Azad Katha - Khand - 2 book and story is written by Munshi Premchand in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Azad Katha - Khand - 2 is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
आजाद-कथा - खंड 2 - Novels
by Munshi Premchand
in
Hindi Fiction Stories
मियाँ शहसवार का दिल दुनिया से तो गिर गया था, मगर जोगिन की उठती जवानी देख कर धुन समाई कि इसको निकाह में लावें। उधर जोगिन ने ठान ली थी कि उम्र भर शादी न करूँगी। जिसके लिए जोगिन हुई, उसी की मुहब्बत का दम भरूँगी। एक दिन शहसवार ने जो सुना कि सिपहआरा कोठे पर से कूद पड़ी, तो दिल बेअख्तियार हो गया। चल खड़े हुए कि देखें, माजरा क्या है? रास्ते में एक मुंशी से मुलाकात हो गई। दोनों आदमी साथ-साथ बैठे और साथ ही साथ उतरे। इत्तफाक से रेल से उतरते ही मुंशी जी को हैजा हो गया। देखते-देखते चल बसे। शहसवार ने जो देखा कि मुंशी के पास दौलत काफी है, तो फौरन उनके बेटे बन गए और सारा माल असबाब ले कर चंपत हो गए। सात हजार की अशर्फियाँ, दस हजार के नोट और कई सौ रुपए हाथ आए। रईस बन बैठे। फौरन जोगिन के पास लौट गए।
मियाँ शहसवार का दिल दुनिया से तो गिर गया था, मगर जोगिन की उठती जवानी देख कर धुन समाई कि इसको निकाह में लावें। उधर जोगिन ने ठान ली थी कि उम्र भर शादी न करूँगी। जिसके लिए जोगिन ...Read Moreउसी की मुहब्बत का दम भरूँगी। एक दिन शहसवार ने जो सुना कि सिपहआरा कोठे पर से कूद पड़ी, तो दिल बेअख्तियार हो गया। चल खड़े हुए कि देखें, माजरा क्या है? रास्ते में एक मुंशी से मुलाकात हो गई। दोनों आदमी साथ-साथ बैठे और साथ ही साथ उतरे। इत्तफाक से रेल से उतरते ही मुंशी जी को हैजा हो गया। देखते-देखते चल बसे। शहसवार ने जो देखा कि मुंशी के पास दौलत काफी है, तो फौरन उनके बेटे बन गए और सारा माल असबाब ले कर चंपत हो गए। सात हजार की अशर्फियाँ, दस हजार के नोट और कई सौ रुपए हाथ आए। रईस बन बैठे। फौरन जोगिन के पास लौट गए।
कैदखाने से छूटने के बाद मियाँ आजाद को रिसाले में एक ओहदा मिल गया। मगर अब मुश्किल यह पड़ी कि आजाद के पास रुपए न थे। दस हजार रुपए के बगैर तैयारी मुश्किल। अजनबी आदमी, पराया मुल्क, इतने रुपयों ...Read Moreइंतजाम करना आसान न था। इस फिक्र में मियाँ आजाद कई दिन तक गोते खाते रहे। आखिर यही सोचा कि यहाँ कोई नौकरी कर लें और रुपए जमा हो जाने के बाद फौज में जायँ। मन मारे बैठे थे कि मीडा आ कर कुर्सी पर बैठ गई। जिस तपाक के साथ आजाद रोज पेश आया करते थे, उसका आज पता न था! चकरा कर बोली - उदास क्यों हो! मैं तो तुम्हें मुबारकबाद देने आई थी। यह उल्टी बात कैसी?
जोगिन शहसवार से जान बचा कर भागी, तो रास्ते में एक वकील साहब मिले। उसे अकेले देखा, तो छेड़ने की सूझी। बोले - हुजूर को आदाब। आप इस अँधेरी रात में अकेले कहाँ जाती हैं?
जोगिन - हमें न छे़ड़िए।
वकील ...Read Moreशाहजादी हो? नवाबजादी हो? आखिर हो कौन?
जोगिन - गरीबजादी हूँ।
वकील - लेकिन आवारा।
जोगिन - जैसा आप समझिए।
वकील - मुझे डर लगता है कि तुम्हें अकेला पा कर कोई दिक न करे। मेरा मकान करीब है, वहीं चल कर आराम से रहो।
जमाना भी गिरगिट की तरह रंग बदलता है। वही अलारक्खी जो इधर-उधर ठोकरें खाती-फिरती थी, जो जोगिन बनी हुई एक गाँव में पड़ी थी, आज सुरैया बेगम बनी हुई सरकस के तमाशे में बड़े ठाट से बैठी हुई है। ...Read Moreसब रुपए का खेल है।
सुरैया बेगम - क्यों महरी, रोशनी काहे की है? न लैंप, न झाड़, न कँवल और सारा खेमा जगमगा रहा है।
महरी - हुजूर, अक्ल काम नहीं करती, जादू का खेल है। बस, दो अंगारे जला दिए और दुनिया भर जगमगाने लगी।
सुरैया बेगम मियाँ आजाद की जुदाई में बहुत देर तक रोया कीं, कभी दारोगा पर झल्लाईं, कभी अब्बासी पर बिगड़ीं, फिर सोचतीं कि अलारक्खी के नाम से नाहक बुलवाया, बड़ी भूल हो गई कभी खयाल करतीं की वादे ...Read Moreसच्चे हैं। कल शाम को जरूर आएँगे, हजार काम छोड़के आएँगे। रात भींग गई थी, महरियाँ सो रही थीं, महलदार ऊँघता था, शहर-भर में सन्नाटा था मगर सुरैया बेगम की नींद मियाँ आजाद ने हराम कर दी थी -