Dehati Samaj book and story is written by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Dehati Samaj is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
देहाती समाज - Novels
by Sarat Chandra Chattopadhyay
in
Hindi Fiction Stories
बाबू वेणी घोषाल ने मुखर्जी बाबू के घर में पैर रखा ही था कि उन्हें एक स्त्री दीख पड़ी, पूजा में निमग्न। उसकी आयु थी, यही आधी के करीब। वेणी बाबू ने उन्हें देखते ही विस्मय से कहा, 'मौसी, आप हैं! और रमा किधर है?' मौसी ने पूजा में बैठे ही बैठे रसोईघर की ओर संकेत कर दिया। वेणी बाबू ने रसोईघर के पास आ कर रमा से प्रश्नख किया - 'तुमने निश्चिय किया या नहीं, यदि नहीं तो कब करोगी?'
रमा रसोई में व्यस्त थी। कड़ाही को चूल्हे पर से उतार कर नीचे रख कर, वेणी बाबू के प्रश्नं के उत्तर में उसने प्रश्नह किया - 'बड़े भैया, किस संबंध में?
बाबू वेणी घोषाल ने मुखर्जी बाबू के घर में पैर रखा ही था कि उन्हें एक स्त्री दीख पड़ी, पूजा में निमग्न। उसकी आयु थी, यही आधी के करीब। वेणी बाबू ने उन्हें देखते ही विस्मय से कहा, 'मौसी, ...Read Moreहैं! और रमा किधर है?' मौसी ने पूजा में बैठे ही बैठे रसोईघर की ओर संकेत कर दिया। वेणी बाबू ने रसोईघर के पास आ कर रमा से प्रश्नख किया - 'तुमने निश्चिय किया या नहीं, यदि नहीं तो कब करोगी?'
रमा रसोई में व्यस्त थी। कड़ाही को चूल्हे पर से उतार कर नीचे रख कर, वेणी बाबू के प्रश्नं के उत्तर में उसने प्रश्नह किया - 'बड़े भैया, किस संबंध में?
सौ वर्ष पूर्व, बाबू बलराम मुखर्जी तथा बलराम घोषाल विक्रमपुर गाँव से साथ-साथ आ कर कुआँपुर में आ बसे थे। संयोग की बात थी दोनों अभिन्न मित्र भी थे और दोनों का नाम भी एक ही था। मुखर्जी बाबू ...Read Moreऔर प्रतिष्ठित कुल के थे। उन्होंने अच्छे घर में शादी करके और सौभाग्य से अच्छी नौकरी भी पा कर यह संपत्ति बनाई थी। शादी-ब्याह व गृहस्थी का जीवन तो घोषाल बाबू का भी बीता था पर वे आगे ने बढ़ सके। कष्ट में ही उनका सारा जीवन बीत गया। उनके ब्याह के मसले पर ही दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया था और उसने इतना भयंकर रूप धारण कर लिया कि उस दिन के बाद से पूरे बीस वर्ष तक वे जिंदा रहे, पर एक ने भी किसी का मुँह नहीं देखा। जिस दिन बलराम मुखर्जी का स्वर्गवास हुआ, उस दिन भी घोषाल बाबू उनके घर नहीं गए। पर उनकी मृत्यु के दूसरे दिन ही, एक अत्यंत विस्मयजनक समाचा सुन पड़ा कि वे मरते समय अपनी संपत्ति का आधा भाग अपने पुत्र को और आधा अपने मित्र के पुत्र को दे गए हैं।
'ताई जी!' - रमेश ने पुकारा।
