Mera jivan vaya tukada-tukda smrutiya book and story is written by Subhash Neerav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mera jivan vaya tukada-tukda smrutiya is also popular in Biography in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मेरा जीवन वाया टुकड़ा-टुकड़ा स्मृतियाँ - Novels
by Subhash Neerav
in
Hindi Biography
आज 62 वर्ष की आयु में जीवन से जुड़े अतीत में झांकने के लिए मुझे स्मृतियों की खिड़की खोलनी पड़ती है। कोई सहजता से खुल जाती है, पर कोई नहीं खुलती, बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है। बचपन, किशोरावस्था, जवानी और उसके बाद के गृहस्थ जीवन से जुड़े अनेक किस्से खिड़की खुलने पर जैसे ताज़ा हो उठते हैं। ये खट्टे-मीठे, भूले-बिसरे किस्से गुदगुदाते भी हैं, रोमांचित भी करते हैं, संवेदित भी करते हैं, दुख और अवसाद में भी ले जाते हैं, पर जीवन के संघर्ष का पाठ भी पढ़ाते हैं। ऐसे किस्से हर किसी के जीवने में होते हैं, आपके भी होंगे…
आज 62 वर्ष की आयु में जीवन से जुड़े अतीत में झांकने के लिए मुझे स्मृतियों की खिड़की खोलनी पड़ती है। कोई सहजता से खुल जाती है, पर कोई नहीं खुलती, बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है। बचपन, किशोरावस्था, जवानी ...Read Moreउसके बाद के गृहस्थ जीवन से जुड़े अनेक किस्से खिड़की खुलने पर जैसे ताज़ा हो उठते हैं। ये खट्टे-मीठे, भूले-बिसरे किस्से गुदगुदाते भी हैं, रोमांचित भी करते हैं, संवेदित भी करते हैं, दुख और अवसाद में भी ले जाते हैं, पर जीवन के संघर्ष का पाठ भी पढ़ाते हैं। ऐसे किस्से हर किसी के जीवने में होते हैं, आपके भी होंगे…
आज 62 वर्ष की आयु में जीवन से जुड़े अतीत में झांकने के लिए मुझे स्मृतियों की खिड़की खोलनी पड़ती है। कोई सहजता से खुल जाती है, पर कोई नहीं खुलती, बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है। बचपन, किशोरावस्था, जवानी ...Read Moreउसके बाद के गृहस्थ जीवन से जुड़े अनेक किस्से खिड़की खुलने पर जैसे ताज़ा हो उठते हैं। ये खट्टे-मीठे, भूले-बिसरे किस्से गुदगुदाते भी हैं, रोमांचित भी करते हैं, संवेदित भी करते हैं, दुख और अवसाद में भी ले जाते हैं, पर जीवन के संघर्ष का पाठ भी पढ़ाते हैं। ऐसे किस्से हर किसी के जीवने में होते हैं, आपके भी होंगे…
आज 62 वर्ष की आयु में जीवन से जुड़े अतीत में झांकने के लिए मुझे स्मृतियों की खिड़की खोलनी पड़ती है। कोई सहजता से खुल जाती है, पर कोई नहीं खुलती, बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है। बचपन, किशोरावस्था, जवानी ...Read Moreउसके बाद के गृहस्थ जीवन से जुड़े अनेक किस्से खिड़की खुलने पर जैसे ताज़ा हो उठते हैं। ये खट्टे-मीठे, भूले-बिसरे किस्से गुदगुदाते भी हैं, रोमांचित भी करते हैं, संवेदित भी करते हैं, दुख और अवसाद में भी ले जाते हैं, पर जीवन के संघर्ष का पाठ भी पढ़ाते हैं। ऐसे किस्से हर किसी के जीवने में होते हैं, आपके भी होंगे…