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धनिया - Novels
by Govardhan Yadav
in
Hindi Moral Stories
भिनसारे उठ बैठती धनिया और बाउण्ड्री वाल से चिपकर खड़ी हो जाती। उसकी खोजी नजरें, पहाड़ों की गहराइयों में अपना गाँव खोजने में व्यस्त हो जातीं। गहरे नीले-भूरे रंग के धुंधलके की चादर ताने, जंगल अब तक सो रहा था। इक्का-दुक्का चिडिय़ा फरफरा कर इस झाड़ से उड़ती और दूसरी पर जा बैठती। सोचती, आज तो कड़ाके की ठंड है। पंखों को फुलाकर वह अपने शरीर को गर्माने लगती।
काफी देर बाद सूरज उगा। उनींदा सा। अलसाया सा। थका-थका सा। पीलापन लिए हुए। जंगल में अब भी कोई हलचल नहीं हो रही थी। चारों तरफ सन्नाटा, मौत की सी खामोशी लिए पसरा पड़ा था।
धनिया गोवर्धन यादव 1 भिनसारे उठ बैठती धनिया और बाउण्ड्री वाल से चिपकर खड़ी हो जाती। उसकी खोजी नजरें, पहाड़ों की गहराइयों में अपना गाँव खोजने में व्यस्त हो जातीं। गहरे नीले-भूरे रंग के धुंधलके की चादर ताने, जंगल ...Read Moreतक सो रहा था। इक्का-दुक्का चिडिय़ा फरफरा कर इस झाड़ से उड़ती और दूसरी पर जा बैठती। सोचती, आज तो कड़ाके की ठंड है। पंखों को फुलाकर वह अपने शरीर को गर्माने लगती। काफी देर बाद सूरज उगा। उनींदा सा। अलसाया सा। थका-थका सा। पीलापन लिए हुए। जंगल में अब भी कोई हलचल नहीं हो रही थी। चारों तरफ सन्नाटा,
धनिया गोवर्धन यादव 2 खुशनुमा सुबह नहीं थी आज की। भयमिश्रित मातमी एकांत में भीगी हुई थी। दादू को तो जैसे काठ मार गया था। मां के अंदर गहरे तक मोम ही जम आई थी। दादू से गिड़गिड़ाते हुए ...Read Moreकारण जानना चाहा तो उसकी बूढ़ी आंखों से टपाटप आँसू बह निकले और जब वह माँ के पास पहुंची कारण जानने, तो बजाय कुछ कहने के उसने उसे सीने से चिपका लिया और फफक कर रो पड़ी। वह लगातार रोए जा रही थी। शंका और कुशंकाओं के जहरीले नाग उसके कोमल मन में, आंगन में, यहाँ-वहाँ विचरने लगे थे। जब
धनिया गोवर्धन यादव 3 गहरी नींद में सो रही धनिया। चर्र-मर्र चर्र-मर्र की आवाज सुनकर वह जाग गई। उसने ध्यान से उस आवाज को पहचानने की कोशिश की “अरे- ये तो बैलगाडिय़ों की चलने की आवाज है। याने कि ...Read Moreहॉट भरेगा। उसने सहज में अंदाज लगा लिया। पहाड़ों के कंधों पर से एक सर्पाकार सड़क रेंगते हुए आती है और इस गाँव को छूते हुए दूर निकल जाती है। सड़क कहाँ से आती है और कहाँ चली जाती है उसे नहीं मालूम, पर वह इतना जरूर जानती है कि व्यापारी लोग दूर-दूर से अपनी-अपनी गाडिय़ों में माल लादे रातभर
धनिया गोवर्धन यादव 4 अब आए दिन ओझा के उत्पात बढ़ते ही चले गए। कभी वह अस्पताल आकर डाक्टर को धमकी दे जाता तो कभी धनिया को। कभी-कभी तो वह पूरे परिवार को जादू-मंतर से मार डालने की धमकी ...Read Moreजाता। डाक्टर के परिवार को आतंकित करने के लिए वह आटे का पुतला बनाता। हल्दी कुमकुम से उसे लाल-पीला कर देता और डाक्टर की चौखट पर धर आता। कभी नींबू में कीलें टोंच देता और दरवाजे पर बांध आता। यह काम वह बड़ी सफाई से देर रात करता ताकि कोई उसे आता-जाता न देख पाए। आखिरकार तंग आकर डाक्टर ने
धनिया गोवर्धन यादव 5 पहाड़ की चोटी से उतरती देनवा अपनी अधिकतम गति से शोर मचाती हुई आती है और फिर एक बड़ी-सी पहाड़ी पर से झरना का आकार लेते हुए गहराईयों में छलांग लगा जाती है। तेजी से ...Read Moreगिरती हुई जलराशि, एक अट्टहास पैदा करते हुए झाग उगलने लगती है। साथ ही चारों ओर धुआं-सा भी उठ खड़ा होता है। नदी में बनते भंवरों ने पहाड़ में जगह-जगह सुराख-से भी बना डाले थे। यह प्रक्रिया एक दो दिन की नहीं बल्कि बरसों से सतत चल रही प्रक्रिया का नतीजा था। आदमी एक सुराख में पूरा समा जाए इतनी