बिटिया के नाम पाती... - Novels
by Dr. Vandana Gupta
in
Hindi Human Science
प्यारी बिटियाढेर सारा प्यार मेरा पत्र पाकर तुम आश्चर्यचकित होंगी कि अभी तो मिलकर गयीं हैं मम्मा और रोज तो मोबाइल पर बात होती है, फिर पत्र क्यों?? बेटा! रोज बात करने ...Read Moreबाद भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है... पत्र पढ़ने के बाद इस क्यों का जवाब भी मिल जाएगा। हाँ तो कहाँ से शुरू करूँ? तुम्हें हॉस्टल में रहते हुए पाँच वर्ष बीत चुके हैं, तुम डॉक्टर बनकर अपना बचपन का सपना पूरा करने वाली हो। मुझे बेहद खुशी होती है जब तुम मुझे अपनी बेस्ट फ्रेंड कहती हो... और हमने अपनी दोस्ती निभायी भी
प्यारी बिटियाढेर सारा प्यार मेरा पत्र पाकर तुम आश्चर्यचकित होंगी कि अभी तो मिलकर गयीं हैं मम्मा और रोज तो मोबाइल पर बात होती है, फिर पत्र क्यों?? बेटा! रोज बात करने ...Read Moreबाद भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है... पत्र पढ़ने के बाद इस क्यों का जवाब भी मिल जाएगा। हाँ तो कहाँ से शुरू करूँ? तुम्हें हॉस्टल में रहते हुए पाँच वर्ष बीत चुके हैं, तुम डॉक्टर बनकर अपना बचपन का सपना पूरा करने वाली हो। मुझे बेहद खुशी होती है जब तुम मुझे अपनी बेस्ट फ्रेंड कहती हो... और हमने अपनी दोस्ती निभायी भी
प्यारी बिटियाढेर सारा प्यार तुमने कहा था कि मेरा पहला पत्र तुम्हें बहुत अच्छा लगा और यह भी कि फोन पर चाहे कितनी भी देर बातें कर लो, मैसेज कर लो, लेकिन तुम्हें जब ...Read Moreयाद आती है तो सोते समय तुम पत्र पढ़कर सिरहाने रख लेती हो और मुझे अपने पास महसूस करती हो.. बस इसीलिए ये पत्र लिख रही हूँ.बेटा आज तुम्हारी शादी को दो साल हो गए. समय कितनी जल्दी गुजर जाता है. ऐसा लगता है कि सब कल ही तो घटित हुआ है. पापा का गुस्सा होना, फिर तुम्हारा रोना और मेरा तुम दोनों
प्रिय क्षितिज, असीम स्नेहाशीष तुम अवश्य ही आश्चर्यचकित हो रहे हो कि अभी हमारे साथ जन्मदिन का केक काटकर गये हो और ...Read Moreक्रांति के इस दौर में जब मीलों दूर रहकर भी एक नजदीकी का अहसास हर पल रहता है तो मैंने यह पत्र क्यों लिखा है? बेटा! कुछ बातें हम रूबरू नहीं कह पाते और न ही मोबाइल के द्वारा सम्प्रेषित कर पाते हैं। पत्र एक ऐसा माध्यम है कि हम सोच समझ कर अपनी
प्रिय पापा,स्नेह वंदनकहते हैं कि एक लड़की को खुद माँ बनने के बाद ही माँ की भावनाएं समझ में आती हैं और एक लड़का पिता बनने के बाद ही अपने पिता की चाहत और मजबूरी को समझ पाता है। ...Read Moreनहीं कहते हैं, किन्तु क्या एक लड़की अपने पिता को और एक लड़का अपनी माँ को इन बिंदुओं पर कभी परख पाता है..? कभी हाँ और कभी ना....! आज पितृ दिवस है और मैं मेरे बच्चों का पिता के प्रति प्यार और उसको अभिव्यक्त करने के तरीके में डूबकर यह सोच रही हूँ कि हमने इस तरह से कभी प्यार
प्रिय वन्दूआज ज़िन्दगी के सफर में चलते चलते उस पड़ाव पर पहुँच चुकी हूँ, जहाँ से अतीत और भविष्य एक साथ नज़र आता है। ज़िन्दगी के गलियारे में झाँकते हुए खुद को खुद की नज़र से देखा... और सोचा ...Read Moreखुद से क्या चाहा, क्या पाया और क्या शेष रहा, इसका आकलन करना हो तो इस सुंदर सफर में खुद की ज़िंदगी की कहानी में खुद को पात्र के रूप में देखना जरूरी है। तो चलिए... शुरू से शुरू करते हैं...वन्दू तुमने एक संयुक्त परिवार में होश सम्भालते ही ज़िन्दगी के अनेक रंग देखे। संघर्ष का अर्थ न समझते हुए
मेरे प्रिय बिनाका गीतमालाढेर सारी प्यार भरी याद के साथ नमस्कार आज बरसों बाद तुम्हारी याद आयी हो, ऐसा नहीं है। तुम्हारे जाने के बाद से मैंने तुम्हें बहुत मिस किया है। मैं खोयी खोयी ...Read Moreरहती थी, तुमसे बिछड़ने के बाद से... सोचती थी कि संगीत की दुनिया का ये शून्य कैसे भरा जाएगा? मैं हमेशा से ही तुम्हारी दीवानी रही हूँ। तुम उम्र में मुझसे काफी बड़े थे, किन्तु हमारा याराना बहुत तगड़ा था। तुम्हारे पीछे मैं सब कुछ भूल जाती थी.... परिजनों को छोड़ो... भोजन की थाली और पढ़ाई की किताबें भी कई बार धरी रह
मेरी प्यारी अभिलाषातुम मुझे बहुत अज़ीज़ हो, शायद खुद से भी ज्यादा... और इसीलिए तुम्हें अब तक दिल में महफूज़ रखा है। तुम्हें पाने की ज़िद में खुद को खो दिया है मैंने... और शायद इसीलिए उम्र की आधी ...Read Moreगुजरने के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब याद आ रहे हैं...हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकलेबहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले...इन पंक्तियों से तुम समझ ही गई होंगी कि मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी अहमियत क्या है? जबसे होश संभाला घर की महिलाओं को परिवार के दायित्वों और परिजनों के सपनों के लिए खुद की इच्छाओं को