Shrimad Bhagwadgeeta book and story is written by MB (Official) in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shrimad Bhagwadgeeta is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
श्रीमद् भगवद्गीता - Novels
by MB (Official)
in
Hindi Spiritual Stories
श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।
श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जीवन की समस्यायों से लड़ने की बजाय उससे भागने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत के महानायक थे, अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गए थे, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं।
भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान में धर्म से ज्यादा जीवन के प्रति अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को लेकर भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रही है। निष्काम कर्म का गीता का संदेश प्रबंधन गुरुओं को भी लुभा रहा है। विश्व के सभी धर्मों की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में शामिल है। गीता प्रेस गोरखपुर जैसी धार्मिक साहित्य की पुस्तकों को काफी कम मूल्य पर उपलब्ध कराने वाले प्रकाशन ने भी कई आकार में अर्थ और भाष्य के साथ श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाशन द्वारा इसे आम जनता तक पहुंचाने में काफी योगदान दिया है।
श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। भगवत गीता ...Read Moreएकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जीवन की समस्यायों से लड़ने की बजाय उससे भागने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत के महानायक थे, अपने
भगवत गीता ~ द्वितीय अथ द्वितीयोऽध्यायः ~ सांख्ययोग अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥2.1॥ sañjaya uvācataṅ tathā kṛpayā.viṣṭamaśrupūrṇākulēkṣaṇam.viṣīdantamidaṅ vākyamuvāca madhusūdanaḥ৷৷2.1৷৷ भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा ...Read Moreव्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा॥1॥ श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥2.2॥ śrī bhagavānuvācakutastvā kaśmalamidaṅ viṣamē samupasthitam.anāryajuṣṭamasvargyamakīrtikaramarjuna৷৷2.2৷৷ भावार्थ : श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग
भगवत गीता ~ अध्याय तीन अथ तृतीयोऽध्यायः- कर्मयोग ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की आवश्यकता अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन । तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥ arjuna uvācajyāyasī ...Read Morematā buddhirjanārdana.tatkiṅ karmaṇi ghōrē māṅ niyōjayasi kēśava৷৷3.1৷৷ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव! मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं?॥1॥ व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे । तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥ vyāmiśrēṇēva vākyēna buddhiṅ mōhayasīva mē.tadēkaṅ vada niśicatya yēna śrēyō.hamāpnuyām৷৷3.2৷৷ भावार्थ : आप मिले
अध्याय चार अथ चतुर्थोऽध्यायः- ज्ञानकर्मसंन्यासयोग योग परंपरा, भगवान के जन्म कर्म की दिव्यता, भक्त लक्षण भगवत्स्वरूप श्री भगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥śrī bhagavānuvācaimaṅ vivasvatē yōgaṅ prōktavānahamavyayam.vivasvān manavē prāha manurikṣvākavē.bravīt৷৷4.1৷৷ भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैंने ...Read Moreअविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥1॥ एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ēvaṅ paramparāprāptamimaṅ rājarṣayō viduḥ.sa kālēnēha mahatā yōgō naṣṭaḥ parantapa৷৷4.2৷৷ भावार्थ : हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना,
अध्याय पाँच अथ पंचमोऽध्यायः- कर्मसंन्यासयोग ज्ञानयोग और कर्मयोग की एकता, सांख्य पर का विवरण और कर्मयोग की वरीयता अर्जुन उवाच सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥ arjuna uvāca saṅnyāsaṅ karmaṇāṅ kṛṣṇa punaryōgaṅ ...Read Moreśaṅsasi. yacchrēya ētayōrēkaṅ tanmē brūhi suniśicatam৷৷5.1৷৷ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों में से जो एक मेरे लिए भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिए॥1॥ श्रीभगवानुवाच सन्न्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥ śrī bhagavānuvāca saṅnyāsaḥ karmayōgaśca niḥśrēyasakarāvubhau. tayōstu karmasaṅnyāsātkarmayōgō viśiṣyatē৷৷5.2৷৷ भावार्थ