Premshastra book and story is written by Vaidehi Vaishnav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Premshastra is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
प्रेमशास्त्र - Novels
by Vaidehi Vaishnav
in
Hindi Spiritual Stories
यमुना नदी के किनारें बसा - वृन्दावन नाम लेते ही ऐसा लगता जैसे जिव्हा पर शहद घुल गया हों। मिश्री सी मीठी यादें और उन यादों में माखन से नरम ह्रदय वालें प्यारे बृजवासी , फुलों सी कोमल राधा , नदियों सी निश्छल गोपियां , सागर से शांत नन्द बाबा , वात्सल्यमूर्ति माँ यशोदा औऱ कलकल बहती कालिंदी....
संध्या के समय अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य को निहारते श्रीकृष्ण महल की छत पर उदास खड़े हुए हैं उनके मुख की दिशा वृदांवन की औऱ हैं ।
बृज की यादें श्रीकृष्ण को विकल कर देतीं हैं
अपनों से बिछड़ने का स्मरण उन्हें विचलित कर देता हैं। श्रीकृष्ण झटके से ब्रज की स्मृतियों से निकलकर वर्तमान में आ गए। उनके कमल सदृश नयनों में अश्रु बूंदे झिलमिला रहीं थीं ।
उनके सामने उनके शिष्य औऱ चचेरे भाई उद्धव खड़े थें । उद्धव हूबहू श्रीकृष्ण के जैसे दिखतें थे , एक सी कदकाठी , एक से बाल , एक सी चाल औऱ एक सा रंगरूप । दोंनो ऐसे जान पड़ते मानों जुड़वा भाई हों । उद्धव ने श्रीकृष्ण की औऱ देखा औऱ चौंकते हुए कहा - माधव ! क्या हुआ..?
कृष्ण चुप रहें । ब्रज की बेतरतीब यादों को अपने मन में सहेजे हुए कृष्ण ब्रज का भ्रमण कर रहें थें।उद्धव के आने की उन्हें खबर ही न थीं। न ही एक बार में उन्हें उद्धव के शब्द सुनाई दिए ।
यमुना नदी के किनारें बसा - वृन्दावन नाम लेते ही ऐसा लगता जैसे जिव्हा पर शहद घुल गया हों। मिश्री सी मीठी यादें और उन यादों में माखन से नरम ह्रदय वालें प्यारे बृजवासी , फुलों सी कोमल राधा ...Read Moreनदियों सी निश्छल गोपियां , सागर से शांत नन्द बाबा , वात्सल्यमूर्ति माँ यशोदा औऱ कलकल बहती कालिंदी.... संध्या के समय अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य को निहारते श्रीकृष्ण महल की छत पर उदास खड़े हुए हैं उनके मुख की दिशा वृदांवन की औऱ हैं । बृज की यादें श्रीकृष्ण को विकल कर देतीं हैं अपनों से बिछड़ने का स्मरण
शाम का सूरज श्रीकृष्ण की आँखों में दहक रहा था । श्रीकृष्ण के नेत्रों में आँसू ठहरे हुए जल की तरह थे । जब उनके कमल रूपी नेत्रों पर ढलते सूरज की मद्धम किरणें पड़ती तो ऐसा जान पड़ता ...Read Moreकमल के पत्तो पर जल की बूंदे मोतियों की तरह झिलमिला रहीं हैं । शाम ख़त्म होने की कगार पर थीं । रात गहरा रहीं थीं , अंधकार के साथ ही श्रीकृष्ण का दुःख भी बढ़ता जा रहा था। आसमान ऐसा जान पड़ता था मानो धरती ने अब सितारों जड़ी धानी चुनरी ओढ़ ली हैं । टिमटिमाते तारे औऱ उनके
वैद्य आ गए औऱ उपचार शुरू हुआ। तरह-तरह की जड़ीबूटियां दी गई फ़िर भी श्रीकृष्ण पर कोई असर नहीं हुआ। वो तो ऐसे लग रहें थे मानों गहरी निद्रा में सो रहें हो। मथुरावासी के तो मानो प्राण ही ...Read Moreगए। मथुरा की प्रजा जिन्हें भगवान मानकर पूजती थीं आज उन्हीं के लिए भगवान से प्राथर्ना कर रहीं थीं। वसुदेव जी ने उद्धव से कहा - तुम तो कृष्ण के सखा व शिष्य भी हो , सदैव कृष्ण के साथ रहतें हों । तुम ही बताओं कृष्ण को क्या हुआ हैं ? ऊद्धव को खुद कुछ समझ नहीं आ रहा
अब तक आपने पढ़ा श्रीकृष्ण मूर्छित हो जाते है और विशेषज्ञ वैध भी उनका उपचार नहीं कर पाते हैं तब लीलाधर भगवान कृष्ण एक नई लीला रचते है।भगवान उद्धव से कहते हैं यदि किसी अथाह प्रेम करने वाले की ...Read Moreरज उनके मस्तक पर लगा दी जाए तो वह स्वस्थ हो जाएंगे ।अब आगें...मैं अपनी हाल ख़बर लिख देता हूँ तुम मेरी चिट्ठी लेकर चले जाओ। श्रीकृष्ण चिट्टी लिखने के लिए जैसे ही खड़े हुए उनके पैर लड़खड़ा गए , ऊद्धव ने उन्हें सम्भाला औऱ चौकी तक ले गए। श्रीकृष्ण ने दो चिट्ठियां लिखी औऱ ऊद्धव को देतें हुए कहा
ऊद्धव जी का रथ नन्दभवन के सामने रुका । रथ के पीछे ग्वालबालों का हुजूम था। ऊद्धव नन्दभवन में प्रवेश कर गए । नन्दबाबा ने ऊद्धव को ठीक वैसे ही गले से लगाया जैसे वो अपने कन्हैया को लगाया ...Read Moreथें। ऊद्धव की सारी थकान मिट गई। माता यशोदा ने भी प्रेम से ऊद्धव के सर पर हाथ फेरते हुए नन्द जी की ओर देखते हुए कहा - ये अपने कान्हा जैसा दिखता हैं न ? ऊद्धव व नन्द जी मुस्कुरा दिए । नंद जी ऊद्धव से बतियाने लगें माता यशोदा रसोईघर चलीं गई। ब्रज में अफवाह फैल गईं कि