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दिलरस - Novels
by Priyamvad
in
Hindi Love Stories
पतझर आ गया था।
उस पेड़ पर एक भी पत्ता नहीं बचा था। बाजरे की कलगी के एक-एक दाने को जैसे तोता निकाल लेता है, उसी तरह पतझर ने हर पत्ते को अलग कर दिया था। पेड़ की पूरी कत्थई शाखाएं बिलकुल नंगी थीं। ओस की बूंदों में भीगने के बाद उसकी खुरदुरी, गड्ढेदार पुरानी छाल धूप में बहुत साफ दिखती थी।
लड़का सुबह छत पर गमले के पौधो को पानी देने आया। उसकी निगाह पेड़ पर पड़ी। उसने पहली बार पेड़ को इस तरह नंगा देखा था। हालांकि पतझर हर साल आता था, हर साल बाजरे की कलगी की तरह उसका हर पत्ता अलग कर देता था, हर साल उसकी शाखाएं इसी तरह नंगी हो जाती थीं, पर लड़के की निगाह नहीं पड़ी थी। इस साल पड़ी थी। उसने इतना बड़ा, ऊंचा और ऐसा बिना पत्तों वाला पेड़ भी पहले कभी नहीं देखा था। इस साल देखा था। उसकी भूरी, कत्थई शाखाएं उसे मेलों में आने वाले तपस्वी की जटाओं की तरह लगीं। पौधें को पानी देना भूलकर वह उन जटाओं को देखने लगा।
दिलरस प्रियंवद (1) पतझर आ गया था। उस पेड़ पर एक भी पत्ता नहीं बचा था। बाजरे की कलगी के एक-एक दाने को जैसे तोता निकाल लेता है, उसी तरह पतझर ने हर पत्ते को अलग कर दिया था। ...Read Moreकी पूरी कत्थई शाखाएं बिलकुल नंगी थीं। ओस की बूंदों में भीगने के बाद उसकी खुरदुरी, गड्ढेदार पुरानी छाल धूप में बहुत साफ दिखती थी। लड़का सुबह छत पर गमले के पौधो को पानी देने आया। उसकी निगाह पेड़ पर पड़ी। उसने पहली बार पेड़ को इस तरह नंगा देखा था। हालांकि पतझर हर साल आता था, हर साल बाजरे की कलगी
दिलरस प्रियंवद (2) लड़के ने छह बार लड़की को देखा। पहली बार में उसने देखा कि लड़की ने रात के सोने वाले कपड़े बदले हुए थे। वह सफेद रंग के गाउन जैसा कुछ पहने थी। दूसरी बार में उसने ...Read Moreकि गाउन पहनने के कारण कल की तरह उसकी कमर के नीचे का भारी हिस्सा नहीं दिख रहा था। तीसरी बार उसने देखा कि कल की तरह उसके बाल खुले नहीं थे। उसने बालों की दो चोटियां बना ली थीं। दोनों चोटियां उसके कंधों से आगे की तरफ पड़ी थीं। चौथी बार में उसने देखा कि कल की तरह वह अलस
दिलरस प्रियंवद (3) ‘नहीं... मुझे बहुत चाहिए। जितनी इधर हैं वे सब। साल भर की दवा बनानी है। पतझर साल में एक ही बार आता है। सूखी टहनियां तभी मिलती हैं। वैद्य जी के पास और भी मरीज आते ...Read Moreउनके भी काम आएंगी।’ ‘किसे चाहिए?’ दुकानदार ने जेब से पीतल की चुनौटी निकाली। तम्बाकू और चूना हथेली पर रखकर घिसने लगा। ‘क्या?’ ‘दवा... तुम्हें बीमारी है।’ ‘नहीं...।’ लड़का हड़बड़ा गया, ‘भाई को।’ ‘क्या?’ ‘वैद्य जी जानते हैं।’ ‘तुम नहीं जानते?’ ‘उन्होंने बताया नहीं।’ दुकानदार कुछ क्षण लड़के को देखता रहा फिर पुतलियों को आंखों के कोनों पर टिका कर पूछा : ‘कहां
दिलरस प्रियंवद (4) ‘क्या उससे सूजन ठीक हो जाती है?’ ‘वह तो बिलकुल हो जाती है।’ ‘लकड़ी की टाल वाले को जरूरत है... उसे बाद में सूजन आ जाती है।’ ‘वह तो आएगी ही। उसने एक तोता पाल रखा ...Read Moreजैसे तोता हरी मिर्च पकड़ता है, उस तरह वह औरत को पकड़ता है। सूजन तो आएगी ही।’ लड़के ने कभी तोते को हरी मिर्च पकड़ते नहीं देखा था। वह चुप रहा। ‘खैर तुम मुतवल्ली से मिल लो। तेल जरूर ले लेना। एक शीशी टाल वाले के लिए भी।’ लड़का उठ गया। ‘तुम एक दरख्वास्त दे दो। मां की बीमारी का