कभी सोचा न था - Novels
by महेश रौतेला
in
Hindi Poems
कभी सोचा न था१.अकेला हूँअकेला हूँशव में,श्मशान मेंशिव मेंतीर्थ में,तीर्थाटन मेंतथागत की भाँति,आँधी में,अँधियारे मेंधूप में,धूल मेंराह में,राह से आगे।अकेलाधुँध की भाँतिकोहरे की तरह,क्षीण आवाज में,सुब-शाम साउगता-अस्त होता,मन से गुनगुनाताक्षणिक विश्वास लिये।सच-झूठ को खींचतामनुष्य बनमौन हूँ। *******२.अपनी खिड़कीअपनी खिड़कीस्वयं ...Read Moreखोलनी है,अपना आसमानखुद ही खोजना है।क्षितिजों की लाली मेंनहा-धोअपनी दहलीज परबार-बार आना है।धूप-छाँव के साथहँसते-रोतेगहरी उम्मीद में आ जाना है,बातों को बात समझबार-बाल पलटना है।अपनी खिड़कीस्वयं ही खोलउजाले तक झाँकना है। *******३.आत्मा कुछ तो करेगीआत्मा कुछ तो करेगीसार-संक्षेप बटोरकहीं तो मिलेगी,अपने बच्चों के लिएएक आसमान संजोयेगी,अपने ही जन्मदिन परढेर सारी खुशियों मेंलोट-पोट हो जायेगी,नदी के स्रोत
कभी सोचा न था१.अकेला हूँअकेला हूँशव में,श्मशान मेंशिव मेंतीर्थ में,तीर्थाटन मेंतथागत की भाँति,आँधी में,अँधियारे मेंधूप में,धूल मेंराह में,राह से आगे।अकेलाधुँध की भाँतिकोहरे की तरह,क्षीण आवाज में,सुब-शाम साउगता-अस्त होता,मन से गुनगुनाताक्षणिक विश्वास लिये।सच-झूठ को खींचतामनुष्य बनमौन हूँ। *******२.अपनी खिड़कीअपनी खिड़कीस्वयं ...Read Moreखोलनी है,अपना आसमानखुद ही खोजना है।क्षितिजों की लाली मेंनहा-धोअपनी दहलीज परबार-बार आना है।धूप-छाँव के साथहँसते-रोतेगहरी उम्मीद में आ जाना है,बातों को बात समझबार-बाल पलटना है।अपनी खिड़कीस्वयं ही खोलउजाले तक झाँकना है। *******३.आत्मा कुछ तो करेगीआत्मा कुछ तो करेगीसार-संक्षेप बटोरकहीं तो मिलेगी,अपने बच्चों के लिएएक आसमान संजोयेगी,अपने ही जन्मदिन परढेर सारी खुशियों मेंलोट-पोट हो जायेगी,नदी के स्रोत
कभी सोचा न था ( भाग-२)२२.जब भी गाया धुन अपनी थीजब भी गाया धुन अपनी थीजब भी सोचा, मन अपना थाजब भी देखा, दृष्टि साफ थीजब भी पूजा, भगवान पास था।मन में कोई दोष नहीं थादूर चला था लय ...Read Moreथा,युग के सारे बोल सुना थाकभी अकेला कभी साथ मिला था।नये क्षण में, नया प्यार थाचलने में व्यवधान नहीं था,नये समय में नया रचा थाईश्वर में कोई भेद नहीं था।क्षण के ऊपर जो लिखा थाउसको पढ़ता मैं चलता था,मुझको कुछ-कुछ याद पड़ा थादुख ने सबको मोड़ा लिया था।जब भी गाया स्वर अपना थाहर बसंत का सुख न्यारा था। ******२३.जो गीत तुम्हारे अन्दर हैजो गीत तुम्हारे अन्दर हैमैं गीत वही तो गाता हूँ,व्यथा तुम्हारे साथ चली जोमैं हाथ उसी के थामे हूँ।प्यार तुम्हारे पास रहा जोखोज उसी की करता हूँ,जो सौन्दर्य हमारे बीच रहामैं आसक्त उसी