Andhayug aur Naari - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(२०)

मैं ने चाची के कमरें में जाकर उन्हें सारी बात बता दी,तब ये बात सुनकर चाची भी परेशान हों उठीं और इसके बाद वें गहरी चिन्ता में डूब गईं,कुछ देर वें कुछ सोचतीं रहीं फिर मुझसे बोलीं...
"मैं इस बारें में तेरे चाचा से बात करूँगी",
"लेकिन चाची! जब वें दादाजी की बात नहीं सुन रहे हैं तो फिर तुम्हारी बात कैसे सुनेगें",मैंने चाची से कहा...
"तेरी बात भी ठीक है,सुनते तो वें किसी की भी नहीं हैं ,लेकिन वें मेरी बात सुनकर अगर मान जाते हैं तो फिर उदयवीर की जान को खतरा कम हो जाएगा",चाची बोली...
"ठीक है तो चाची! अगर तुम्हारा मन कहता है तो तुम चाचा से बात करके देखो,शायद कोई बात बन जाए",मैं चाची से बोला....
फिर उस रात तो नहीं,लेकिन दूसरे दिन जब दोपहर का खाना खाने चाचाजी रसोई में आए तो उनके खाना खा लेने के बाद चाची उनसे बोली....
"मुझे कुछ कहना था तुमसे",
"जल्दी बोलो,मेरे पास वक्त नहीं है",चाचाजी बोले....
"सुनने में आया है कि कोई वकील देवदासियों को आजाद कराने के लिए केस लड़ रहा है",चाची बोलीं.....
"बड़े पर निकल आए हैं तुम्हारे,बड़ी खबर रखने लगी हो आजकल तुम दुनियादारी की",चाचाजी बोले....
"वो बात तो सबको पता है,इसमें अनोखी बात क्या है जो मुझे पता चल गई",चाची बोली....
"हाँ! तो किया है उस वकील ने केस उन देवदासियों को छुड़ाने के लिए,लेकिन इससे तुम्हें क्या"?,चाचाजी बोले.....
"मैंने सुना है कि लेकिन वो वकील अदालत में हाजिर नहीं हो पाए",चाची बोली....
"हाँ!नहीं हुआ हाजिर,लेकिन तुम क्यों उसकी इतनी जासूसी कर रही हो",चाचा ने पूछा...
"जासूसी नहीं कर रही हूँ,बस ये पता करने की कोशिश कर रही हूँ कि आखिर उस वकील के साथ ऐसा क्या हुआ, जो वो अदालत में हाजिर नहीं हुआ",चाची बोली...
"क्यों? तुम्हें क्या लेना देना उस वकील से,तुम्हें उसकी बड़ी चिन्ता हो रही है",चाचाजी बोले...
"भला मुझे क्यों उस वकील की चिन्ता होने लगी,मैं तो ये सोच रही थी कि वो सरकारी मुलाज़िम है,देश में गोरों की हूकूमत है,उसे कहीं कुछ हो गया तो कहीं गोरे भड़क ना उठे तो फिर लेने के देने ना पड़ जाएँ",चाची बोली...
"तुम बहुत हितैषी बन रही हो उस वकील की"चाचाजी बोलें....
"जो पुरुष अबला नारियों के लिए इतना कुछ कर रहा है तो उसके लिए हम जैसी नारियों के मन में अपनेआप हमदर्दी पैदा होना एक स्वाभाविक सी बात है",चाची बोली....
"अबलाओं के लिए लड़ रहा था तभी तो उसकी मौत अब उससे ज्यादा दूर नहीं है",चाचाजी बोले....
"तुम क्या करने वाले हो उसके साथ?",चाची ने पूछा...
"तुमसे मतलब,मैं कुछ भी करूँ उसके साथ",चाचाजी बोले....
"क्यों उस निर्दोष की जान लेने पर उतारू हो तुम,वो तो केवल अपने वकील होने का फर्ज अदा कर रहा है",चाची बोली....
"उसने मेरे रास्ते पर रोड़े अटकाए हैं इसलिए उसका मर जाना ही बेहतर होगा",चाचाजी बोले....
"ओह...तो तुम्हारी अय्याशी में खलल पड़ गया,उसके केस करने से,इसलिए तुम उसकी जान लेने पर आमादा हो गए हो,लेकिन याद रखना किसी का बुरा करने का अन्जाम बुरा ही होता है,तुम किसी निर्दोष की बेमतलब जान लोगे तो ईश्वर भी तुम्हें सजा जरूर देगा",चाची बोली...
"ज्यादा बकवास मत करो,अपनी हद में रहोगी तो तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा",चाचाजी बोलें...
"मैं तो तुम्हें वही रास्ता दिखा रही थी,जो तुम्हारे लिए सही है,मानना या ना मानना ये तुम्हारे ऊपर है",चाची बोली...
"ओहो...तो तुम्हें क्या लगता है,तुम मुझे जो रास्ता सुझाओगी तो मैं उस पर चलने लगूँगा,दिमाग़ तो ठीक है ना तुम्हारा",चाचाजी बोलें...
"दिमाग़ तो तुम्हारा खराब हो गया है,तभी तो तुम ऐसी हरकत कर रहे हो",चाची बोलीं...
