शकराल की कहानी - Novels
by Ibne Safi
in
Hindi Fiction Stories
लाल और सफेद गुलाबों का जंगल ढोल और तुरहियों की आवाजों से गुज रहा था।
गुलतरंग के मेले की अन्तिम रात थी। तीर्थस्थान के एक विशिष्ठ चबूतरे को फूलों में बसे हुये जल से धोया गया था और चबूतरे को धोने और स्वच्छ कपड़ों से पोंछने का काम शकराल की सारी बस्तियों से चुनी हुई कुमारी लड़कियों ने किया था । यही यहां की परम्परा थी ।
स्नान करने वाली अर्थात चबूतरे को धोने वाली रात में सरदारों के खेमों में ने तो तीमाल पी जाती थी और न गाना बजाना होता था । केवल तुरहियों पर आस्मान वाले की बन्दना के गीत गाये जाते थे और ढोल बजाये जाते थे । खेमों से सुगन्धित धुएं निकल कर गुलाबों की महक में मिलते जाते थे ।
चबूतरे के सूख जाने पर तीर्थ स्थानं का बड़ा उपासक चबूतरे पर आकर खड़ा हो जाता था। फिर वह हर बस्ती के सरदार को तलब करके उससे वह प्रण दुहराने को कहता जो उसने अपने सरदार बनने से पहले किया था।
इस समय भी यही हो रहा था। बड़ा उपासक चबूतरे पर खड़ा था । बस्ती के सरदार बारी बारी चबूतरे पर आते थे और अपना प्रण दुहराकर चबूतरे से नीचे उतर आते थे । उतरने से पहले बड़ा उपासक उनके सिरों पर हाथ रख कर आशीर्वाद देता था ।
(1) लाल और सफेद गुलाबों का जंगल ढोल और तुरहियों की आवाजों से गुज रहा था। गुलतरंग के मेले की अन्तिम रात थी। तीर्थस्थान के एक विशिष्ठ चबूतरे को फूलों में बसे हुये जल से धोया गया था और ...Read Moreको धोने और स्वच्छ कपड़ों से पोंछने का काम शकराल की सारी बस्तियों से चुनी हुई कुमारी लड़कियों ने किया था । यही यहां की परम्परा थी । स्नान करने वाली अर्थात चबूतरे को धोने वाली रात में सरदारों के खेमों में ने तो तीमाल पी जाती थी और न गाना बजाना होता था । केवल तुरहियों पर आस्मान वाले
(2) "हमारे बम से बाहर है-" शहवाज ने ऊंची आवाज में कहा । "तुन लोगों के लिये हवाई जहाज भिजवा रहा हूँ" राजेश ने हाथ हिलाकर वहा था और फिर कदाचित ढलान में उतर गया था। क्योंकि अब वह ...Read Moreतीनों को दिखाई नहीं दे रहा था। "वैज्ञानिक ही नहीं मदारी भी " सानम ने कहा । प्रोफेसर दम साधे खड़ा रहा- थोड़ी देर बाद उन्हें राजेश का सिर नजर आया था और फिर वह उसी चट्टान पर उसी जगह दिखाई दिया था जहां पहले खड़ा था । "पहले साथरन" उसने कमर से रेशम को मजबूत डोर का लच्छा खोलते
(3) "दो-" शहबाज ने उत्तर दिया । "अगर वह बस्ती में मौजूद न हुये तो?" "देखा जायेगा—” शद्बाज ने लापरवाही से कहा । "क्या देखा जायेगा –?" राजेश आंखें निकाल कर बोला । "यह सब तुम मुझ पर छोड़ ...Read More"अगर बस्ती में तुम्हें कोई न पहचान सका तो गोलियां हमारे सीने छलनी कर देंगी।" राजेश ने कहा “नहीं—मैं केवल दो आदमियों के परिचय को काफी नहीं समझता ।" "तो फिर इसी गुफा में मर कर सड़ गल जाना होगा- " शहबाज ने कहा । "शायद तुम अब अपने किये पर पछता रहे हो।" "नहीं—ऐसा नहीं है-" शहवाज बिगड़ कर
(4) "यह क्या कर रहे हो--?" राजेश बोला । "अगर उसने छिन कर कोई हरकत की तो तुम जिन्दा नहीं रहोगे।" "उस बेचारे को पता ही न होगा कि हम पर क्या गुजरी ।" "क्यों ?" "वह उधर वालों ...Read Moreनिगरानी कर रहा है-" चलो उसे भी साथ ले लो।" "पहले रिवाल्वर तो हटाओ।" राजेश ने कहा । "नहीं तुम्हें इसी तरह चलना होगा।” 'यानी नालें मेरी कनपटियों से लगी रहेंगी ?" "हां...!" उत्तर मिला । "इस तरह तो मैं नहीं चल सकता - राजेश ने कहा। "यह क्या कह रहे है--?" खानम ने पूछा । वह शकराली भाषा नहीं