उस समय वे भण्डार में थीं। आवाज सुनते ही बाहर निकल आई। वेणी को देखते हुए उनकी उम्र पचास साल के करीब होनी चाहिए। वैसे उनके गठे शरीर को देख कर तो वे चालीस ...Read Moreलगभग जान पड़ती थीं। आज उनका रंग साफ और गोरा था। उनकी जवानी में, उनकी सुंदरता की दूर-दूर तक चर्चा थी और वह सौंदर्य आज भी, शरीर के गठन के साथ बना हुआ था। बाल उनके विधावाओं की तरह कटे हुए थे, जिनकी छोटी -छोटी घुँघराली लटें माथे पर आ कर उनकी सुंदरता को बढ़ा रही थीं। अंग-प्रत्यंग, चिबुक, होंठ, कपोल, सारे के सारे उनकी सुंदरता के प्रमाण बने थे। उनकी आँखें तो मानो रस में डूबी हुई थीं। रमेश उनकी छवि की तरफ एकटक देखता रहा।
श्राद्ध खत्म हो चुका है। रमेश आमंत्रित लोगों से परिचय कर रहा है। भीतर दावत के लिए पत्तल आदि बिछाई जा रही हैं। तभी भीतर सहसा कुछ शोर मचने लगा, जिसे सुन कर रमेश घबरा कर अंदर गया। उसके ...Read Moreबहुत-से लोग अंदर आ गए। पराण हालदार के साथ झगड़ा हुआ था। एक अधेड़ उम्र की स्त्री गुस्से से आँखें लाल-पीली कर, डट कर गालियाँ सुना रही है। और चौके के दरवाजे के पास एक विधवा स्त्री, जिसकी उम्र पच्चीस-छब्बीस वर्ष की है सिकुड़ी-सहमी-सी खड़ी थी। जैसे ही रमेश अंदर पहुँचा, उसे देखते ही वह अधेड़ स्त्री और भी तेज हो चिल्लाने लगी - 'तुम्हीं बताओ! तुम भी तो गाँव के एक जमींदार हो! क्या ब्राह्मणी क्षांती की इस गरीब कन्या का ही सारा दोष है? कोई हमारा है नहीं। तभी मन चाहे जितनी बार हमारे ऊपर जुर्माना कर, उसे वसूल भी कर लो और फिर समाज से खारिज-के-खारिज ही! इन्हीं गोविंद ने, वृक्षारोपण के समय दस रुपया जुर्माना लगा कर, स्कूल के नाम से लिया था और शीतल पूजा के नाम पर भी उन्होंने ही दो जोड़ी खस्सियों की कीमत भी रखवा ली थी। पूछो न इन्हीं से - सच कहती हूँ कि नहीं! फिर बार-बार एक ही बात पर क्यों तंग किया जाता है हम सबको?'
केवल मधुपाल की ही एक दुकान है, इस पूरे गाँव में। जिस रास्ते से नदी की तरफ जाते हैं, उसी पर बाजार के पास पड़ती है। रमेश से अपने बाकी दस रुपए लेने वह दस-बारह दिन तक नहीं आया, ...Read Moreरमेश स्वयं ही उसकी दुकान पर सवेरे-ही-सवेरे पहुँचा। मधुपाल ने बड़ी आवभगत के साथ उनके बैठने को एक मूढ़ा दिया। उसकी इतनी उमर बीत गई थी - सपने में भी उसने कभी किसी को, उधार रुपया अपनी दुकान पर आ कर चुकाते नहीं देखा था। बल्कि हजार बार माँगने पर भी लोग टाल बताते हैं। रमेश बाकी रुपया देने आया है, सुन कर वह दंग रह गया। बातों-ही-बातों में उसने कहा - 'भैया, यहाँ तो लोग उधार लेकर देना नहीं जानते। यही दो-दो आने, चार-चार आने करके पचास-साठ लोगों पर चाहिए। किसी-किसी पर तो रुपया-डेढ़ रुपया तक हो गया है, पर देने के नाम पर कोई मसकते भी नहीं। तो भला आप ही बताइए - यह दुकान कैसे चल सकती है! सौदा लेते समय कह जाते हैं - 'अभी भिजवाया!' और उसके बाद, दो-दो महीने तक उनकी धूल का भी पता नहीं...बनर्जी हैं क्या? प्रणाम! कब आना हुआ आपका?'