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रोबोट वाले गुण्डे - Novels
by राज बोहरे
in
Hindi Children Stories
रोबोट वाले गुण्डे बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे 1 भोर हो रही थी। रात समाप्त हो चुकी थी, दिन निकल रहा था। फौजी जासुस केदार सिंह के घर में हलचल थी। केदार सिंह खुद तथा उनके दोनों बेटे अजय और अभय बहुत जल्दी जाग गये थे,एवं बार-बार- आसमान की ओर देख रहे थे। वे दोनों झटपट नहा-धोकर निपटे और प्रोफेसर सर्वेश्वर दयाल के घर की ओर दौड़ पड़े, जबकि केदार सिंह ने अपना टेलीविज़न शुरू कर लिया था। सुबह के छह बजे थे। सारे भारत वर्ष में खुशी का महौल था। आज भारत अपने
भोर हो रही थी। रात समाप्त हो चुकी थी, दिन निकल रहा था। फौजी जासुस केदार सिंह के घर में हलचल थी। केदार सिंह खुद तथा उनके दोनों बेटे अजय और अभय ...Read Moreजल्दी जाग गये थे,एवं बार-बार- आसमान की ओर देख रहे थे। वे दोनों झटपट नहा-धोकर निपटे और प्रोफेसर सर्वेश्वर दयाल के घर की ओर दौड़ पड़े, जबकि केदार सिंह ने अपना टेलीविज़न शुरू कर लिया था। सुबह के छह बजे थे।
प्रोफेसर दयाल ने रेडियो बन्द किया और उठ खड़े हुये। अजय अभय भी उठे। अजय और अभय बहुत दिनों से दयाल अंकल की प्रयोगशाला नही गये थे, वे आज वही जाना चाहते ...Read Moreइस समय वे लोग कॉलेज की प्रयोगशाला में बैठे थे। - “ अंकल, हम आपकी प्रयोगशाला चलें। “ अजय ने पूछा। - “ नही बेटा ।“ दयाल साहब बोले- “ हम आज कल एक नया प्रयोग कर रहे है, हम प्रयोगशाला में किसी को नही जाने देते। इसीलिये तुम लोगो को कॉलेज
आठ बजे थे। घंटी बजाने पर दरवाजा खोला प्रो. दयाल के नौकर ने। अजय-अभय ने नौकर से कहा कि वह प्रो. दयाल से कहे कि अजय-अभय उनसे मिलने आये हैं। ...Read More नौकर से समाचार सुनकर प्रोफेसर दयाल तत्काल वहाँ आ गये। “हलो, भतीजों, क्या हाल हैै“ “नमस्ते अंकल हमारे हाल तो बिल्कुल खराब हैं, दोनांे एक स्वर में बोले। “क्या भई, क्या हुआ?“ “हमारे अंकल ही हमसे अपना नया आविश्कार और प्रयोग छिपा रहे हैं तो आप ही बताइये अंकल,
अंतरिक्ष का तीसरा दिन था। भारत वर्ष मे गर्व की ध्वजा लिये, तिरंगे रंग का झंडा फहराता भारती यान पृथ्वी के चक्कर लगा रहा था। अपने हाथो में दूरबीन और अन्य अनेक प्रकार के यंत्र लिये बैठे जयंत ...Read Moreभारतीय वैज्ञानिक अपने प्यारे भारत वर्ष की तस्वीरें खींच रहे थे। वे परसों अर्थात पाँचवें दिन की तैयारी में लगे थे। पाँचवे दिन इस अभियान दल के सदस्य मुकुलदा को यान से बाहर निकल कर कुछ देर हवा में चलना फिरना था। अपने साथ लाये कम्प्युटर
प्रोफेसर सर्वेश्वर दयाल को नगर की हलचलो से कुछ मतलब न था, वे जब खूब आराम चाहते थे तो किसी नदी का किनारा खोजते थे और दिनभर वही आसन जमाये रहते थे। ...Read More एसा ही उस दिन हुआ। वे अपने एक नौकर को लेकर पास बहने वाली नदी ”शरबती“ के किनारे पहुँच गये और दूब से भरे मैदान में दरी बिछाकर लेट गये। नौकर ने पास लाकर टेप चला दिया, जिससे धीमा-धीमा संगीत निकलकर वातावरण को संगीतमय बनाने लगा था। प्रोफेसर दयाल आसमान की ओर ताकते चुपचाप लेटे थे।