चलो, कहीं सैर हो जाए... - Novels
by राज कुमार कांदु
in
Hindi Travel stories
रोज एक ही माहौल में रहते हुए कभी-कभी जिंदगी बोझिल सी होने लगती है । ऐसे में अंतर्मन पुकार उठता है……चलो कहीं सैर हो जाये
घूमने फिरने के कई फायदे भी हैं ।नया माहौल, नए लोग, नयी जानकारियां हासिल होती हैं । सैर-सपाटे के साथ ही थोड़ा धरम करम भी हो जाये वैसे ही जैसे आम के आम गुठली के दाम, सो हम कुछ दोस्तों ने मिलकर जम्मू स्थित माता रानी के दर्शन की योजना बना ली सारी योजना बनाकर हमने मुंबई से जम्मू और जम्मू से मुंबई वापसी का स्वराज एक्सप्रेस में आरक्षण करा लिया। स्वराज एक्सप्रेस का एक ठहराव बोरीवली में भी है, जो कि हमारे शहर नालासोपारा से करीब है, सो यात्रा के दिन हम लोग सुबह करीब 7 बजे ही घर से निकल पड़े। 8 बजे से पहले ही हम बोरीवली पहुँच चुके थे । ट्रेन आने में लगभग आधे घंटे का समय अभी बाकी था।
रोज एक ही माहौल में रहते हुए कभी-कभी जिंदगी बोझिल सी होने लगती है । ऐसे में अंतर्मन पुकार उठता है……चलो कहीं सैर हो जायेघूमने फिरने के कई फायदे भी हैं ।नया माहौल, नए लोग, नयी जानकारियां हासिल होती ...Read More। सैर-सपाटे के साथ ही थोड़ा धरम करम भी हो जाये वैसे ही जैसे आम के आम गुठली के दाम, सो हम कुछ दोस्तों ने मिलकर जम्मू स्थित माता रानी के दर्शन की योजना बना ली सारी योजना बनाकर हमने मुंबई से जम्मू और जम्मू से मुंबई वापसी का स्वराज एक्सप्रेस में आरक्षण करा लिया। स्वराज एक्सप्रेस का एक ठहराव
स्टेशन से बाहर निकलते ही बायीं तरफ अमानत घर दिखाई दिया । वैसे तो हम लोग घर से ही काफी कम सामान लेकर आये थे फिर भी आगे पहाड़ी चढ़ने में दिक्कत न हो इसलिए अतिरिक्त सामान को यहीं ...Read Moreघर में ही जमा करने का निर्णय लिया गया ।अमानत घर में सामान जमा कराने के लिए पहचान पत्र की फोटो कॉपी और लगेज बैग में ताला लगा होना अति आवश्यक है । खुशकिस्मती से मेरे पास पहचान पत्र की एक फोटोकॉपी थी । खुशकिस्मती इसलिए क्योंकि जम्मू स्टेशन के नजदीक फोटोकॉपी की कोई दुकान नहीं है ।सभी लोगों ने
शाम का धुंधलका घिरने लगा था । रास्ते के दोनों किनारे करीने से सजी दुकानें रोशनी से नहा उठी थीं । हम लोग एक किनारे से धीरे धीरे चलते हुए भवन की ओर अग्रसर थे ।भीडभाड तो थी ...Read Moreबीच बीच में घोड़ों की आवाजाही से भीड़ में अफरातफरी मच जाती । यात्रियों के शोरगुल के बीच में उत्साही यात्रियों द्वारा लगाया गया माता का जयकारा भी कभी कभी गूंज उठता । हम थोड़ी ही दूर लगभग एक किलोमीटर ही चले होंगे की हमें माताजी का चरण पादुका मंदिर दिखाई पड़ा ।मंदिर के बाहर ही मातारानी के प्रथम दर्शन का
___गर्भजून के दर्शन हेतु जिस खिड़की से हमने अपना ग्रुप नंबर प्राप्त किया था उसी खिड़की से बायीं तरफ एक सुरंग नुमा मार्ग दिखाई दिया जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था “भवन की और जाने का मार्ग ...Read More”इसी सुरंगनुमा मार्ग से होकर हम आगे बढे । सुरंग में एक तरफ गर्भजुन के दर्शन हेतु इंतजार करते लोग कम्बल बिछाकर बेतरतीब इधर उधर पड़े थे । सुरंग छोटी ही थी । सुरंग से बाहर चौड़ा रास्ता और उसके ऊपर बने टिन के शेड दृष्टिगोचर हो रहे थे ।