दो आशिक़ अन्जाने - Novels
by Satyadeep Trivedi
in
Hindi Fiction Stories
रात के ढाई बज रहे हैं। पूरनमासी का चाँद सूरज को न्यौता देकर छिपने की तैयारी में है। ट्रक का स्पीडोमीटर अस्सी से सौ के बीच डोल रहा है। हवा में सिहरन है जिसकी अनुभूति से ट्रक का खलासी, ...Read Moreसीट पर बैठा ऊँघ रहा है। ट्रक के ड्राइवर ने बड़ी मुस्तैदी से स्टियरिंग सँभाल रखी है, और एकसमान रफ़्तार से ट्रक भगाये जा रहा है। बैकग्राउंड में धीमी आवाज़ में नाईन्टीज़ का कोई गीत सुनाई पड़ता है। ड्राइवर ताल से ताल मिला रहा है। नींद भगाने के लिए उसने मुँह में सवा किलो पान मसाला भर लिया है, जिसे
रात के ढाई बज रहे हैं। पूरनमासी का चाँद सूरज को न्यौता देकर छिपने की तैयारी में है। ट्रक का स्पीडोमीटर अस्सी से सौ के बीच डोल रहा है। हवा में सिहरन है जिसकी अनुभूति से ट्रक का खलासी, ...Read Moreसीट पर बैठा ऊँघ रहा है। ट्रक के ड्राइवर ने बड़ी मुस्तैदी से स्टियरिंग सँभाल रखी है, और एकसमान रफ़्तार से ट्रक भगाये जा रहा है। बैकग्राउंड में धीमी आवाज़ में नाईन्टीज़ का कोई गीत सुनाई पड़ता है। ड्राइवर ताल से ताल मिला रहा है। नींद भगाने के लिए उसने मुँह में सवा किलो पान मसाला भर लिया है, जिसे
नियम कहता है कि हर किसी को अपनी गलती सुधारने का एक मौका मिलना चाहिए। हालांकि प्रकृति की श्रेष्ठतम संतान होने के नाते, प्रकृति ने मनुष्य को सुधरने के कई मौके दिये हैं। लेकिन गाय ममतावश अपने बछड़े को ...Read Moreइतना चाट देती है कि बछड़े को घाव हो जाता है। मानव के साथ भी प्रकृति ने यही किया। कुदरत नज़रंदाज़ करती रही और इंसान अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करता रहा।यह कहना गलत न होगा कि मनुष्य को जब-जब अपनी शक्तियों का घमंड हुआ है, प्रकृति ने उसकी ग़लतफ़हमी दूर कर दी है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। अपने
आय प्रमाण पत्र और राशन कार्डों को अगर आधार मानें, तो यूपी-बिहार के 60% लोग; भूखों मर जाने की हद तक ग़रीब हैं। इन दोनों राज्यों की एक बड़ी आबादी अपनी रोजी-रोटी की तलाश में मेट्रो शहरों का रुख ...Read Moreहै, जहाँ इन्हें प्रवासी मजदूर कहा जाता है। कोरोना वायरस के चलते जब लॉकडाउन हुआ तो ये लोग बाहरी राज्यों में ही फँस गए। जैसे-तैसे हफ़्ते-दस दिन तो कटे लेकिन जब लॉकडाउन की मियाद बढ़ने लगी तो इन मज़दूरों को अपने घरों की याद सताने लगी। राशन की व्यवस्था तो सरकारों ने कर दी थी, बहुतेरे समाजसेवी भी आगे आकर
अप्रैल का महीना। गेहूँ की फ़सल कटने लगी है। सड़क के दोनों ओर दूर तक फ़ैले खेतों में गेहूँ के डंठल चमक रहे हैं। दोनों किनारों पर बरगद,पीपल,कदम्ब और युकलिप्टस (आम बोलचाल में जिसे लिपिस्टिक कहते हैं) के पेड़ों ...Read Moreभरमार है, जिनके झुरमुट से चैत्र मास का गोल-मटोल चाँद; ट्रक के पीछे-पीछे दौड़ता चला आ रहा है। ट्रक इंडिया से भारत की तरफ़ अग्रसर है। नदी-नाले, गाँव-कस्बों, खेत-खलिहानों, विविध धर्मस्थलों और घर-मकानों को पछाड़ते हुए ट्रक बड़ी तेजी से बिहार की तरफ़ बढ़ता जा रहा है। बिहार की सीमा बंद होने के कारण सुबह यूपी बॉर्डर पर इन्हें उतार
