Hushshu book and story is written by Ratan Nath Sarshar in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Hushshu is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
हुश्शू - Novels
by Ratan Nath Sarshar
in
Hindi Fiction Stories
बेतुकी हाँक
महुए से कुछ गरज है न हाजत है ताड़ की
साकी को झोंक दूँगा मैं भट्टी में भाड़ की!
हात्तेरे पीनेवाले की दुम में पुरानी भट्टी का जंग लगा हुआ भभका! ओ गीदी, हात्तेरे शराबखोर की दुम में मियाँ आलू बुखारा अत्तार की करनबीक! ओ गीदी, हात्तेरे मतवाले की मगड़ी के दोनों सिरों में कठपुतली नाच-ताक धनाधन ताक धनाधन। हात्तेरे की - और लेगा? अबे, तुम लोगों के हम वैसे ही दुश्मन हैं जैसे मोर साँप का, कुत्ता बिल्ली का, गेंडा हाथी का। गैंडे ने हाथी को देखा - और जंजीर तुड़ाके दौड़ा और सींग मारा और हाथी का पेट फाड़ डाला, - हात्तेरे की - और लेगा? मियाँ हवन्ना साहब कजली बन के महाराजा बने चले जाते हैं, मगर दुश्मन से नहीं चलती।
बेतुकी हाँक
महुए से कुछ गरज है न हाजत है ताड़ की
साकी को झोंक दूँगा मैं भट्टी में भाड़ की!
हात्तेरे पीनेवाले की दुम में पुरानी भट्टी का जंग लगा हुआ भभका! ओ गीदी, हात्तेरे शराबखोर की दुम में मियाँ आलू ...Read Moreअत्तार की करनबीक! ओ गीदी, हात्तेरे मतवाले की मगड़ी के दोनों सिरों में कठपुतली नाच-ताक धनाधन ताक धनाधन। हात्तेरे की - और लेगा? अबे, तुम लोगों के हम वैसे ही दुश्मन हैं जैसे मोर साँप का, कुत्ता बिल्ली का, गेंडा हाथी का। गैंडे ने हाथी को देखा - और जंजीर तुड़ाके दौड़ा और सींग मारा और हाथी का पेट फाड़ डाला, - हात्तेरे की - और लेगा? मियाँ हवन्ना साहब कजली बन के महाराजा बने चले जाते हैं, मगर दुश्मन से नहीं चलती।
तोड़-फोड़ - खटपट
नाविल के पढ़नेवाले बड़े परेशान होंगे कि आखिर इस बेतुकी हाँक के क्या मानी! मगर इसमें परेशानी और खराबी की क्या बात है? मजमून का चेहरा तो मुलाहजा फरमा लीजिए - हम तो खुद इसके कायल हैं ...Read More'बेतुकी हाँक' है। अब इसका खुलासा हमसे सुनिए -
लाला जोती प्रसाद नामी एक बुजुर्गवार बड़े शराबखोर, बदमस्त और मुतफन्नी थे। उनके भाई-बंदों दोस्तों, - बड़ों-छोटों ने समझाया कि भाई -
ऐब भी करने को हुनर चाहिए!
कलवारीखाना और काना
पहला सीन
इधर बमचख, उधर जूती, इधर पैजार, उधर दंगा!
बही कलवारखाने में है कैसी उलटी यह गंगा!!
बोतलवाले और बोतलवाली चमक्को को कुठरिया में पड़े रहने दीजिए, वह जानें, उनका काम।
अब मियाँ हुश्शू साहब का हाल सुनिए कि बोतलवाले ...Read Moreबोतलें तोड़, झौआ औंधा करके जो सीधी भरी तो एक कलवारीखाने में पहुँचे। कलवार साहब बड़े तोंदल डबल आदमी - लाला दरगाही लाल - दुकान के राजा बने हुए बैठे थे। मियाँ हुश्शू भी धँस ही तो पड़े। भलेमानस अमीर देख कर उसने मोंढा दिया, कपड़े भी अच्छे पहले थे।
हुश्शू का वार
हवेली में टिके पाजी पजोड़े,
बिकी ईंटें, हुए कड़ियों के कोड़े!
लाला जोती परशाद को बीच का रास्ता पकड़ने से दिली नफरत थी। या कूंड़ी के इस पार या उस पार! अगर पीने पर आए तो दिन-रात गैन, हर ...Read Moreचूर, हर दम धुत्त, सिवा शराब के और कोई शगल ही नहीं। खाना पीना, ओढ़ना-बिछौना, सब शराब! और अगर छोड़ दी तो एक कतरा भी हराम। अगर डाक्टर नुस्खे में भी तजवीजें तो भी न पिएँ। इन दो सूरतों से किसी हाल में भी खाली नहीं रहते थे। या तो उसके नाम से इस कदर नफरत कि जहर से बदतर समझते थे, या इस कदर इसके गुलाम कि बे-पिए जरा चैन नहीं।
गर्काबा
करेंगे प्यारे से प्यार अपने, किसी के बाबा का डर नहीं है।
पिएँगे मय मस्जिदों में जा कर किसी की खाला का घर नहीं है!
एक खुशनुमा बाग में ठीक दोपहर के वक्त एक रईस बैठे हुए बड़े शौक और जौक ...Read Moreसाथ शराब का शगल कर रहे थे। शीशे के कई गिरास करीने के साथ चुने हुए थे, और बोतलें तालाब में पैर रही थीं। और थोड़ी दूर पर कई बावर्ची हर तरह के कबाब पका रहे थे और हजूर रईस ठाठ के साथ बैठे हुए मजे-मजे से खा रहे थे।