Alif Laila - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

अलिफ़ लैला - 12

अलिफ़ लैला

12 - किस्सा तीन राजकुमारों और पाँच सुंदरियों का

शहरजाद की कहानी रात रहे समाप्त हो गई तो दुनियाजाद ने कहा - बहन, यह कहानी तो बहुत अच्छी थी, कोई और भी कहानी तुम्हें आती है? शहरजाद ने कहा कि आती तो है किंतु बादशाह की अनुमति हो तो कहूँ। बादशाह ने अनुमति दे दी और शहरजाद ने कहना शुरू किया।

खलीफा हारूँ रशीद के राज्य में बगदाद में एक मजदूर रहता था। वह स्वभाव का बड़ा हँसमुख और बातूनी था। एक दिन प्रातःकाल वह बाजार में एक बड़ा टोकरा लिए मजदूरी की आशा में खड़ा था। कुछ देर बाद एक परम सुंदरी स्त्री, जिसके मुँह पर जाली का नकाब पड़ा हुआ था, वहाँ आई और मुस्करा कर मजदूर से कहने लगी कि अपना टोकरा उठा और मेरे साथ चल। मजदूर अच्छी मजदूरी मिलने की आशा और स्त्री के मधुर व्यवहार से प्रसन्न होकर उसके साथ चल दिया। वह इस बात से बहुत ही प्रसन्न हुआ कि सुबह-सुबह ही अच्छा काम मिल गया था। कुछ दूर जाकर स्त्री ने एक मकान के सामने खड़े होकर ताली बजाई। कुछ देर में एक सफेद लंबी दाढ़ी वाले ईसाई ने द्वार खोला। स्त्री ने उसे कुछ रुपए दिए और ईसाई बूढ़े ने उसका आशय समझ कर घर के अंदर से उत्तम मदिरा का एक घड़ा उसे दे दिया। स्त्री ने घड़ा मजदूर के टोकरे में रखवाया और बाजार में आ गई।

बाजार में उसने बहुत-सी वस्तुएँ खरीदीं। इनमें स्वादिष्ट फल यथा सेब, नाशपाती आदि तथा भाँति-भाँति के सुंदर सुगंध वाले फूल, इत्र, स्वादिष्ट अचार, चटनियाँ और मुरब्बे, माँस, सूखे मसाले आदि घूम-घूम कर कई दुकानों से खरीदे। इतनी चीजें उसने लीं कि टोकरे में बिल्कुल जगह न रही। मजदूर कहने लगा, अगर मुझे मालूम होता कि आप इतना सामान खरीदेंगी तो मैं अपने साथ एक घोड़ा बल्कि ऊँट रख लेता।

खैर, मजदूर टोकरा उठाकर स्त्री के साथ चला। काफी दूर जाने के बाद वे दोनों एक विशाल भवन के पास पहुँचे जिसके शिखर बड़े सुंदर बने थे और दरवाजे हाथी दाँत से निर्मित थे। स्त्री ने दरवाजे के आगे खड़े हो कर ताली बजाई। दरवाजा जब तक खुले तब तक मजदूर सोचता रहा कि न मालूम यह स्त्री घर की नौकरानी है या मालकिन, इसके साज-सिंगार से तो यह नहीं मालूम होता कि यह नौकरानी होगी। कुछ ही देर में एक स्त्री ने दरवाजा खोला। मजदूर उसका अनुपम सौंदर्य और मनोहारी भाव देख कर बेसुध-सा होने लगा और सामान से लदा टोकरा उसके सिर से गिरने-गिरने को होने लगा। जो स्त्री उसे बाजार से लाई थी वह कौतुकपूर्वक उसकी बदहवासी का तमाशा देखने लगी लेकिन घर के अंदर से आई हुई स्त्री ने उससे कहा, 'तू खड़ी-खड़ी क्या देख रही है, यह बेचारा सामान के भार से दबा जा रहा है। तू जल्दी से इसे अंदर ले जा और इसका सामान उतरवा।'

मजदूर अंदर गया तो दोनों स्त्रियों ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और उसे ले कर एक बड़े मकान में आई। इसके खंभे कीमती लकड़ी के बने थे और एक बड़ा कक्ष था जिसके चारों ओर दालान थे। दालान में एक और बैठने का स्थान था जहाँ पर बहुत-से मूल्यवान नर्म आसन बिछे थे और सुविधा के भाँति-भाँति के मूल्यवान पात्र रखे हुए थे। सब के बीच में चंदन और अगर की लकड़ी का बना एक बड़ा सिंहासन था। उस पर एक बहुत ही मूल्यवान आसन पड़ा था जिसमें चारों ओर मोतियों और माणिकों की झालर लटक रही थी। इसके अलावा उस विशाल कक्ष में एक संगमरमर का बना हौज था जिसमें फव्वारे छूट रहे थे।

मजदूर यद्यपि दूर तक भारी बोझ लेकर चलने के कारण बहुत थक गया तथापि उस कमरे की सामग्री और सजावट देख कर अपना श्रम भूल गया और वह प्रसन्न चित से इस शोभा को देखने लगा। विशेषतः उसे सिंहासन पर बैठी हुई अतीव सुंदर स्त्री ने बहुत आकृष्ट किया। उसे बाद में मालूम हुआ कि सिंहासन पर बैठी स्त्री का नाम जुबैदा है, वह उस घर की मालकिन है। जिस स्त्री ने दरवाजा खोला था उसका नाम साफी था और जो स्त्री बाजार से उस पर सामान लदवाकर लाई थी उसका नाम अमीना था।

