अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - Novels
by Rajnish
in
Hindi Short Stories
अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य (भाग - 1) चारों तरफ दर्शक दीर्घा को देखते हुए.... विवेक बंसल: यश! कुछ भी हो, आज भी लड़कियों के बीच में तुम्हारा जादू बरकरार है (चुटकी लेते हुए) तभी उद्घोषणा कक्ष से सूचना प्रसारित ...Read Moreहै। "सभी प्रतियोगी अपनी जगह ले ले"। रेस बस कुछ ही समय में शुरू होने जा रही है। विवेक बंसल: गुड लक यश! यश : स्ट्रेचिंग और वॉर्म अप करते हुए, विवेक को विनिंग सिंबल दिखाता है। रेफरी माइक पर सबको सावधान करते हैं। यश अपनी पोजिशन लेते हुए एक झलक सूर्य की तरफ देखता है। सूर्य की तेज़ किरणें
अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य (भाग - 1) चारों तरफ दर्शक दीर्घा को देखते हुए.... विवेक बंसल: यश! कुछ भी हो, आज भी लड़कियों के बीच में तुम्हारा जादू बरकरार है (चुटकी लेते हुए) तभी उद्घोषणा कक्ष से सूचना प्रसारित ...Read Moreहै। "सभी प्रतियोगी अपनी जगह ले ले"। रेस बस कुछ ही समय में शुरू होने जा रही है। विवेक बंसल: गुड लक यश! यश : स्ट्रेचिंग और वॉर्म अप करते हुए, विवेक को विनिंग सिंबल दिखाता है। रेफरी माइक पर सबको सावधान करते हैं। यश अपनी पोजिशन लेते हुए एक झलक सूर्य की तरफ देखता है। सूर्य की तेज़ किरणें
अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य(भाग - 2)वो युवक कोई और नहीं बल्कि मेजर यशवर्धन हैं।यश: ओह माय गॉड !! ऐसे मिलोगी, सोचा न था ? (आश्चर्य और खुशी व्यक्त करते हुए)कहां जा रही थी...कि खुद का भी होश नहीं...?अवंतिका: बस ...Read Moreही घर तक।यश : आओ तुम्हें छोड़ दूं।यश गाड़ी का दरवाजा खोलकर उसे अंदर बैठने में मदद करता है, फिर गाड़ी स्टार्ट करता है और अवंतिका को पीने का पानी देते हुए।यश: लो पानी पियो। गर्मी से तुम्हारेे चेहरेे पर पसीने की बूंदे टपक रहीं हैं।यश गाड़ी का एसी ऑन करते हुए।यहां हॉस्पिटल रोड पर क्या किसी मरीज को देखने
अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य(भाग - ३)अवंतिका: थैंक्यू यश! (रुंधे गले से)ऐसे समय पर तुमने आकर मुझे जो सहारा दिया है। उसको मैं बयां नहीं कर सकती।कहकर अवंतिका सिसकते हुए उसके गले लग जाती है।यश उसे सांत्वना देता है।समय बीतता ...Read Moreके बच्चे का सफल ऑपरेशन हो जाता है। इस बीच यश का अवंतिका से मिलना नहीं हो पाता।एक दिन कॉफी शॉप पर..यश: आज कैसे, सुबह सुबह याद किया।अवंतिका: तुमने कठिन समय में मेरी जो मदद की उसका ढंग से आभार भी प्रकट नहीं कर पाई। अब जब वो स्वस्थ है तो सोचा समय निकालकर तुमसे कुछ बात करूं।यश: हम दोस्त
अक्षयपात्र: अनसुलझा रहस्य(भाग - ४)अवंतिका वापस दिखाई देने लगती है।सैम: अवंतिका तुम गायब कैसे हो गई?अवंतिका: मैंने इन पलाश के फूलों की कुछ पंखुड़ियां अपनी जीभ पर रखी थी। पर प्लीज़, ये गायब वायब बोलकर तुम दोनों मुझे डराओ ...Read Moreअवंतिका इधर देखो (मुंह में पलाश के फूल की पंखुड़ी रखते हुए)देखते ही देखते सैम अवंतिका की आंखों के सामने से ओझल हो जाता है।अवंतिका: सैम....!!!!इसका मतलब मैं सच में दिखाई नहीं दे रही थी। जबकि मैं यहीं थी, तुम दोनों के सामने (आश्चर्य प्रकट करते हुए)यश: हां, अवंतिका!सैम पंखुड़ियों के मुंह में घुलते ही वापस दिखने लगता है।सैम: रात
अक्षयपात्र: अनसुलझा रहस्य(भाग - ५)अनजान स्त्री (सैम से): मैं यहां के राजा मंडूकराज की पुत्री नयनतारा हूं। अगर तुम्हें राजा के सैनिकों ने यहां देख लिया तो वो तुम्हें मौत के घाट उतार देंगे।सैम (विस्मृत सा): मंडूक ? समझा ...Read Moreक्या तुम एक राजा की बेटी हो? और अगर ' हां ' तो फिर पूल और जकूजी नहीं क्या तुम्हारे महल में?नयनतारा को लगता है कि वो उसकी बातों को सही से समझा नहीं। तो वो एक सूखी पतली लकड़ी लेती है और उस टहनी के द्वारा, धरा पर लकीरों से मंडूक का चित्र उकेरती है।...और उसे इशारे से बताती
अक्षयपात्र: अनसुलझा रहस्य(भाग - ६)परीक्षित पांडुओ के अकेले उत्तराधिकारी थे। परीक्षित जब राजसिंहासन पर बैठे तो महाभारत युद्ध की समाप्ति हुए कुछ ही समय हुआ था, इन्हीं के राज्यकाल में द्वापर का अंत और कलयुग का आरंभ होता है। ...Read Moreदिन राजा परीक्षित ने सुना कि कलयुग उनके राज्य में घुस आया है और अधिकार जमाने का मौका ढूँढ़ रहा है।एक दिन राजा परीक्षित शिकार पर जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीटते हुए दिखा। राजा ने अपना रथ रुकवाया और क्रोधित होकर उस व्यक्ति से पूछा- ‘तू कौन अधर्मी है,
अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य(भाग - ७)तीनों ध्यान लगाकर एक विशेष दिन की कहानी को हृदय की गहराइयों से स्मरण करते हैं।...और मायाजाल अपना असर दिखाना शुरू करता है।कुछ समय पश्चात...उन तीनों को एक मोर के बोलने का आभास होता ...Read Moreसुंदर सा मोर अपने पंख फैलाए उनके ऊपर से आंशिक उड़ान भरता हुआ ऋषि शुकदेव के पास विचरण करने लगता है।तीनों ही सफेद पलाश के फूलों की झाड़ियों में छिपकर शुकदेव के भागवत खत्म करने की प्रतीक्षा करते हैं।शुकदेव: राजन, अपने मन से भय को समाप्त करिए। ये सब परमपिता ब्रह्मा के आशीर्वाद और उनके काल गणना के अनुसार ही