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अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 5

अक्षयपात्र: अनसुलझा रहस्य

(भाग - ५)


अनजान स्त्री (सैम से): मैं यहां के राजा मंडूकराज की पुत्री नयनतारा हूं। अगर तुम्हें राजा के सैनिकों ने यहां देख लिया तो वो तुम्हें मौत के घाट उतार देंगे।
सैम (विस्मृत सा): मंडूक ? समझा नहीं? क्या तुम एक राजा की बेटी हो? और अगर ' हां ' तो फिर पूल और जकूजी नहीं क्या तुम्हारे महल में?

नयनतारा को लगता है कि वो उसकी बातों को सही से समझा नहीं। तो वो एक सूखी पतली लकड़ी लेती है और उस टहनी के द्वारा, धरा पर लकीरों से मंडूक का चित्र उकेरती है।
...और उसे इशारे से बताती है कि वो कौन है।

सैम उसकी बातें सुनने के बाद,

सैम (पेट पकड़कर हंसते हुए): मजाक अच्छा कर लेती हो। मतलब तुम एक फ्रॉग मतलब मेंढ़क हो।
हा.. हा.. हा...!!
कौन से जमाने में हो बेब्स? तुम कुछ भी कहोगी और सोचोगी कि मैं आंख बंद करके विश्वास कर लूंगा। इतना बेवकूफ भी नहीं मैं। तुम्हारा जादू मुझ पर नहीं चलेगा। वैसे भी मैं कमिटेड हूं (अपनी सगाई की अंगूठी को उंगलियों से घुमाते हुए)

नयनतारा को उसके उपहास पर बड़ा क्रोध आता है।
उसका मुंह खुलता हैै और मंडूक की तरह उसकी उल्टी जुड़ी लंबी जिह्वा सैम की गर्दन पकड़ लेती है।

सैम की घिग्घी बंध जाती है। सुंदर सी स्त्री के पीछे छिपा इतना भयावह रूप देखकर वो बेहोश हो जाता है।
नयनतारा उसे छोड़ देती है और पानी के छीटें मारकर उसे होश में लाने की कोशिश करती है।

सैम की आंखें खुलती है। वो नयनतारा को देखकर डर और घबराहट में सूखे गले से बमुश्किल थूक को गटक कर नीचे लेते हुए;
सैम: मुझे छोड़ दो, माफ़ कर दो मुझे। जाने दो (कहते हुए)
वो तेज़ी से वहां से भागता है।
नयनतारा उसे उधर जाने से रोकती है कि तभी उसे सैनिक पकड़ लेते है।
दूसरे दिन उसे सभा में प्रस्तुत किया जाता है और मृत्युदंड दिया जाता है।
खी है और कारागार में बैठा कल प्रथम प्रहर में दी जाने वाले मृत्युदण्ड का इंतजार कर रहा है।

उधर अवंतिका देखती है कि उस टेंट में से जो आदमी निकलकर आता है वो बिल्कुल विकराल सा यमदूत जान पड़ता है। उसके चेहरे से ही घिन आ रही है। अपनी बड़ी आंखों से वो वहशी सा दिखने वाला शैतान उसे ऊपर से नीचे तक देखता है और खुशी व्यक्त करते हुए उसे अभद्र इशारे करता है।

उसकी भाषा बिल्कुल अलग, अनसुनी सी है।

उसके ताली बजाते ही कुछ महिलाएं जो शंख, शीप, मोतियों और मणियों से अलंकृत है आकर मुझे उस टेंट में ले जाती है।
अंदर जाते ही वहां के हालात देखकर अवंतिका फिर बेहोश हो जाती है।

दूसरी तरफ वहां रणक्षेत्र में यश को देखकर वो लकड़बग्घा तेज़ी से दौड़ता हुआ आता है और उस पर झपटता है। फुर्ती से यश उससे बचता है और वहां से भागता है। लेकिन लड़खड़ा कर गिर जाता है। वो अपने पैरों कि तरफ देखता है तो आश्चर्य से भर जाता है। उसके दोनों पांव सही है। हर्ष का ठिकाना नहीं रहता। वो अपनी नज़रे दौड़ाता है और ये पाता है कि वापस गुफा में जानें या रण क्षेत्र से बाहर निकलने के सारे रास्ते बन्द है। बिना युद्ध में भाग लिया और उसे जीते बाहर जाना संभव नहीं है। यश खुद को इस लड़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहा है।

वहीं वो लकड़बग्घा यश पर आक्रमण कर चुका है और उसके गर्दन के मुलायम मांस को फाड़ने के लिए अपने जबड़े फैला देता है।

