Sej gagan me chaand kee book and story is written by Prabodh Kumar Govil in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Sej gagan me chaand kee is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सेज गगन में चांद की - Novels
by Prabodh Kumar Govil
in
Hindi Fiction Stories
सेज गगन में चाँद की [ 1 ] "धरा ... ओ धरा... बेटी धरा...." माँ ने गले की तलहटी से जैसे पूरा ज़ोर लगा कर बेटी को आवाज़ लगाई।सपाट सा चेहरा लिए धरा सामने आ खड़ी हुई।बेटी के चेहरे पर अबूझा डोल देख कर बुढ़िया मानो फिर टिटियाई- "रोटी.... रोटी की कह रही थी मैं। धरा मानो कुछ समझी ही नहीं, वह अपनी माँ को उसी तरह घूरती हुई जस की तस खड़ी रही। उसकी माँ को सभी भक्तन माँ कहते थे। सभी से सुन-सुन कर कभी-कभी वह भी भक्तन माँ ही बोल बैठती थी। भक्तन ने अबकी बार अपने सुर में थोड़ी
सेज गगन में चाँद की [ 1 ] "धरा ... ओ धरा... बेटी धरा...." माँ ने गले की तलहटी से जैसे पूरा ज़ोर लगा कर बेटी को आवाज़ लगाई।सपाट सा चेहरा लिए धरा सामने आ खड़ी हुई।बेटी के ...Read Moreपर अबूझा डोल देख कर बुढ़िया मानो फिर टिटियाई- "रोटी.... रोटी की कह रही थी मैं। धरा मानो कुछ समझी ही नहीं, वह अपनी माँ को उसी तरह घूरती हुई जस की तस खड़ी रही। उसकी माँ को सभी भक्तन माँ कहते थे। सभी से सुन-सुन कर कभी-कभी वह भी भक्तन माँ ही बोल बैठती थी। भक्तन ने अबकी बार अपने सुर में थोड़ी
सेज गगन में चाँद की [ 2 ] लड़का उड़ती सी नज़र वहां फैले-बिखरे सामान पर डाल कर मन ही मन कुछ तौल ही रहा था कि धरा के सुरों का बदलाव उसे प्रतीत हुआ। धरा बोल रही थी--"क्या ...Read Moreहै तुम्हारा ?"-"नीलाम्बर !"-"बहुत बड़ा नाम है।"-"घर में मुझे नील कहते हैं।" कहते-कहते लड़का संकोच से ज़रा झेंप गया।-"कौन है घर में?" धरा ने नज़र को ज़रा और गहरा, स्वर को ज़रा और मुलायम करके पूछ डाला। -"यहाँ तो कोई नहीं !"-"कोई नहीं है, मतलब?"-"यहाँ पर तो रिश्ते के एक चाचा के साथ रहता हूँ, बाकी लोग गाँव में हैं।"-"कौन सा गाँव?"
सेज गगन में चाँद की [ 3 ] माँ भी अजीब है। हर समय यही सोचती रहती है कि धरा कोई बच्ची है। अरे, अकेली तो गयी नहीं थी, साथ में छः हाथ का ये लड़का था। और ...Read Moreबिना पूछे नहीं गयी थी। यदि ऐसा ही था तो माँ पहले ही मना कर सकती थी। न जाती वह। भला उसे कौनसा घर काटने को दौड़ रहा था कि भरी दोपहरी में भटकने को घर से निकलती। नीलाम्बर ने ही कहा था कि वह साथ चलेगी तो काम ज़रा जल्दी हो जायेगा। क्योंकि उस बेचारे का बहुत सा समय तो पूछने-ढूँढ़ने में ही निकल