SWATANBTR SAKSENA KE VICHAR book and story is written by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. SWATANBTR SAKSENA KE VICHAR is also popular in Human Science in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
स्वतन्त्र सक्सेना के विचार - Novels
by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
in
Hindi Human Science
बराबरी का सपना
स्वतंत्र कुमार सक्सेना भारत के मध्य में बसा बुंदेलखण्ड, विध्याचल पर्वत व इसके बीच बहने वालीं नदियां इसकी शोभा हैं। कवि ने इसकी सीमा इन शब्दों में बांधी है- इत चम्बल उत नर्मदा इत जमुना उत टौंस छत्रसाल सौं लड्न की रही न काहू सौं हौंस महाराजा छत्रसाल ने मराठा पेशवा बाजीराव को अपना पुत्र मान कर अपने राज्य का एक तिहाई भाग उन्हें सौंप दिया था। अत: अट्ठारहवीं सदी व उन्नीसवीं सदी के पूर्वाध में बुंदेलखण्ड में बुंदेले राजपूत व मराठे राज कर रहे थे। कालान्तर में ये दोनों ही अंग्रेजों के
बराबरी का सपना ...Read More स्वतंत्र कुमार सक्सेना भारत के मध्य में बसा बुंदेलखण्ड, विध्याचल पर्वत व इसके बीच बहने वालीं नदियां इसकी शोभा हैं। कवि ने इसकी सीमा इन शब्दों में बांधी है- इत चम्बल उत नर्मदा इत जमुना उत टौंस छत्रसाल सौं लड्न की रही न काहू सौं हौंस महाराजा छत्रसाल ने मराठा पेशवा बाजीराव को अपना पुत्र मान कर अपने राज्य का एक तिहाई भाग उन्हें सौंप दिया था। अत: अट्ठारहवीं सदी व उन्नीसवीं सदी के पूर्वाध में बुंदेलखण्ड में बुंदेले राजपूत व मराठे राज कर रहे थे। कालान्तर में ये दोनों ही अंग्रेजों के
लेख स्वास्थ्य मानव की एक महत्त्व पूर्ण आवश्यकता है ...Read More डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना जीवन की अन्य मूल आवश्यकताएं रोटी, कपडा,मकान ,शिक्षा ,रोजगार,सम्मान ,सुरक्षा आदि हैं । मानव जीवन व पशु जीवन में मुख्य अंतर यही है कि पशु मात्र वर्तमान में ही जीवित रहते हैं व प्रकृति पर पूर्ण निर्भर रहते हैं।वे मात्र भोजन निद्रा भय मैथुन तक ही सीमित रहते हैं,जबकि मानव अपने अतीत से सबक लेकर ,वर्तमान को सुखद बनाता है,व भविष्य में प्रगति के प्रति प्रयत्न शील रहता है। वह प्रकृति पर निर्भर तो है पर प्रकृति को निरंतर अपने अनुकूल परिवर्तित करने के
समीक्षा उपन्यास एक और दमयन्ती ...Read More लेखक श्री राम गोपाल भावुक समीक्षक स्वतंत्र कुमार सक्सेना श्री राम गोपाल जी भावुक का यह आठवां प्रकाशन है।मातृ भारती प्रकाशन से उन का ‘एक और दमयंती’ उपन्यास धरावाहिक रूप से प्रकाशित हो चुका है ।उनके इसके पूर्व सात उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं ।मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के डबरा नगर के निवासी श्री भावुक जी के उपन्यासों में आंचलिक पृष्ठभूमि रहती है। वे ग्रामीण पीडाओं को स्वर देते हैं । आंचलिक रंग व स्थानीय पंच महली बोली उनकी कथाओं में बोलती सी लगती है ।उनका वर्तमान उपन्यास ‘एक और दमयन्ती
लेख वैज्ञानिक चेतना , भविष्य केा जानने की चिन्ताएं ...Read More डॉ स्वतंत्र कुमार सक्सेना भविष्य के प्रति जिज्ञासा व चिन्ता सारे मानव मात्र में है प्रत्येक व्यक्ति जानना चाहता है कि कल कैसा होगा ।आज हमारे पास बहुत सारे साधन हैं । व्यवस्थित जीवन है । परन्तु जीवन जटिल भी है तनाव युक्त है उसे व्यक्ति अपने परिवेश की विभिन्न सूचनाएं’ (जानकारियां) प्राप्त करके ऐसी ही घटनाएं पहले कब व किनके साथ हुईं उनकी जानकारी व उनसे सम्पर्क करके स्वयं विचार करके, जांच परख, विश्लेषण व तर्क करके उनको हल करने करने का प्रयास करता है। एक बार असफल होने
साहित्य की जनवादी धारा ...Read More डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना साहित्य के पाठक एवं रचनाकार सुधी जन सबके मन में यह प्रश्न उठता है । साहित्य में जनवादी कौन सा तत्त्व है? साहित्य की कई धाराएं हैं। कुछ साहित्य को स्वांत: सुखाय मानते हैं । कुछ के लिये साहित्य आंतरिक भावों की अभिव्यक्ति है । साहित्य में जनवाद नई विधा नहीं है ,यह पुरातन है । हमारा समाज आदिम कबीलाई युग के बाद से ,दास प्रथात्मक समाज ,सांमत वादी समाज ,व वर्तमान पूंजीवाद युग का समाज वर्गों में बंटा समाज है ।इसमें कुछ शोषक- शासक वर्ग के लोग हैं जैसे