हंसता क्यों है पागल - Novels
by Prabodh Kumar Govil
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Hindi Novel Episodes
कुछ दिन पहले शाम को पार्क में अपने साथी सीनियर सिटीजंस के साथ टहल कर गप्पें लड़ाते समय पड़ौस में रहने वाले एक साथी ने बताया कि आज तो उनका सारा दिन बहुत आराम से बीत गया। उनका गीज़र ...Read Moreहो गया था। जब उसे सुधारने वाला आया तो उनकी बहू बोली - पापाजी, मैं चौंची को स्कूल से लेने जा रही हूं, आज उसके स्कूल में कोई प्रोग्राम है तो लौटने में देर लगेगी, ये गीज़र वाला आया है, आप इससे काम करवा लीजिएगा। बस, थोड़ी देर के लिए वो घर के मालिक बन गए और उनकी दोपहरी ख़ूब
कुछ दिन पहले शाम को पार्क में अपने साथी सीनियर सिटीजंस के साथ टहल कर गप्पें लड़ाते समय पड़ौस में रहने वाले एक साथी ने बताया कि आज तो उनका सारा दिन बहुत आराम से बीत गया। उनका गीज़र ...Read Moreहो गया था। जब उसे सुधारने वाला आया तो उनकी बहू बोली - पापाजी, मैं चौंची को स्कूल से लेने जा रही हूं, आज उसके स्कूल में कोई प्रोग्राम है तो लौटने में देर लगेगी, ये गीज़र वाला आया है, आप इससे काम करवा लीजिएगा। बस, थोड़ी देर के लिए वो घर के मालिक बन गए और उनकी दोपहरी ख़ूब
गीज़र का मैकेनिक जिस दुकान से आया था, वहां से अगले दिन सुबह फ़ोन आया कि जिस दुकान से आपके गीज़र का पुर्जा आना था वो आज बंद है इसलिए वो काम आज नहीं हो सकेगा। मैंने उसे सूचना ...Read Moreदेने के लिए धन्यवाद देने के साथ साथ ये भी पूछ लिया कि आज दुकान क्यों बंद है? उधर से फ़ोन करने वाले को शायद इतनी तहकीकात की आशंका नहीं थी इसलिए उसने कुछ खीज कर कहा - क्या पता जी, शायद उसके घर में कोई गमी (मौत) हो गई है। - ओह! मैंने कहा और फ़ोन रख दिया। आज
इस बार बात कुछ खुल कर हुई। मुझे भी पता चला कि लड़का बार- बार बिना किसी काम के फ़ोन क्यों कर रहा है। असल में कुछ ही दिनों बाद उसकी फ़िर एक परीक्षा यहां थी। वो परीक्षा देने ...Read Moreरहा था और मेरे पास ठहरना चाहता था। उसका कहना था कि परीक्षा के दिनों में कहीं ठहरने की जगह मिलती नहीं है, और मिले भी तो बहुत महंगी तथा असुविधाजनक। ठीक भी तो है, बेरोजगारी के आलम में एक तो बच्चे बार - बार इतना किराया भाड़ा खर्च करके परीक्षा देने जाएं, फ़िर एक दिन कहीं ठहरने में सैंकड़ों
मैं सुबह उठते ही चाय पीने के साथ साथ अख़बार देख रहा था तब मेरा ध्यान रह रह कर घड़ी पर भी जा रहा था। मैंने तय कर लिया था कि दस बजे के बाद मैं गीज़र मैकेनिक को ...Read Moreकरूंगा और यदि आज भी उसने कोई बहाना किया तो मैं ख़ुद उसकी दुकान पर चला जाऊंगा और उससे खुल कर ये बात करूंगा कि वो काम न जानने की वजह से किसी दूसरे मैकेनिक की तलाश में है या सचमुच उस पुर्जे की दुकान दो दिन से खुली नहीं है। और मैं उससे ये भी कहूंगा कि यदि वो
मैं बाहर घूम - घाम कर घर लौटा तो कुछ बेचैनी सी थी। खाना खाकर बैठने के बाद भी ऐसा लगता रहा जैसे बदन में कोई धुआं सा फ़ैल रहा है। मैं कुछ देर शीशे के सामने भी खड़ा ...Read Moreमैं कपड़े बदल लेने के बाद मन ही मन सोचने लगा कि क्या मुझे किसी डॉक्टर से मिलना चाहिए? लेकिन डॉक्टर को बताऊंगा क्या? नहीं बताया तो वो दुनिया भर के सारे टैस्ट लिख देगा। फ़िर करवाते फिरो। हर टैस्ट में सैकड़ों रुपए और उसके बाद एहतियात के लिए बेशुमार दवाएं। मुझे एकाएक ज़ोर से हंसी आ गई। ओह! ये
वैसे तो समीर का फ़ोन पिछले कई दिनों से ही आ रहा था, पर आज नई बात ये थी कि उसने पहली बार मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने का अनुरोध किया। समीर से आप समझ गए होंगे कि ...Read Moreवही छात्र जो कुछ दिन पहले मेरे पास रुक कर गया था और अब जल्दी ही फ़िर आने वाला था। एक बार मैंने सोचा कि उससे कल दिन में बात करने के लिए कहूं, क्योंकि अब काफ़ी रात हो चुकी थी। लेकिन तभी मुझे ये एहसास भी हो गया कि समय क्या हुआ है, ये तो उसे भी मालूम है...
