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ये मेरा और तुम्हारा संवाद है कृष्ण - Novels
by Meenakshi Dikshit
in
Hindi Poems
1. हमारे प्रेम के अमरत्व का पल तुम्हारा स्वर सदा की तरह, आत्मीयता के चरम बिंदु सा कोमल था. आगे महाभारत है, अब वापस आना नहीं होगा. तुम मेरी शक्ति हो, तुम्हारे नयन सजल हुए, तो मैं पराजित हो जाऊंगा. नहीं माधव !! और मैंने, आतुर खारे जल को, पलकों तले, कंकड़ बन जाने दिया था. चुभते हुए उन कंकड़ों ने, तुम्हारे कमल नयनों में बिखर गयी ओस की नमी देखी थी. क्षितिज की ओर जाते, रथ के पहियों ने, रेणु पर्जन्य बना दिए थे. उन्होंने सब कुछ ढक दिया था. संभवतः उस पल में स्तंभित करने के लिए.
1. हमारे प्रेम के अमरत्व का पल तुम्हारा स्वर सदा की तरह, आत्मीयता के चरम बिंदु सा कोमल था. आगे महाभारत है, अब वापस आना नहीं होगा. तुम मेरी शक्ति हो, तुम्हारे नयन सजल हुए, तो ...Read Moreपराजित हो जाऊंगा. नहीं माधव !! और मैंने, आतुर खारे जल को, पलकों तले, कंकड़ बन जाने दिया था. चुभते हुए उन कंकड़ों ने, तुम्हारे कमल नयनों में बिखर गयी ओस की नमी देखी थी. क्षितिज की ओर जाते, रथ के पहियों ने, रेणु पर्जन्य बना दिए थे. उन्होंने सब कुछ ढक दिया था. संभवतः उस पल में स्तंभित करने के लिए.
1. तुम्हारे स्वर का सम्मोहन तुम्हारे अनुराग की तरह, तुम्हारे स्वर का सम्मोहन भी अद्भुत है, अपनत्व की सघनतम कोमलता, और सत्य की अकम्पित दृढ़ता का ये संयोग तुम्हारे पास ही हो ...Read Moreहै. और स्वरों के इसी अपरिमेय सम्मोहन ने मुझे उस एक क्षण में स्तंभित कर दिया I उस दिन सब उदास थे, सबको लगता था तुम चले जाओगे. मुझे राग, अनुराग और विराग रहित, नेत्रों से,अपलक अपनी ओर देखते हुए, तुमने अपनी स्नेहमयी सम्मोहिनी वाणी में सदा की तरह, भुवनमोहिनी मुस्कान के साथ मेरे निकट आकर कहा था, मैं जहाँ आ गया वहाँ से कभी जाता