अवंतिका को होश आता है। उसके सामने ढेरों स्त्रियां उस व्यक्ति के लिए सेक्स स्लेव का कार्य करती दिख जाती हैं। तभी वहां चीख पुकार सुनाई देने लगती है। सब यहां वहां भागते नजर आने लगते है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा। बाहर जाकर देखने पर वो ब्रिटिश फौज को वहां देखती है। उसे ऐसा महसूस होता है जैसे वो उस समय में पहुंच गई है जब बड़े देश दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जीत हासिल करके शक्ति, प्रतिष्ठा, सामरिक लाभ, सस्ता श्रम, प्राकृतिक संसाधन और नये बाज़ार हासिल कर उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को बढ़ावा दे रहे थे। खैर वो उन जनजातीय लोगों के बीच फंसी थी जो शायद ग़ुलाम बनाकर उसे कहीं बेच देते। लेकिन ब्रिटिश सेना के हमले से ये जनजातीय लोग वहां से भागते है। कुछ संघर्ष करते है। तभी बम धमाके की आवाज होती है।
...और अवंतिका की आंखें खुलती है।
खुद को वो पसीने से तरबतर भीगा हुआ पाती है। खुद को टटोलती है। फिर अपने आस पास देखती है।
फिर वो सैम, यश की तरफ देखती है और उन्हें आवाज़ देती है। दोनों ही गहरी निद्रा में सो रहे है। सैम को झकझोर के उठाती हैं पर वो नहीं उठता। वो यश के कान के पास उस शंख को फोड़ देती है।

यश चौक कर उठता है और अवंतिका को दूर धकेल देता है। अपने गले को जांचता है और सब सही पाता है। अब उसे वो लकड़बग्घा नहीं दिख रहा जो उसे खा जाने को आतुर था। अवंतिका को सॉरी बोलते हुए यश उठ खड़ा होता है और बताता है कि उसे बेहद खतरनाक सपना आया था।

उधर सैम को जल्लाद नहला धुलाकर, गर्दन काटने के लिए उसका सिर लकड़ी के फ्रेम में रखता है।...सैम आंखों में आसूं लिए अपने आखिरी क्षणों में प्रभु ईशु को याद करता है।
जल्लाद फरसे को हाथ में ऊपर उठाकर तीव्र वार कर देता है।
तभी धमाके की आवाज सैम को सुनाई देती है और वो खुद को यश और अवंतिका के बीच में पाता है।
सैम भी उन दोनों को अपने सपने साझा करता है जिसमें वो खुद को अजीब परिस्थितियों में फंसा हुआ और अपने जीवन को खत्म होते हुए देखता है।
तीनों दोस्त कुछ क्षणों के लिए एक दूसरे के गले लगकर अपने डर और दर्द को कम करने का प्रयास करते है। सबकी आंखें नम है।...सभी मौत के मुंह से निकलकर जो आए हैं। सब एक ऐसे सपने और भ्रम की दुनियां में फंस गए थे कि उनका शरीर तो यहां था पर मन कहीं और।

अवंतिका : यश, सैम... जो हमने सपने और भ्रम की दुनियां देखी और महसूस की शायद वो इस गुफा का कोई तिलिस्म है। जो हमें भ्रम और सपनों की दुनिया में ले गया..और हम उसे जीने लगे।

सैम: अवंतिका, अब हमें यहां से किसी भी तरह निकलना है।

तीनों दोस्त काफ़ी प्रयत्न करते है पर वहां से बाहर निकलने का उन्हें कोई विकल्प नहीं दिखता।

यश: अवंतिका, वो दीवार पर लिखी कहानी पढ़ो और देखो क्या हमें बाहर निकलने का कोई सुराग मिल सकता है।

अवंतिका पढ़ना शुरू करती है,
महाभारत काल में, कौरवो ने युद्ध मे छल से युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए योजना बनाई। क्यूंकि युद्ध जीतने पर वहीं कुरूवंश के उत्तराधिकारी होते। तब द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह की रचना की जिसका तोड़ सिर्फ अर्जुन और उनके पुत्र अभिमन्यु ही जानते थे। हालांकि अभिमन्यु सिर्फ चक्रव्यूह को तोड़कर प्रवेश करना जानता था लेकिन चक्रव्यूह से बाहर आना नहीं। उन्होंने योजना बनाकर अर्जुन को युद्ध स्थल से दूर कर दिया।
अभिमन्यु, युधिष्ठिर को बचाने के लिये चक्रव्यूह में घुस जाता है।
पांडव वंशज अभिमन्यु, अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र था। सुभद्रा कृष्णजी की छोटी बहन थी। अभिमन्यु अर्जुन की तरह ही परम वीर था। लेकिन दुर्योधन के सात महारथी छल से अकेले अभिमन्यु का वध कर देते है। अभिमन्यु की पत्नी विराट नगर की राजकुमारी उत्तरा थी जो उस समय गर्भवती थी। अभिमन्यु की मौत के बाद उत्तरा एक बेटे को जन्म देती है । भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक का नाम 'परीक्षित' रखा, क्योंकि वह कुरुकुल के परिक्षीण (नाश) होने पर उत्पन्न हुआ था।

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(डिस्क्लेमर : यहां बताई गई सभी बातें, स्थल, विचार, कथा सब काल्पनिक है। पौराणिक बातों का उल्लेख सिर्फ कहानी को रोचक बनाने के लिए किया गया है। इसका मकसद किसी की भी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने का नहीं है।)

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क्रमशः