जुबैदा ने कहा, 'बीबियो, इस बेचारे मजदूर के सर से सामान तो उतारो। यह बोझ के मारे मरा जा रहा है।' साफी और अमीना ने मिलकर उसके सिर से टोकरा उतरवाया और उसमें से सामान निकालने लगीं। जुबैदा ने उसे इतना पैसा दिया जो उसकी साधारण मजदूरी से कहीं अधिक था। वह आशा से अधिक मजदूरी पाकर खुश तो बहुत हुआ लेकिन उसका मन वहाँ की वस्तुओं में इतना लगा था कि वह वापस न हुआ। इतने में ही अमीना ने अपने चेहरे से नकाब उतार दिया। मजदूर ने अब तक तो झलक भर देखी थी, अब तो उसे पूरी नजर भर देखा तो ठगा-सा खड़ा रह गया। उसे यह देखकर भी आश्चर्य हुआ कि यद्यपि घर में तीन स्त्रियाँ ही थीं तथापि खाने-पीने की सामग्री इतनी थी जो तीस व्यक्तियों को काफी होती।

मजदूर वहाँ से न हटा तो जुबैदा ने पहले तो सोचा कि वह कुछ देर और सुस्ताना चाहता है, लेकिन जब उसे बहुत देर हो गई तो उसने कहा कि 'क्या बात है, तू जाता क्यों नहीं? क्या तुझे मजदूरी कम मिली है? अमीना, इसे कुछ और पैसे देकर विदा करो।' मजदूर ने कहा, 'मालकिन, मैंने मजदूरी आशा से अधिक पाई है किंतु आपके सम्मुख कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि जो मैं कहना चाहता हूँ वह मेरी उद्दंडता है किंतु मुझे आशा है आप मुझे क्षमा करेंगी और मेरी बातों पर नाराज नहीं होंगी। मुझे यहाँ बहुत-सी बातें आश्चर्यजनक लग रही हैं। मैंने आप जैसी रूपवती कोई भी महिला नहीं देखी। मुझे यह देख कर भी बड़ा आश्चर्य हुआ है कि यहाँ कोई पुरुष नहीं है। बगैर पुरुष के स्त्रियों का रहना और बगैर स्त्रियों के पुरुषों का रहना दोनों ही बहुत अजीब बातें हैं।'

मजदूर बातूनी तो था ही इसलिए बोलता चला गया। उसने बगदाद नगर में प्रचलित तरह-तरह की कहावतें सुनाईं। इनमें से एक यह थी कि जब तक चार व्यक्ति एक साथ भोजन न करें भोजन में स्वाद नहीं आता और खाने वाले तृप्त नहीं होते। उसका आशय यह था कि उन स्त्रियों के बीच में वही पुरुष और दूसरे उन तीन के अलावा चौथा व्यक्ति भी वही है, इसलिए भोजन के समय उसे भी खाने के लिए बिठा लिया जाय। जुबैदा उसकी बातें सुन कर हँसने लगी और बोली, 'तू अपनी बेकार की बातें और सलाहें अपने पास रख, हम तीनों स्त्रियाँ बहिनें हैं और अपने सारे काम खुद ही अच्छी तरह चलाती हैं और इस तरह चलाती हैं कि किसी को पता नहीं चलता। हम लोग नहीं चाहते कि कोई हमारे भेद को जाने।'

मजदूर ने कहा, 'मेरी मालकिन, आप तो अत्यंत चतुर और बुद्धिमती हैं लेकिन आप मुझे भी निरक्षर और गँवार न समझें। यह तो भाग्य की बात है कि मुझे पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है वरना मैंने बहुत-सी इतिहास और ज्ञान की पुस्तकें पढ़ी हैं। आप कहें तो आपको एक कहावत आपकी सेवा में उपस्थित करूँ। यह कहावत है कि बुद्धिमान को चाहिए कि चतुर व्यक्ति से अपना भेद न छुपाए क्योंकि चतुर व्यक्ति को किसी का भेद छुपाए रखना आता है। अगर आप मुझ पर अपना कोई भेद प्रकट करेंगी तो वह ऐसा ही होगा जैसे कोई चीज किसी कमरे में बंद करके ताला लगा दिया जाए और ताले की चाबी खो जाए।

जुबैदा समझ गई कि यह मजदूर बुद्धिमान और पढ़ा-लिखा है और इसका साथ करने में कोई बुराई नहीं और इसे अपने साथ बिठा कर खाना भी खिलाया जा सकता है। फिर भी उसने उसकी बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए मजाक में कहा, 'देखो भाई, हमने तो पैसा और मेहनत लगा कर इस भोजन को तैयार किया है, तुमने तो इस पर कुछ खर्च नहीं किया। फिर तुम्हें अपने खाने में क्यों सम्मिलित करें?' साफी ने भी उससे कहा, 'तुमने यह कहावत तो सुनी होगी कि छूछा किन पूछा।'

