संयोग - Novels
by SWARNIM स्वर्णिम
in
Hindi Classic Stories
पंचेबाजा के साथ मैं कर्मघर के प्रांगण में पहुंची। विवाह समाज की एक रस्म है, आज से मैं भी उसी समाज की रस्मों में शामिल महिलाओं के समूह में शामिल हो गयी हूं। नए लोग, नई जगह, नए माहौल, ...Read Moreहोगा, कैसे होगा, मन अशांत था। शादी खत्म होने के बाद से ही आंखों में आंसू भरा पडा था, प्यार करने वालों की भीड़ से जुदा होकर जहां मुझे प्यार करने की जरूरत है वहां आकर आपका शरीर सारी थकान महसूस कर रहा है। हालांकि अन्य लोग नाच रहे हैं, आनंद ले रहे हैं, हंस रहे हैं, ऐसा लगता है कि वे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण जी रहे हैं।
अपने भीतर यह धारण करने की कोशिश करते हुए कि यह एक परंपरा है जो जन्म के परिवेश को छोड़कर कर्मस्थल पर आने के बाद वर्षों से चली आ रही है, मैं खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करी तो मेरे नई वस्त्र पहनकर गांव में घूमने वाली बहन, मेरे कल उठाकर रोनेवाला मेरे भाई, हमेशा मुझे एक राजकुमारी की तरह व्यवहार करनेे वाले मेरा बडा भाई, जब तुम होती हो तो यह गांव ही उजाला रता है कहनेवाला चाचा, मौसी अौर परदादी सब आईने बनकर आई और मेरी आंखों से आंसू बनकर छलक पड़े।
पंचेबाजा के साथ मैं कर्मघर के प्रांगण में पहुंची। विवाह समाज की एक रस्म है, आज से मैं भी उसी समाज की रस्मों में शामिल महिलाओं के समूह में शामिल हो गयी हूं। नए लोग, नई जगह, नए माहौल, ...Read Moreहोगा, कैसे होगा, मन अशांत था। शादी खत्म होने के बाद से ही आंखों में आंसू भरा पडा था, प्यार करने वालों की भीड़ से जुदा होकर जहां मुझे प्यार करने की जरूरत है वहां आकर आपका शरीर सारी थकान महसूस कर रहा है। हालांकि अन्य लोग नाच रहे हैं, आनंद ले रहे हैं, हंस रहे हैं, ऐसा लगता है
"क्या आप कृपया मुझे बताएंगे कि मामला क्या है?" "मेरा मासिक धर्म फिर बंद हो गया है। 3 महीने हो गए हैं। मुझे कल अस्पताल जाना है। मुझे बहुत डर लग रहा है। अगर मुझे इस बार भी पहले ...Read Moreतरह करना पडेगा, तो बहन, मैं नहीं जी सकती। अगर मैं मर गयी, तो मेरी बेटियां अनाथ होंगे, उनका ख्याल रखना, बहन।" जेठानी की आँखों से बलिन्द्र आँसु की धाराएँ बहती रहीं। जब मुझे जेठानी के अधूरे शब्द समझ में नहीं आए, तो मैंने फिर पूछा - "पहले आप को क्यों और क्या हुआ था?" जेठानी का शरीर उस समय