Andhayug aur Naari - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(१८)

जब उदयवीर ने रुपयों की थैली में आग लगा दी तो चाचाजी गुस्से में उदयवीर से बोलें.....
"मूर्ख! ये क्या तूने? कोई रुपयों में आग लगाता है भला!",
"लेकिन मैं ऐसे रुपयों में आग लगा देता हूँ,जो रुपए मेरा ईमान खरीदना चाहे",उदयवीर बोला....
"बड़ा घमण्ड है तुझे तेरी ईमानदारी पर",चाचा जी बोले...
"हाँ! है घमण्ड! तो क्या करोगें"?,उदयवीर बोला....
"अगर ऐसा घमण्ड रुपयों से नहीं खरीदा जा सकता तो मैं घमण्ड करने वाले को ही मसल देता हूँ,", चाचाजी बोलें....
"वो तो वक्त ही बताऐगा ठाकुर सुजान सिंह कि कौन किसे मसलता है",उदयवीर बोला....
"तुझे मालूम नहीं है कि तूने किससे पँगा लिया है,ऐसा ना हो कि तुझे तेरी अकड़ खाक़ में मिला दे",चाचाजी बोलें....
"जो होगा सो देखा जाएगा,मैं तुम्हारी गीदड़भभकियों से डरने वाला नहीं",उदयवीर बोला....
"ठीक है! अभी तो मैं जा रहा हूँ लेकिन तूने शेर के जबड़े में हाथ डाला,इसलिए अभी से अपनी खैर मनानी शुरू कर दे वकील! तेरी मौत तुझसे ज्यादा दूर नहीं है",
और ऐसा कहकर चाचाजी उदयवीर के कमरें से चले आए,इस बात से उदयवीर सोचने लगा कि ये लोग इस केस की अर्जी को खारिज़ करवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं,अब मुझे अपनी सुरक्षा की दरख्वास्त भी लगानी होगी,नहीं तो ये लोग तो मुझे मारकर ही दम लेगें और उस रात उदयवीर चिन्ता के मारे सो ना सका फिर उसने किसी के हाथ तुलसीलता के पास ख़त भेजा कि उसे केस वापस लेने के लिए जान से मारने की धमकियांँ दी जा रहीं हैं,वो उससे मिलना चाहता है,लेकिन वो उसकी कोठरी में भी नहीं आ सकता क्योंकि वो नहीं चाहता कि किसी को बता चले कि तुम मुझसे मिलती हो,इससे तुम्हारी जान को भी खतरा हो सकता है,
चिट्ठी पढ़कर तुलसीलता ने फौरन जवाब में लिखा कि वो सोमवार शाम को उसे शिवबाबा के मंदिर में मिले,वो उससे वहीं पर बात करेगी और वो चिट्ठी उसने उदयवीर की चिट्ठी लाने वाले व्यक्ति के हाथों उसे भिजवा दी और फिर सोमवार की शाम उदयवीर शिवबाबा के मंदिर पहुँचा,जहाँ तुलसीलता और किशोरी उसका इन्तज़ार कर रहीं थीं,तुलसीलता से मिलकर उदयवीर ने सारी बात बता दी कि सुजान सिंह रुपयों के बल पर उसका ईमान खरीदना चाहता था जब उसने उसकी बात नहीं मानी तो उसे जान से मारने की धमकी देकर गया है और वें तीनों अभी आपस में बातें कर ही रहे थे कि तभी वहाँ मैं चाची के साथ पहुँचा तो जैसे ही मैनें और चाची ने उदयवीर को उन दोनों के साथ देखा तो चाची ने तुलसीलता से बोली....
"तुलसीलता! ये कौन है"?
तब किशोरी तपाक से बोली....
"यही तो है तुलसीलता का उदयवीर"
"अच्छा तो ये है उदयवीर",चाची बोली....
"जी! और आप",उदयवीर ने चाची से पूछा....
"ये हैं ठकुराइन जनकदुलारी, ठाकुर सुजान सिंह की पत्नी",किशोरी बोली....
"तुलसीलता! तुम मेरे दुश्मन की पत्नी से मिली हुई हो",उदयवीर ने हैरान होकर पूछा.....
"नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है उदय!",तुलसीलता बोली....
"तो फिर ये यहाँ क्या कर रहीं हैं,तुमने ही इन्हें बताया होगा कि मैं यहाँ आने वाला हूँ,मैं तुम्हारे लिए इतना कुछ कर रहा हूँ और तुम मुझे धोखा देने की कोशिश कर रही हो,क्या तुम्हें भी उस ठाकुर सुजान सिंह ने रुपये देकर खरीद लिया है?",उदयवीर गुस्से से बोला....
"नहीं! ऐसा कुछ भी नहीं है,तुम मुझे गलत समझ रहे हों उदयवीर! भला मैं तुम्हारा बुरा क्यों चाहूँगी", तुलसीलता रोते हुए बोली....
"तो फिर ये सब क्या है"?,उदयवीर ने पूछा....
"ये तो हर सोमवार हमलोगों से मिलने आतीं हैं",किशोरी बोली....
"लेकिन क्यों?",उदयवीर बोला....
"उदयवीर! तुम्हारे सभी सवालों का तुम्हें जवाब मिल जाएगा,लेकिन मुझे भी तो तुम लोग कुछ बताओ कि क्या बात है?",चाची बोलीं....