(5) "तुम मेरा वह सूटकेस मंगवा दो जिसके ऊपर दो काली धारियाँ पड़ी हुई हैं— ” राजेश ने शकराली सरदार से कहा । "अच्छा" कह कर शकराली सरदार चला गया । "यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है-" खानम ...Read More। "कम से कम इस वक्त तो मुंह बन्द रखो -" राजेश ने कहा यह चिन्ता जनक नेत्रों से शहवाज को देखे जा रहा था। "तुमने सूट केस क्यों मंगवाया है?" खानम ने पूछा "इनका इलाज करूंगा" ********* उसी सन्ध्या को परिचर्या के मध्य खान शहबाज से खानम उलझ पड़ी क्योंकि शहवाज ने राजेश को बुरा भला कहना आरम्भ कर
(6) फिर वह खेमे में आये थे। आदिल के आठ साथियों को दूसरे खेमों में भिजवा दिया गया था। शेष दो आदमी इसी बस्ती के रहने वाले थे। “ओ सूरमा---'मेरे बड़े भाई।" आदिल कह रहा था। "आस्मान वाला हम ...Read Moreमेहरबान है कि उसने फिर तुम्हें भेज दिया।" “कोई खास बात———?” राजेश ने पूछा| "बहुत ही खास, मगर यहां नहीं बताऊंगा। तुम्हें मेरे साथ चलना। "सरदार बहादुर तो ठीक हैं—?" "हां" राजेश समझ गया कि आदिल यहां किस कराल की कहानी चाहता उसने कहा। "मेरे साथ तीन आदमी और है---" "मैं सब सुन चुका हूँ और जो कुछ भी हुआ
(7) "ओह !” राजेश सिर हिला कर बोला, "तो तुम इसे के अक्रवाह ही समझते हो ?" "जो कुछ मैंने सुना था वह तुम्हें बता दिया । असलियत क्या है वह आस्मान वाला ही जाने । अगर बड़े उपासक ...Read Moreआज्ञा मिल सकी होती तो मैं सारे दरवाजे तोड़ कर रख देता ।" "बड़े उपासक ने छान बीन का काम सरदार बहादुर को सौंपा था इसलिये तुमको इससे कोई सरोकार नहीं होना चाहिये--" राजेश ने कहा । "मैं नहीं समझा- तुम क्या कहना चाहते हो--?" "तुम बस सरदार बहादुर की तलाश जारी रखो ।" "तुम ठीक कहते हो।" आदिल ने
(8) "आदिल आपे से बाहर हो गया। खुशहाल का बाप जो पास ही में खड़ा था गिड़गिड़ाने लगा । "वह पागल हो गया है उस पर रहम करो क्या तुम नहीं जानते कि वह सरदार बहादुर के जांनिसारों में ...Read Moreसे आगे था ।" "तो फिर जो कुछ पूछ रहा हूँ वह बताता क्यों नहीं-" आदिल नर्म पड़ता हुआ बोला । "अच्छा अब तुम चुप रहो- " राजेश ने आदिल से कहा फिर बूढ़े से बोला, "रजवान के ग्यारह आदमी एक साथ पागल हो गये हैं- " "तुमने सुना होगा ।" "हां.....हां....सुना है भाई।" बूढ़े ने कहा। "तो फिर हमें
(9) "वो इसीलिये वह तुम्हें भगोड़ा कह रहा था -?" राजेश ने पूछा । "हां..." सरदार बहादुर ने कहा। "फिर वहां कोई नहीं रुका था । हम उसे छोड़ भागे थे । आस्मान वाला ही जाने कि यह सब ...Read Moreहो गया था। मैं इसकी खबर बड़े उपासक को पहुँचा आया हूँ ।" "क्या उसने तुम्हें यह नहीं बताया था कि उस दिन वह घाटी में किस ओर गया था?" राजेश ने पूछा। “जब वह वापस आया था तो बुखार इतना तेज था कि उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी और बाद की हालत बस क्या बताऊं- बहुत
(10) "हा- मैं अपने आपको तुमसे बड़ा नहीं समझता । यह तुम्हारी ही मेहरवानी थी कि आज मैं जिन्दा हूँ--वर्ना मरखर गया होता।" सरदार बहादुर ने कहा। "हां---अब कहो-क्या कह रहे थे? " "मैं यह कह रहा था कि ...Read Moreकोई महामारी या आस्मानी बला नहीं है।" "फिर क्या है?" "हरामियों का हरामीपन है" राजेश ने कहा । "क्या मतलब?” "यह कुछ हरामियों के दिमाग का कारनामा है-वह आदमियों को वनमानुष बना रहे हैं।" "मगर क्यों ?" "वह उन शकरालियों में आतंक फैलाना चाहते हैं जो मीरान वाटी - से गुजरते रहते हैं।" आतंक फैलाने का कारण क्या हो सकता