इन बातों का बेचारे मजदूर के पास कोई उत्तर न था और उसने कहा कि आप लोग ठीक कहती हैं, मैं जा रहा हूँ। लेकिन अमीना ने अपनी बहनों से उसकी वकालत की और कहा, 'इसे यहीं रहने दो। यह अपनी बातों से हमारा मनोरंजन करेगा और अपने विनोदी स्वभाव के कारण हमें हँसाता रहेगा। तुम्हें नहीं मालूम यह जबर्दस्त किस्म का मसखरा है। बाजार में यहाँ तक सारे रास्ते यह हँसी-मजाक की बातों से मुझे हँसाता आया है।' मजदूर को अमीना की बातें सुनकर बड़ा संतोष हुआ। उसने कहा, 'आप लोगों की बड़ी कृपा होगी अगर मुझे अपने साथ रहने दें। मैं गरीब हूँ किंतु किसी का उपकार मुफ्त में नहीं लेना चाहता। और तो मेरे पास कुछ नहीं लेकिन अपनी कृपा के बदले यह मजदूरी जो आपने मुझे दी है वह स्वीकार कर लीजिए।' यह कहकर मजदूर ने जुबैदा के सामने मजदूरी के पैसे बढ़ा दिए।

जुबैदा ने मुस्कराकर कहा, 'हम दी हुई चीज वापस नहीं लेते। तुम हमारे साथ रह कर हमारे खान-पान में सम्मिलित हो सकते हो। लेकिन शर्त यह है कि हम लोग चाहे जो कुछ करें उसके बारे मे तुम हमसे कुछ नहीं पूछोगे।' मजदूर ने यह स्वीकार कर लिया।

इतने में अमीना ने अपनी बाहर जाने वाली पोशाक उतार दी और तंग कपड़ों में कमर कसे हुए उसने नाना प्रकार के व्यंजन - कलिया, कीमा, कोफ्ता, कोरमा, कबाब और अन्य कई प्रकार के सामिष व्यंजन और उनके अलावा अन्य स्वादिष्ट वस्तुएँ और मदिरा की सुराही और प्याले लाकर उचित स्थानों पर रख दिए। फिर तीनों बहिनें वहाँ आकर बैठ गई और चौथी ओर मजदूर को भी बिठा लिया। मजदूर बड़ा ही प्रसन्न हुआ। उसने थोड़ा-सा भोजन किया। फिर अमीना ने मदिरा की सुराही उठाकर प्याला भरा और अपने देश की रीति के अनुसार पहले स्वयं पिया, फिर अपनी बहनों को दे दिया और चौथा प्याला मजदूर को दिया।

मजदूर ने अमीना का आदरपूर्वक हाथ चूमकर प्याला ले लिया और उसे पीने के पहले इस आशय का एक गीत गाया कि जिस प्रकार इत्र से वायु सुगंधित हो जाती है उसी प्रकार अगर पिलाने वाला मनोरम हो तो मदिरा में नई सुगंध आ जाती है। यह गीत सुनकर तीनों स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने एक दूसरे के बाद कई गीत शराब के नशे में गाए। इस राग-रंग में बहुत देर हो गई और रात हो गई। साफी ने अपनी बहनों से कहा कि अब तो इस मजदूर को हमने खिला-पिला दिया है, अब इसका कोई काम नहीं, इससे कहो अपने घर जाए। मजदूर को ऐसा सुखद संग छोड़ने में बड़ा दुख हुआ। उसने कहा कि यह मेरे लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी हालत में मुझे घर से निकाला जा रहा है, मैं इस नशे की दशा में किस प्रकार अपने घर पहुँच सकूँगा। कृपया रात भर मुझे यहाँ रहने की अनुमति दें, यहीं किसी कोने में पड़ा रहूँगा।

अमीना ने फिर उसकी वकालत की और कहा, यह बेचारा ठीक कहता है, कहाँ अँधेरे में ठोकरें खाता फिरेगा, हम लोगों ने पहले तो इसे अपने साथ खाने-पीने की अनुमति दे ही रखी है, अब इसे निराश न करो, यहीं पड़ा रहने दो। जुबैदा ने अमीना के कहने पर उसे रहने की अनुमति दे दी लेकिन फिर कहा कि शर्त यही है कि हम भला- बुरा जो भी करें तुम उसके बारे में कुछ पूछताछ नहीं करोगे। मजदूर ने कहा, आप मुझ पर जो भी शर्त लगाएँगी मैं मानूँगा। जुबैदा ने कहा कि हम तुम पर कोई नई शर्त नहीं लगा रहे हैं, उधर देखो क्या लिखा है। मजदूर ने एक दरवाजे के अंदर जाकर देखा तो मोटे-मोटे सुनहरे अक्षरों में लिखा था, 'इस भवन के अंदर जाने वाला कोई व्यक्ति यदि ऐसी बातों के बारे में पूछेगा जिनसे उसका कोई संबंध नहीं है तो उसे बड़ी क्लेशकारक बातें सुनने को मिलेंगी, उसे बड़ा कष्ट होगा और वह बहुत पछताएगा।' मजदूर ने कहा, आप चिंता न करें, मैं अपना मुँह बंद रखूँगा।

फिर अमीना रात का भोजन लाई और चारों ओर दीपक और सुगंधियाँ जलाईं। इससे सारा भवन आलोकित और सुवासित हो गया। इसके बाद तीनों स्त्रियाँ और मजदूर भोजन करने लगे और मदिरा पीकर अपने-अपने क्षेत्र की भाषाओं के गीत गाने लगे और राग-रागिनियाँ छेड़ने लगे। थोड़ी ही देर में ज्ञात हुआ जैसे कोई दरवाजा खोलने को कह रहा है। यह शब्द सुन कर साफी खड़ी हो गई क्योंकि दरवाजा खोलने वही जाती थी। उसने जाकर दरवाजा खोला और कुछ देर में वापस आकर कहा, 'दरवाजे पर एक ही जैसे लगने वाले तीन फकीर खड़े है जुबैदा, तुम उन्हें देख कर बहुत हँसोगी। वे तीनों ही दाहिनी आँख से काने हैं और सभी के सिर, दाढ़ी, मूछें यहाँ तक कि भवें भी मुड़ी हुई हैं। वे इसी समय बगदाद में प्रविष्ट हुए हैं और चाहते हैं कि उन्हें एक रात ठहरने के लिए जगह दे दी जाए, सुबह वे चले जाएँगे। बहन, मेरी प्रार्थना है कि उन्हें यहाँ रहने की अनुमति दे दो। वे रात को यहाँ रह कर हम लोगों का कुछ भला ही करेंगे, हमें किसी प्रकार कष्ट न पहुँचाएँगे।'

