Karmbhumi book and story is written by Munshi Premchand in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Karmbhumi is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कर्मभूमि - Novels
by Munshi Premchand
in
Hindi Fiction Stories
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ।
अमरकांत बनारस के रईस समरकांत के पुत्र हैं। वे विद्यार्थी- जीवन से ही सार्वजनिक जीवन में कार्य करने के शौकीन हैं। अपने मित्र सलीम की आर्थिक सहायता भी करते रहते हैं। प्रारम्भ में उनके लोभी पिता के आदर्शों में काफ़ी अंतर बना रहता है। अमरकांत का विवाह लखनऊ के एक धनी परिवार की एकमात्र संतान सुखदा से हो जाता है, किंतु दोनों के दृष्टिकोणों में साम्य नहीं है। साथ-साथ रहते हुए भी दोनों को एक - दूसरे से प्रेम नहीं है। सुखदा को अपने पति का खादी बेचना और सार्वजनिक कार्य पसन्द नहीं। पत्नी से प्रेम न पाकर अमरकांत सकीना की मुहब्बत में पड़ जाते है। वे पहले से ही डॉक्टर शांतिकुमार के साथ काशी में कार्य करते थे। गोरे सिपाहीयों द्वारा सताई गयी मुन्नी के मुक़दमे के सम्बन्ध में उन्होंने काफ़ी कार्य किया। व्यवहारिकता और आर्दश में संघर्ष होने के कारण अपने पिता तथा सुखदा से उनका पहले से ही जी ऊबा हुआ था, लेकिन जब सकीना के साथ उनका प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर पठानिन ने उन्हें फटकारा तो वे शहर छोड़कर चले गये।
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ।
अमरकांत बनारस के रईस समरकांत के पुत्र हैं। वे विद्यार्थी- जीवन से ही सार्वजनिक जीवन में कार्य करने के शौकीन हैं। अपने मित्र सलीम की आर्थिक ...Read Moreभी करते रहते हैं। प्रारम्भ में उनके लोभी पिता के आदर्शों में काफ़ी अंतर बना रहता है। अमरकांत का विवाह लखनऊ के एक धनी परिवार की एकमात्र संतान सुखदा से हो जाता है, किंतु दोनों के दृष्टिकोणों में साम्य नहीं है। साथ-साथ रहते हुए भी दोनों को एक - दूसरे से प्रेम नहीं है। सुखदा को अपने पति का खादी बेचना और सार्वजनिक कार्य पसन्द नहीं। पत्नी से प्रेम न पाकर अमरकांत सकीना की मुहब्बत में पड़ जाते है। वे पहले से ही डॉक्टर शांतिकुमार के साथ काशी में कार्य करते थे। गोरे सिपाहीयों द्वारा सताई गयी मुन्नी के मुक़दमे के सम्बन्ध में उन्होंने काफ़ी कार्य किया। व्यवहारिकता और आर्दश में संघर्ष होने के कारण अपने पिता तथा सुखदा से उनका पहले से ही जी ऊबा हुआ था, लेकिन जब सकीना के साथ उनका प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर पठानिन ने उन्हें फटकारा तो वे शहर छोड़कर चले गये।
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ।
शहर छोड़कर वे हरिद्वार के पास एक ऐसे देहाती इलाके में पहुँचे चहाँ मुर्दाखोर और अछूत कहे जाने वाले लोग और किसान रहते थे। वे सलोनी ...Read Moreयहाँ रहते हुए गूदड़, प्रयाग, काशी आदि के सम्पर्क में आये और गाँववालों में शिक्षा, अच्छी- अच्छी आदतों, सफाई आदि का प्रचार करने प्रचार करने लगे। यहाँ रहते हुए उनकी मुन्नी से भेंट हुई। दोनों में परस्पर आकर्षण भी उत्पन्न हुआ। काशी से आये आत्मानन्द से उन्हें अपने सेवा- कार्य में बराबर सहायत