Mohall-E-Guftgu - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 10

10- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू


और अविनाश मुस्कुराते हुए कहता है...

आपने मुझे सही पहचाना नूर भाई मेरा यकीन मानिये मैं ही अविनाश हूं आपने मुझे सही पहचान रहें है इसमें छुपने जैसा अब मेरे पास कुछ भी नहीं है...मैं झूठ बोलता नहीं हूं अगर झूठ का सहारा मैंने लिया होता तो आज मैं भी इतना परेशान नहीं होता मैं सच पर रहा जिसका सिला मुझे मिला लेकिन इस बात का मुझे कोई मलाल नहीं है..लेकिन मैंने कभी भी झूठ फरेव का सहारा नहीं लिया है..

अब मुझे विश्वास हो चुका था के निर्मल एक खुद्दार इंसान है..

तभी किसी ने आ कर कहा था..

हम से अच्छा अवि भाई को कोई नहीं पेचानता है को अवि...

अवि ने पलट कर पीछे की तरफ देखा... और दौगने उत्साह से कुर्सी से उठते हुए बोले

अरे कौसर मिया तुम...?

हां अवि भाई मैं...!

और दोनों एक दूसरे से लिपट जाते है और हम सभी सिर्फ देखते भर रह जाते है.

अवि तुम से मिलने की इक्छा तो बहुत हुई लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं चल पा रहा था. बाद में तुम्हारे बारे में जो पता चला उसे जान कर बेहद अफ़सोस हुआ अवि..

लेकिन तुम यहां कैसे...?

अवि भाई मोहल्ला छोड़ दिया तो इसका मतलब ये थोड़ी हैं के हम यहां आना ही छोड़ दें पूछो नूर भाई से

बिलकुल भाई जान कौसर भाई तो हमेशा से आज के दिन ही आते हैं...

तभी मेरे दिमाग़ में आया और नूर भाई, कौसर को घर चलने के लिए आग्रह किया लेकिन कौसर भाई अपनी अत्यधिक व्यस्तता को बताते हुए अगले हफ्ते आने का कह कर बिदा हो लिए.. हम और अविनाश जी भी अपने घर आ चुके थे..

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काफ़ी दिनों बाद मैं आज शाम को बरामदे में आकर बैठा था अवमूमन रोज की तरह आज की शाम में रौनक थी.. मैं आते जाते लोगों को निहार रहा था..तभी मेरी नजर मैडम अंगूरी पर पड़ी जो अपने नए हसबेंड के साथ इवनिंग वाक पर थी उसे देख मान में कई प्रश्न उथल पुथल होने लगे थे के आखिर ये औरत और आदमी आखिर हैं क्या...?

किस नजरिये से औरत को देखे हैं आदमी...!
के हर औरत की नजर में शरीफ हो आदमी...!!


औरत और आदमी

जहां सात जन्मो की कसमें अग्नि को साक्षी मान कर दोनों खाते हैं और उन कसमों को कितनी जल्दी भुला दी जाती हैं इसका जीता जगता प्रमाण आजकल कुछ ज्यादा ही अखबारों और टीवी की स्क्रीन पर देखने को मिल रहा हैं..
औरत से आदमी और आदमी से औरत के इश्क़ के कई किस्से हमने पढ़े और देखे भी हैं.. लेकिन आज इस बदलते दौर में इश्क़ की परिभाषा को बदलने का सिल सिला दोनों ही इंसानी जात में पनपता हुआ देख कर मन व्यथित हो रहा हैं...क्या यही मानव जाती के पतन का प्रारम्भ हैं...जब पुरुष से पुरुष का विवाह होने लगे और औरत को औरत से इश्क़ होने लगे तो आश्चर्य होना लाज़मी हैं...

किस नज़रिये से इक दूजे को देखे औरत-ए-आदमी...!
हर नज़रिये से दोनों को शरीफ लगे औरत-ए-आदमी...!!