जुबैदा ने साफी से कहा, अगर तुम यही चाहती हो तो उन्हें ले आओ लेकिन उन्हें भी हमारे घर पर मेहमानी की शर्त बता देना और कह देना कि अंदर दीवार पर जो कुछ लिखा है उसे पढ़ लें। साफी बहन की अनुमति पाकर प्रसन्नतापूर्वक दौड़ी गई और तीनों फकीरों को लेकर अंदर आ गई। फकीरों ने जुबैदा और अमीना को झुककर सलाम किया। दोनों ने सलाम का जवाब देकर उनकी कुशल-क्षेम पूछी। इसके बाद उन्होंने फकीरों से भोजन करने को कहा।

फकीरों ने मजदूर को देखकर कहा कि यह तो अरब का मुसलमान मालूम होता है। अरब के लोग धर्म के बड़े पक्के होते हैं किंतु यह तो धर्म-विरुद्ध मदिरा पान कर रहा है। मजदूर यह सुनकर बड़ा क्रुद्ध हुआ और बोला, 'तुम लोग कौन बड़े धर्माचारी हो। तुम लोगों ने दाढ़ी-मूँछें मुड़ाकर इस्लाम के नियमों का उल्लंघन नहीं किया? तुम्हें मेरे व्यवहार पर आपत्ति करने और मुझे नसीहत देने का क्या अधिकार है?' स्त्रियों ने कहा कि तुम लोग यह बेकार की बहस छोड़ो और रंग में भंग न करो; लो खाओ-पिओ। फकीर लोग नशे में आए तो बोले, यहाँ कोई बाजा हो तो हम लोग कुछ गाएँ-बजाएँ। साफी ने उन्हें वाद्य ला कर दिए और वे बजाने लगे और वाद्यों के सुरों से सुर मिलाकर गाना शुरू किया। वे लोग इस गाने-बजाने के दरम्यान हँसी-ठट्ठा भी करते और ऊँचे स्वर में वाह- वाह भी करते। इस सबसे बड़ा शोर होने लगा और सारा भवन गूँजने लगा। इसी बीच उन्होंने सुना कि दरवाजे पर फिर कोई ताली बजा रहा है। साफी सदा की भाँति दौड़कर गई कि देखें, अब कौन दरवाजे पर आया है।

शहरजाद ने शहरयार से कहा कि इस जगह कहानी रोक कर मैं आप को यह बताना चाहती हूँ कि इस बार ताली बजाने वाला स्वयं खलीफा हारूँ रशीद था। खलीफा का यह नियम था कि अक्सर रात को वेष बदलकर शहर में निकलता था कि प्रजा का हाल खुद अपनी आँखों से देखे। उस रात को वह अपने महामंत्री जाफर और जासूसों के सरदार मसरूर के साथ बगदाद की गलियों में घूम रहा था। वे तीनों व्यापारियों जैसे वस्त्र पहने हुए थे। जब वे लोग उन स्त्रियों के मकान के पास से गुजरे तो उन्होंने हँसी की ध्वनि और गाने-बजाने का स्वर सुना। खलीफा ने कहा कि घर का दरवाजा खुलवाओ, मैं देखूँ तो कि यहाँ क्या हो रहा है। जाफर ने कहा कि यहाँ कुछ स्त्रियाँ शराब पीकर हँसी- दिल्लगी कर रही हैं, गा-बजा रही हैं, आपका अंदर जाना शोभनीय नहीं है। यह भी हो सकता है कि वे अपने राग-रंग में विघ्न पड़ते देखकर नशे की हालत में आप का कुछ अपमान कर बैठें। किंतु खलीफा ने उसकी सलाह न मानी और आदेश दिया कि तुम जाकर दरवाजा खुलवाओ।

अतएव जाफर ने दरवाजा खुलवाया। साफी ने दरवाजा खोला तो जाफर उसके रूप को देखता रह गया, फिर उसने जल्दी से एक कहानी गढी। उसने कहा, 'सुंदरी, हम तीनों व्यापारी मोसिल नगर के निवासी हैं। हम व्यापार की वस्तुएँ लेकर यहाँ आए हैं और एक सराय में ठहरे हैं। आज की रात को यहाँ के एक व्यापारी ने हमें दावत दी थी। हम उसके घर गए। उसने हमें बड़ा स्वादिष्ट भोजन कराया और उत्तम मदिरा पीने को दी। हम लोग नशे में आ गए तो उसने नृत्यांगनाओं को बुलाकर नाचने की आज्ञा दी। इस राग-रंग में काफी समय हो गया और नशे की हँसी और नाच-गाने से बाहर काफी आवाज जाने लगी। उसी समय संयोगवश शहर का कोतवाल गश्त लेकर उधर से निकला और उसने उस घर पर छापा मार दिया। दरवाजा खुलवा कर उसने सब उलट-पलटकर दिया और कई आदमियों को गिरफ्तार कर लिया। हम लोग जान बचाकर एक दीवार से बाहर कूद गए।'

