Andar Khulnewali khidki book and story is written by Priyamvad in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Andar Khulnewali khidki is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अंदर खुलने वाली खिड़की - Novels
by Priyamvad
in
Hindi Moral Stories
बरिश न भी होती तो भी, वे दोनों नीले रंग की दो अलग अलग, लम्बी, पतली खिड़कियों से सर निकाल कर बाहर देखा करते। वे हमेशा, इसी तरह, बाहर देखते हुए, बाहर से देखने पर अलग अलग तरह से दिखते। बाहर से खिड़कियों को देखने पर बूढ़ा पूरा दिखता, क्योंकि वह खिड़की की चौखट पर एक पैर मोड़ कर बैठता था। बुढ़िया आधी दिखती, क्योंकि वह खिड़की की चौखट पर दोनों हथेलियाँ रख कर झुकी हुयी होती। बूढ़े का चेहरा जबड़े की हडि्डयों पर उभरा हुआ था। नाक नुकीली थी। कान लम्बे और बालों से भरे थे। आँखें स्लेटी थीं जिसके किनारों पर सफेद कीचड़ भरा रहता था।
अंदर खुलने वाली खिड़की (1) बारिश हो रही थी। दोनों बारिश देख रहे थे। बरिश न भी होती तो भी, वे दोनों नीले रंग की दो अलग अलग, लम्बी, पतली खिड़कियों से सर निकाल कर बाहर देखा करते। वे ...Read Moreइसी तरह, बाहर देखते हुए, बाहर से देखने पर अलग अलग तरह से दिखते। बाहर से खिड़कियों को देखने पर बूढ़ा पूरा दिखता, क्योंकि वह खिड़की की चौखट पर एक पैर मोड़ कर बैठता था। बुढ़िया आधी दिखती, क्योंकि वह खिड़की की चौखट पर दोनों हथेलियाँ रख कर झुकी हुयी होती। बूढ़े का चेहरा जबड़े की हडि्डयों पर उभरा हुआ
अंदर खुलने वाली खिड़की (2) इसके अलावा, बुढ़िया की कुछ आदतें विचित्र और पुरानी थीं। उसे थूकने की आदत थी। खिड़की से सर निकाले हुए वह थोड़ी थोड़ी देर में थूकती रहती थी। हालांकि थूकने से पहले वह देख ...Read Moreथी कि नीचे सड़क पर कोई खड़ा न हो, पर कई बार ऐसा होता कि उसके द
अंदर खुलने वाली खिड़की (3) बीमारियों के मौसम में अक्सर बहुत लोग एक साथ मर जाते थे। इतने अधिक, कि श्मशान घाट की जमीन पर घंटो मुर्दे अपनी अपनी अर्थियों में पड़े रहते, खासतौर से गरीब मुर्दे। एक चिता ...Read Moreछूती हुयी दूसरी चिता जलती। अक्सर एक चिता की लपटें दूसरी चिता की लपटों में मिल जाती। देर से आने वाले अक्सर गलत चिता में शामिल होकर गमगीन चेहरे से मुर्दे के अच्छे दिन, उसके मन की बात और उसके कामों के बारे में आपस में फुसफुसाते हुए बात करते। मुर्दे इतने अधिक होते कि डोम, महापात्र घाट पर घूमते