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बात बस इतनी सी थी - Novels
by Dr kavita Tyagi
in
Hindi Moral Stories
माता-पिता की इकलौती संतान के रूप में कुल को आबाद रखने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ढोता हुआ मैं अपने जीवन के चालीस बसंत पार कर चुका था, किंतु अभी तक मुझे अपने लिए अपने मन कोई रानी नहीं मिल सकी थी ।
उधर बुढ़ापे की चौखट पर खड़े हुए माता-पिता का अत्यधिक दबाव था कि मैं जल्दी-से-जल्दी शादी संपन्न करके उनकी वंश बेल को आगे बढ़ाऊँ और उनके सेवा-निवृत्त जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करने के लिए उन्हें एक जीता-जागता खिलौना भेंट कर दूँ ! लेकिन इस मेरे लिए यह इतना सरल नहीं था, जितना मेरे माता-पिता समझते थे ।
बात बस इतनी सी थी 1 माता-पिता की इकलौती संतान के रूप में कुल को आबाद रखने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ढोता हुआ मैं अपने जीवन के चालीस बसंत पार कर चुका था, किंतु अभी तक मुझे अपने ...Read Moreअपने मन कोई रानी नहीं मिल सकी थी । उधर बुढ़ापे की चौखट पर खड़े हुए माता-पिता का अत्यधिक दबाव था कि मैं जल्दी-से-जल्दी शादी संपन्न करके उनकी वंश बेल को आगे बढ़ाऊँ और उनके सेवा-निवृत्त जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करने के लिए उन्हें एक जीता-जागता खिलौना भेंट कर दूँ ! लेकिन इस मेरे लिए यह इतना सरल नहीं था,
बात बस इतनी सी थी 2 अगले दिन मिस मंजरी लंच टाइम में मेरे केबिन में आयी । लेकिन आज वह खाली हाथ नहीं थी । उसके हाथों में लंच बॉक्स था । आते ही उसने लंच बॉक्स मेरी ...Read Moreबढ़ाते हुए कहा - "घर का बना हुआ है, खा लेना !" कहते हुए वह मेरे केबिन से बाहर निकल गयी । मैंने उसके हाथ से लंच बॉक्स लेते हुए उसका व्यवहार देखकर उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की थी और उसकी तरफ आश्चर्य तथा प्रश्नात्मक मुद्रा में देखा था, लेकिन मेरी ओर देखे बिना ही वह सीधे
बात बस इतनी सी थी 3 जब मैं वहाँ से वापिस लौटा, तब मंजरी अपने केबिन में नहीं थी । मैं खुद से ही पूछने लगा - "कहाँ गयी होगी ? क्यों गयी होगी ? कहीं मेरे व्यवहार से ...Read Moreहोकर तो नहीं गयी होगी ?" शाम तक बहुत व्यग्रतापूर्वक मैं अपने प्रश्नों में उलझता रहा । अन्ततः, जब ऑफिस छोड़ने का समय हुआ, मेरी नजर मेज पर करीने से रखे हुए एक कागज पर पड़ी, जिस पर लिखा था - "कल अपनी माता जी को साथ लेकर मेरे मम्मी-पापा से मिलने के लिए मेरे घर पर आ जाना !"
बात बस इतनी सी थी 4 मंजरी की माँ ने जब देखा कि पुरोहित के मत का समर्थन करते हुए मंजरी के पिता खुद ही अपनी बेटी के पक्ष को कमजोर कर रहे हैं, तब वह आगे आकर बोली ...Read More"ठीक ही तो कह रही है बेटी ! क्या ऐसी तर्कहीन और विवेकहीन परंपराओं का अंधा अनुकरण करना जरूरी है, जिनका अर्थ और महत्व समाज भूल चुका है ! समाज की अर्थहीन जंजीरों को तोड़कर एक बेटी अपने अस्तित्व को महत्व दे रही है, तो इसमें गलत क्या है ? शरीर से स्वस्थ, बुद्धि और विवेक से संपन्न और संवेदनशील
बात बस इतनी सी थी 5 मंजरी ने महसूस किया कि पापा का उसके लिए प्यार ही उसके पापा की सबसे बड़ी कमजोरी है ! उसने यह भी महसूस किया कि यदि उसके पिता को अपने मान-सम्मान की रक्षा ...Read Moreसाथ बेटी के सुख का निश्चय हो जाए, तो उसके पापा उसका समर्थन जरूर करेंगे ! उसने एक बार अपने मन-ही-मन में दोहराया - "शक्ति को ही समर्थन मिलता है ! मुझे एक बार अपनी शक्ति इन सबको दिखानी ही होगी ! यह कहा जा सकता है कि इस समय शक्ति के लिए समर्थन जरूरी है और समर्थन के लिए