यह कहकर जाफर ने कहा, 'हम लोग इस शहर में किसी को नहीं जानते, न यहाँ के मार्ग पहचानते हैं। हमें डर लग रहा है कि हम इधर-उधर भटकते हुए सराय पर कैसे पहुँचेंगे। फिर संभव है सराय का दरवाजा बंद हो गया हो और हम रात भर गलियों में भटकते रहें। यह भी संभव है कि वही कोतवाल गश्त लगाता हुआ आ निकले और हम लोगों को बंद कर दे। हमारी दशा बड़ी दयनीय है। सुंदरी, तुम दया करके अनुमति दो तो हम रात भर के लिए तुम्हारे मकान में किसी जगह पड़े रहें। अगर तुम हमें अपनी संगति के योग्य समझो तो हमें अपने गाने-बजाने में शामिल कर लो। हम लोग यह तो समझ गए हैं कि तुम लोग गाने-बजाने में अति निपुण हो। हमें भी संगीत में रुचि है और हम भी अपनी कला से तुम्हारे आमोद-प्रमोद में योग दे सकते हैं।'

साफी ने कहा, मैं इस घर की मालकिन नहीं हूँ; तुम लोग जरा देर यहीं ठहरो, मैं मालकिन से तुम्हारी बात करती हूँ; अगर उसने अनुमति दे दी तो फिर कोई दिक्कत नहीं रहेगी और तुम लोग आराम से यहाँ रात बिता सकोगे। यह कह कर साफी अंदर गई और अपनी बहनों से नए व्यापारियों की दशा और उनकी प्रार्थना की बात की। उन दोनों ने आपस में और साफी के साथ मंत्रणा की और साफी से कहा कि उन्हें भी अंदर ले आओ।

अतएव साफी वहाँ जाकर खलीफा, जाफर और मसरूर को अंदर ले आई। तीनों ने बड़ी शिष्टता और सम्मान से स्त्रियों और फकीरों को प्रणाम किया। उन सब ने उन्हें व्यापारी समझ कर उनके अभिवादन का यथायोग्य उत्तर दिया। जुबैदा ने, जो तीनों बहनों में सब से बड़ी और सब से बुद्धिमान थी, उनसे उनकी कुशल-क्षेम पूछी और कहा कि हम लोग जो कुछ कहें उसका तुम लोग बुरा न मानना। जाफर ने कहा, तुम सुंदरियों के मुँह से ऐसी कौन-सी बात निकल सकती है जिसका किसी को भी बुरा लगे? जुबैदा ने कहा, 'मुझे यह कहना है कि तुम जहाँ तक हो सके चुप रहना और जिस बात का तुम से सीधा संबंध न हो उसके बारे में कोई प्रश्न न करना। अगर तुमने ऐसा न किया तो हम तुमसे क्रुद्ध हो जाएँगे और इसका फल तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।' मंत्री ने कहा कि अगर तुम्हारा यही आदेश है तो हम ऐसा ही करेंगे और किसी बात के बारे में प्रश्न नहीं करेंगे। यह वादा लेकर जुबैदा ने उन सब के आगे खाद्य सामग्री रखी और मदिरा पिलाई।

जब मंत्री जुबैदा से बातें कर रहा था उस समय खलीफा आश्चर्यचकित होकर उन स्त्रियों के सौंदर्य और तीक्ष्ण बुद्धि को देख रहा था। उसे इस बात से भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि तीनों फकीर दाहिनी आँख से क्यों काने हैं। उसकी उत्कट इच्छा थी कि वह फकीरों से इस बात का रहस्य पूछे किंतु उसके दोनों साथियों ने इशारों ही में उसे ऐसा न करने के लिए कहा। मकान के अंदर की सारी रुपहली और सुनहरी सजावट को देखकर वह मन ही मन कह रहा था कि यह चीजें जादू ही की हो सकती हैं, वास्तविक नहीं हो सकतीं। इतने में एक फकीर ने उठकर अपने देश के ढंग पर नाचना शुरू कर दिया। स्त्रियों को वह नाच पसंद आया और सबने उसकी नृत्य कला की प्रशंसा की।

जब फकीरों का नाच हो चुका तो जुबैदा अपने स्थान से उठी और अमीना का हाथ पकड़ कर बोली, 'बहन, यह तो तुम जानती ही हो कि यहाँ पर उपस्थित सब लोग हमारे अधीन हैं और इनकी उपस्थिति हमें हमारे रोज के काम से नहीं रोक सकती।' अमीना ने उसका अभिप्राय समझ कर उस जगह की सफाई शुरू कर दी। उसने भोजन के पात्र और मदिरा की सुराहियाँ और प्याले उठाकर बावर्चीखाने में रख दिए और गाने बजाने का सामान हटाकर फर्श पर झाड़ू लगाई। इसके बाद उसने सारे दियों की बत्तियों के गुल काटे और कुछ और भी सुगंधित तेल के दिए जलाए और कमरे को नए ढंग से सजा दिया।

अमीना ने अब फकीरों और खलीफा तथा उसके साथियों को दालान में बिठाया। फिर मजदूर से कहा कि तुझ जैसे हट्टे-कट्टे आदमी को इन लोगों की तरह बैठना नहीं चाहिए, तू उठ कर हमारे काम में हाथ बँटा। मजदूर अभी तक ऊँघ-सा रहा था। वह अपनी हैसियत का खयाल करके रास-रंग में शामिल नहीं हुआ था। वह फौरन उठ खड़ा हुआ और अपने चोगे को कस कर कमर से बाँधने के बाद बोला कि बताओ क्या काम है, जो तुम कहोगी मैं करूँगा। साफी ने कहा, तुम कुर्ते की आस्तीन भी चढ़ा लो क्योंकि हाथों से काम करना है।

