Rat Sakshi Hai book and story is written by Dr. Suryapal Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Rat Sakshi Hai is also popular in Poems in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
रात साक्षी है - Novels
by Dr. Suryapal Singh
in
Hindi Poems
रात साक्षी है
‘रात साक्षी है’ डॉ० सूर्यपाल सिंह की कविता पुस्तक है। इसमें सीता के अन्तिम रात की कथा है। इसे छह खंडों में प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रथम खंड प्रस्तुत है।
कथा मौन की ?
रामकथा के विस्तृत फलक हर काल में जनजीवन को आन्दोलित करते रहे हैं। आज भी रामकथा के बिम्ब प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं ।
प्रस्तुत रचना एक रात की कथा है। वह रात बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रातः की सभा में सीता को दूसरी बार शुचिता की शपथ लेनी है। वे शपथ के लिए प्रकट तो होती हैं पर रघुकुल में लौटती नहीं । पार्थिव जगत को छोड़ जाती हैं वे। क्या यही था इस आयोजन का प्रयोजन? आयोजन के पूर्व की सन्ध्या- महर्षि वाल्मीकि ने विह्वलमन सीता को प्रकट होने के लिए संकेत किया। सीता का मन हाहाकार कर उठा। किन विमर्शो में खो गईं वे ?
क्या राम भी सो सके? हनुमत्, लक्ष्मण, कुश, लव सबकी आँखों में उस रात नींद क्यों नहीं उतरी? घर कैसे अघर में बदल गया? यही इन कविता पंक्तियों की कथा है- यह कथा निशीथ विमर्शो की। अनकहे शब्द के अर्थों की। कथा मौन की।
‘रात साक्षी है’ डॉ० सूर्यपाल सिंह की कविता पुस्तक है। इसमें सीता के अन्तिम रात की कथा है। इसे छह खंडों में प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रथम खंड प्रस्तुत है।
'रात साक्षी है' डॉ० सूर्यपाल सिंह की कविता पुस्तक है। इसमें सीता अन्तिम रात की कथा है। इसका दूसरा खंड प्रस्तुत है।
‘रात साक्षी है’ (तृतीय खंड) ‘मंथन’ का शेष'आज गोदावरी तट की सुधि लुभाती अर्चना के उन क्षणों पर दृष्टि जाती । स्नेह पारावार भी कितना गहन है? दूर की सुधियाँ वही रस घोल जातीं ।आज दिशाएँ चुप हैं, चुप ...Read Moreपवन चला है। वन-चारी भी चुप हैं, नभ का रंग छला है ।' 'मृग-कुल सँग ही देहरि सिसकी आँखें भरीं, लाल दहकी हैं । इनसे कितना कहूँ, छिपाऊँ ? मन की कोर बहुत अहकी है ।दिन होगा कितना निर्णायककैसे इनको अभी बताऊँ ? अवसादों से भरे पृष्ठ को इन्हें पढ़ाकर दुखी बनाऊँ ?” आज रात दहता मेरा मनउनका मन भी
‘रात साक्षी है’ (चतुर्थ खंड) जागरण उस रात राम भी सो न सके मन्थनरत निशि के प्रहर कटे । न्याय पक्ष को ढूँढ़ रही, उन आँखों को कब नींद लगे ?राजसी राम भी मौन दुखी अन्तस् का राम अबोला ...Read Moreभीतर लावा सुलग रहा जो भभका फूटा, मुहँ खोला-‘अन्तस् का दर्पण देख कहो संगत था क्या निर्वासन ? सीता की आँखों में झाँको उत्तर दो न राजसी मन ।कल हर सीता अपने घर से निष्कासित की जाएगी । पंचाट कौन, कहाँ दंडधर ?पीर सुनी क्या जाएगी ?राजा हो राम तुम्हीं बोलो सच से आँख चुराना क्या ? निर्मम सत्ता के
‘रात साक्षी है’ (पांच खंड) घर के पृष्ठ लक्ष्मण बैठे पद्मासन में मन की दिशा पकड़ते ।सुधियों में हिचकोले खाते घर के पृष्ठ उलटते ।घर के राग-रंग क्या होते? मनुज रचाता घर क्यों ? कोई घर कैसे बनता है ...Read Moreघर का अन्त अघर क्यों?छत - दीवारें घर कब होती स्नेह तरल घर होता । घर की नींव आस्था होती घर को अहं डुबोता ।समरस मन ही घर बाहर को जोड़ बिम्ब रच जाता । युवकों और वरिष्ठों के मत अन्तर कम कर पाता ।उधर वरिष्ठों में ही कैसे घर से विरति जगी है ? घर की दीवारों में कैसेचकती