आगे बड़ा ही सुन्दर नजारा दिखाई पड़ रहा था । दूर जहाँ
यहाँ रास्ता थोडा संकरा हो गया था लिहाजा भीडभाड थोड़ी ज्यादा लग रही थी । सुबह के पांच बजनेवाले थे । पौ फटने का समय अब करीब ही था । लगभग सौ मीटर आगे बढ़ने पर दुकानों की पूरी ...Read Moreदिखाई पड़ी । दायीं तरफ दुकानों के सामने ही बेतरतीब खड़े लोगों की एक कतार थी । पूछने पर पता चला माताजी के दर्शन के लिए कतार लगी है ।बायीं तरफ चेक पोस्ट था जहां सुरक्षा जांच के बाद हम लोग आगे बढे । जरूरी निर्देश बार बार उदघोषक द्वारा प्रसारित किये जा रहे थे । प्रसाधन और अमानत घर
माताजी का दर्शन कर उनकी नयनरम्य छवि को अपनी आँखों में बसाये हम लोग गुफा से बाहर आये । गुफा के प्रवेश मार्ग के दायीं तरफ से ही निकास का मार्ग बना हुआ था । यात्रियों की कतार निकलने ...Read Moreलिए भी उतनी ही उतावली थी । कुछ उत्साही यात्रियों को आगे जाने का मार्ग देकर हम लोग भी कतार में ही सीढियों से निचे उतरे ।लगभग 30 सीढियाँ उतरने के बाद कुछ कदम ही आगे बढे होंगे की बायीं तरफ कुछ पुजारी कतार में चल रहे यात्रियों को प्रसाद और माताजी की तस्वीरयुक्त सिक्के वितरित कर रहे थे ।
दूसरे दिन तय कार्यक्रम के मुताबिक पंडित श्रीधर के घर लोग जमा होने लगे । जैसे जैसे लोगों की भीड़ बढ़ रही थी पंडितजी की बेचैनी भी बढ़ रही थी । लोग भी हैरानी से इधर उधर देख रहे ...Read More। ऐसा लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ रहे हों ।वह छोटीसी कन्या सभी को इशारों में बैठे रहने को कह रही थी । सभी ग्रामवासी उस छोटी सी कन्या के तेज से प्रभावित ख़ामोशी से बैठे रहे । जब गाँव के अधिकांश लोग आ चुके तब कन्या ने पंडित श्रीधर को इशारे से अपने पास बुलाया और उनसे माताजी
माताजी के दिव्य स्वरुप को देख भैरव बाबा एक क्षण को तो हत्प्रभ रह गए लेकिन वो तो मन ही मन कुछ और ही निश्चय कर चुके थे सो प्रकट में अट्ठाहस करते हुए माताजी की ओर बढे ।अब ...Read Moreमायावी शक्ति और माताजी के दिव्य अस्त्रों के बीच जम कर मुकाबला होने लगा । माताजी के अधरों पर सौम्य मधुर मुस्कराहट तैर रही थी । माताजी धीरे धीरे पीछे हटते हुए अब भवन के करीब आ चुकी थीं । भैरव बाबा भी पीछे पीछे भवन तक आ धमके थे । भैरव बाबा जैसे ही भवन के नजदीक आये माताजी
ढलान से उतरना काफी आसान व सुखद लग रहा था । दायीं तरफ यात्रियों की सुरक्षा के लिए मजबूत तारों की जाली का दिवार सा बना दिया गया था । बायीं तरफ जहाँ भी पत्थर खिसकने की संभावना थी ...Read Moreसुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक इंतजाम किये गए थे ।संकरा रास्ता भी पर्याप्त महसूस हो रहा था । कभी कभी घोड़ों के आने से ही दिक्कत हो रही थी । दायीं तरफ गहरी खाई और खाई में नीचे तक कई किस्म के बडे बड़े पेड़ नजर आ रहे थे । कभी कभार हेलीकाप्टर का शोर वातावरण में हलचल मचा जाता