कुछ देर बाद अमीना ने दालान में एक चौकी बिछाई और मजदूर को अपने साथ ले जाकर एक कोठरी से दो काली कुतियाँ खींचती हुई लाई। दोनों कुतियों के गले में पट्टे बँधे थे और पट्टों में जंजीरें बँधी थीं। मजदूर उसकी आज्ञा के अनुसार दोनों कुतियों को दालान में ले गया। अब जुबैदा गुस्से में झटके के साथ उठ खड़ी हुई। उसने एक ठंडी साँस भरी और आस्तीन ऊपर चढ़ाई। फिर उसने साफी के हाथ से एक चाबुक लिया और मजदूर से कहा कि एक कुतिया की जंजीर अमीना के हाथ में दे और दूसरी को मेरे पास ले आ।

मजदूर उसकी आज्ञानुसार एक कुतिया को खींच कर जुबैदा के पास लाया तो कुतिया बड़े आर्त स्वर में चिल्लाने लगी। वह दयनीय दृष्टि से जुबैदा की तरफ देखती जाती थी और उसके पैरों पर अपना सिर भी रगड़ती जाती थी। जुबैदा ने उसके इस अनुनय पर कुछ ध्यान न दिया और सड़ासड़ उसे चाबुक मारना शुरू किया। मारते-मारते जब जुबैदा का दम फूल गया तो उसने मारना बंद कर दिया। फिर मजदूर के हाथ से कुतिया की जंजीर लेकर उसके अगले पंजे पकड़ कर पिछले पैरों पर खड़ा किया। कुतिया और जुबैदा एक-दूसरे को देखकर बड़े दुख के साथ आँसू बहाने लगीं। फिर जुबैदा ने रूमाल से कुतिया के आँसू पोंछे और उसे प्यार करके उसका मुँह चूमा। फिर मजदूर को उसकी जंजीर थमाकर कहा कि इस कुतिया को दालान में ले जा और दूसरी को यहाँ ला। मजदूर ने इस कुतिया को ले जाकर दालान में बाँधा और अमीना के हाथ से दूसरी कुतिया लेकर जुबैदा के पास लाया। जुबैदा ने इस कुतिया को भी पहली कुतिया की भाँति खूब मारा, फिर उसकी आँखों में आँखें डाल कर रोई और उसके आँसू पोंछ कर और मुँह चूम कर प्यार किया। इसके बाद मजदूर ने इस कुतिया को भी दालान में ले जाकर बाँध दिया।

तीन फकीरों, खलीफा और उसके साथियों को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पहले तो जुबैदा ने अत्यंत निर्दयता से कुतियों को पीटा फिर उनके साथ मिल कर रोई भी। इसके अलावा मुसलमानों के धर्म में कुत्ते अपवित्र जंतु माने जाते हैं। जुबैदा जैसी सुसंस्कृत महिला का कुतियों के आँसू पोंछकर उनका मुँह चूमना किसी की समझ में नहीं आ रहा था। विशेषतः खलीफा अपनी उत्सुकता नहीं रोक पा रहा था। उसने इशारे से मंत्री से कहा कि इस रहस्य को पूछना चाहिए। मंत्री ने पहले तो टाल-मटोल की और दूसरी ओर देखने लगा। लेकिन जब खलीफा संकेत से प्रश्न करता ही रहा तो उसने संकेत ही से विनय की कि इस समय इस बात को यहीं समाप्त कर दीजिए, कुछ पूछिए नहीं।

जुबैदा कुतियों को पीटने के बाद कुछ देर तक सुस्ताती रही। फिर साफी ने उससे कहा, बहन तुम अपने स्थान पर आ बैठो तो हम अगला काम करें। जुबैदा ने कहा, 'अच्छा।' फिर वह दालान में आकर एक पहले से बिछी हुई चौकी पर बैठ गई। उसने खलीफा और उसके साथियों को अपने दाईं ओर और फकीरों और मजदूरों को बाईं ओर बिठा लिया। चौकी पर बैठ कर वह कुछ देर और सुस्ताती रही। इसके बाद उसने अमीना से कहा कि बहन, उठो, तुम्हें मालूम है कि तुम्हें अब क्या करना है।

अमीना यह सुन कर उठी और बगल वाली कोठरी में जाकर वहाँ से एक संदूक उठा लाई जो पीले साटन में मढ़ा था और इसके ऊपर भी उस पर हरी कारचोबी का एक गिलाफ चढ़ा था। उसमें से एक बाँसुरी निकाल कर अमीना ने साफी को दी। साफी ने उस बाँसुरी से एक करुण वियोगात्मक राग निकाला और देर तक बजाती रही। खलीफा और अन्य उपस्थित लोग उस का कौशल देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। फिर साफी ने अमीना से कहा कि अब तुम बाँसुरी बजाओ, मैं बजाते-बजाते थक गई हूँ। अमीना ने बाँसुरी लेकर कुछ देर तक सुर मिलाया फिर एक बड़ा मधुर राग बजाना शुरू किया और बजाते-बजाते उसमें मग्न हो गई। जुबैदा ने उसके वादन की बड़ी प्रशंसा की और कहा कि अब बस करो, तुम्हारे दुख के कारण बड़ी दुखद दशा हो रही है। अमीना इतनी भाव-विह्वल हो गई कि जुबैदा की बात का कोई उत्तर न दे सकी बल्कि जान पड़ता था कि वह अपने होश-हवास खो बैठी थी क्योंकि उसने अपने ऊर्ध्व वस्त्र को उतार फेंका। अब सब लोगों ने देखा कि उस सुंदरी के दोनों कंधों पर काले-काले दाग पड़े हैं जैसे किसी ने उसे निर्दयता से मारा है।