"ठाकुराइन!उदयवीर वकील बनकर लौटा है और इसने हम देवदासियों को मुक्त कराने के लिए अर्जी डाली है,जिससे ठाकुर सुजान सिंह इसे धमकी देने इसके कमरें पहुँच गए,यही बात है",किशोरी बोली....
"इतना सबकुछ हो गया,इस एक हफ्ते में और तुम दोनों ने मुझे कुछ भी बताना मुनासिब नहीं समझा", चाची बोली....
"माँफ कीजिए ठाकुराइन! हम दोंनो को मौका नहीं मिला",तुलसीलता बोली.....
"चलो कोई बात नहीं,अच्छा! तो उदयवीर अब मुझसे पूछो कि तुम क्या पूछना चाहते हो",चाची बोली....
"आप तुलसीलता को कैसें जानतीं हैं"?,उदयवीर ने पूछा....
"ये तुम उसके छोटे भाई से पूछो",चाची बोलीं....
"छोटा भाई! वो भी तुलसीलता का",उदयवीर हैरान बोला....
"हाँ!छोटा भाई! जो कि मैं हूँ",मैं उदयवीर से बोला....
"तुम कब पैदा हुए"?,उदयवीर ने मुझसे पूछा....
"अभी कुछ दिनों पहले",मैं मुस्कुराते हुए बोला....
"तुलसी! अब इस पहेली को तुम ही सुलझाओ,मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा,छोटा भाई,दुश्मन की पत्नी तुम्हारी सहेली और क्या क्या बदलाव हुआ है तुम्हारी जिन्दगी में मेरे जाने के बाद,कुछ बताओगी कि ये सब क्या है?",उदयवीर ने परेशान होकर पूछा....
"सब बताती हूँ,जरा धीरज धरो",तुलसीलता बोली....
और फिर तुलसीलता ने उदयवीर को सारी बात बता दी और अब उदयवीर की समझ में सबकुछ आ गया था और वो चाची से माँफी माँगते हुए बोला....
"माँफ करना ठकुराइन! मैंने आपको गलत समझा",
"कोई बात नहीं उदय! गलतफहमी सबको हो सकती है,तो तुम्हें भी हो गई",चाची बोली...
"तुम वापस आए उदयवीर! ये बहुत अच्छा हुआ",मैं उदयवीर से बोला....
"तू उदय का नाम लेकर क्यों पुकार रहा है,वो तुझसे कितना बड़ा है",चाची मुझे टोकते हुए बोली...
"तो मैं उदय को क्या बोलूँ?",मैंने पूछा...
"वैसे तो ये तेरे जीजा जी हैं लेकिन अभी तू इन्हें भइया बोल सकता है",किशोरी बोली....
"तो ठीक है,आज से मैं इन्हें भइया ही कहूँगा",मैंने कहा....
" तुमने इतना बड़ा फैसला लिया इन सभी अबलाओं को मुक्त कराने का,ये सुनकर मैं बहुत खुश हूँ",चाची बोलीं....
"लेकिन आपके पति ऐसा नहीं होने देना चाहते,वें मुझे धमकी देकर गए हैं",उदयवीर बोला....
"तुम अच्छा काम कर रहे हो और अच्छा काम करने वालों का ईश्वर भी साथ देता है,इसलिए तुम किसी की धमकियों से मत डरो,ईश्वर हमेशा तुम्हारी मदद करेगें",चाची बोली....
"वो सब तो ठीक है ठकुराइन! लेकिन मैं खुद से कितना भी साहसी बनने की कोशिश क्यों ना कर लूँ,लेकिन भीतर से डर तो लगता ही है",उदयवीर बोला....
"वो बात तो है उदय! ईश्वर तुम्हें शक्ति दें ,इस साहसिक काम को अन्जाम तक पहुँचाने के लिए",चाची बोली....
"सोचता हूँ कि थानेदार साहब को अपनी सुरक्षा के लिए एक अर्जी लिखकर दे दूँ",उदयवीर बोला...
"हाँ! ये काम तुम जितनी जल्दी कर सको तो कर लो",चाची बोली...
"तुम क्यों हम देवदासियों के लिए अपनी जान का जोखिम उठा रहे हो,हम जैसे हैं हमें वैसे रहने दो ना! अब देखो ना तुम्हारी जान पर भी बन आई है",तुलसीलता बोली....
"तुलसीलता! जरा सोचो! पूरे भारतवर्ष में कितनी देवदासियाँ है,तुम लोग आजाद होगी तो उन सभी के आजाद होने की राह भी खुल जाएगी,परतन्त्रता क्या होती है,ये तुमसे बेहतर और कोई नहीं जानता होगा", उदयवीर बोला....
"हाँ! लेकिन! मेरी स्वतन्त्रता से ज्यादा,तुम मेरे लिए कीमती हो",तुलसीलता बोली...
"और तुम मेरे लिए कितनी कीमती हो ये तो तुम बहुत अच्छी तरह से जानती होगी",उदयवीर बोला....
"हाँ! लेकिन! मुझे बहुत डर लग रहा है उदय!",तुलसीलता बोली...
"डरो मत पगली! मुझे कुछ नहीं होगा",उदयवीर बोला....
और उस शाम हम सभी आपस में बात करने के बाद अपनी अपनी जगह लौट गए,इसके बाद दूसरे दिन ही उदयवीर ने अपनी सुरक्षा के लिए अर्जी लगा दी.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...