भारतीय पुरुषों की एक ख़ास बात है कि सौंदर्य-दर्शन होते ही, इन्हें शक्ति प्रदर्शन करने की सनक चढ़ जाती है। कोई सुंदरी सामने दिखी नहीं कि बदन की बेचैनी बढ़ने लगती है। अर्जुन जहाँ बैठा था वहाँ अच्छा था। ...Read Moreहै, पुट्ठे में तकलीफ़ थी तो थोड़ी सह लेता। अब जो यहाँ आकर खड़े हैं तो क्या मज़ा आ रहा है। अभी चार-पाँच घंटों का सफ़र है, ऐसे खड़े-खड़े कहाँ तक जाएंगे। लेकिन भईया ये लड़की का चक्कर जो ना कराये। देखें क्या होता है अभी आगे-आगे। अर्जुन ने यहीं से खड़े-खड़े मीनाक्षी को देखा, फिर सिर को थोड़ा ऊपर की
मीनाक्षी अब से पहले किसी हमउम्र लड़के के इतने नज़दीक नहीं आयी थी। ये सब जो भी हो रहा है,ये सब उसके लिए बिल्कुल नया है। लेकिन न जाने क्यों, इस नयेपन में उसे एक विचित्र सुख की अनुभूति ...Read Moreरही है। अर्जुन की दिलेरी-उसकी सूझबूझ ने उसे बहुत प्रभावित किया है। उसे मालूम नहीं है कि आगे क्या होगा-और वो जानना भी नहीं चाहती। वो तो बस इस जलधार में बहती चली जाना चाहती है।अभी कुछ घंटों पहले तक तो ये दोनों एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे। जानते तो ख़ैर अब भी नहीं हैं, अब तक दोनों के
अर्जुन का बुरा हाल है। 21 डिग्री सेल्सियस में उसके पसीने छूट रहे हैं। उसका जो दिल अभी तक आटा-चक्की की स्पीड पर धड़क रहा था, अब जेट इंजन बना हुआ है। कान गर्म हो गए हैं, शरीर काँप ...Read Moreहै, बेतरह ऐंठ रहा है और उसकी जान, निकल जाने पर आमादा है। लेकिन इन सब के बाद भी, अपनी मजदुराना- खुरदुरी हथेली से वो मीनाक्षी के देह से निकलती तपिश को महसूस करने लग गया। सूती सलवार की फ़िसलन के नीचे उसे मांसल जांघ का आभास हुआ। दोनों एक-दूसरे के इतने करीब आ चुके हैं, मगर नज़रें मिला सकने
अर्जुन रात भर का सोया नहीं है। अलसायी आँखों से आसपास का मुआयना कर रहा है। कोई छोटा-मोटा क़स्बा है शायद। चिड़ियाँ चहचहाकर नए दिन की सूचना दे रही हैं। रात की कालिमा छँट चुकी है, और आकाश की ...Read Moreमिनट दर मिनट बढ़ती जा रही है। लॉकडाउन की वजह से सड़क पर वाहनों की आवाजाही कम है। कोई सज्जन सफ़ेद कुर्ता पहने, मास्क लगाये हुए मद्धम गति से अपनी राजदूत का रौब झाड़ते चल रहे हैं। सिर के आधे बाल उड़ चुके हैं, जो बचे हैं वो हवा में उड़े जा रहे हैं। हर एकाध किलोमीटर पे सड़क के
मुग़लकालीन एक छोटी सी गुमटी के बाहरी हिस्से में, लकड़ी का एक गोल कुंदा रखा है जिसपर जगह-जगह कटने के अनगिनत निशान बन गए हैं। ये निशान देखकर हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस रणबाँकुरे ने अपनी ...Read Moreदेह पर चाकू के कितने वार सहे होंगे! गुमटी पर टिन का एक बोर्ड टांगकर उसपर यह लिख दिया गया है-’यहाँ चिकन का मीट मिलता है।’ इस अबूझ वाक्य को हालाँकि यह कथा लिखे जाने तक डिकोड नहीं किया जा सका है। गुमटी का काठ और टिन का लोहा; दोनों समकालीन हैं, और दोनों ही बड़ी बेबसी से सेवानिवृत्ति की
खाली बैठा इंसान समय काटने के मक़सद से जो भी काम करता है, उन सभी कामों को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। कान की खूँट निकालना, नाखूनों से मैल निकालना, बालों की लट बनाना या फ़िर ...Read Moreहवा में हाथ हिलाना (किसी ख़ास मक़सद से हाथ हिलाना, कल्पनाशीलता का चरम बिंदु है;) आदि कामों को हम पहली श्रेणी में रखते हैं जबकि, भविष्य की योजनाएं बनाना, व्यापार के लाभालाभ पर मनन करना, निवेश का विचार करने इत्यादि को हम दूसरी श्रेणी में रख सकते हैं। इसके अलावा एक तीसरा काम भी है, जिसे हालांकि अधिकतर लोग करते