दाग उसके कंधों ही पर नहीं, बाँहों पर भी पड़े थे। सब लोग इस कांड को देखकर और भी हैरान हुए। अमीना की हालत इतनी खराब हो गई थी कि वह डगमगाने लगी और गिरने-गिरने को हुई और जुबैदा और साफी ने दौड़कर उसे सँभाला।

एक फकीर ने धीमे से कहा, कितने दुख की बात है कि हम इतनी अद्भुत घटनाएँ देख रहे हैं और उनके बारे में किसी से पूछ भी नहीं सकते। खलीफा ने यह बात सुन ली और उन फकीरों के पास आकर उनसे पूछा कि क्या तुम लोगों में किसी को इन स्त्रियों का और कुतियों को पीटने का रहस्य ज्ञात है? फकीरों ने कहा, हम में से कोई भी इन बातों को नहीं जानता, हम लोग आज ही रात को तुम्हारे यहाँ आने से कुछ ही पहले यहाँ पहुँचे हैं। खलीफा की उत्सुकता और बढ़ी। उसने कहा, हो सकता है कि यह आदमी जो तुम्हारे पास बैठा है इसे कुछ ज्ञात हो। फकीर ने इशारे से मजदूर को अपने और निकट बुलाया और पूछा कि क्या तुम्हें मालूम है कि जुबैदा ने दोनों कुतियों को क्यों पीटा और अमीना के कंधों और बाँह पर काले दाग कैसे हैं।

मजदूर ने कहा कि मैं भगवान की सौगंध खाकर कहता हूँ कि मुझे कुछ भी नहीं मालूम। मैं तो इस घर में आज ही आया हूँ और इस घर में यही तीन स्त्रियाँ रहती हैं। खलीफा और फकीरों ने सोचा था कि वह आदमी उन स्त्रियों का सेवक होगा। अब सबको विश्वास हो गया कि भेद खुलने की कोई संभावना नहीं है।

लेकिन खलीफा हार मानने को तैयार नहीं हुआ। उसने कहा, हम लोग सात मर्द हैं और यह सिर्फ तीन औरतें। हम सब मिलकर इनसे इस भेद को पूछें। अगर यह लोग खुशी-खुशी बता दें तो ठीक है नहीं तो हम जोर-जबर्दस्ती करके भी इनसे बात उगलवा लेंगें।

मंत्री की राय इसके विपरीत थी। उसने खलीफा के कान में कहा, 'हम सबका यहाँ पर बड़ा स्वागत-सत्कार किया गया है ओर गाने-बजाने से भी हमारा मनोरंजन हुआ है। ऐसी दशा में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं है। फिर आप यह भी देखें कि इन स्त्रियों ने किस शर्त पर हमें अपना अतिथि बनाया है; हमने भी उनकी यह शर्त मानी है कि हम कुछ पूछताछ नहीं करेंगे। अगर हम अपना यह वादा तोड़ेंगे तो यह लोग क्या हमें बेईमान नहीं कहेंगी? और उन्होंने हमारे लिए ऐसा कहा तो हमारे लिए डूब मरने की बात होगी।'

मंत्री ने आगे समझाया, 'आप यह भी विचार कर लें कि जब इन स्त्रियों ने हमारे सामने इतने आत्मविश्वास से चुप रहने की शर्त रखी है तो मालूम होता है कि इनके पास कोई ऐसी शक्ति है जिससे यह लोग शर्त तोड़ने वाले को दंड भी दे सकती हैं। ऐसा हुआ तो हमारे लिए और भी लज्जा की बात हो जाएगी चाहे हम बाद में इन्हें कितना भी दंड दे दें। ...मुझे यह भी कहना है कि अब रात बीता ही चाहती है। इस समय आप कुछ न कहें। सवेरा होने पर मैं इन सारी स्त्रियों को पकड़कर आपके दरबार में ले आऊँगा और आप जो चाहे इनसे पूछ लीजिएगा।'

खलीफा को ऐसी जिद सवार हुई कि उसने ऐसे सत्परामर्श पर कान न दिया और मंत्री को झिड़क दिया कि तुम चुप रहो, मैं सुबह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता। उसने फकीरों से कहा कि तुम इस बात को जुबैदा से पूछो। उन्होंने इनकार कर दिया कि हमारा साहस नहीं है। फिर उन सबने जोर देकर मजदूर को यह पूछने पर राजी कर लिया।