हम लोग सोने तो चले गए थे लेकिन बीच बीच में उठकर बाहर दालान में आकर चल रहे मौजूदा नंबर का जायजा लेते रहते । नंबर काफी धीमी गति से सरक रहा था । चिंता इसलिए भी ज्यादा थी ...Read Moreहमें बताया गया था की अगर किसीभी वजह से आप अपने नंबर पर दर्शन नहीं कर पाए तो आपको दुबारा मौका नया नंबर लेने पर ही मिलेगा ।सुबह के चार बज रहे थे और सूचनापट पर 425 नंबर प्रदर्शित हो रहा था । अचानक नंबर बड़ी तेजी से बढ़ा था । इसकी यह वजह रही होगी कि बहुत से यात्रियों
सुबह के लगभग सात से कुछ अधिक का ही वक्त हो चला था । आज के लिए हमारे पास कोई अग्रिम योजना नहीं थी सो हमें कोई जल्दी नहीं थी । बड़े आराम से धीरे धीरे चलते हुए हम ...Read Moreनिचे उतर रहे थे ।धुप पूरी तरह से निखर चुकी थी । अभी भी हम लोग काफी उंचाई पर थे । कई जगह निचे के दृश्य देखने के लिए व्यू पॉइंट बनाये गए हैं । इन जगहों से निचे घाटी की अनुपम छटा सूर्य की रोशनी में और निखर उठा था । बड़ा ही मनमोहक अवर्णनीय दृश्य था । दूर
एक साल बाद पूर्व की तरह ही कटरा स्थित मातारानी वैष्णो देवी के दर्शन करने के पश्चात कटरा बस अड्डे के पास हमने नौ कन्याओं को भोजन कराने का अपना दायित्व पूर्ण किया। रात होटल के कमरे में जाने ...Read Moreपूर्व मित्रों ने आसपास कुछ और दर्शनीय स्थलों को देखने की बात पर विचार विमर्श किया और काफी मंथन के बाद हम सभी ने एकमत से यह तय किया कि क्यों न इसके लिए यहीं किसी स्थानीय निवासी से इसके बारे में जानकारी हासिल की जाए।कई टूर एंड ट्रावेल्स वालों से मिलते और समझते हुए हम लोग चौक से थोड़ी
सीढियाँ उतरते हुए बाएं किनारे पड़ने वाले मंदिरों में शीश नवाते हाथ जोड़ते हम लोग आगे बढ़ रहे थे।अब सीढियाँ ख़त्म होनेवाली थीं और आगे मंदिर जैसा कुछ लग नहीं रहा था। इसके विपरीत दायीं तरफ पानी का एक ...Read Moreसा बना दिख रहा था और सामने सूखी हुई एक छोटी सी नदी थी जिसमें कहीं कहीं जलधारा बहती दिख रही थी।थोडा और आगे बढ़ने पर सीढियाँ समाप्त हो गयीं। वहीँ यात्रियों को बायीं तरफ जाने का निर्देश देनेवाला सूचनापट लगा हुआ था।सीढियाँ उतरकर पानी में से होते हुए हम लोग लगभग पचास फीट ही आगे बढे होंगे कि एक
थोड़ी देर तक हम लोग नदी के किनारे किनारे चलते रहे। वह एक पहाड़ी नदी थी जिसमें पत्थर और छिटपुट झाड़ियों के अलावा कहीं कहीं ठहरा हुआ पानी तो कहीं से पानी की पतली धारा अपनी राह बनाकर आगे ...Read Moreहुई नजर आ रही थी। रास्ते के शुरुआत से ही हलकी चढ़ाई का अहसास हो रहा था।कुछ आगे बढ़ने पर हम नदी को लगभग भूल ही गए और अपने सामने बिखरे हुए कुदरत के अनुपम सौन्दर्य में खो से गए। भरी दोपहरी और तेज धूप के बावजूद यह आश्चर्यजनक ही था कि हमें नाम मात्र का भी पसीना नहीं हो
उस असुर की ख़ामोशी देखकर भोले बाबा अंतर्ध्यान होना ही चाहते थे कि वह कुटिल मुस्कान लिए हुए बोल पड़ा, "हे देवाधिदेव महादेव ! ठीक है। मैं आपको सृष्टि के नियमों को तोड़ने के लिए विवश नहीं करूँगा। मैं ...Read Moreअमरता का वरदान नहीं माँगूँगा लेकिन फिर भी यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे यह वरदान दीजिये कि मैं जिसके ऊपर भी अपना हाथ रख दूँ वह भस्म हो जाये।"कुटिल असुर की चालाकी या तो भोले बाबा समझ नहीं सके या फिर वर देने की उनकी विवशता रही हो, जो भी हो, भगवान ने उसे वर