बात आज की औरत से करू तो कभी कभी सोचता हूं के औरत आखिर हैं क्या...? जिसको समझने के लिए मैंने कुछ पौराणिक ग्रन्थ और वेदों को खंगला और उसके प्रति सोच की दौड़ वही आकर ठहर जाती हैं के जिस जिस्म से आदमी पैदा होता हैं उसी जिस्म को प्रेमिका और पत्नी के रिश्ते में भोगता भी हैं..

कही इवादत हैं, कही इश्क़ हैं तो कही ममता की मूरत हैं औरत...!

कही शोहरत हैं, कही शक्ति हैं तो कही आवला-ए-जिस्म हैं औरत...!!

और भाई किस सोच में डूबे हो...?

नूर भाई की आवाज़ कानो में गूंजी थी तो मेरी नज़रे उन पर पढ़ी..

अरे नूर भाई आप...?

हां क्यों क्या हम आ नहीं सकते क्या भाईजान..?

अरे आप कैसी बात कर रहें हैं.. आपका घर हैं.. आज इतने दिनों में पहली बार आप आये हैं तो आश्चर्य तो होगा ही.. आइये.. अंदर आ जाईये..

अंदर आते हुए

अभी थोड़ा जल्दी में हूं.. भाईजान..!

अब ये सब नहीं चलेगा एक तो इतने दिनों बाद आये हो वो भी जल्दी का समय लेकर..

अरे वो क्या हैं के खुदा के रेहमो करम से बेटी का निकाह तै हो गया हैं..

अरे वाह भाईजान मुबारक हो ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई आपने.. आइये बैठिये..

और वो मेरी पास वाली कुर्सी पर आकर बैठ गए थे..उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से शादी का इनविटेशन निकल कर मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा..

इसी 28 तारीख को विथ फैमिली आना हैं आपको..

मैंने उनसे अपने हांथो में इनविटेशन कार्ड लिया और पूछा

बेटी की शादी कहां हुई हैं... लड़का क्या करता हैं..?

अरे भाई जान खुदा के रेहमों करम से और आप लोगों की दुआ से और लड़का जूनागढ़ में सेलून का मालिक हैं घर परिवार एकदम नेक और शरीफ हैं.. परिवार भी ज्यादा बड़ा नहीं हैं बस दो भाई हैं और मां बाप हैं..

ये तो बहुत ही बढ़िया रहा भाई जान, भाईजान आपकी तो तीन बेटियां हैं ना..

हां भाईजान खुदा के रहमो करम से पांच बच्चे हैं मेरे एक बेटी का निकाह दो साल पहले ही कर दिया था अब ये दूसरे नंबर की हैं..

और आपके बेटे कभी दिखाई नहीं दिए भाई जान..?

बेटियां बड़ी हैं उन दोनों से इरफ़ान बड़ा हैं अभी बारहवीं में हैं और इम्तियाज़ सबसे छोटा हैं जो दसवीं में हैं वो सिर्फ स्कूल मदरसा और घर पर ही रहते हैं इधर उधर मुंह मरने की इजाजद जो मैंने उन्हें नहीं दें रखी हैं..

वाकई में भाईजान आप ने तो कमाल कर दिया..

अरे भाई जान आजकल माहौल तो आप देख ही रहें हैं इसीलिए कल को पढ़ लिख कर मुझसे अच्छा काम करने लगेंगे तो ज़िन्दगी ज़न्नत हो जायेगी उनकी भी और हमारी भी.. वरना आजकल दाग़ तो बैठे बैठे ही लग जाया करते हैं..
खैर भाईजान आपके बच्चे बगैरह दिखाई नहीं दें रहें हैं..?

हां वो.... आप बैठिये मैं आपके लिए पानी लेकर आता हूं.

अरे पानी वानी रहने दीजिये भाईजान आप खामोखा तकलीफ मत करिए..

अरे इसमें तकलीफ की क्या बात हैं..

अरे आप बैठिये.. और आजकल भाईसहाब की क्या खबर हैं..

अविनाश भाईसहाब बिलकुल उम्दा हैं.. बहुत जल्द वो अब अपने पुराने काम की शुरुआत करने वाले हैं.

मैंने भी एक दिन उन्हें फोन लगाया था तो यही कह रहें थे चलो अच्छा हैं अल्ला करें उन्हें वरकत दें.. लेकिन आपने उनकी बहुत मदद की भाईजान.

