Alif Laila book and story is written by MB (Official) in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Alif Laila is also popular in Classic Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अलिफ़ लैला - Novels
by MB (Official)
in
Hindi Classic Stories
फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का नाम शहरयार और छोटे लड़के का नाम शाहजमाँ था। दोनों राजकुमार गुणवान, वीर धीर और शीलवान थे। जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहजादा शहरयार गद्दी पर बैठा और उसने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तातार देश का राज्य, सेना और खजाना दिया। शाहजमाँ अपने बड़े भाई की आज्ञा में तत्पर हुआ और देश के प्रबंध के लिए समरकंद को जो संसार के सभी शहरों से उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बनाकर आराम से रहने लगा। जब उन दोनों को अलग हुए दस वर्ष हो गए तो बड़े ने चाहा कि किसी को भेजकर उसे अपने पास बुलाए। उसने अपने मंत्री को उसे बुलाने की आज्ञा दी और मंत्री यह आज्ञा पाकर बड़ी धूमधाम से विदा हुआ। जब वह समरकंद शहर के समीप पहुँचा तो शाहजमाँ यह समाचार सुनकर उसकी अगवानी को सेना लेकर अपनी राजधानी से रवाना हुआ और शहर के बाहर पहुँचकर मंत्री से मिला। वह उसे देखकर प्रसन्न हुआ। शाहजमाँ अपने भाई शहरयार का कुशलक्षेम पूछने लगा। मंत्री ने शाहजमाँ को दंडवत कर उसके भाई का हाल कहा।
फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें ...Read Moreलड़के का नाम शहरयार और छोटे लड़के का नाम शाहजमाँ था। दोनों राजकुमार गुणवान, वीर धीर और शीलवान थे। जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहजादा शहरयार गद्दी पर बैठा और उसने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तातार देश का राज्य, सेना और खजाना दिया। शाहजमाँ अपने बड़े भाई की आज्ञा में तत्पर हुआ और देश के प्रबंध के लिए समरकंद को जो संसार के सभी शहरों से उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बनाकर आराम से रहने लगा। जब उन दोनों को अलग हुए दस वर्ष हो गए तो बड़े ने चाहा कि किसी को भेजकर उसे अपने पास बुलाए।
एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा ...Read Moreएक बैल बँधे हुए थे। उसने देखा कि वे दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे हैं। वह व्यापारी पशु-पक्षियों की बोली समझता था। वह चुपचाप खड़ा होकर दोनों की बातें सुनने लगा।
शहरजाद ने कहा :
प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक स्थान पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए देश-विदेश की यात्रा किया ...Read Moreथा। एक बार उसे किसी विशेष कार्य के लिए अन्य स्थान पर जाना पड़ा। वह अकेला घोड़े पर बैठ कर चल दिया। गंतव्य स्थान पर खाने-पीने को कुछ नहीं मिलता था, इसलिए उसने एक खुर्जी में कुलचे और खजूर भर लिए। काम पूरा होने पर वह वापस लौटा। चौथे दिन सवेरे अपने मार्ग से कुछ दूर सघन वृक्षों के समीप एक निर्मल तड़ाग देखकर उस की विश्राम करने की इच्छा हुई। वह घोड़े से उतरा और तालाब के किनारे बैठ कर कुलचे और खजूर खाने लगा। जब पेट भर गया तो उसने जगह साफ करने के लिए खजूरों की गुठलियाँ इधर-उधर फेंक दीं और आराम करने लगा।
वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक ...Read Moreका पालन करती थी। किंतु जब विवाह को तीस वर्ष हो गए और इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी मोल ले ली क्योंकि मुझे संतान की अति तीव्र अभिलाषा थी। कुछ समय बाद दासी से एक पुत्र का जन्म हुआ। बच्चा पैदा होने पर मेरी पत्नी उस बच्चे और उसकी माता से अत्यंत द्वेष रखने लगी। मुझे इस बात का अति खेद है कि मुझे अपनी पत्नी के विद्वेष का हाल बहुत दिन बाद मालूम हुआ।
सरे बूढ़े ने कहा, 'हे दैत्यराज, ये दोनों काले कुत्ते मेरे सगे भाई हैं। हमारे पिता ने मरते समय हम तीनों भाइयों को तीन हजार अशर्फियाँ दी थीं। हम लोग उन मुद्राओं से व्यापार चलाने लगे। मेरे बड़े भाई ...Read Moreविदेशों में जाकर व्यापार करने की इच्छा हुई सो उसने अपना सारा माल बेच डाला और जो वस्तुएँ विदेशों में महँगी बिकती थीं उन्हें यहाँ से खरीद कर व्यापार को चल दिया। इसके लगभग एक वर्ष बाद मेरी दुकान पर एक भिखमंगा आकर बोला, भगवान तुम्हारा भला करे। मैंने उस पर ध्यान दिए बगैर जवाब दिया, भगवान तुम्हारा भी भला करे। उसने कहा कि क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं। मैंने उसे ध्यानपूर्वक देखा और फिर उसे गले लगाकर फूट-फूट कर रोया। मैंने कहा, भैया, मैं तुम्हें ऐसी दशा में कैसे पहचानता। फिर मैं ने उसके परदेश के व्यापार का हाल पूछा तो उसने कहा कि मुझे इस हाल में भी देख कर क्या पूछ रहे हो।