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फ़लक तक चल... साथ मेरे ! - Novels
by Nidhi Agrawal
in
Hindi Love Stories
पर्दों के बीच की झिरी से सूरज की किरणें वनिता के चेहरे पर ऐसे पड़ रही थी जैसे किसी मंच पर प्रमुख किरदार के चेहरे पर स्पॉटलाइट डालकर उसके चेहरे के भावों को उभारा जाए । रूखे बिखरे काले बालों में से कुछ जगह बना झांकते हुये उज्जवल चेहरे पर मुंदी हुई दो बड़ी-बड़ी पलकें बीच-बीच में कुछ हिलती- सी प्रतीत होती और उन गुलाबी अधरों पर एक स्मित तैर जाती।“वनिता...वनिता... उठ आठ बज गए। कोई बताये भला इस लड़की का क्या होगा?”, यह नानी का स्वर था।
फ़लक तक चल... साथ मेरे ! 1 ------ पर्दों के बीच की झिरी से सूरज की किरणें वनिता के चेहरे पर ऐसे पड़ रही थी जैसे किसी मंच पर प्रमुख किरदार के चेहरे पर स्पॉटलाइट डालकर उसके चेहरे के ...Read Moreको उभारा जाए । रूखे बिखरे काले बालों में से कुछ जगह बना झांकते हुये उज्जवल चेहरे पर मुंदी हुई दो बड़ी-बड़ी पलकें बीच-बीच में कुछ हिलती- सी प्रतीत होती और उन गुलाबी अधरों पर एक स्मित तैर जाती।“वनिता...वनिता... उठ आठ बज गए। कोई बताये भला इस लड़की का क्या होगा?”, यह नानी का स्वर था। “अब उठ, सौ बार
फ़लक तक चल... साथ मेरे ! 2. इस बार कड़ाके की ठंड है ! इतनी ठंड कि नानी के प्रत्यक्ष रूप से दिखते सुघड़ शरीर के विपरीत उनकी कोमल हड्डियां इस ठंड को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी, ऐसा पहले ...Read Moreलग गया था। कल रात सोई तो सुबह उठी ही नहीं। रात में कब उन्होंने प्राण त्याग दिए, कोई नहीं जानता, न जानना ही चाहता है। केवल वनिता के शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है यह सोचकर कि रात भर वह एक मृत देह के साथ बगल की चारपाई पर सो रही थी। भूत-प्रेत के कितने किस्से उसने गांव में
फ़लक तक चल... साथ मेरे ! 3. अचानक आए अवांछित अनजान मेहमानों ने घर की ऑक्सीजन में कुछ और कमी ला एक विकट संकट उत्पन्न कर दिया था।“तीन साल से बेटी जैसा रखे हैं हम लोग...तब आप लोग कहां ...Read Moreसुलक्षणा मामी ने अपने उसी शांत स्वर में कहा।“आए हाय, तो क्या एहसान किया जी आपने, क्या हम नहीं समझते... क्यों रखा? मुफ्त की नौकरानी मिल गई आपको तो, उसका बचपन तो छीन ही लिया अब शादी न करके क्या उसकी जवानी भी बर्बाद करोगी जी!”आने वाली महिला सुलक्षणा मामी के विपरीत अपने स्वर को ऊंचा रख अपनी बात सही
फ़लक तक चल... साथ मेरे ! 4. सुलक्षणा मामी के शब्द दिन रात उसके कानों में गूंजते। सिर्फ बचपन ही नहीं सच में इन लोगों ने उसका समूचा वजूद ही हर लिया था। वह दिन रात यंत्रवत काम करती ...Read Moreऔर जेठानियों के ताने उलाहने सुनती और रात भर अपने इस स्वामी की इच्छाओं के आगे बिना किसी प्रतिरोध सर्वस्व हारती जाती। वनिता द्वारा हार स्वीकार लेने पर भी वह क्यों जीत के लिए इतनी जद्दोजहद करता है वनिता समझने में खुद को असमर्थ पाती। यूं भी कुछ समझने महसूस करने को न उसके पास दिल बचा था न दिमाग।