"मुझे तुम्हारा भाषण सुनने का कोई शौक नहीं है,इसलिए मैं जा रहा हूँ यहाँ से",
और ऐसा कहकर चाचाजी वहाँ से चले गए,लेकिन इस बात ने चाची का चैन छीन लिया था,वो चाचाजी को अच्छी तरह जानती थी कि अगर उन्होंने ठान लिया है कि वें उदयवीर की जान लेकर ही छोड़ोगें तो वें ऐसा जरूर करेगें और अगर उदयवीर को कुछ हो गया तो फिर वो खुद को कभी माँफ नहीं कर पाएगीं, इसलिए उन्होंने मुझसे आकर कहा.....
"मेरे साथ भगवन्तपुरा चलोगें?"
"लेकिन क्यों,"?,मैने पूछा...
"उदयवीर को छुड़ाने",चाची बोली...
"किसी को कुछ पता चल गया तो",मैने चाची से कहा...
"किसी को कुछ पता नहीं चलेगा,हम सबसे ये कहकर जाऐगें कि हम नदी पार वाले मंदिर जा रहे हैं और एक रात वहीं मंदिर की धर्मशाला में ही ठहरेगें",चाची बोली...
"लेकिन किसी को शक़ हो गया तो",मैने चाची से पूछा...
"किसी को कोई शक़ नहीं होगा,तू इतना क्यों डर रहा है,मैं हूँ ना तेरे साथ",चाची बोली...
"डर तो लगेगा ही चाची! हम दोनों इतने खतरनाक काम को अन्जाम जो देने जा रहे हैं",मैंने चाची से कहा....
"डर मत और हमें अभी ही निकलना होगा,देख साँझ होने वाली है और रात तक हम दोनों ताँगें से भगवन्तपुरा पहुँच भी जाऐगें, लेकिन ताँगेवाले को भी पूरी बात समझानी होगी,तभी ये मुमकिन हो पाएगा", चाची बोली....
"लेकिन हमें ऐसा ताँगेवाला मिलेगा कहाँ"?,मैंने चाची से पूछा....
"तुम दोनों उसकी चिन्ता मत करो,मैं रघुवा से कह दूँगीं तो वो तुम दोनों को भगवन्तपुरा ले जाएगा",
दादी कमरें में आकर बोलीं...
"तो आप छुपकर मेरी और चाची की बातें सुन रहीं थी",मैं ने दादी से कहा...
"हाँ! घर की बड़ी हूँ तो ये सब तो देखना ही पड़ता है कि घर में चल क्या रहा है,अगर मैं भी तुम्हारे दादाजी की तरह घर गृहस्थी से बेखबर हो जाऊँ तो जो कुछ थोड़ी बहुत मान मर्यादा बची है घर में तो वो भी खतम हो जाएगी",दादी बोलीं...
"अम्मा! सच में मैं तुम हम दोनों की मदद करने को तैयार हो",चाची ने पूछा...
"हाँ! भरोसा नहीं है क्या मुझ पर"?,दादी बोलीं...
"लेकिन अम्मा अगर ये बात बाबूजी को पता हो गई तो हम दोनों के साथ साथ तुम्हारी आफत भी आ जाएगी",चाची बोलीं...
"कोई बात नहीं,तुम दोनों मेरी चिन्ता मत करो और जरा उस वकील के बारें में सोचो कि अगर उसे कुछ हो गया तो उन देवदासियों का क्या होगा? वें फिर कभी भी आजाद नहीं हो पाऐगीं",दादी बोलीं...
"हाँ! अम्मा! मैं भी यही चाहती हूँ कि जल्द से जल्द उदयवीर का पता चल जाए और वो अदालत पहुँचकर केस लड़ सके",चाची बोलीं...
"हाँ! तुम लोग बिलकुल भी चिन्ता मत करना,रघुवा बहुत ही वफादार है वो किसी से कुछ भी नहीं कहेगा,साँझ को तुम दोनों तैयार रहना",दादी बोली....
"ठीक है अम्मा! लेकिन फिर भी किसी को कुछ पता चल गया तो",चाची बोली....
"तब का तब देखेगें,अभी वकील बाबू की जान बचानी ज्यादा जरूरी है",दादी बोलीं....
और फिर मैं और चाची साँझ के समय ताँगे से भगवन्तपुरा गाँव की ओर चल पड़े,दादी ने चुपके से किसी बूढ़ी नौकरानी के हाथ तुलसीलता के पास खबर भिजवा दी कि उदयवीर को अगवा करके भगवन्तपुरा वाले मकान में कैद करवा दिया गया है और वो जगह तुलसीलता बहुत अच्छी तरह से पहचानती थी क्योंकि दादाजी के डर से चाचाजी ने तुलसीलता को भी वहीं छुपाकर रखा था और जब तुलसीलता को ये बात पता चली तो वो भी किशोरी के साथ साँझ के समय भगवन्तपुरा की ओर चल पड़ी और यहीं पर सारी गड़बड़ हो गई क्योंकि मंदिर के पुजारी ने तुलसीलता और किशोरी को एक साथ जाते देख लिया था ,इसलिए उसने फौरन ये खबर चाचाजी तक पहुँचा और चाचाजी ने तुलसीलता के पीछे अपना लठैत ये पता करने के लिए भेज दिया कि वो दोनों कहाँ जा रही हैं?...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....