दोपहर को मैं अचानक बैठे - बैठे समीर के उठाए हुए उस मुद्दे के बाबत सोचने लगा कि आख़िर उसे एकाएक लड़कियों की गिरफ़्तारी और रिहाई में इस तरह की दिलचस्पी क्यों पैदा हो गई? वह इस सारे मामले ...Read Moreकिस तरह जुड़ा है। ज़ाहिर है कि मीडिया की एक सामान्य न्यूज़ और एक छात्र की जनरल नॉलेज का मामला तो ये दिख नहीं रहा था। आधी रात को मुझे वीडियो कॉल लगाकर इस तरह की शंका उठाना कोई साधारण सी बात तो हो नहीं सकती थी। क्या था? क्यों था? जानने की इच्छा जागी। लेकिन अब मैं फ़ोन लगा
लगभग एक सप्ताह बाद समीर का फ़ोन आया कि वह अगले दिन आ रहा है। उसने बताया कि वह रात तक पहुंचेगा और अगली सुबह उसकी एक परीक्षा है। उसके आने पर रात को खाने खाने के बाद जब ...Read Moreबैठे तो वह अचानक स्वर को कुछ धीमा करते हुए बोला - सर, मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं... - बोलो, इसमें पूछना क्या... मैंने सोचा कि अगली सुबह उसकी परीक्षा है, वो उसी परीक्षा के सन्दर्भ में कुछ पूछेगा। प्रतियोगिता परीक्षाओं में तो अंतिम समय तक एक- एक सवाल के लिए विद्यार्थियों को जद्दोजहद करनी ही पड़ेगी, एक
उस दिन हम दोनों रात को साढ़े तीन बजे सोए। असल में जब वो आता था तो मैं यह सोचकर उसे अलग कमरे में ठहराता था कि अगले दिन उसका इम्तहान है और वो न जाने रात को कितनी ...Read Moreतक पढ़ना चाहे, फ़िर उसे कोई डिस्टर्बेंस भी न हो और वह परीक्षा की मानसिकता में ही रहे। लेकिन इस बार ख़ुद उसने कहा कि वो परीक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। उसी ने ये इच्छा जताई कि वो मेरे पास ही सोएगा, तो मुझे भला क्या ऐतराज होता। वो मुझसे बहुत सारी बातें करना चाहता था। अगले दिन उसे
सुबह जागते ही मोबाइल हाथ में उठाया तो अकस्मात ज़ोर से हंसी आ गई। अब अपने ही मोबाइल को देख कर हंसना.. भला ये कोई बात हुई? लेकिन अपना मोबाइल भी अपने नाम की ही तरह है। इसे हम ...Read Moreनहीं, बल्कि दूसरे लोग काम में लेते हैं। किसी को अपना ख़ुद का नाम लेने की ज़रूरत शायद ही कभी मुश्किल से पड़ती होगी। दूसरे लोग ही दिन भर लेते हैं हमारा नाम। ठीक इसी तरह मोबाइल भी उसी सब से भरा रहता है जो दूसरे लोग हमें भेजते हैं। जो कुछ हमने भेजा, वो तो इससे निकल कर चला