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विरासत - Novels
by श्रुत कीर्ति अग्रवाल
in
Hindi Thriller
विरासत पार्ट - 1 इतनी मुश्किल भरे इन दिनों के बाद अब जो जरा सी कमर सीधी करने की मोहलत मिली तो उसे लगा, लेटते ही सो जाएगा। मगर कुछ था जो दिमाग में लगातार टहोके मार रहा था और शायद फौरी व्यस्तता के सामने मुखर नहीं हो पाया था, अब चिंता बनकर सामने आ खड़ा हुआ। उसने महसूस किया कि एकाएक उसकी सोंच ने पाला बदल
विरासत ...Read More पार्ट - 1 इतनी मुश्किल भरे इन दिनों के बाद अब जो जरा सी कमर सीधी करने की मोहलत मिली तो उसे लगा, लेटते ही सो जाएगा। मगर कुछ था जो दिमाग में लगातार टहोके मार रहा था और शायद फौरी व्यस्तता के सामने मुखर नहीं हो पाया था, अब चिंता बनकर सामने आ खड़ा हुआ। उसने महसूस किया कि एकाएक उसकी सोंच ने पाला बदल
विरासत ...Read More पार्ट - 2 (जारी) ये क्या था? ऐसा कैसे हो सकता है? कौन थी वो औरत? गले में काँटे से उभर आए थे... उसके सामने ही तो बाऊजी ऊपर गए थे... बिल्कुल अकेले! कमरे में जाने का कोई दूसरा दरवाजा भी नहीं है। इस बार वे आए भी कई दिनों के बाद थे... तो ये औरत वहाँ पँहुची कैसे? कौन थी वह? माँ को बताने का कोई फायदा होगा? ...सुनहरी... सुनहरी... काँपती, लरजती वह आवाज़, मदद को पुकारती सी एक आवाज़ कानों में लगातार गूँज रही थी... पूरे माहौल में व्याप्त थी... उसने दोनों हाथों से अपने
विरासत ...Read More पार्ट - 3 यह कोचिंग समाप्त होने का समय था। बस इसी समय ॠचा से भेंट हो सकती है अन्यथा अगले दो दिन छुट्टियाँ हो जाएँगीं तो उससे मिल सकना असंभव हो जाएगा। घर से निकला तो कोचिंग तक जाने के लिए ही था पर मन को पता नहीं क्यों, इस समय ऋचा से मिलने जाना एक विलासिता सी लग रही थी। इस समय शायद उसे रासबिहारी ठाकुर की कोठी पर जाना चाहिए कि पता तो चले वहाँ पर उसके लिए कोई भविष्य है या नहीं! मगर इन दो दिनों में ऋचा ने फोन क्यों नहीं किया?
विरासत ...Read More पार्ट - 5 सुबह-सवेरे ग्लोरिया के कमरे की साफ-सफाई, उनके हाथ-पैरों के घावों की मरहम-पट्टी, फिर कुछ पका कर उन्हें खिलाते हुए उसे महसूस हो रहा था जैसे वह अपने पिता के किये पापों का प्रायश्चित कर रहा हो। ग्लोरिया भी उससे काफी खुश थीं। "मैन, तुम बहौत अच्छा सुभाव का आदमी है, अब हमको छोड़ कर कहीं मत जाना। गौड ने तुमको गिरधारी लाल को मारने के लिये ही भेजा है। वो सूअर किसी भी टाईम चला आएगा! आ गया तो तुम उससे जीत तो जाओगे ना? मैं बताती हूँ, वह बस देखने भर का मर्द है...
विरासत ...Read More पार्ट - 7 "आपको तो पता ही होगा रमेश बाबू, कि आपके पिता रासबिहारी ठाकुर के यहाँ काम करते थे। नहर के उस पार, मनेका गाँव में ठाकुर की ढेर सारी पुश्तैनी जमीन-जायदाद थी। एक समय था जब उनकी, उनके चचेरे भाइयों से उस संपत्ति के लिए भयंकर मार-काट चल रही थी। आपके पिता को केस-मुकदमे की काफी समझ थी और स्वभाव से ईमानदार भी थे