चाय पर चर्चा - Novels
by राज कुमार कांदु
in
Hindi Fiction Stories
नुक्कड़ व चौराहों पर चल रही राजनीतिक चर्चाओं को शब्द रूप देने का प्रयास करती 2017 में लिखी हुई एक धारावाहिक रचना !*********एक देहाती बाजार में नुक्कड़ पर एक चाय की दूकान पर रामू, कलुआ और इदरीश बैठे चाय ...Read Moreरहे थे। सामने से हरीश आता दिखा। उसे देखकर रामू कलुआ से बोला, ”अरे कलुआ ! ये हरीश तो दिल्ली रहता था ना ?”कलुआ बोला, "जी काका ! दिल्ली में ही रहता था यह तो !"इतने में हरीश नजदीक आ जाता है। रामू पर नजर पड़ते ही उनका अभिवादन किया, ”राम राम काका ! कैसे हो ?" “हम तो भले चंगे हैं।
नुक्कड़ व चौराहों पर चल रही राजनीतिक चर्चाओं को शब्द रूप देने का प्रयास करती 2017 में लिखी हुई एक धारावाहिक रचना !*********************************************************एक देहाती बाजार में नुक्कड़ पर एक चाय की दूकान पर रामू, कलुआ और इदरीश बैठे चाय ...Read Moreरहे थे। सामने से हरीश आता दिखा। उसे देखकर रामू कलुआ से बोला, ”अरे कलुआ ! ये हरीश तो दिल्ली रहता था ना ?”कलुआ बोला, "जी काका ! दिल्ली में ही रहता था यह तो !"इतने में हरीश नजदीक आ जाता है। रामू पर नजर पड़ते ही उनका अभिवादन किया, ”राम राम काका ! कैसे हो ?" “हम तो भले चंगे हैं।
”भ्रष्टाचार ही सारी बुराइयों की जड़ है। भ्रष्टाचार की वजह से ही महँगाई का भी बोलबाला है। आप लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में मोदीजी का हाथ मजबूत करना चाहिए।" अजय भरसक रामू काका को समझाने का प्रयत्न ...Read Moreरहा था।उसकी बात का व्यापक असर नजर आने लगा था रामू के चेहरे पर जो बड़ी शांति से बोल रहा था, "अरे बेटा ! हम सबने दिल खोल कर मोदीजी की बात पर बी जे पी को जिताया था। हम खुद अपना पहचानवाले और गाँव गढ़ी के और हित नात जितना भी आदमी हमको मिला सबको बोल बोल के मोदी
अजय भी पीछे हटने के मूड में बिलकुल नहीं था। वह इन देहातियों के मन से मोदी सरकार के प्रति पैदा हुई गलतफहमी को किसी भी तरह से दूर करना चाहता था।बोला, ”आप लोगों ने देखा ? चीन और ...Read Moreभी अब मोदीजी से खौफ खाते हैं। सीमा पर हमारे जवान अब गोली का जवाब गोलों से देते हैं।”रामू काका के तेवर थोड़े ढीले दिखे, बोले, "ठीक कहते हो बेटा ! यही तो राजनीति है। हम तो इहै जानते हैं की चीन पहले भी अपने देश में मुँह उठा के घुस जाता था और अब भी कभी कभी घुस जाता
कलुआ की हाँ में हाँ मिलाते हुए रामू काका बोल ही पड़े, ”सही कह रहे हो कालू ! इन नेताओं को तो जैसे कौनो लाज शरम है ही नहीं। चाहे कौनो दल का हो नेता, सब का ईमान ...Read Moreतो अपने अपने आका की चापलूसी और उ चापलूसी से अपना उल्लू सीधा करना ही होता है। अब यही मोदीजी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब तो मनमोहन सरकार द्वारा लाये गए एफ़ डी आई कानून का बड़े जोरशोर से विरोध किया था। इसको घरेलू व्यापारियों के हितों के खिलाफ बताया था। ..हमको इ सब बात कहाँ पता चलती लेकिन जब
कुछ देर की खामोशी के बाद रामू काका ने मौन तोड़ते हुए कहा, "कलुआ ! इ तो बहुतै बुरा हुआ निरंजन के साथ। बेचारा बहुत भला आदमी था। लेकिन हमरी समझ में ई बात नहीं आ रही है कि ...Read Moreबैंक का हिसाब काहें नाहीं भर पाया ? फसल भी तो उसकी अच्छी हुई थी इस बार ! हमारे खेत के बगलवाला खेत उसका ही है इसीलिए हम जानते हैं।"कलुआ को शायद निरंजन के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी सो वह खामोश ही रहना चाहता था कि तभी हरीश बोल पड़ा, " काका ! आप भी कैसी बातें कर