Mohall-E-Guftgu book and story is written by Deepak Bundela AryMoulik in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mohall-E-Guftgu is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - Novels
by Deepak Bundela AryMoulik
in
Hindi Fiction Stories
जी हां ये बात सौ फीसदी बिलकुल सही हैं..एक मोहल्ला ही हैं जहां ज़माने भर की चर्चाए तों होती हैं लेकिन वो कभी खबरों में शामिल नहीं हो पाती हैं.. क्योंकि जो भी खबर कनाफूसी से शुरू होकर फैलती तों हैं लेकिन मोहल्लो की गली कुचों में ही दव कर रह जाती हैं कभी कभार कुछ खबरें ऐसी भी होती हैं खबर भी बन जाती हैं.. अगर देखा जाए तों ये मुहल्लों की बैठकों में होने वाली चर्चाएं खाली पेट में गैस की तरह गुड गुड कर के रह जाती हैं क्योंकि इंसानी जरूरत की खबरों पर कौन ध्यान देता हैं.. लेकिन फिर भी घर, दुनियां और राजनीति के सारे तंत्र और प्रपंच इन्ही मोहल्लो से पनप कर यही मुरझा जाते हैं लेकिन कई खबरें ऐसी होती हैं जो खनकते भी हैं... खनक का अर्थ मुहल्लों की गुफ़्तगू में थोड़ा अलग मतलब हैं..क्योंकि ज्यादातर
आज कल ऐसी ही खबरों को सुनने और सुनाने में लोगों को बेहद रस आता हैं..
सच कहूं अगर ये मोहल्लें ना होते तों ये ज़माने की दास्ताने ना होती और इंसानी मिज़ाज के हालचाल भी न पता होते और ये देश और समाज की खबरें भी ना पता होते..
1. मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू *मिरे मोहल्ले की जो भी खबर उड़ती है ना वो अखबार में छपती हैं ना वो टीवी पर दिखती हैं* जी हां ये बात सौ फीसदी बिलकुल सही हैं..एक मोहल्ला ही हैं जहां ज़माने भर की चर्चाए ...Read Moreहोती हैं लेकिन वो कभी खबरों में शामिल नहीं हो पाती हैं.. क्योंकि जो भी खबर कनाफूसी से शुरू होकर फैलती तों हैं लेकिन मोहल्लो की गली कुचों में ही दव कर रह जाती हैं कभी कभार कुछ खबरें ऐसी भी होती हैं खबर भी बन जाती हैं.. अगर देखा जाए तों ये मुहल्लों की बैठकों में होने वाली चर्चाएं
पार्ट - 2. मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूचच्चा की बातों में दम था...आखिर आज की ज़नरेसान क्या चाहती हैं मैं यही गुनताड़े की उधेड़ बुन में घर आ गया था.. लेकिन मन में चच्चा की तस्वीर और उनकी सोच मुझे बार बार ...Read Moreरही थी..मेरे दिमाग में बार बार वो तस्वीरें भी दिख रही थी जिन्हे सही में मैंने भी देखा हैं..मैं हर वर्ग के मोहल्ले में किराएदार रहा हूं जहां मैंने एक बात तो नोटिस की हैं के हर मोहल्ले की गली में कोई ना कोई ऐसा होता हैं जहां निराधार इश्क़ आज भी पनापता हैं.. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौड़ते हुए ज़माने
3- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (3)आज पूरे तीन माहीने हो चुके थे कॉलोनी की गतिविधियों की लिखित जानकारी देने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई थी.... मतलब साफ था इज्जत दारों को कॉलोनी के इस माहौल से कुछ लेना देना नहीं ...Read Moreएरोबिक का तमाशा वखूबी वरकरार था... आज फिर कोई घटनाक्रम हुआ था जानकारी हांसिल की तो बेहद चौकाने वाली बात सामने आई थी..धटना की मज़लूमियत पढ़ कर दिल बैठ सा गया था..अख़बार को मैंने एक तरफ तह कर के रख दिया था..और फिर से मेरा मन मजलूमियत के दृश्यों में डूबने लगा था... जो खबर अखबार में छपी थी उसके
4- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-5)रोड पर आ गया का मतलब...? मैं सारा कुछ विस्तार से जानना चाहता हूं.. तभी मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं.मदद वदद छोड़िए सर.. आज के ज़माने में कोई किसी बिना स्वर्थ के मदद नहीं ...Read Moreआपको विश्वास दिलाता हूं के आपकी इस ज़िन्दगी की कहानी को कहीं भी इस्तेमाल नहीं करूंगा.. ये मेरा आप से वादा हैं.हम थोड़ी देर चुप रहें मैं उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा था..मेरी टकटकी भरी निगाहें उसके चेहरे पर टिकी हुई थी और मेरे कान के एरियाल उसकी और से आनेवाली आवाज़ की तरंगों को कैच करने के लिए मुस्तेद
6.मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-6)मैंने बिना मां बाबा को बताए नमिता के भाई के बच्चें के एडमिशन के लिए दो लाख रूपये दें दिए थे..नमिता इस बात से वेहद खुश थी पर ये सब मिझे ठीक नहीं लग रहा था क्या मैंने ...Read Moreकिया था या सही क्योंकि नमिता के घर वालों का हमारी ज़िन्दगी में कुछ ज़रूरत से ज्यादा ही होने लगा था जिसके चलते नमिता मेरे हर काम पर नज़र रखने लगी थी.. इन्ही सब के चलते मैं अपने नए प्रोजेक्ट के लिए अभी तक कोई नया कॉन्सेप्ट भी डिसाइड भी नहीं कर पाया था.. क्योंकि महीने में नमिता के तीन