजी बोलें....
"मैं कौन होती हूँ आपको भला बुरा बताने वाली,मैं तो केवल आपको सही रास्ते पर चलने की सलाह दे रही हूँ",तुलसीलता बोली....
"बंद कर अपनी जुबान,तेरी जैसियों को तो मैं हर रात अपने बिस्तर पर कुचलता हूँ",चाचाजी बोलें....
"इसलिए अब आपके कुचलने की बारी आ गई है,लेकिन आपको बिस्तर पर नहीं नंगी धरती पर कुचला जाएगा",तुलसीलता बोली....
"मर गए मुझे कुचलने वाले ,तो उस वकील की क्या औकात है,अब तू उसके साथ साथ अपनी खैर मनाना भी शुरू कर दे",चाचाजी बोलें....
"जिनका सबकुछ लुट चुका होता है वें मौत से नहीं डरते ठाकुर साहब! फालतू की गलतफहमियाँ मत पालिए",तुलसीलता बोली....
"वो तो वक्त ही बताएगा तुलसीलता कि किसे क्या गलतफहमी है",चाचाजी बोलें....
"हाँ...सही कहा आपने! तो फिर क्यों मुझसे फालतू की बहस कर रहे हैं,सब वक्त पर छोड़ दीजिए ना! ठाकुर साहब", तुलसीलता बोली....
"मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम्हारा और उस वकील का वक्त अच्छा नहीं चल रहा,इसलिए शायद तुम दोनों मेरी बात मानने से इनकार कर रहे हो",चाचाजी बोले...
"ये बात मैं भी तो आपके लिए कह सकती हूँ",तुलसीलता बोली....
"ऐसी बात कहकर अब तो तुमने बहुत बड़ी गुस्ताखी कर दी,अभी तो मैं यहाँ से जा रहा हूँ लेकिन याद रखना,मैं तुमसे अपनी इस बेइज्जती का बदला लेकर रहूँगा",
और ऐसा कहकर चाचाजी तुलसीलता की कोठरी के सामने से चले आए,उस दिन के बाद वें तुलसीलता और उदयवीर से बदला लेने का सोचने लगे और जब उन्हें ये पता चला कि उदयवीर पहले से ही तुलसीलता को जानता है,उससे प्रेम करता है और केस जीतने के बाद वो उससे शादी भी करेगा तो ये सुनकर चाचाजी का गुस्सा साँतवें आसमान पर चढ़ गया,तब वो ऐसी खबर लाने वाले व्यक्ति से बोलें....
"अच्छा! तो वो वकील उस तुलसीलता का पुराना आशिक है,तभी वो इतना उछल रही है,अब मैं भी देखता हूँ कि उदयवीर कैसें केस जीतता है और कैसें शादी करता है उस देवदासी तुलसीलता से,अभी वो दोनों मुझे जानते नहीं हैं कि मैं चींज क्या हूँ",चाचाजी बोले....
"तो सरकार! अब मेरे लिए क्या हुकुम है"?,उस व्यक्ति ने पूछा....
"अभी कोई हुक्म नहीं है,मुझे जरा सोचने दो,तुम आभी जाओ यहाँ",चाचाजी बोलें....
और फिर चाचाजी ने किसी से बिना पूछे,यहाँ तक उन्होंने दादाजी से पूछना भी मुनासिब नहीं समझा और उदयवीर को एक रात अपने लठैंतों द्वारा उसके कमरें से अगवा करवा लिया,इसके बाद उन्होंने उसे ना जाने कहाँ कैद करके रख दिया और जब अदालत की तारीख पड़ी तो उस दिन उदयवीर अदालत में नदारद था,जिससे केस की कार्यावाही आगें ही नहीं बढ़ी,इस बात से मंदिर के पुजारी और चाचाजी को अथाह आनन्द का अनुभव,लेकिन ये बात दादाजी को कुछ अजीब लगी,उन्होंने सोचा आखिर वकील आया क्यों नहीं,जो वकील रुपये देखकर भी अपना ईमान ना बेच सका,वो आखिर आज अदालत में पेश क्यों नहीं हुआ और उन्हें इस बात में कुछ गड़बड़ लगी,इसलिए उन्होंने उस रात चाचाजी को अपने कमरें में बुलवाया, जो कि मेरे कमरें के बगल में था....
चाचा जी उनके कमरें में हाजिर हुए तो दादाजी ने उनसे पूछा....
"वकील को तुमने अगवा करवाया है ना!",
"नहीं! बाबूजी! भला मैं ऐसा क्यों करूँगा"?,चाचाजी बोले....
"झूठ मत बोलो",दादा जी दहाड़े...
अब जब चाचाजी ने दादाजी का गुस्सा देखा तो उन्होंने उनके सामने सबकुछ सच सच कह दिया कि उन्होंने ही उदयवीर को अगवाकर कहीं छुपा दिया है और ये बात मैनें भी सुनी,तब दादाजी बोले...
"कहाँ छुपाया है उसे?",
"भगवन्तपुरा के हमारे पुराने मकान में",चाचाजी बोले....
"ऐसा काम करने से पहले तुमने मुझसे पूछा क्यों नहीं",दादाजी बोले.....
"गलती हो गई बाबूजी! गुस्से में आकर मैनें ऐसा काम किया",चाचाजी बोले...
"उसे कहीं कुछ हो गया तो",दादाजी बोले....
"कुछ नहीं होगा,उसे वक्त पर खाना और पानी दे दिया जाता है",चाचाजी बोले.....
वें दोनों ऐसे ही बातें करते रहें और मैनें उनकी ये बातें सुन ली और मैं फौरन चाची के कमरें में उन्हें ये बात बताने पहुँचा....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....