जुबैदा ने इन लोगों को खुसर-पुसर करते देखा तो उनसे पूछा कि तुम लोग आपस में क्या बात कर रहे हो। मजदूर ने कहा, 'सुंदरी, मेरे साथी जानना चाहते हैं कि आप दोनों कुतियों को निर्दयतापूर्वक पीटकर क्यों रोई और जो स्त्री अपनी सुध-बुध खो बैठी उसके कंधों और बाँहों पर काले दाग कैसे हैं।' जुबैदा यह सुनकर आग-बबूला हो गई। उसने सब लोगों से पूछा कि क्या तुम सब ने मजदूर से कहा था कि यह बातें मुझसे पूछे। सबने एकमत होकर कहा कि जाफर को छोड़कर हम सभी यह बातें जानना चाहते थे और हमने मजदूर से कहा था कि आपसे यह बातें पूछे। जुबैदा ने कहा, 'तुम सभी लोग बेईमान हो। तुम सब ने प्रतिज्ञा की थी कि यहाँ की किसी बात के बारे में कुछ न पूछोगे और तुम अपनी उत्सुकता पर बिल्कुल संयम न कर सके। हमने दया करके तुम सबको रात का ठिकाना दिया और तुम एक साधारण-सी प्रतिज्ञा न निभा सके। अब तुम्हारा सत्कार मेरे लिए बिल्कुल आवश्यक नहीं है और तुम लोगों को अपने किए का फल भुगतना चाहिए।'

यह कह कर जुबैदा ने धरती पर पाँव पटक कर तीन बार ताली बजाई और जोर से कहा, 'तुरंत आओ।' उसके यह कहते ही एक द्वार खुल गया और उसमें से सात बलवान हब्शी नंगी तलवारें लिए निकले और एक-एक हब्शी ने एक-एक आदमी को जमीन पर पटक दिया और उनके सीने पर चढ़ बैठे और सब की तलवारें म्यान से बाहर निकल आईं। खलीफा क्षोभ और लज्जा के मारे मरा जा रहा था, उसे ऐसे व्यवहार की क्या आशा हो सकती थी।

हब्शियों के मुखिया ने जुबैदा से पूछा, 'श्रेष्ठ सुंदरी, आपकी क्या आज्ञा है? क्या हम इन लोगों को यहीं खत्म कर दें?' जुबैदा ने कहा, 'नहीं, कुछ देर ठहर जाओ। पहले इन लोगों से यह तो पूछ लें कि यह कौन हैं और क्यों आए थे।' यह कहकर उसने सातों मेहमानों से कहा कि तुम लोग अपना-अपना हाल बताओ।

मजदूर ने रो कर कहा, 'भगवान के लिए मुझे छोड़ दो। मेरा कोई दोष नहीं है। मैं तो इन लोगों के बहकावे में आ गया। काने फकीर जहाँ जाएँगे वहीं दुर्भाग्य लाएँगे।' जुबैदा को यह सुनकर हँसी आ गई। वह बोली, 'ऐसे कोई नहीं छूटेगा। पहले हर आदमी अपना हाल बताए कि वह वास्तव में कौन है, कहाँ से आया है, उसमें क्या-क्या गुण हैं और यहाँ आने का क्या कारण है। इन बातों में जरा-सा भी झूठ हुआ तो फौरन उसकी गर्दन मारी जाएगी।'

परेशान तो सभी थे लेकिन खलीफा हारूँ की व्याकुलता स्वभावतः ही सबसे अधिक बढ़ी-चढ़ी थी। उसने एक बार सोचा कि वैसे तो इस स्त्री के पंजे से निकला नहीं जा सकता किंतु यदि वह अपना ठीक-ठीक परिचय तुरंत दे दे तो जरूर मेरा सम्मान करेगी। उसने धीमे से मंत्री से सलाह ली। उसने कहा कि आपके सम्मान की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि अभी हम लोग चुप रहें। जुबैदा ने तीनों फकीरों से पूछा कि क्या तुम तीनों भाई हो? एक ने उत्तर दिया कि हम भाई नहीं हैं; एक-से कपड़े जरूर पहनते हैं और साथ रहते हैं। जुबैदा ने फिर पूछा कि क्या तुम लोग जन्मतः ही एकाक्ष हो। उनमें से एक ने कहा कि ऐसा नहीं है; हम पर ऐसी विपत्तियाँ पड़ीं जो न केवल जानने बल्कि इतिहास में लिखे जाने योग्य हैं, उन्हीं से हमारी आँखें जाती रहीं और उन्हीं के कारण हमने अपनी दाढ़ी-मूँछ और भवें मुँडवा डाली और फकीर बन गए।

जुबैदा ने एक-एक करके शेष दो फकीरों से भी यही प्रश्न किए और दोनों ने वही उत्तर दिए जो पहले फकीर ने दिए थे। तीसरे ने यह भी कहा, 'आप अनुमति दें तो हम लोग अपना वृत्तांत विस्तृत रूप से कहें। हम तीनों की भेंट आज ही शाम को इस नगर में हुई है क्योंकि हम तीनों बाहर से आए हैं। विश्वास मानिए कि हम तीनों ही राजकुमार हैं और हमारे पिता बड़े और प्रख्यात बादशाह हैं। हम सब चाहते हैं कि अपना वृत्तांत विस्तृत रूप से कहें।'

उन लोगों की बातों से जुबैदा का क्रोध कम हुआ। उसने हब्शियों से कहा, 'तुम लोग इनके सीने से उतर आओ। यह लोग बैठकर अपना-अपना हाल कहेंगे। जो-जो अपना पूरा हाल और इस घर में आने का कारण बताता जाए उसे छोड़ते जाओ ताकि वह जहाँ चाहे चला जाए। जो ऐसा न करे तुम उसका सिर उड़ा दो। अभी तुम इन लोगों के पीछे नंगी तलवारें लिए खड़े रहो।' चुनांचे उसी दालान में खलीफा और अन्य 6 लोगों को एक कालीन पर बिठा दिया गया। हर आदमी के पीछे एक हब्शी नंगी तलवार लेकर खड़ा हो गया ताकि जुबैदा का इशारा होते ही उसका वध कर दे। सबसे पहले मजदूर ने अपनी बात कही।

***