अरे भाईजान आप भी.. यही तो इंसान का फ़र्ज़ हैं..

बिलकुल सही कहा आपने... वो तो मेरे लिए खुदा के फरिस्ते से कम नहीं हैं

हां हां उस दिन आप बता तो रहें थे लेकिन उस दिन मैंने ही मना कर दिया था..

अरे भाईजान अविनाश भाईसहाब ही की बदौलत तो आज हम यहां सुकून से हैं..

मतलब..?

आपको खुदा का वास्ता आप किसी से कहियेगा नहीं..

आप मुझ पर इतवार रखियेगा जान चली जायेगी लेकिन ये जुबां नहीं खुलेगी.

नूर भाई ने गेहरी सांस छोड़ी थी और वो अतीत की हक़ीक़त में गोते लगाने लगे थे

बाबरी का दंगा..शहर जल रहा था.. अल्ला हो अकबर और जय श्री राम के नारों के साथ दोनों धर्म के सिर पर खून सवार था.. हम वैसे तो अलीगढ के रहने वाले हैं भाईजान वो ख़ौफ़ की रात आज भी मेरे ज़ेहन में ज़िंदा हैं.. मैं अपने घर के नीचे अपनी बेगम और दोनों बच्चियों के साथ था अम्मी और अब्बा ऊपर वाली मंज़िल के कमरे में थे हम वहां भी मिलेजुले धर्म की कॉलोनी में वर्षो से रहते आ रहें थे वो हमारा पुस्तेनी मकान था.. उस रात दंगाइयो ने नजाने कैसे ऊपर छत्त पर पहुंच के अम्मी अब्बा का कत्ल कर दिया और घर में आग लगा दी सामने रहने वाले हिन्दू भाई ने बताया तो अफरातफरी हो गई इतने में दंगाईयों का जन सैलाब उमड़ता हुआ आगे बढ़ते आ रहा था सब के हाँथो में मशाल और तलवारे थी हम जैसे थे वैसे ही अपनी दोनों बच्चियों को लेकर रात में ही छिपते छिपाते भागे थे और लगभग रात को तीन बजे हम दिल्ली मुंबई हाइवे पर पहुंच कर अनजान दिशा में बदहवास से अपनी दोनों बच्चियों को सीने से लगाए चलें जा रहें थे तभी हमें पता ही नहीं चला के पीछे से आ रही एक गाडी हमारे कुछ फलांग की दूरी पर जा कर रुकी हम बहुत घबराए हुए थे और निहत्थे थे सलमा को कुछ नहीं सुझा तो उसने ज़मीन से पत्थर उठा लिया था. कर का दरवाजा खुला उसमें से एक आदमी बाहर निकला तभी सलमा ने उसकी तरफ पत्थर फेका लेकिन वो पत्थर कार पर जा कर लगा तभी उस आदमी ने बड़े ही सहजता से कहा

आप लोग परेशान हैं मैं आपकी मदद करने के लिए ही रुका हूं.

सलमा एकदम चीखते हुए अल्ला हो अकबर बोली थी..

मैंने सलमा को चुप रहने को कहा लेकिन तभी उन्होंने भी अल्ला हो अकबर कहा तो हमारी घबराहट कुछ कम हुई लेकिन फिर दिल में एकदम से ख्याल आया के कही धोखा ना हो जाए... तो मेरे हलक से जय श्री राम निकला तो वहां से भी जय श्री राम सुनाई दिया हम बेहद घबराये हुए थे हमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था के हम क्या करें फिर उन्होंने कहा आप जो भी हैं पर मैं सही में आपकी मदद करना चाहता हूं सिर्फ इंसानियत के नाते..उनकी इस बात पर हमें थोड़ा भरोसा हुआ.. वो धीरे धीरे चल कर हमारे करीब आये..

देखिए पूरे देश में धर्म को लेकर आग लगी हैं और इन मासूमों को लेकर कहां कहां भटकोगे...

फिर हम क्या करें..?

आप लोग मेरा यकीन करें मेरे साथ चलें...!


क्रमशः -11





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