प्राप्त होती रहती थी। कृषकों की सहायता के लिए वे महंत आशाराम गिरि से मिले किंतु उन्हें अधिक सफलता प्राप्त न हुई किंतु काशी में सुखदा के त्याग समाचार सुनकर भी वे उत्तेजित हो उठाते हैं और लगानबन्दी का आंदोलन शुरू कर देते हैं। उनका पुराना मित्र सलीम, अब आई. सी. एस. ऑफिसर और उस इलाके का इंचार्ज, उन्हें पकड़ ले जाता है। किंतु लाला समरकांत, जिनमें अब परिवर्तन हो चुका था, जन - सेवा की ओर मुड़कर उसी इलाके में पहुँच जाते हैं और किसान - आन्दोलन के सिलसिले में कारावास दण्ड भी भुगतते हैं। उनके प्रभाव से सलीम के हृदय में भी परिवर्तन हो जाता है। वह स्वंय आन्दोलन की बागडोर सम्हालता है और अंत में पकड़ा जाता है। तत्पश्चत मुन्नी और सकीना (वह भी उस इलाके में पहुँच जाती है) भी गिरफ़्तार हो जाती हैं। उग्र आत्मनन्द भी सरकारी शिकंजे से बच नहीं पाते।
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ।
उधर काशी के मन्दिरों में अछूतों के प्रवेश, गरीबों के लिए मकान बनवाने आदि समस्याओं को लेकर आन्दोलन छिड़ जाता है और सरकार से संघर्ष होता ...Read Moreइस आन्दोलन का संचालन सुखदा, पठानिन, रेणुकादेवी और यहाँ तक कि समरकांत भी करते हैं। ये सब और डॉक्टर शांतिकुमार जेल-यात्रा करते हैं। नैना भी वहाँ आ जाती है और एक जलूस का नेतृत्व करते हुए चुंगी की ओर जाती है। वहाँ उसका पति मनीराम उसे गोली मार देता है। उसकी मृत्यु से चुंगी के मेम्बरों में भी हृदय - परिर्वतन हो जाता है और वे ग़रीबों के मकानों के लिए ज़मीन दे देते हैं। जो आन्दोलन सुखदा ने प्रारम्भ किया था, उसका अंत नैना की बलि से होता है। लखनऊ के सेण्ट्रल जेल में अमरकांत, मुन्नी, सकीना, सुखदा, पठानिन, रेणुका आदि सब मिल जाते हैं। धनीराम का पुत्र मनीराम मृत्यु को प्राप्त होता है।
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ।
अंत में सेठ धनीराम की मध्यस्थता से सरकार द्वारा एक कमेटी नियुक्त हो जाती है जो सरकार से मिलकर किसानों और गरीबों की समस्याओं पर विचार ...Read Moreउस कमेटी में अमर और सलीम तो रहते ही हैं, उनके अतिरिक्त तीन अन्य सदस्यों को चुनने का उन्हें अधिकार दिया गया। सरकार ने भी उस कमेटी में दो सदस्यों अपने रखे। यह समझौते वाली नीति 1930 के कांग्रेस और सरकार के अस्थायी समझौते के प्रभाव के रूप में है। सरकार तब कैदियों को छोड़ देती है। अमरकांत, सकीना और मुन्नी को बहन के रूप में स्वीकार करते हैं और अमरकांत और सुखदा एक दूसरे का महत्त्व पहचानते हैं।
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ।
प्रेमचन्द की रचना कौशल इस तथ्य में है कि उन्होंने इन समस्याओं का चित्रण सत्यानुभूति से प्रेरित होकर किया है कि उपन्यास पढ़ते समय तत्कालीन राष्ट्रीय ...Read Moreआन्दोलन पाठक की आँखों के समक्ष सजीव हो जाता हैं। छात्रों तथा घटनाओं की बहुलता के बावजूद उपन्यास न कहीं बोझिल होता है न कहीं नीरस। प्रेमचन्द हर पात्र और घटना की डोर अपने हाथ में रखते हैं इसलिए कहीं शिथिलता नहीं आने देते। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद से ओतप्रोत कर्मभूमि उपन्यास प्रेमचन्द की एक प्रौढ़ रचना है जो हर तरह से प्रभावशाली बन पड़ी है।